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विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र बनाने के लिये उपाय

विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र बनाने के लिये उपाय
विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र बनाने के लिये उपाय

विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र बनाने के लिये उपाय

विद्यालय समाज का केन्द्र है। यह वह संस्था है जिसके द्वारा सम्पूर्ण समाज की विभिन्न आवश्यकताएँ पूर्ण की जाती हैं। वस्तुतः शिक्षा एक सामाजिक समस्या है एवं समाज विद्यालय को यह कार्य सौंपता है कि युवकों का प्रशिक्षण इस विधि से करे कि समाज के जिस समुदाय में वे रहते हैं वहाँ वे प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें। विद्यालय में जिन विषयों का अध्यापन कराया जाय, वे बाह्य समाज के जीवन से सम्बन्धित होने चाहिये। बालकों को पुस्तकों, कार्यों तथा सामाजिक सम्पर्कों द्वारा सामाजिक विरासत को सीखना पड़ता है। अतः बालकों को सामाजिक विरासत एवं सामाजिक विधि से जोड़ने एवं मानव के संचित अनुभवों का ज्ञान प्रदान करने का कार्य विद्यालय को सौंपा गया है। इससे स्पष्ट है कि विद्यालय व्यक्ति तथा समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने वाला साधन है। विद्यालय में कोई भी समाज अपनी शिक्षा के अभाव में अपने अस्तित्व को सुरक्षित नहीं रख सकता। जीवन की प्रगति एवं सुधार के लिये विद्यालय को समुदाय में एक छोटा समुदाय बनाना होगा। विद्यालय को एक छोटा समुदाय बनाने के लिये स्वयं को सामुदायिक जीवन के केन्द्र के रूप में कार्य करना पड़ेगा। विद्यालय को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाने के उपाय हैं- (अ) समुदाय को विद्यालय के निकट लाया जाये। (ब) विद्यालय को समुदाय के निकट लाया जाये।

(अ) समुदाय को विद्यालय के निकट लाना

समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के उपाय निम्नलिखित हैं-

1. अभिभावक-शिक्षक संघ की स्थापनाअध्यापक एवं अभिभावकों के सम्पर्क हेतु अध्यापक-अभिभावक परिषदों का निर्माण किया जाना चाहिये। समुदाय को विद्यालय तक लाने के लिये अभिभावक-शिक्षक संघ महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। विद्यालय कोई भी सूचना अभिभावकों से प्रश्नावली (Questionnaire) के माध्यम से प्राप्त कर सकता है।

2. समुदाय के सदस्यों को आमन्त्रित करना- विद्यालय को समाज का केन्द्र बनाया जाये, जिससे समाज के सदस्य उसे अपना समझें। विद्यालय में सामुदायिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों को आमन्त्रित करना चाहिये। ये व्यक्ति अपने व्यवसायों एवं अन्य सामाजिक तथ्यों का प्राथमिक ज्ञान प्रदान कर सकते हैं।

3. विद्यालय में सामुदायिक क्रियाओं का आयोजन- विद्यालय में प्रत्येक छात्र सामुदायिक क्रियाओं के आयोजन से विद्यालय तथा समुदाय, दोनों एक-दूसरे के निकट आ सकेंगे एवं छात्र सामुदायिक जीवन के विभिन्न पक्षों के विषय में ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।

4. फिल्म-शो एवं प्रदर्शनी व्यवस्था – फिल्म-शो एवं प्रदर्शनियों के माध्यम से समुदाय एवं विद्यालय में निकटतम् सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते हैं। फिल्मों के माध्यम से के सम्बन्ध में उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।

5. स्थानीय उत्सवों एवं त्योहारों को मनाना- विद्यालय में विभिन्न स्थानीय उत्सव, समुदाय मेलों एवं त्योहारों का आयोजन करके समुदाय एवं विद्यालय को निकट लाया जा सकता है।

6. समाज द्वारा समस्त साधनों से विद्यालय की सहायता – समुदाय एवं विद्यालय के पारस्परिक सम्बन्ध अच्छे एवं सुदृढ़ बने रहने के लिये समाज का मुख्य कर्त्तव्य है कि वह शिक्षालय की उसके कर्त्तव्य की पूर्ति में अपने समस्त साधनों – भौतिक, आध्यात्मिक आदि से सहायता करे।

7. प्रौढ़-शिक्षा केन्द्र की स्थापना- समुदाय के प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के लिये विद्यालय को प्रौढ़ शिक्षा का केन्द्र बनाया जा सकता है। इससे उस समुदाय के प्रौढ़ शिक्षित हो जायेंगे एवं विद्यालय के छात्र प्रौढ़ों के अनुभवों से लाभान्वित भी हो सकेंगे। इस प्रकार विद्यालय एवं समुदाय एक-दूसरे के निकट आ सकेंगे।

(ब) विद्यालय को समुदाय के निकट लाना

विद्यालय को समुदाय के निकट लाने के उपाय अग्रलिखित हैं-

1. पाठ्यक्रम समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल- विद्यालय और समाज के सम्पर्क मधुर बनाने के लिये विद्यालय के पाठ्यक्रम को सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के आधार पर बनाया जाना चाहिये। विद्यालय में समाज की क्रियाओं को लघु रूप से स्थापित किया जाये, जिनका छात्र व्यावहारिक रूप से ज्ञान प्राप्त कर सकें। अत: विद्यालय के पाठ्यक्रम का आधार समाज की आवश्यकताएँ हों।

2. साक्षात्कार द्वारा सूचना एकत्रीकरण- छात्र समुदाय के लोगों से साक्षात्कार करके विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित कर सकते हैं। इस प्रकार प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्ति के लिये साक्षात्कार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

3. सामाजिक शिक्षा की व्यवस्था – समुदाय की संस्कृति से अवगत होने के लिये छात्रों को नगरों या गाँवों में जाकर शिक्षाप्रद सांस्कृतिक कार्यक्रमों, भजन, कीर्तन, नाटकों आदि की व्यवस्था करनी चाहिये। अंतः शिक्षा एवं छात्रों को इन कार्यक्रमों में विशेष रुचि लेनी चाहिये।

4. सामुदायिक कार्यों में सक्रिय सहभागिता – शिक्षक को सामाजिक क्रियाकलापों के क्रियान्वयन हेतु उनका नेतृत्व ग्रहण करना चाहिये। छात्रों को भी समाजोपयोगी कार्यों में रुचि लेनी चाहिये।

5. समाज-सेवा सप्ताहों का आयोजन- विद्यालय को समुदाय के निकट जाने के लिये श्रमदान सप्ताह, स्वच्छता सप्ताह, साक्षरता सप्ताह आदि का आयोजन करना चाहिये। इन अवसरों पर छात्र तथा शिक्षक शहर तथा गाँवों में जाकर श्रमदान, सफाई तथा निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिये कार्य कर सकते हैं। इन कार्यक्रमों द्वारा छात्रों को सामाजिक जीवन का ज्ञान कराया जा सकता है।

6. क्षेत्र – पर्यटन का आयोजन-क्षेत्र पर्यटन का उद्देश्य विषय का स्पष्टीकरण या समस्या का समाधान खोजना होना चाहिये। इनके माध्यम से छात्र स्थानीय परिस्थितियों का प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण कर सकते हैं।

7. समाज-सेवा संघों का निर्माण- समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिये छात्रों एवं अध्यापकों को अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिये। विद्यालयों में समाज-सेवा संघों का निर्माण करना चाहिये। ये संघ महामारी फैल जाने पर, बाढ़ के समय, किसी उत्सव अथवा जुलूस के अवसर पर, समाज के लोगों की सहायता से समाज के ही लोगों की सहायता करेंगे। अतः ये संघ निर्धन और जरूरतमन्द छात्रों की सहायतार्थ भी कार्य कर सकते हैं।

8. उपर्युक्त शिक्षण-विधियों का प्रयोग- विद्यालय में उन शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाये, जिनके द्वारा छात्र तथा शिक्षक समाज के सम्पर्क में आ सकें। उपयुक्त एवं सुरुचिपूर्ण शिक्षण-विधियाँ भी विद्यालय एवं समाज को निकट लाने में सहायक हो सकती हैं।

9. समुदाय के समस्त शैक्षिक साधनों से सम्पर्क- बालक विद्यालय के अतिरिक्त शिक्षा प्राप्ति के अनौपचारिक साधनों द्वारा भी अनुभव प्राप्त करता है। विद्यालय को इन समस्त साधनों (परिवार, धर्म, रेडियो, टी. वी. (दूरदर्शन), राज्य आदि) से सम्पर्क स्थापित करना चाहिये। इस प्रकार के सम्पर्क छात्रों का सर्वांगीण विकास करने तथा समाज की समस्याओं के समाधान हेतु सहायता प्रदान करेंगे और समाज तथा विद्यालय एक दूसरे के निकट आ सकेंगे।

10. ग्रामीण समाज एवं बालिकाओं की शिक्षा- देश में शिक्षा का प्रसार करने के लिये गाँवों की ओर विशेष ध्यान देना होगा। विद्यालयों को ग्रामीण समाज के निकट लाने के लिये ग्रामीण विद्यालयों में कृषि-शिक्षा, पशु-चिकित्सा आदि विषयों को पाठ्यक्रम में विशेष स्थान प्रदान करना होगा। समय-समय पर ग्रामीण विद्यालय के छात्रों तथा शिक्षकों द्वारा ग्रामीणों के पास जाकर उनको स्वास्थ्य के सामान्य सिद्धान्तों का ज्ञान कराना चाहिये। यदि छात्र एवं शिक्षक, ग्रामीणों में फैले अज्ञान को दूर करने के तथा अन्धविश्वासों को मिटाने का प्रयत्न करते रहेंगे तो विद्यालय तथा समुदाय के मध्य की खाई शीघ्र ही पट जायेगी।

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