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बचपन बचाओ आन्दोलन | मलाला युसुफ़ज़ई की जीवनी | मलाला युसुफजई का योगदान

बचपन बचाओ आन्दोलन
बचपन बचाओ आन्दोलन

बचपन बचाओ आन्दोलन और मलाला युसुफजई का योगदान

बचपन बचाओ आन्दोलन भारत में एक आन्दोलन है जो बच्चों के हित और अधिकारों के लिये कार्य करता है। सन् 1980 में बचपन बचाओ आन्दोलन का आरम्भ कैलाश सत्यार्थी ने किया था जो अब तक 80 हजार से अधिक मासूमों के जीवन को नष्ट होने से बचा चुके हैं। बाल मजदूरी कुप्रथा भारत में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। कैलाश सत्यार्थी ने श्रमिक बच्चों को इस अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। कैलाश सत्यार्थी के अनुसार बाल मजदूरी मात्र एक समस्या नहीं है, बल्कि कई समस्याओं की जड़ है। इसके कारण अनेक जीवन नष्ट होते हैं। सत्यार्थी जब रास्ते में आते-जाते बच्चों को काम करता देखते तो उन्हें बेचैनी होने लगती थी। तब उन्होंने नौकरी छोड़ दी और 1980 में बचपन बचाओ आन्दोलन की नींव रखी। बचपन बचाओ आन्दोलन आज भारत के 15 प्रदेशों के 200 से अधिक जिलों में सक्रिय है। इसमें लगभग 70000 स्वयं सेवक हैं जो निरन्तर मासूमों के जीवन में खुशियों के रंग भरने के लिये कार्यरत हैं। एक आकलन के मुताबिक साल 2013 में मानव तस्करी के 1199 मुकदमे दर्ज हुए थे जिनमें से 10 प्रतिशत मामले बचपन बचाओ आन्दोलन के प्रयासों से दर्ज किये गये थे। इस आन्दोलन में कैलाश के दो साथी शहीद हो चुके हैं। कैलाश सत्यार्थी ने न केवल बच्चों मुक्त कराया बल्कि बाल मजदूरी को खत्म करने के लिये मजबूत कानून बनाने की भी को अत्यधिक मांग की। सन् 1998 में 103 देशों से गुजरने वाली बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन और नेतृत्व भी कैलाश ने किया।

बचपन बचाओ आन्दोलन द्वारा सामान्य तरीके से भी बच्चों को मुक्त कराया जाता है और छापेमारी द्वारा भी। यह संस्था बच्चों को कानूनी प्रक्रिया द्वारा छुड़ाती है और उन्हें पुनर्वास भी दिलाती है। इसके साथ ही दोषियों को सजा भी दिलाती है। जिन बच्चों के माता-पिता नहीं होते.. उन्हें इस संस्था द्वारा चलाये गये आश्रम में भेज दिया जाता है। कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि किसी भी देश में बाल मजदूरी के प्रमुख कारण गरीबी, अशिक्षा, सरकारी उदासीनता और क्षेत्रीय असन्तुलन हैं।

मलाला युसुफ़ज़ई की जीवनी तथा मलाला युसुफजई का योगदान

मलाला युसुफजई का जन्म 12 जुलाई सन् 1997 में पाकिस्तान में हुआ। मलाला को बच्चों के अधिकारों की कार्यकर्ता होने के लिये जाना जाता है। वह पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रान्त के स्वत जिले में स्थित मिंगोरा शहर की एक छात्रा है। 13 वर्ष की उम्र में वह तहरीक ए तालिबान शासन के अत्याचारों के विरोध के कारण आतंकवादियों के हमले का शिकार बनी, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गयी और अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गयी। 11 वर्ष की आयु में ही मलाला ने डायरी लिखनी प्रारम्भ कर दी थी। वर्ष 2009 में छद्म नाम “गुल मकई” के अन्तर्गत बीबीसी उर्दू के लिये डायरी लिख मलाला पहली बार विश्व की दृष्टि में आयी थी जिसमें उसने स्वात में तालिबान के कुकृत्यों का वर्णन किया और अपने दर्द को डायरी में लिखा । पाकिस्तान की’ न्यू नेशनल पीस प्राइज’ प्राप्त करने वाली 14 वर्षीय मलाला युसुफजई ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चलाये रखा। तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्ट में ले चुके थे। अक्टूबर 2012 में, विद्यालय से लौटते समय उस पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें वह बुरी तरह से घायल हो गयी। इलाज के लिये उसे ब्रिटेन ले जाया गया जहाँ डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद उसे बचा लिया गया। अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियों में शान्ति एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के सन्दर्भ में उसे साहसी और उत्कृष्ट सेवाओं के लिये उसे पहली बार 19 दिसम्बर 2011 को पाकिस्तानी सरकार द्वारा पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिये राष्ट्रीय शान्ति पुरस्कार मलाला युसुफजई को मिला था।

मीडिया के सामने बोलते हुए उसने शिक्षा पर केन्द्रित एक राजनीतिक दल बनाने का संकल्प रखा। सरकारी गर्ल्स सेकण्डरी स्कूल, मिशन रोड को तुरन्त उसके सम्मान में मलाला युसुफजई सरकारी गर्ल्स सेकण्डरी स्कूल नाम दिया गया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल कल्याण के लिये कार्य करने वाले समूह राइट्स फाउंडेशन ने युसुफजई को अन्तर्राष्ट्रीय बाल शान्ति पुरस्कार के लिये प्रत्याशियों में सम्मिलित किया, वह पहली पाकिस्तानी लड़की थी जिसे इस पुरस्कार के लिये नानांकित किया गया। मलाला युसुफजई को यूरो संसद द्वारा वैचारिक स्वतन्त्रता के लिये साखारफ पुरस्कार प्रदान किया गया है। बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिये संघर्ष में महती भूमिका निभाने के लिये उन्हें यह पुरस्कार दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने मलाला युसुफजई को 2013 का मानवाधिकार सम्मान देने की घोषणा की। बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिये संघर्ष करने वाले भारतीय समाजसेवी कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से मलाला शान्ति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया ।

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