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बाल्यावस्था में सामाजिक विकास | Social Development in the Childhood in Hindi

बाल्यावस्था में सामाजिक विकास
बाल्यावस्था में सामाजिक विकास

बाल्यावस्था में सामाजिक विकास (Social Development in the Childhood)

बाल्यावस्था में समाजीकरण की गति तीव्र हो जाती है। बालक बाह्य समाज के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आता है जिसके फलस्वरूप उसका सामाजिक विकास तीव्र गति से होता है। बाल्यावस्था में होने वाले सामाजिक विकास को निम्नांकित ढंग से व्यक्त किया जा सकता है

1. समूह सदस्यता (Group Membership) – बालक-बालिकाएँ किसी न किसी टोली या समूह का सदस्य बन जाते हैं। यह टोली अथवा समूह ही उनके खेलों, वस्त्रों की पसंद तथा अन्य उचित-अनुचित बातों का निर्धारण करते हैं। बालक-बालिका टोली के द्वारा निर्धारित अथवा पसंद किये गये कार्य व्यवहारों को अपनाना चाहता है।

2. सामाजिक गुण (Social Qualities) – समूह के सदस्य के रूप में बालक बालिकाओं के अंदर अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। उत्तरदायित्व, सहयोग, साहस, सहनशीलता, सद्भावना, आत्मनियंत्रण, न्यायप्रियता आदि गुण बालक में धीरे-धीरे उदय होने लगते हैं।

3. यौन विभेद गुण (Sex Linked Qualities) – इस अवस्था में बालक तथा बालिकाओं की रुचियों में स्पष्ट अंतर दृष्टिगोचर होता है। लड़कों की दौड़ने-भागने वाले खेलकूदों, घर से बाहर घूमने, मारधाड़ करने जैसे कार्यों में अधिक रुचि रहती है जबकि लड़कियाँ नाच-गाना, कढ़ाई-बुनाई तथा घरेलू कार्यों में अधिक रुचि लेती हैं।

4. बहिर्मुखीता (Extroversionity) – बाल्यावस्था में बालक-बालिकाएँ प्रायः घर से बाहर रहना चाहते हैं, परंतु उनका व्यवहार शिष्टतापूर्ण होता है। बालक-बालिकाएँ घर आने वाले अन्य व्यक्तियों, परिचितों तथा रिश्तेदारों के समक्ष अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। वे अन्य व्यक्तियों को अपने शिक्षित व सुसंस्कृत होने का आभास देते हैं।

5. सामाजिक स्वीकृति की चाह (Need of Social Recognition) – इस अवस्था में बालक-बालिकाओं में सामाजिक स्वीकृति तथा प्रशंसा पाने की तीव्र इच्छा होती है। बालक-बालिकाएँ अन्य व्यक्तियों के समक्ष ऐसे कार्य तथा आचरण करने का प्रयास करते हैं जिन्हें अन्य व्यक्ति पसन्द करें तथा जिनकी अन्य व्यक्ति प्रशंसा करें। छोटे बच्चों का सहयोग करने, पारिवारिक कार्यों में सहायता करने, पढ़ने-लिखने तथा बड़ों के निर्देशों/आदेशों का पालन करते हैं।

6. वंचन का प्रभाव (Effect of Deprivation) – प्यार तथा स्नेह से वंचित बालक बालिका इस आयु में प्रायः उद्दण्ड हो जाते हैं। बाल्यावस्था के दौरान बालक-बालिकाएँ अपने माता-पिता, परिवार के बुजुर्ग सदस्यों तथा अन्यों के स्नेह, दुलार तथा संरक्षण पाने के लिए लालायित रहते हैं। अपेक्षित स्नेह व संरक्षण मिलने पर उनमें सकारात्मक सामाजिक गुण विकसित होते हैं जबकि स्नेह व संरक्षण से वंचित बालक-बालिकाओं में नकारात्मकता का भाव व्याप्त हो जाता है।

7. मित्र चयन (Selection of Friends) – बाल्यावस्था में बालक-बालिकाएँ अपने मित्रों का चुनाव करते हैं। वे प्रायः कक्षा के सहपाठियों को अथवा पास-पड़ोस में रहने वाले अपने समान आयु वाले बालक-बालिकाओं को अपना घनिष्ठ मित्र बनाते हैं। इस अवस्था में मित्रों के दृष्टिकोण, विचार, आदत आदि का बालक-बालिकाएँ अनुसरण करते हैं।

बाल्यावस्था में बालक-बालिकाओं द्वारा किये जाने वाले उपरोक्त वर्णित सामाजिक व्यवहारों से स्पष्ट है कि इस अवस्था में उनके सामाजिक जीवन का क्षेत्र कुछ विस्तृत हो जाता है जिसके फलस्वरूप बालक-बालिकाओं के समाजीकरण के अवसर तथा सम्भावनायें बढ़ जाती हैं।

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