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बाल्यावस्था में नैतिक विकास | नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

बाल्यावस्था में नैतिक विकास
बाल्यावस्था में नैतिक विकास

बाल्यावस्था में नैतिक विकास (Moral Development in Childhood)

बाल्यावस्था में बालक परिवार से निकलकर गली-मुहल्लों के बच्चों में खेलने लगता है और उसमें प्रचलित अच्छाई-बुराई की धारणायें उसे प्रभावित करती हैं। वह समूह की नीति को अपनाता है। समूह में उसे जो बात अच्छी लगती है, उसे अच्छा और जो बात बुरी लगती है, उसे बुरा समझता है। कभी-कभी तो वह समूह की धारणाओं को ग्रहण करके माता-पिता की धारणाओं की भी उपेक्षा कर देता है। इस आयु में और बाल्यावस्था में बालक के नैतिक व्यवहार में विषमताएँ दिखाई पड़ना स्वाभाविक है। उदहारण के लिए, वह कुछ परिस्थितियों में धोखा देना, चोरी करना और झूठ बोलना बुरा मानता है, जबकि अन्य परिस्थितियों में इनको क्षम्य समझता है। नैतिक व्यवहार की समीचीनता बहुत कुछ सोचने की क्रिया पर आधारित है। इस पर बालक की क्रियाओं, दैनिक जीवन, इच्छाओं और पक्षपातों आदि का भी प्रभाव पड़ता है। बाल्यावस्था से ही बालक केवल दूसरों के आदेशों पर न चलकर अच्छे-बुरे के विषय में कुछ-न-कुछ छ रणायें बना लेता है। अनेक अध्ययनों से यह ज्ञात होता है कि कभी-कभी ये धारणायें इतनी प्रबल होती हैं कि इनको आसानी से बदला नहीं जा सकता। अतः नैतिक विकास में अभिभावकों और शिक्षकों पर गम्भीर उत्तरदायित्व है।

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नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Moral Development)

व्यक्ति के नैतिक विकास को अनेक कारक प्रभावित करते हैं। जैवकीय निर्धारक, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि तथा बौद्धिक कारक बालक के नैतिक व्यवहार को मुख्य रूप से प्रभावित करते हैं। बालक के नैतिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कुछ मुख्य कारक निम्नवत् है-

1. आयु- नैतिक-विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में आयु भी एक उल्लेखनीय कारक है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है वैसे-वैसे बच्चों में उचित-अनुचित का विवेक जाग्रत होता तथा परिणामस्वरूप नैतिक विकास होता है।

2. स्वास्थ्य- जैविकीय कारकों के अन्तर्गत स्वास्थ्य एक ऐसा कारक है जो बालक के नैतिक व्यवहार को विशेष रूप से प्रभावित करता है। जन्म से लेकर प्रौढ़ावस्था तक स्वास्थ्य व्यक्ति के दृष्टिकोणों तथा आदर्शों पर प्रभाव डालता है। शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ व क्रियाशील बालक प्रायः वांछनीय व्यवहार को अधिक शीघ्रता से सीख लेता है।

3. बौद्धिक स्तर- नैतिक-विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में बच्चे का बौद्धिक स्तर महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। नैतिक-विकास के लिए उचित-अनुचित का विवेक अनिवार्य होता है। यह विवेक बुद्धि द्वारा ही अर्जित किया जाता है। मंद-बुद्धि वाले बच्चे सही-गलत, अच्छा-बुरा या शुभ-अशुभ का अन्तर सरलता से नहीं समझ पाते, अतः उनका नैतिक-विकास मंद गति से ही होता है। इसके विपरीत बौद्धिक स्तर एक अन्य प्रकार से भी नैतिक-विकास में सहायक होता है। जिन बच्चों का समुचित बौद्धिक विकास होता है, वे बच्चे यदि कभी दुर्भाग्यवश किसी अनुचित व्यवहार को सीख जाते हैं और उन्हें बौद्धिक एवं तार्किक ढंग से इस व्यवहार को छोड़ने के लिए समझाया जाये तो वे सरलता से अनुचित व्यवहार को छोड़ने को सहमत हो जाते हैं। ऐसा देखने में आता है कि तीव्र बुद्धि वाले बालक सामाजिक मान्यताओं को शीघ्र ही अपना लेते हैं।

4. धार्मिक प्रभाव- नैतिक विकास में धर्म एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। लगभग सभी धर्म नैतिक मूल्यों के विकास पर बल देते हैं। बालक धर्म के प्रति जितना अधिक समर्पित होता है, उसका नैतिक विकास भी उतना ही अधिक अच्छा होता

5. समूह का प्रभाव- बालक अथवा व्यक्ति के नैतिक व्यवहार पर उसके समूह के नैतिक दृष्टिकोणों का भी प्रभाव पड़ता है। बालक के द्वारा किसी कार्य को उचित अथवा अनुचित मानना काफी हद तक उसके समूह के साथियों के द्वारा नियंत्रित होता है। समूह जिस कार्य को करना उचित समझता है, व्यक्ति भी उसे करना उचित समझता है।

6. परिवार- हम जानते हैं कि नैतिक विकास पर सामाजिक सम्पर्क का गम्भीर प्रभाव पड़ता है। सामाजिक सम्पर्क का एक महत्त्वपूर्ण साधन परिवार है। बालक विभिन्न प्रकार के नियमों, रीति-रिवाजों तथा आदर्शों का पालन परिवार में रहकर ही सीखता है। परिवार में अन्य सदस्यों द्वारा जिन आदर्शों को महत्त्व दिया जाता है, बालक भी उन्हीं आदर्शों को महत्त्वपूर्ण मानने लगता है। यदि किसी परिवार में माता-पिता समाज विरोधी कार्यों, चोरी, अपराध या यौन अपराधों में संलग्न होते हैं तो सामान्य रूप से उस परिवार में रहने वाले बालक भी अनैतिकता की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि बच्चों के नैतिक-विकास में परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। जिन परिवारों में दण्ड, पुरस्कार, प्रशंसा एवं प्रताड़ना आदि के माध्यम से बच्चों में नैतिक सद्गुणों के विकास के लिए प्रयास किये जाते हैं, उन परिवारों के बच्चों में नैतिक विकास सुचारु रूप से हो जाता है। परिवार में सभी बड़े सदस्यों का कर्त्तव्य होता है कि वे बच्चों को उनके नैतिक विकास के लिए समुचित ढंग से प्रेरित करते रहें।

7. लिंग भेद- लिंग भेद भी नैतिकता को प्रभावित करने वाला एक कारक है। मुख्य रूप से यौन-नैतिकता के विषय में लड़के-लड़कियों में अन्तर पाया जाता है। लड़के यौन-नैतिकता का उल्लंघन शीघ्र करते हैं।

8. धर्म- नैतिक विकास में धर्म का भी प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक धर्म नैतिक सद्गुणों को अपनाने तथा अनैतिक कार्यों को न करने की शिक्षा देता है। इस स्थिति में जिन बच्चों को धार्मिक वातावरण मिलता है, उनका समुचित नैतिक विकास हो जाता है

9. खेल के साथी- नैतिकता के विकास में खेल के साथियों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। खेल के मैदान में बच्चे सहयोग, ईमानदारी, सच्चाई, साहस आदि सद्गुणों का विकास करते हैं। इन सब सद्गुणों के परिणामस्वरूप बच्चों का नैतिक विकास सुचारू रूप से होता है।

10. मनोरंजन- मनोरंजन का भी नैतिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ मनोरंजन

से बच्चे का उचित नैतिक विकास होता है। बच्चों को मनोरंजन के वही साधन प्रदान करने चाहिए जो नैतिक सद्गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। आजकल सिनेमा एवं सस्ता साहित्य मनोरंजन के मुख्य साधन बन रहे हैं। इनमें अपराध, हिंसा आदि को मुख्य स्थान दिया जा रहा है, अतः ये बच्चों के नैतिक विकास पर अनुचित एवं प्रतिकूल प्रभाव ही डाल रहे हैं।

11. विद्यालय – विद्यालय भी बच्चों के नैतिक विकास में योगदान प्रदान करने वाली एक महत्त्वपूर्ण संस्था है। विद्यालय में अध्यापक जागरूक रूप में बच्चों के नैतिक विकास के लिए प्रयास करते हैं। प्रत्येक अध्यापक बच्चों को नैतिक सद्गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।

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