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एकलव्य योजना | एकलव्य योजना के उद्देश्य | एकलव्य परियोजना का वर्गीकरण

एकलव्य योजना
एकलव्य योजना

एकलव्य योजना (Eklavya Project)

एकलव्य संगठन वर्ष 1982 में एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में मध्य प्रदेश में स्थापित हुआ था। बाद में क्रान्तिकारी मिशन के रूप में शिक्षा के क्षेत्र में ‘एकलव्य शिक्षा फाउण्डेशन’ के रूप में वर्ष 1996 में इसका आगमन हुआ। इस संगठन की स्थापना युवाकर्मी, शिक्षकों एवं व्यावसायियों द्वारा की गई। इसके सिद्धान्तों एवं उद्देश्यों के अनुरूप इसका नाम महाभारत के एक पात्र ‘एकलव्य’ के नाम पर रखा गया, जो कि मुख्यतः बालक एवं बालिकाओं के क्षमताओं के पूर्ण विकास प्रति प्रतिबद्ध है, जोकि देश व समाज में परिवर्तन के अग्रदूत बन सकें।

एकलव्य योजना के उद्देश्य (Objectives of Eklavya Project)

योजना की अवधारणा देश की समृद्धि एवं उन्नति के लिए शिक्षा के महत्त्व पर आधारित है। एकलव्य योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक बालक-बालिका को इस योग्य बनाना है कि वे अपनी क्षमताओं का अधिकतम विकास स्वयं करें और देश तथा समाज में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर सकें। एकलव्य योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

(1) माता-पिता, अभिभावक एवं समाज के अन्य सदस्यों को एकलव्य शिक्षा योजना में सम्मिलित करना तथा उन्हें औपचारिक एवं अनौपचारिक, दोनों प्रकार की शिक्षा के लिए निर्देशन प्रदान करना।

(2) बालकों में समस्या समाधान और कौशल विकसित करना और उनमें खोजी वैज्ञानिक प्रकृति को प्रोत्साहन देना ।

(3) उच्च गुणवत्तायुक्त शैक्षिक प्रणाली और पाठ्यक्रम का विकास करना ।

(4) शैक्षिक शोध का आयोजन करना ।

(5) शिक्षा के उत्थान के लिए आधुनिक तकनीकी के प्रयोग पर बल देना।

शिक्षा के क्षेत्र में इस योजना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके द्वारा समुदाय की भागीदारी में वृद्धि, शिक्षक प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम निर्माण तथा अनुसंधान आदि क्षेत्रों में अनेक कार्य हुये  हैं।

एकलव्य परियोजना का वर्गीकरण (Classification of Eklavya Project)

एकलव्य परियोजना को सुविधा की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा गया है-

1. प्रथम दसवर्षीय समय (1981-91)

2. द्वितीय दसवर्षीय समय (1992-2001)

3. तात्कालिक दसवर्षीय समय (2002) से अब तक।

1. प्रथम दसवर्षीय समय (1981-91)

वर्ष 1980 के प्रारम्भिक वर्षों में यह परियोजना प्रारम्भ हुई, जब मध्य प्रदेश राज्य में एक शैक्षिक सामाजिक समूह शैक्षिक अनुसंधान तथा नवाचार कार्य के लिये एक संस्थान की स्थापना करने के उद्देश्य से राज्य सरकार से वार्ता हेतु मिला। इस समूह ने विज्ञान एवं शिक्षा हेतु एक बड़ा संगठन बनाया था। यह परियोजना दो गैर-सरकारी संगठन- फ्रेण्ड रूरल केन्द्र तथा किशोर भारती और मध्य प्रदेश के सरकार के सरकारी विभाग के सहयोग से चलाई गई। प्रारम्भ में वर्ष 1972 में होशंगाबाद का विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम ‘Hoshangabad Science Technical Programme’ (HSTP) के नाम से यह परियोजना 16 मिडिल स्कूलों तथा जिले के दो ब्लॉकों में प्रारम्भ की गई। इसके बाद वर्ष 1978 में जिले के सभी स्कूलों को इस परियोजना में सम्मिलित किया गया। अगला कदम परियोजना का विस्तार करना था। इसके लिए इस समूह को नवीन संस्थानों की आवश्यकता थी, जिनको कार्य हेतु लिया जाये तथा तात्कालिक उद्देश्यों को पूरा किया जाये। मध्य प्रदेश सरकार ने प्रबन्ध समिति की साझेदारी में स्कूलों, भवनों का निर्माण कराया।

प्रबन्ध समिति ने स्कूलों में नवाचारों का प्रयोग कुछ अन्य विषयों पर भी किया। इस परियोजना का उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं पाठ्य-पुस्तकें तथा राज्य के सभी स्कूलों को सम्मिलित करना था। संक्षेप में कहा जा सकता है कि इस परियोजना में छोटे स्तर पर शैक्षिक प्रयोग किये गये तथा राज्य, जिले, ब्लॉक तथा स्कूल स्तर पर शैक्षिक व्यवस्था में नवाचारों को अपनाने का प्रयास किया गया। सरकार ने एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में कार्य किया। इसकी तैयारी राज्य स्तर पर हुई, लेकिन इसके केन्द्र छोटे कस्बों में रखे गये और वहाँ से नेटवर्क फैलाकर राज्यभर में नवाचार के लिए कार्य किया गया।

एकलव्य प्रबन्ध समिति (Eklavya Mandate)

इस परियोजना का विस्तार प्रबन्ध समिति की साझेदारी में किया गया। प्रबन्ध समिति के निर्देशन में ही संस्थानों ने नवाचारों का प्रयोग किया था।

एकलव्य प्रबन्ध समिति के उद्देश्य (Objectives of the Eklavya Mandate)

एकलव्य प्रबन्ध समिति के निम्नलिखित उद्देश्य थे-

1. विभिन्न राज्यों की पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं पर शोध की व्यवस्था करना, जिससे जागरुकता उत्पन्न हो सके एवं प्राकृतिक संसाधनों का वैज्ञानिक प्रबन्ध करने की भावना का विकास हो ।

2. समाज के समस्त वर्गों के लिए औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों प्रकार की शिक्षा के लिए नवीन निर्देशन प्रदान करना।

3. औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा में नवाचार के विचारों का परीक्षण फील्ड स्तर पर करना।

4. समाज एवं उसके विकास की वैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक समझदारी का निर्माण करने के लिए एक शैक्षिक प्रणाली और पाठ्यक्रम को विकसित करना ।

5. छात्रों में समस्या समाधान कौशलों का विकास करना एवं समाज में अन्वेषण करना तथा वैज्ञानिक प्रकृति को प्रोत्साहन देना।

6. शैक्षिक एवं अनुसंधान कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना ।

7. प्रौद्योगिकी, कृषि, स्वास्थ्य सुरक्षा, फॉरेस्ट्री एवं सोशल वेलफेयर में शोध की व्यवस्था करना, जिससे शिक्षा रोजगार में सम्बन्धित हो सके तथा समाज के वंचित वर्ग की आवश्यकताएँ पूरी हों एवं उनमें निर्माण की प्रकृति उत्पन्न हो।

8. औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के लिये समाज विज्ञान, विशुद्ध विज्ञान, भाषा एवं  संचार की सभी शाखाओं में शोध-कार्यों का प्रबन्ध करना

9. शैक्षिक नवाचारों को फैलाना, उनका विस्तार करना तथा उनकी गुणन रूप में वृद्धि करने हेतु विभिन्न मंत्रिमण्डल एवं संरचना को पहचानना तथा उनका उपयोग करना।

10. साहित्य एवं कला तथा विभिन्न क्षेत्रीय सांस्कृतिक परम्पराओं में शोध को बढ़ावा देना।  इस तरह शैक्षिक पाठ्यक्रम को समृद्धशील बनाना।

संगठन व्यवस्था (Arrangement of Organisation)

प्रबन्ध समिति ने यह निश्चय किया कि संस्थान का नाम ‘एकलव्य’ रखा जाएगा, क्योंकि आदिवासियों को उसी प्रकार सीखना है; जैसे पाण्डव के गुरु द्रोणाचार्य के शिष्य एकलव्य ने सीखा था। इस परियोजना को किशोर भारती ने सर रतन टाटा द्वारा एक ग्राण्ट दिलवाकर आर्थिक रूप से सहारा दिया। एकलव्य परियोजना मुम्बई से आरम्भ हुई तथा इसे प्रथम फील्ड सेण्टर के रूप में जनवरी, 1982 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में खोला गया।

यह संगठन यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग (UGC) मध्य प्रदेश काउन्सिल फॉर साइन्स एवं टेक्नोलॉजी (MAPCOST), काउन्सिल फॉर साइण्टिफिक एवं इण्डस्ट्रियल रिसर्च (CSIR), इण्डियन काउन्सिल फॉर सोशल साइन्स रिसर्च (ICSSR) तथा नेशनल काउन्सिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एण्ड टेनिंग (NCERT) को विशिष्ट परियोजना आधारित तथा पर्सन पावर का सहयोग प्रदान करने के लिए प्रवृत्त कर रहा था। यू० जी० सी० ने विश्वविद्यालय एवं कॉलेज कर्मचारियों को इस योजना को ज्वॉइन करके सहयोग प्रदान करने के अनुमति प्रदान की।

एकलव्य का पहला कदम एच० एस० टी० पी० के कार्य को सुदृढ़ करना था। इसके लिए प्रशासनिक कार्य प्रणाली को उन्नतशील बनाना, ढाँचे को उन्नत बनाना, शैक्षिक अंतर्वस्तु को रिवाइज करना तथा फीडबैक के माध्यम से अंतर्वस्तु को अपडेट करना था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए दो अतिरिक्त फील्ड सेंटर खोले गये। इसे पाइपेरिया (1983) एवं हरदा, होशंगाबाद जिले में तथा एक प्रशासनिक समन्वय कार्यालय भोपाल में (मई, 1982 में) राज्य सरकार के सहयोग से खोला गया।

2. द्वितीय दसवर्षीय समय (1992-2001)

द्वितीय दस वर्षों में विज्ञान, साक्षरता एवं प्रौद्योगिकी का विकास हुआ। वर्ष 1990 में पहले छह माह तक लोगों ने एकलव्य योजना के बारे में जाना। उस समय लगभग 100 चकमक क्लब देवास जिले में प्रारम्भ हुए थे। इसके बाद यह क्लब होशंगाबाद जिले में फील्ड सेण्टरों के चारों ओर फैल गए। यह क्लब स्थानीय छात्रों तथा ग्रामीण युवाओं द्वारा चलाये गये थे।

यह क्लब स्कूल के बाहर एक-दूसरे से मिलने के स्थान पर बन गये थे। इन क्लबों द्वारा छात्रों में सृजनात्मक कार्यकलाप तथा नेतृत्व के गुणों का विकास हुआ। गाँवों में एकलव्य फील्ड सेण्टर पर यह कार्यक्रम योजित किये गये। जहाँ पर सृजनात्मक वर्कशॉप, समूह अध्ययन, पुस्तकालय आदि की भी व्यवस्था थी, जिसका लाभ छात्रों द्वारा उठाया गया। होशंगाबाद जिले में यह चकमक क्लब बाद में बाल समूह में बदल गये, जो अत्यन्त आवश्यक केन्द्र था। इसमें पुस्तकालय भी था और यह ग्रामीण युवाओं द्वारा उनके घरों से ही संचालित हो रहा था। इन बाल समूहों के कार्यकलापों का प्रबन्ध तीन या चार युवाओं की टीम द्वारा किया जा रहा था और यह बाल समूह चकमक केन्द्र की ही भाँति कार्य कर रहे थे। इन बाल समूहों में बच्चें में सृजनात्मकता का विकास किया तथा इसमें उनमें नेतृत्व के गुणों का भी विकास हुआ।

इन बाल समूहों में स्कूल न जाने वाला समूह निरंतर सहभागिता कर रहा था। मालवा क्षेत्र में कबीर भजन मण्डली का देवास सेण्टर से सम्पर्क हुआ। केन्द्र लगभग 50 मण्डलों से संगठित हुआ था, इसे कबीर विचार मंच कहा गया। इसका उद्देश्य वैज्ञानिक एवं तार्किक विचारों का फैलाना था। इस मंच की स्थापना वर्ष 1972 में हुई थी। उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली में कुछ समूहों ने हिन्दी बेल्ट के रूप में प्रवेश किया। इस विचार फोरम बना, जिसे अम्बेडकर विचार मंच कहा गया। इसकी स्थापना ‘अम्बेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस’ (महू) के सहयोग से हुई।

जनता में विज्ञान आन्दोलन के समय ही सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ साक्षरता अभियान चलाया। यह अभियान देश में 100% साक्षरता के लक्ष्य को पाने के लिये चलाया गया। वर्ष 1984 में देवास केन्द्र ने इस प्रयास में हिस्सा लिया और जिला साक्षरता समिति ने देवास जिले में साक्षर हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनकी सहायता से निरीक्षक तथा शिक्षण ट्रेनर का प्रशिक्षण हुआ और अभिनय की सफलता के लिए शिक्षण सामग्री के विकास में इस केन्द्र ने अपना योगदान दिया। होशंगाबाद में हुए अभियान को एकलव्य योजना ने भी प्रोत्साहित किया। इससे राज्य में पंचायती राज्य के प्रसा तथा कार्य के विकास की सम्भावनाएँ खुलीं।

3. तात्कालिक दसवर्षीय समय (2002 से अब तक)

सरकारी स्कूलों में शैक्षिक कार्यक्रमों के बन्द होने के पश्चात् एकलव्य ने नये कार्यक्रम की चुनौतियों तथा कमजोरियों पर पुनरावलोकन किया जो सामने उपस्थित हो गयी थीं। यह अभ्यास दो रूपों में सामने आया- एक, नियोजन तथा विकास के लिए यह केन्द्र प्रौद्योगिकी समूह के रूप में सामने आया, जिसे एकलव्य ने एक अलग संगठन के तौर पर स्वतंत्र कोर्स के रूप में रजिस्टर करके कार्य को जारी रखने का निश्चय किया। इसके बाद में इसका नाम ‘समावेश’ (Samavesh) पड़ गया। शैक्षिक समूह ने यह स्वीकार किया कि जिला स्तर पर यह एक अत्यन्त शक्तिशाली संगठन बन गया है।

इस कारण इसके कार्यों में कुछ नये कार्य सम्मिलित किये गये-

1. स्कूलों का सर्वांगीण कार्यात्मक सुधार करना।

2. स्कूली शिक्षा के समस्त स्तरों के प्रचार एवं उपयोग के लिये पाठ्यक्रम सामग्री का विकास करना ।

3. वे आवश्यकताओं से सम्बन्धित शैक्षिक कार्यक्रम तथा क्रियाकलाप विकसित करने हेतु समुदायों के साथ घनिष्ठ होकर कार्य करें।

4. शिक्षकों को अनुप्रेरित करना तथा उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करना, जिससे वे शैक्षिक अभ्यायों में अधिक नवाचारित एवं शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग हेतु प्रोत्साहित हो तथा एकलव्य फील्ड परीक्षण में सफल हो ।

5. शिक्षण अधिगम तथा अन्य शैक्षिक एवं पुस्तकालय सामग्री का विकास एवं प्रकाशन करना।

एकलव्य एक ऐसी परियोजना थी जिसे शोध, इतिहास तथा नवाचार के क्षेत्र में परीक्षण में 20 वर्षों का अनुभव था। उसने बहुत छोटे स्तर पर शिक्षा में नवाचार लाकर सुधार किया था और देश में नवाचार का वातावरण सृजित किया था। एकलव्य परियोजना से जो अनुभव प्राप्त किये गये थे, उन्हें शैक्षिक समस्याओं के समाधान में लगाया गया।

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