शिक्षण अधिगम सामग्री (Teaching Learning Material)
शिक्षण अधिगम सामग्री के अन्तर्गत कठोर शिल्प उपागम के अन्तर्गत शिक्षण सहायक सामग्री पर विशेष जोर दिया जाता है। यह उपागम भौतिक विज्ञान तथा इंजीनियरिंग के सिद्धान्तों एवं व्यवहारों पर आधारित है। अधिकतर शिक्षाशास्त्रियों का विश्वास है कि मशीन की तकनीकी से शैक्षिक तकनीकी जुड़ी हुई है। जब तक शिक्षण के क्षेत्र में टेपरिकॉर्डर, टी. पी. प्रोजेक्टर जैसे उपकरण नहीं होंगे तब तक शिक्षा अधूरी ही रहेगी। कठोर शिल्प उपागम इन उपकरणों के अनिवार्य उपयोग की अवधारणा को बलशाली बनाता है। डेवीज ने भी स्वीकार किया है कि कठोर शिल्प उपागम शिक्षण प्रक्रिया का क्रमश: मशीनीकरण करके, शिक्षा के द्वारा कम खर्च तथा कम समय में अधिक छात्रों को शिक्षित करने का प्रयास चल रहा है। मैरिलम निक्सन (1971) ने भी शिक्षण तकनीकी को अनेक क्षेत्रों से सम्बन्धित माना है।
कठोर शिल्प से व्यापक परिवर्तन हुए है। इस उपागम में कम्प्यूटर ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रान्ति ला दी है। इण्टरनेट के उपयोग ने तो सभी को चकाचौंध कर दिया है।
हार्डवेयर (कठोर शिल्प) के अन्तर्गत चाकबोर्ड रेडियो, ओवरहैड, प्रोजेक्टर, स्लाइड प्रोजेक्टर, वी. सी. आर., टी. वी. तथा मॉनीटर, कम्प्यूटर, कैलकुलेटर, कम्प्यूटर प्रिंटिंग मशीन, ऑडियो व विजुअल रिकॉर्डर आदि को रखा जा सकता है।
वस्तुतः इस उपागम के फलस्वरूप पत्राचार पाठ्यक्रम तथा मुक्त विश्वविद्यालय (Correspondence Education and open university system) का जन्म हुआ। शोध कार्यों में प्रपत्रों के संकलन, विश्लेषीकरण आदि के लिए कम्प्यूटर तथा मशीनों का उपयोग भी इस उपागम को महत्त्व देता है। सिलवरमैन (Silverman 1968) ने इसे एक और नया नाम सापेक्षिक तकनीकी (Relative Technology) दिया है।
विभिन्न प्रकार के कठोर उपागम (Different Types of Hardware)
कठोर उपागमों के अन्तर्गत निम्नलिखित आते हैं-
(1) श्रव्य उपागम
(1) रेडियो, ट्रान्जिस्टर
(2) टेपरिकॉर्डर
(3) शिक्षण मशीन
(2) दृश्य उपागम
(1) प्रोजेक्टर
(2) एपीडायस्कोप
(3) फिल्म स्ट्रिप्स
(4) स्लाइड्स
(5) कम्प्यूटर
(3) दृश्य-श्रव्य उपागम
(1) फिल्म (चलचित्र)
(2) दूरदर्शन (टी. वी.)
(3) वीडियो टेप
सीखने के उद्देश्य और कठोर उपागम सामग्री (Learning Ob ctives and Hardware Approach Material)
क्रम | सीखने के उद्देश्य | कठोर उपागम सामग्री |
1. | ज्ञानात्मक उद्देश्य | प्रत्येक प्रकार की सामग्री प्रयोग की जा सकती है। |
2. | भावात्मक उद्देश्य | ग्रामोफोन, रेडियो, टेपरिकॉर्डर, टेलीविजन भाषा प्रयोगशाला आदि । |
3. | क्रियात्मक उद्देश्य | भाषा प्रयोगशाला, प्रतिमान, टेपरिकॉर्डर, ग्रामोफोन, दूरदर्शन आदि। |
सीखने की संरचनाएँ/अधिगम स्वरूप एवं कठोर सामग्री (Learnings Structure and Hardware Material)
सीखने की संरचनायें भी कठोर सामग्री के चयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एक प्रभावशाली शिक्षक पहले अपने उद्देश्यों का निर्धारण करता है, फिर उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समुचित अधिगम स्वरूप या सीखने की संरचनाएँ (Learning Structure) उत्पन्न करता है तथा विकसित करता है। इनके उत्पन्न होने अथवा विकसित करने में कठोर सामग्री भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः कठोर सामग्री के चयन के समय शिक्षक को सीखने की संरचनाओं पर भी ध्यान देना चाहिए। निम्नांकित सारणी स्पष्ट करती है कि कौन-सी संरचना के लिए कौन-सी सामग्री प्रयोग की जाए ?
कठोर सामग्री तथा अधिगम के स्वरूप (Hardware Material and Forms of Learning)
क्रम | सीखने की संरचनाएँ | कठोर सामग्री |
1. | संकेत | टेपरिकॉर्डर, ग्रामोफोन, भाषा प्रयोगशाला |
2. | श्रृंखला | रेडियो, ग्रामोफोन, टेपरिकॉर्डर, चलचित्र, दूरदर्शन,भाषा प्रयोगशाला |
3. | बहुभेदीय | भाषा प्रयोगशाला, ग्रामोफोन, टेपरिकॉर्डर |
4. | प्रत्यय | चित्र, चलचित्र, टेलीविजन |
5. | सिद्धान्त | चित्र, चलचित्र, दूरदर्शन |
विभिन्न कठोर उपकरणों का विवरण एवं उनके चित्र (Details of Different Hardware Accessories and their Graph)
1. मैजिक लालटेन (Magic Lantern)
मैजिक लालटेन, गाँवों में जहाँ बिजली उपलब्ध नहीं है, वहाँ शिक्षक के क्षेत्र में अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुई है। वहाँ के स्कूलों में मैजिक लालटेन के माध्यम से अनेक प्रकरण स्लाइडों के प्रोजेक्शन के द्वारा पढ़ाये जा सकते हैं।
मैजिक लालटेन शिक्षण को सजीव, प्रभावी तथा बोधगम्य बनाने का एक अच्छा साधन है। इस यंत्र को प्रयोग में लाने के लिए स्लाइडों का ही उपयोग किया जाता है। प्राचीन समय में जब वस्तुएँ प्रोजेक्ट होकर पर्दे पर चित्रित होकर लोगों को दिखाई गई तो उन्हें यह जादू सा महसूस हुआ। फलस्वरूप इस यंत्र का नाम ‘जादुई लालटेन’ या ‘मैजिक लालटेन’ दिया गया। वैज्ञानिक भाषा में इसे डायस्कोप (Diascope) कहा जाता है। इसी सहायता से जो भी सामग्री प्रदर्शित की जाती है, उसे एक पारदर्शक स्लाइड पर अंकित किया जाता है और फिर उसे दिखाया जाता है। स्लाइड को प्रोजेक्ट करने के लिए इस उपकरण की जरूरत पड़ती है, जिसमें पानी, प्रकाश और कारबाइट की प्रक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। यह प्रकाश गैस बत्ती की तुलना में ज्यादा अच्छा होता है। यह प्रोजेक्ट चित्रों को प्रदर्शित करने की पुरानी विधि है। आजकल के दूसरे प्रोजेक्टर इसी लालटेन के उन्नत रूप हैं।
मैजिक लालटेन के प्रयोग से पूर्व छात्रों को सम्बन्धित बातें बता दी जानी चाहिए। स्लाइड दिखाते समय भी महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की व्याख्या की जाती रहनी चाहिए। पर्दे पर स्लाइड तब तक रोके रखें जब तक छात्रों को सभी बातें स्पष्ट न हो जाएँ।
मैजिक लालटेन की रचना (Construction)
मैजिक लालटेन उपकरण में हल्के वजन का एक धातु का डिब्बा होता है जिसके अन्दर उचित अन्तर पर बायें से दायें क्रमशः निम्न प्रकार की व्यवस्था की जाती है-
(1) परावर्तक (Reflector)- प्रायः इसके लिए अवतल दर्पण (Concave mirror) का प्रयोग किया जाता है।
(2) प्रकाश का शक्तिशाली स्रोत (A strong source of Light)- इसके लिए प्रायः 100 से लेकर 200 लीटर की चपटे फिलामेण्ट वाला (Flat filament) विद्युत लैम्प प्रयुक्त किया जाता है।
(3) कण्डेन्सर (Condenser)- इसके लिए दो समतल उत्तल लैंस (Double Plane Convex Lense) काम में लाये जाते हैं।
(4) स्लाइड कैरियर (Slide Carrier)- यह स्लाइड रखने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
2. एपीडायस्कोप (Epidiascope)
एपीडायस्कोप शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- (i) Episcope तथा (ii) Discope 1 एपीस्कोप का अर्थ है अपारदर्शक वस्तु का पर्दे पर बहुत साफ प्रक्षेपण। डायस्कोप से अभिप्राय है स्लाइड का प्रक्षेपण। एपीडायस्कोप के माध्यम से पारदर्शक तथा अपारदर्शक दोनों तरह की वस्तुओं की छवि (Image) पर्दे पर प्रक्षेपित की जाती है। इसके द्वारा जो भी चित्र या विवरण दिखाया जाता है, वह जिस प्रकार का होगा, या जिस रंग का होगा वह बिल्कुल वैसा ही दिखाई देता है।
इसमें पुस्तक की डायग्राम आदि को बड़ा करके दिखाया जा सकता है तथा चार्ट आदि बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। एपीडायस्कोप के प्रयोग के समय निम्नलिखित बातों पर शिक्षक को ध्यान देना चाहिए
(1) जिस स्थान पर एपीडायस्कोप का प्रयोग किया जा रहा है वहाँ पूर्ण अंधकार होना चाहिए।
(2) जिन वस्तुओं का प्रक्षेपण किया जा रहा है उन्हें अधिक देर तक लैम्प के हैड पर नहीं रखना चाहिए।
एपीडायस्कोप का शैक्षिक उपयोग
कक्षा शिक्षण की दृष्टि से एपीडायस्कोप एक काफी उपयोगी दृश्य उपकरण है। इसके शैक्षिक उपयोग इस प्रकार हैं-
(1) केवल यही एक ऐसा उपकरण है, जिसमें पारदर्शक एवं अपारदर्शक दोनों की प्रकार की दृश्य सामग्री को पर्दे पर आसानी से प्रक्षेपित किया जा सकता है।
(2) आवश्यकतानुसार इसे एपीस्कोप या डायस्कोप किसी भी तरह प्रयोग में लाया जा सकता है।
(3) चित्र आदि का प्रक्षेपण पर्दे पर स्थित होता है। अतः कितने ही समय तक तथा किसी भी समय आवश्यकतानुसार किसी भी चित्रात्मक सामग्री को बड़ा करके पर्दे पर दिखाया जा सकता है।
(4) सामाजिक अध्ययन, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र तथा विज्ञान आदि स्कूल विषयों को पढ़ाने में आवश्यक नमूनों, मॉडल आदि को पर्दे पर आसानी से बड़ा करके दिखाने में भी यह उपकरण काफी उपयोगी सिद्ध होता है।
(5) सजीव पदार्थों जैसे- अमीबा तथा अन्य कीट पतंगों, जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों आदि के सूक्ष्म भागों को बड़ा करके पर्दे पर दिखाने के कार्य में यह पर्याप्त सहायता करता है।
(6) किसी भी प्रक्रिया (Process) का क्रमिक विकास, जैसे- मेंढक, तितली, मक्खी, मच्छर की जीवन लीला, बीजों का अंकुरण आदि को प्रदर्शित करने के लिए एपीडायस्कोप द्वारा दिखाई जाने वाली स्लाइडें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
(7) ज्यामिति आरेख बनाने, मानचित्रों के खाका आदि तैयार करने तथा आसानी से न खींचे जा सकने वाले चित्र आदि को निर्मित करने में इसका एपीस्कोप भाग पर्याप्त सहायता कर सकता है। पुस्तकों या अन्य मुद्रित सामग्री तथा कलाकारों द्वारा चित्रित सामग्री को सीधे ही बिना स्लाइड बनाये पर्दे पर लगी हुई कागज, ड्राइंग पेपर, चार्ट आदि की शीट पर प्रक्षेपित कर मानचित्र, आरेख, ग्राफ आदि चित्रात्मक सामग्री का निर्माण आसानी से किया जा सकता
इस प्रकार एपीडायस्कोप विद्यालय पाठ्यक्रम के सभी विषयों तथा प्रकरणों में निहित पाठ्यवस्तु को सहज, सरल, रोचक तथा आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करने में बहुत ही प्रभावपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखता है।
3. स्लाइड (Slide)
स्लाइड को परिभाषा की दृष्टि से ऐसी प्रक्षेपित दृश्य सामग्री की संज्ञा दी जा सकती है जो किसी पारदर्शी तत्त्व (Transparent surface) जैसे घिसा हुआ शीशा या प्लास्टिक (Etched glass or plastic) सेल्यूलोज ऐसिटेट फिल्म तथा सिल्होइट (Silhouette) आदि का ऐसा भाग है जो एक विशिष्ट आकार वाला होता है और जिस पर तस्वीरें या रेखाचित्र
होते हैं और जिन्हें प्रेक्षित प्रकाश के माध्यम से अच्छी प्रकार देखा जा सकता है तथा प्रोजेक्टर आदि प्रक्षेपित उपकरणों द्वारा पर्दे पर बड़ा करके दिखाया जा सकता है।
अधिकतर स्लाइडें 35 mm वाली, 5×5 cms या 3»” 4′ आकार की होती हैं और ये 3 स्लाइड, प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रदर्शित की जाती हैं।
स्लाइड के प्रकार
आजकल ब्लैक एण्ड हाइट तथा रंगीन दोनों प्रकार की स्लाइडों का प्रचलन है, परन्तु देखा गया है कि रंगीन स्लाइडें अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावशाली हैं।
स्लाइडें अधिकतर तीन वर्गों में विभक्त की जाती हैं-
(1) हस्तनिर्मित स्लाइडें,
(2) फोटोग्राफिक प्रक्रिया से बनी स्लाइडें
(3) कम्प्यूटर द्वारा निर्मित स्लाइडें ।
स्लाइड प्रदर्शन- स्लाइड प्रदर्शित करते समय स्लाइड में दिये गए स्कैच फोटो या सन्देश की छोटी-से-छोटी बातें भी छात्रों को बताई जानी चाहिए। स्लाइड प्रदर्शन के पश्चात् निर्दिष्ट विषय पर एक सक्रिय परिचर्चा का आयोजन भी किया जाना चाहिए।
स्लाइड का शैक्षिक मूल्य (Educational Value)
स्लाइडों के द्वारा पढ़ने-पढ़ाने की बहुत ही सहज, आकर्षक और प्रभावपूर्ण बन जाती है। इनकी सहायता से पौधों में प्रकाश प्रक्रिया के अनुक्रिया को बहुत ही रोचक ढंग से समझाया जा सकता है। पाठ्य पुस्तक के लगभग सभी विषयों तथा प्रकरणों पर स्लाइडें उपलब्ध हो सकती हैं तथा इन्हें सावधानी से विद्यालय में इस तरह सँभालकर रखा जा सकता है कि जब आवश्यकता हो, प्रक्षेपित उपकरणों (Projective equipment) में उपयुक्त कर पढ़ने-पढ़ाने के काम में लाया जा सके। अपने में निहित विशेष गुणों के कारण ये शिक्षण प्रक्रिया में निम्न प्रकार प्रभावशाली सिद्ध हो सकती है
(1) छात्रों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय साझेदारी बनाने में सहायक होती है।
(2) ध्यान आकर्षित करने में सहायक होती है।
(3) रुचि उत्पन्न करने तथा बनाए रखने में सहायता देती है।
(4) नीरसता एवं उचाट को दूर करने तथा रचनात्मक अनुशासन बनाए रखने में योगदान देती है।
(5) कक्षा के वातावरण को सरल, क्रियाशील तथा पढ़ने-पढ़ाने के अधिक उपयुक्त बनाने में सहयोग देती है।
(6) पाठ की प्रस्तावना, उसके प्रस्तुतीकरण तथा विकास है सहायक है।
(7) पढ़ाई हुई सामग्री के पुनः प्रस्तुतीकरण, अभ्यास, तथा पुनः निरीक्षण में सहायक होती है।
(8) जो कुछ पढ़ा दिया जाता है उसे कितना कुछ विद्यार्थी समझ पाये हैं, इसकी जाँच में सहायक होती है।
(9) एक साथ सम्पूर्ण कक्षा के विद्यार्थियों को अधिक प्रकार ज्ञानार्जन में सहायक होती है।
(10) विषय-वस्तु को सरल, आकर्षक तथा स्पष्ट बनाती है।
4. फिल्म स्ट्रिप (Film Strip)
फिल्म स्ट्रिप का अर्थ- फिल्म स्ट्रिप ( Film strip) से तात्पर्य फिल्म की उन लम्बी पट्टियों (Strips) से है जिन पर एक निश्चित क्रम अथवा लड़ी (Sequence) के रूप में अनेक फोटोग्राफ बने होते हैं। इस आधार पर अलग-अलग स्लाइडों को एक अविच्छिन्न (Continuous) लड़ी के रूप में दिखाने से भी फिल्म स्ट्रिप सम्बन्धी प्रयोजन पूरा हो सकता है। एक फिल्म स्ट्रिप पर जितने भी चित्र या फोटोग्राफ बने होते हैं उन्हें किसी भी उपयुक्त प्रोजेक्टर की सहायता से क्रमबद्ध रूप में इस प्रकार दिखाया जा सकता है कि सम्बन्धित घटना, प्रक्रिया या विषद वस्तु का सुनियोजित ढंग से क्रमबद्ध विवरण प्राप्त करने में सुविधा हो।
कैमरे की सहायता से हम किसी दृश्य, व्यक्ति या वस्तु का एक फोटोग्राफिक फिल्म पर फोटोग्राफ उतार सकते हैं। कैमरे में डाली उस फिल्म में 12 या 24 अलग-अलग फोटोग्राफ लेने की गुंजाइश होती है, अधिक फोटोग्राफ लेने के लिए ज्यादा लम्बाई वाली फिल्म की जरूरत पड़ सकती है। जैसे एक प्रक्रिया अथवा दृश्य की उसके अपने स्वाभाविक रूप में पूरी तरह दिखाने के लिए बहुत सारे क्रमबद्ध फोटोग्राफों की जरूरत पड़ सकती है। इस कार्य को तभी किया जा सकता है, जबकि फिल्म की लम्बाई अधिक हो । फिल्म स्ट्रिप या पट्टियाँ (Film strips) इसी जरूरत को पूरा करने के लिए काम में लाई जाती है।
फिल्म स्ट्रिप का निर्माण- फिल्म स्ट्रिप पारदर्शक सैलोलाइड की बनी होती है, जिसे रोल करके सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। फिल्म स्ट्रिप को चलचित्र (Film) की भाँति नियमित रूप से प्रस्तुत किया जाता है।
पहले मूक फिल्म स्ट्रिप बनाई जाती थी, अब ऑडियो रिकॉर्डिंग के द्वारा कमैण्ट्री भी इनके साथ-साथ दी जाती है जिससे इनका प्रदर्शन अधिक सजीव और रोचक हो जाता है।
आजकल जो फिल्म स्ट्रिपें उपलब्ध हैं, उनके साथ शिक्षण सामग्री का विवरण भी अलग से एक मुद्रित पुस्तिका के रूप में दिया जाता है। जिसे पढ़कर शिक्षक अधिक क्षमता के साथ तथा अधिक आत्म विश्वास के साथ छात्रों को ज्ञान प्रदान कर सकते हैं।
फिल्म स्ट्रिप का प्रदर्शन- फिल्म स्ट्रिप दिखाने से पूर्व शिक्षक को चाहिए कि वह फिल्म स्ट्रिप के प्रदर्शन तथा अपनी कमैण्ट्री या पूर्व अभ्यास अवश्य करे ताकि फिल्म स्ट्रिप का प्रभावशाली प्रदर्शन किया जा सके तथा प्रदर्शन के पश्चात् परिचर्चा का आयोजन भी अवश्य करना चाहिए जिसे Open session के रूप में छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।
प्रभावशाली प्रदर्शन के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि फिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्ट के संचालन में भी शिक्षक को निपुणता प्राप्त करनी चाहिए।
5. स्लाइड अथवा फिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्टर (Slide or Film Strip Projector)
में स्लाइड प्रोजेक्टर, फिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्टर का एक उन्नत रूप है। फिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्टर एक फिल्म होती है जिसमें एक ही स्ट्रिप में बहुत से फोटोग्राफ होते हैं, जबकि स्लाइड प्रोजेक्टर में सम्बन्धित प्रकरणों पर अलग-अलग आँकड़ों, डायग्राम, स्कैच, फोटोग्राफ तथा सन्देश अलग-अलग स्लाइडों पर अंकित किये जाते हैं। आवश्यकतानुसार इन स्लाइडों को एक-एक करके पर्दे पर प्रक्षेपित किया जाता है तथा सम्बन्धित विषय वस्तु की व्याख्या की जाती है।
स्लाइड प्रोजेक्टर की संरचना- इसके निम्न मुख्य भाग होते हैं- (a) विद्युत व्यवस्था, (b) प्रक्षेपी लैन्स, (c) प्रक्षेपी बल्ब, (d) स्लाइड ट्रे, (e) प्रक्षेपण पटल। अब नये स्लाइड प्रोजेक्टर्स में अनेक विशेषताएँ आ रही हैं, उदाहरणार्थ
(1) अब स्लाइडर प्रोजेक्टर में एक साथ 120 स्लाइडें आ जाती हैं जिन्हें हाथों से या स्वयं चालित (Automatic) सुविधा से आगे पीछे सरलता से किया जा सकता है।
(2) इनमें रिमोट कण्ट्रोल (Remote Control) स्विच, फोकस (Focus) करने की तथा लूमिंग (Zooming) की सुविधाएँ भी उपलब्ध हो गई हैं।
(3) इसमें स्लाइड प्रदर्शन के लिए स्वचालित मैकेनिज्म आ गया है जिसमें स्लाइडें अपने आप निश्चित समय पर स्वयं आगे बढ़ती हैं।
(4) स्लाइड प्रदर्शन के साथ रिकॉर्ड की गई कमैण्ट्री भी साथ-साथ चलने की सुविधा इनमें आ गई है।
6. ओवरहैड प्रोजेक्टर (Overhead Projector-OHP)
जैसा कि नाम से स्पष्ट है इसमें दर्शायी जाने वाली सामग्री का प्रतिबिम्ब (Image) दिखाने वाले के पीछे तथा उसके सिर के ऊपर से आता है।
ओवरहैड प्रोजेक्टर शिक्षा के क्षेत्र में एक उत्तम सम्प्रेषण की विधि है। इसमें विषय से सम्बन्धित विषय-वस्तु पर विभिन्न ट्रान्सपेरेन्सीज (Transparencies) तैयार की जाती है और इन्हें पर्दे पर या दीवार पर प्रक्षेपित किया जाता है। प्रोजेक्टर को कक्षा में प्रदर्शन मेज पर रखा जाता है। शिक्षक छात्रों की ओर उन्मुख होकर प्रोजेक्टर में तैयार ट्रान्सपेरेन्सीज रखता है और प्रोजेक्टर का संचालन करता है। ओवरहैड प्रोजेक्टर समस्त प्रक्षेपित होने वाले प्रोजेक्टर्स में सबसे सरल प्रक्षेपित होने वाला प्रोजेक्टर है। इसके द्वारा 18cm x 22.5cm आकार की तैयार ट्रान्सपेरेन्सीज को बड़ा करके प्रक्षेपण आदि विवरण अंकित किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर इन्हें टाइप कराकर फोटोकॉपीयर (जीरोक्स मशीन) द्वारा भी तैयार किया जा सकता है।
ओवरहैड प्रोजेक्टर के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बातें- ओवरहैड प्रोजेक्टर में उपयोग की जाने वाली ट्रान्सपेरेन्सीज में अंकित सन्देश / विवरण / चित्र आदि की छवि (Image) साफ, पठन योग्य तथा स्पष्ट होनी चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(a) ट्रान्सपेरेन्सीज पर लिखे शब्दों का आकार कम-से-कम 6cm अवश्य होना चाहिए।
(b) अंकित लाइन में थोड़ी मोटी होनी चाहिए।
(c) कक्षा में यदि 1 मीटर का पर्दा लगाया गया है तो कक्षा में छात्रों की अन्तिम लाइन और पर्दे के मध्य 6 मीटर से अधिक दूरी नहीं होनी चाहिए।
आज के युग में ओवरहैड प्रोजेक्टर का प्रयोग विभिन्न सेमीनारों, वर्कशाप, सम्मेलनों आदि के साथ-साथ कक्षा शिक्षण में भी बहुत उपयोगी पाया गया है।
ट्रान्सपेरेन्सीज पर लिखने के लिए ‘मार्कर पेन’ का प्रयोग करना चाहिए। साधारण स्कैचपेन इन पर काम नहीं करते, उनमें लिखा हुआ हाथ लगने पर मिट जाता है। शिक्षक को कक्षा में ओवरहैड प्रोजेक्टर का प्रयोग करने से पूर्व पूर्वाभ्यास (रिहर्सल) करना आवश्यक है।
ओवरहैड प्रोजेक्टर के निम्न प्रमुख भाग होते हैं-
(1) केबिनेट, (2) प्रोजेक्शन लैम्प, (3) ठण्डा करने की व्यवस्था तथा (4) फोकस व्यवस्था।
दृश्य-श्रव्य रिकॉर्डिंग उपकरण (Audio-Visual Recording Instruments)
दृश्य श्रव्य रिकॉर्डिंग उपकरण वे उपकरण हैं जिनमें विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ जैसे जानवरों या चिड़ियों की आवाजें, महापुरुषों के प्रवचन, प्रसिद्ध कलाकारों तथा बड़े लोगों की कविताएँ, संगीत आदि रिकॉर्ड करके दूसरे लोगों को सुनायी जा सकती हैं। बोलने की गति, स्वर के उतार-चढ़ाव, उच्चारण आदि के क्षेत्रों में इनका प्रभावशाली ढंग से प्रयोग किया जाता है।
टेप रिकॉर्डर (Tape Recorder)
टेप रिकॉर्डर एक ऐसा शैक्षिक माध्यम है जिससे श्रवणेन्द्रियों के माध्यम से शैक्षिक विचारों तथा तथ्यों को रिकॉर्ड कर लिया जाता है तथा छात्रों तक पहुँचाया जाता है।
टेप रिकॉर्डर की शैक्षिक उपयोगिता (Educational Advantages of Tape Recorder)
टेप रिकॉर्डर श्रव्य साधनों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी शैक्षिक उपयोगिता निम्न प्रकार से देखी जा सकती है
(1) इसकी सहायता से वार्तालाप का अभ्यास, सशक्त अभिव्यक्ति का अभ्यास तथा नाटकीयता की प्रभावशाली विधियों का विकास आसानी से किया जा सकता है। इसमें विद्यार्थी अपने पूर्व शिक्षण (Pre-teaching) के स्तर तथा उत्तर शिक्षण व अभ्यास (Post Teaching and Practice) के स्तर की भाषा सुनकर उसमें आयु सुधार का स्वयं मूल्यांकन कर सकते हैं।
(2) टेप रिकॉर्डर भाषा सम्बन्धी मौखिक अभिव्यक्ति के गुणों को विकसित करने में अत्यन्त सहायक सिद्ध हो सकता है। छात्र अपनी बोलचाल सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करने में उसकी, सहायता ले सकते हैं। छात्र अपनी वार्ता को टेप करके फिर पुनः सुनकर स्वयं अपनी त्रुटियों का पता लगाकर उन्हें सुधारने का प्रयास कर सकते हैं।
(3) उच्चारण सम्बन्धी दोषों को दूर करने में तो इसका प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुआ है। एक शब्द का उच्चारण बार-बार करके छात्रों को उसके शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराया जा सकता है।
(4) इसकी सहायता से देश विदेश के महान व्यक्तियों के भाषणों तथा विचारों को सुरक्षित रखना, आवश्यकतानुसार समय-समय पर छात्रों को सुनवाया जा सकता है।
(5) कुछ विशेष विषय जैसे- संगीत, नृत्य, अभिनय आदि सीखने में यह सहायता करता है
(6) इसका प्रयोग विद्यालय की विभिन्न पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का संगठन, संचालन, मूल्यांकन करने में सहायता कर सकता है।
(7) रिकॉर्डिंग सुविधा के कारण कोई भी अध्यापक अपने शिक्षण कार्य को रिकॉर्ड कर उसका स्वयं मूल्यांकन कर सकता है।
(8) कोई भी वार्ता छात्रों को यदि एक बार सुनकर समझ नहीं आ पाती है तो उसे दुबारा भी सुनवाया जा सकता है।
(9) स्कूलों में समय-समय पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों, सम्मेलनों, कार्यशालाओं, विचारगोष्ठियों आदि की कार्यवाही को रिकॉर्ड करने में इसकी सहायता ली जा सकती है । (10) इसके द्वारा रेडियो तथा दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को रिकॉर्ड कर सुरक्षित रखा जा सकता है।
(11) फिल्म पट्टियों तथा स्लाइडों के लिए व्याख्यात्मक वर्णन (Commentary) तैयार करने में इसकी सहायता ली जा सकती है।
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