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पाठ्यचर्या के राजनीतिक आधार | Political Basis of Curriculum in Hindi

पाठ्यचर्या के राजनीतिक आधार
पाठ्यचर्या के राजनीतिक आधार

पाठ्यचर्या के राजनीतिक आधार (Political Basis of Curriculum)

भारतीय समाज में राजनीतिक रूप से विभिन्नता दिखाई देती है, जहाँ साम्यवाद, समाजवाद व मार्क्सवाद जैसी विचारधाराओं का मिला-जुला स्वरूप देखने को मिलता है अतः इनके कारण ही मुख्य रूप से लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था को अपनाया गया है। आज के युग में लोकतन्त्र समाज की पहली आवश्यकता है व शिक्षा में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अतः शिक्षा के अन्तर्गत राजनीतिक आधार पर लोकतन्त्र के अन्तर्गत सभी लोगों को शिक्षा के समान अवसर दिये जाते हैं। एक विद्यालय अगर लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण अपनाकर छात्रों को शिक्षण प्रदान करता है तो यह आवश्यक है कि लोकतान्त्रिक शिक्षा के दृष्टिकोण में विद्यालय द्वारा बनाए गए पाठ्यक्रम लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों पर आधारित हों। पाठ्य पुस्तकों में भी समय-समय पर होने वाले बदलावों की जानकारी दी जाए व पाठ्य पुस्तकों में किसी धर्म विशेष को स्थान प्रदान न किया जाए। इसी प्रकार पाठ्यक्रम के राजनीति आधारित होने पर इसमें मानवीय सम्बन्धों से सामंजस्य पर भी बल दिया जाए। भारत जैसे लोकतन्त्रात्मक देश में राजनीतिक आधार पर पाठ्यक्रम निम्न विशेषताओं पर आधारित होना चाहिए-

(1) राजनीतिक आधार पर पाठ्यक्रम एकीकृत स्वरूप (Integrated) में भी होना चाहिए अर्थात् इसमें विभिन्न गतिविधियों, अनुभवों तथा विषयों को एकीकृत होना चाहिए तथा इसमें छात्रों की गतिविधियों व योग्यताओं को उनके सामाजिक समायोजन को ध्यान में रखते हुए शामिल किया जाये।

(2) विविधता पर आधारित अर्थात् पाठ्यक्रम में विविधता के समावेश हेतु पाठ्यक्रम यह सोचकर निर्धारित किया जाए कि प्रत्येक छात्र की रुचि, योग्यता, दृष्टिकोण, बौद्धिक पृष्ठभूमि व अभिरुचि में भिन्नता पाई जाती है अतः पाठ्यक्रम इस प्रकार का हो कि जो प्रत्येक बच्चे की आवश्यकताओं की पूर्ति करता हो तथा छात्र अपनी योग्यता के अनुसार अपना विकास भी कर सके।

(3) पाठ्यक्रम विस्तारवादी नीति पर आधारित (Broad Policy) होना चाहिए अर्थात् लोकतान्त्रिक शिक्षा के अन्तर्गत पाठ्यक्रम परम्परागत रूप में संकीर्ण न होकर विस्तारवादी नीति पर आधारित होना चाहिए। पाठ्यक्रम को केवल कक्षा तक ही सीमित न रहकर, कक्षा-कक्ष की गतिविधियों के अतिरिक्त पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं तथा खेल के मैदान से सम्बन्धित गतिविधियाँ भी शामिल होनी चाहिए। ताकि छात्र केवल किताबी ज्ञान तक या विषय केन्द्रित ज्ञान तक ही सीमित न रहकर शिक्षा ग्रहण कर सकें व प्रत्येक क्षेत्र में अपनी रुचि दिखाकर अपना पूर्ण विकास करे सकें।

(4) पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए जिसे समय व परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित किया जा सके।

(5) पाठ्यक्रम को छात्रों की व्यावसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला भी होना चाहिए।

(6) पाठ्यक्रम लोगों की आवश्यकताओं व जीवन पर आधारित होना चाहिए अर्थात् पाठ्यक्रम द्वारा उन्हें यह प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि उन्हें समाज में रहते हुए किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति उन्हें किस प्रकार करनी है।

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