विश्व में जनसंख्या घनत्व एवं वितरण का प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting the Population Density and Distribution in the World)
विश्व में जनसंख्या घनत्व एवं वितरण का प्रभावित करने वाले कारक – विश्व में जनसंख्या के वर्तमान वितरण की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि विभिन्न भू-भागों में जनसंख्या का वितरण असमान है। संसार की 50 प्रतिशत जनसंख्या स्थल के केवल 5 प्रतिशत भाग में रहती है, जबकि स्थल खण्ड का 65 प्रतिशत भाग ऐसा है जिस पर केवल विश्व की 19 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। अतः यह स्पष्ट है कि भू-तल के सभी भाग जनसंख्या को समान रूप से आकर्षित नहीं करते हैं। वस्तुतः ऐसे कई भौगोलिक कारक है जो जनसंख्या को किसी क्षेत्र विशेष में एकत्रित करते हैं अथवा एकत्रित होने से रोकते हैं। इनका प्रभाव स्वतन्त्र रूप से भी पड़ सकता है और सम्मिलित रूप में भी। जनसंख्या के वितरण तथा घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों में निम्नलिखित कारक प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं-
(i) भौगोलिक स्थिति;
(ii) जलवायु;
(iii) धरातल की बनावट;
(iv) जल की उपलब्धता;
(v) मिट्टी की उर्वरा-शक्ति;
(vi) खनिज पदार्थों की उपलब्धता;
(vii) आर्थिक विकास की अवस्थाः
(viii) सामाजिक एवं धार्मिक कारण;
(ix) राजनैतिक कारण।
(1) भौगोलिक स्थिति-
विश्व की लगभग 74 प्रतिशत जनसंख्या महासागरों तथा समुद्रों की तट-समीपस्थ पेटियों में निवास करती है। इसका मुख्य कारण थ्सिति ही है क्योंकि समुद्रतटीय पेटी में मछली प्राप्ति तथा समुद्री परिवहन की सुविधाएँ प्राप्त हो जाती हैं। साथ ही इन क्षेत्रों की सम होती है तथा भूमि प्रायः मैदानी एवं कृषि की दृष्टि से उपजाऊ होती है।
(2) जलवायु-
जलवायु जनसंख्या के वितरण एवं घनत्व को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है। किसी क्षेत्र में उत्तम जलवायु का होना मानवीय बसाव की पूर्व शर्त होती है।
विश्व के अधिक गर्म तथा अधिक ठण्डे भू-भाग मानवीय बसाव के लिए उपयुक्त नहीं है। विश्व की अधिकांश जनसंख्या मृदुल जलवायु वाले क्षेत्रों में निवास करती है। संसार में सबसे अधिक जनसंख्या के भाग मानसूनी जलवायु समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्र हैं। चीन, भारत, बांग्लादेश तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के अधिकांश देश मानसूनी जलवायु के क्षेत्र हैं, जबकि पश्चिमी यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की जलवायु समशीतोष्ण है। उपर्युक्त क्षेत्र विश्व के सर्वाधिक घने बसे क्षेत्र हैं। दूसरी ओर सहारा, थार, अरब, कालाहारी, अटाकामा और ऑस्ट्रेलिया के गर्म मरुस्थलीय भागों जनसंख्या का वितरण अत्यन्त विरल है। इसी तरह अति उष्ण और अति आर्द वनों में भी जनसंख्या कम हैं, जैसे-कांगों एवं अमेजन के वन। टुण्ड्रा प्रदेशों की जलवायु शीत प्रधान होने के कारण वहाँ जनसंख्या अत्यन्त बिरल बसी हुई है।
(3) धरातल की बनावट-
धरातल की बनावट का भी जनसंख्या के वितरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मैदानी भागों में भूमि समतल होती है आर वहाँ खेती करने के लिए विस्तृत भूमि, सिंचाई की सुविधाएँ, परिवहन एवं व्यापार की सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। पर्वतीय भागों पर भूमि के असमतल होने के कारण कृषि करने योग्य भूमि छोटी-छोटी होती है, जिन पर विस्तृत पैमाने पर कृषि करना असम्भव होता है। साथ ही आवास एवं परिवहन की दृष्टि से पर्वतीय भाग सुविधाजनक नहीं होते हैं। विश्व के तीन- मासमूह-(अ) दक्षिणी-पूर्वी एशिया, (ब) पश्चिमी यूरोप, (स) पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका मैदानों में ही केन्द्रित हैं। ये मैदान नदियों के बेसिन अथवा समुद्रतटीय मैदान के रूप में हैं। चीन में बांगहों, सीक्यांग व सांगटिसीक्यांग नदियों के मैदान, जापान के समुद्रतटीय मैदानी भाग, भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश में सिन्धु, गंगा एवं बह्मपुत्र के मैदान, यूरोप में राइन एवं डेन्यूब के मैदान, उत्तरी अमेरिका में मिसीसिपी का मैदान, दक्षिणी अमेरिका का पराना-पैराग्वे बेसिन, अफ्रीका की नील नदी का डेल्टाई भाग तथा ऑस्ट्रेलिया का मुरे-डार्लिग बेसिन विश्व के सघन बसे हुए भाग हैं।
(4) जल की उपलब्धता-
मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं में जल का स्थान भोजन से पहले है। पीने के लिए कृषि में सिंचाई के लिए, पशुओं के लिए तथा औद्योगिक कार्यों के लिए जल की आवश्यकता होती है। शुष्क प्रदेशों में जल जनसंख्या को आकर्षिक करने वाला प्रमुख तथ्य होता है। प्राचीन नगरों की स्थापना जल की उपलब्धता के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर नदियो के किनारों पर की जाती थी। उत्पादन के दृष्टिकोण से एक ओर जल-स्त्रोत सिंचाई की सुविधा प्रदान करते हैं तो दूसरी ओर मछलियों के रूप में भोजन प्रदान करते हैं। साथ ही सततवाहिनी नदियों को सस्ते परिवहन मार्ग के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। विश्व के प्रमुख मैदानी भागों में जनसंख्या की सघनता वहाँ जल की उपलब्धता के साथ-साथ मिलती है।
(5) मिट्टी की उर्वरा-
शक्ति-कृषि का आधार मिट्टी की उर्वरा-शक्ति बनाती है। कृषि एक ऐसा कार्य है जो मनुष्य को स्थायित्व एवं वास्तविक भोज्य पदार्थ प्रदान करता है। इस प्राकर संसार के अधिकांश मनुष्यों का भोजन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी में ही उत्पन्न होता है। यही कारण है कि मिट्टी की उर्वरा-शक्ति जनसंख्या घनत्व के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। अन्य कारकों के अनुकूल होने पर यदि किसी प्रदेश में मिट्टी, उच्च उर्वरा-शक्ति रखती है तो उसे प्रदेश में जनसंख्या का उच्च घनत्व मिलता है।
(6) खनिज पदार्थों की उपलब्धता-
जिन प्रदेशों में खनिज सम्पदा प्रचुर मात्रा में होती है वहाँ औद्योगिक विकास एवं खनन क्रिया के कारण जनसंख्या सघन हो जाती है। पश्चिमी यूरोप के सघन बसे होने का कारण वहयँ कोयला, लोहा, ताँबा, जस्ता आदि का मिलना है जिससे वहाँ बड़े स्तर पर औद्येगिक विकास हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका के अप्लेशियन क्षेत्र तथा भारत के छोटा नागपुर क्षेत्र में जनसंख्या की सघनता का कारण वहाँ पायी जाने वाली प्रचुर खनिज सम्पदा है।
(7) आर्थिक विकास की अवस्था-
जिस प्रदेश में मानव के व्यवसाय जितने उन्नत एवं स्थायित्व लिये हुए होने लगते हैं वहाँ जनसंख्या का बसाव भी उतना ही अधिक होने लगता है। किसी प्रदेश की आर्थिक उन्नति होने पर क्षेत्र की जनसंख्या पोषण क्षमता भी बढ़ जाती है। यदि उस प्रदेश में भोजना-सामग्री कम उत्पन्न होती है तो खाद्य-पदार्थ दूसरे देशों से आयात कर लिये जाते हैं और उनके बदले में निर्माणी उद्योगों द्वारा बने सामान दूसरे प्रदेशों को निर्यात कर दिये जाते हैं। इस प्रकार कम भोजन उत्पन्न करने वाला देश भी आर्थिक उन्नति के बल पर सघन जनसंख्या वाला देश बन जाता है। ब्रिअन, जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड तथा हॉलैण्ड देश इसके उदाहरण हैं, लेकिन विकसित राष्ट्रों में जन्म-दर कम होने के कारण जनसंख्या में धीमी वृद्धि होती है तथा विश्व के कई राष्ट्र भी हैं जिनमें जनसंख्या वृद्धि ऋणात्मक है। दूसरी ओर अविकसित राष्ट्रों में जन्म-दर अधिक होने के कारण जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है जिससे जनसंख्या का घनत्व क्रमशः बढ़ता जाता है।
(8) सामाजिक एवं धार्मिक कारण-
कृषि प्रधान देशों में (विशेषकर भारत में) संयुक्त परिवार, बाल विवाह, संतानोत्पत्ति की धार्मिक आवश्यकता, पैतृक भूमि के प्रति अतिशय प्रेम, जनसंख्या को केन्द्रित कर बढ़ाने में सहायक होते हैं। इस्लाम मजहब पुरुष को एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करने की अनुमति देता है जिससे जनसंख्या का केन्द्रीकरण एवं वृद्धि होती है।
(9) राजनैतिक कारक-
राजनीतिक नियमों का जनसंख्या पर सीधा प्रभाव होता है। ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल भारत की अपेक्षा लगभग तीन गुना है, परन्तु ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का 1/40 भाग है। इसका कारण ऑस्ट्रेलिया सरकार की श्वेत नीति है जो गोरी जातियों के अलावा दूसरे लोगों को वहाँ नहीं बसने देती है। जिन भागों में दूसरे देशों के आक्रमण का खतरा रहता है वहाँ भी जनसंख्या असुरक्षा के कारण कम रहती है।
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