स्वामी विवेकानन्द के राजनीतिक विचार
स्वामी विवेकानन्द के राजनीतिक विचार- मूलतः धार्मिक महात्मा स्वामी विवेकानन्द मानते थे कि धर्म का राजनीति से गहरा सम्बन्ध है। वे सामाजिक जीवन से विरक्त होकर केवल निजी मोक्ष प्राप्ति के लिए तपस्या तथा समाधि में लीन नहीं हो गए थे। वे एक सक्रिय संन्यासी थे। उनके कार्यों से तत्कालीन राजनीति पर बहुत प्रभाव पड़ा। स्वामी विवेकानन्द के राजनीतिक विचारों को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. सांस्कृतिक राष्ट्रीयता
भारत में विदेशी साम्राज्य था। अंग्रेज यद्यपि मुसलमान शासकों की भाँति तलवार और क्रूरता से हिन्दू धर्म के विनाश में तो नहीं लगे थे, परन्तु उनका उद्देश्य भी दूसरे अपेक्षाकृत सभ्य ढंगों से भारत के गौरव और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा को नष्ट करना ही था। वे इसी मार्ग पर चल रहे थे। देश के लिए कठिन घड़ी में स्वामी विवेकानन्द का अभ्युदय हुआ। स्वामी जी ने धर्म तथा संस्कृति की महानता को जनता के सम्मुख स्पष्ट किया और भारतीयों को उनके अतीत गौरव से परिचित कराकर उनमें जागृति का मंत्र फूंका।
2. स्वतंत्रता सम्बन्धी धारणा
स्वामी विवेकानन्द की जो एक महान् देन है वह है राजनीतिक क्षेत्र में स्वतंत्रता की अभिधारणा। वे स्वतंत्रता को मानव विकास का मूल मंत्र मानते थे, किसी वर्ग, जाति या धर्म विशेष की बपौती नहीं। जहां जीवन है वहाँ स्वतंत्रता आवश्यक है। व्यक्ति और समाज के आत्मिक, नैतिक, धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन के विकास में स्वतंत्रता अति आवश्यक वस्तु है। स्वामी जी का कथन था कि “हमें ऐसे सामाजिक बंधनों को समाप्त कर देना चाहिए जो हमारी स्वतंत्रता के मार्ग को अवरुद्ध करते हों। ऐसी संस्थाओं के विकास में सहयोग देना चाहिए जो स्वतंत्रता के मार्ग पर अग्रसित हों।”
3. राष्ट्रवाद सम्बन्धी धारणा
स्वामी विवेकानन्द की दृष्टि में भारत का हित सर्वोपरि था और वे सदैव उसका चिन्तन किया करते थे। वास्तव में स्वामी जी एक सच्चे राष्ट्रवादी थे। उन्होंने जो विचार उसे दिया भी। उनमें जो देशभक्ति थी उसमें स्वार्थ की भावना लेशमात्र देखने को नहीं मिलती। एक सन्त के समान उनका लक्ष्य समग्र मानवजाति की सेवा था परन्तु उनमें देशभक्ति था राष्ट्रवाद की भावना भी उपस्थित थी, अतः वे भारतीय जनता को निर्धनता तथा अज्ञानता से मुक्त कराने के लिए प्रयत्नशील रहे। उनका राष्ट्रवाद भी सेवा की भावना से ओत प्रोत था। जननी जन्म भूमि भारत उनके लिए प्राणों से अधिक प्रिय तथा महत्त्वपूर्ण थी।
स्वामी विवेकानन्द एक सच्चे महात्मा थे— स्वार्थी अनुयायियों के बनाए हुए नहीं अतः उन्हें एक सत्य दूर दृष्टि प्राप्त हुई थी जिसके अनुसार उन्होंने कहा था कि “धर्म भारत के राष्ट्रीय हित का मुख्य अंग होना चाहिए।”
4. समाजवाद सम्बन्धी धारणा
समाज के प्रत्येक वर्ग को समान अवसरों को भोगने का अवसर मिले, इसे ही समाजवाद कहते हैं। स्वामी जी का विश्वास था कि वह राजनीतिक स्वतंत्रता निरर्थक है जिसे भोगते हुए जन सामान्य आर्थिक उत्थान प्राप्त न कर सके, वे अतः समाजवादी थे। वे मानते थे कि भरपेट भोजन पहली आवश्यकता है। जनता को यह सुख प्राप्त होगा तो स्वयं अपना उद्धार कर लेगी। झोपड़ियों में रहने वाली जनता को ही वे सच्ची जनता तथा भारत राष्ट्र मानते थे। ईश्वरीय प्रतिमा के दर्शन उन्हें इसी वर्ग में अनुभव होते थे।
5. समानता का सिद्धान्त
स्वामी विवेकानन्द का यह निश्चित मत था कि राजनीतिक स्वतंत्रता का सुख केवल उसी स्थिति में प्राप्त हो सकता है जब समाज में समानता हो, असमानता रहते यह सम्भव नहीं है। इस राजनीतिक स्वतंत्रता के भाव का क्रियात्मक रूप में पालन करना व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सभी के लिए उपयोगी और आवश्यक है। साधारण जनता के विकास के लिए यह आवश्यक है कि एक दूसरे को नीचा समझने की प्रवृत्ति समाप्त हो ।
- स्वामी विवेकानन्द का राजनीतिक दर्शन | स्वामी विवेकानन्द के समाजवादी विचार
- स्वामी विवेकानन्द के धार्मिक विचार | Religious Thoughts of Swami Vivekananda in Hindi
- स्वामी विवेकानन्द के सामाजिक विचार | Social Thoughts of Swami Vivekananda in Hindi
इसे भी पढ़े…
- सामाजिक न्याय पर बी. आर. अंबेडकर के विचार | Thoughts of BR Amberdkar on social justice hindi
- डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक विचार | Social Ideas of Dr. Ambedkar in Hindi
- लोकमान्य तिलक के स्वराज्य सम्बन्धी विचार | तिलक भारतीय अशान्ति के अग्रदूत थे | तिलक उग्रवाद के मसीहा थे
- लोकमान्य तिलक के राजनीतिक एवं सामाजिक विचार
- गांधी जी के अहिंसक राज्य के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- महात्मा गांधी के आर्थिक विचार | Gandhi Ke Aarthik Vichar
- गांधी जी के संरक्षकता सिद्धान्त | वर्तमान समय में संरक्षकता सिद्धान्त का महत्त्व
- वर्तमान समय में गांधीवाद की प्रासंगिकता | Relevance of Gandhism in Present Day in Hindi
- महात्मा गाँधी के राजनीतिक विचार | Mahatma Gandhi ke Rajnitik Vichar
- महात्मा गांधी के सामाजिक विचार | Gandhi Ke Samajik Vichar
- महात्मा गांधी का सत्याग्रह सिद्धांत | सत्याग्रह की अवधारणा
- महादेव गोविन्द रानाडे के धार्मिक विचार | Religious Thoughts of Mahadev Govind Ranade in Hindi
- महादेव गोविंद रानाडे के समाज सुधार सम्बन्धी विचार | Political Ideas of Ranade in Hindi
- महादेव गोविन्द रानाडे के आर्थिक विचार | Economic Ideas of Ranade in Hindi
- स्वामी दयानन्द सरस्वती के सामाजिक विचार | Swami Dayanand Sarswati Ke Samajik Vichar
- स्वामी दयानन्द सरस्वती के राष्ट्रवाद सम्बन्धी विचार | दयानन्द सरस्वती के राष्ट्रवादी विचार
- भारतीय पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं? आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है?
- राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार | आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिन्तन को राजाराम मोहन राय की देन
- राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार | Raja Rammohan Raay Ke Samajik Vichar
- मैकियावेली अपने युग का शिशु | Maikiyaveli Apne Yug Ka Shishu
- धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावेली के विचार तथा आलोचना
- मैकियावेली के राजा सम्बन्धी विचार | मैकियावेली के अनुसार शासक के गुण