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स्वामी विवेकानन्द के धार्मिक विचार | Religious Thoughts of Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानन्द के धार्मिक विचार
स्वामी विवेकानन्द के धार्मिक विचार

स्वामी विवेकानन्द के धार्मिक विचार

स्वामी विवेकानन्द अपने धार्मिक व आध्यात्मिक विचारों के कारण ही विश्व में प्रसिद्ध है भारत का विश्व में आज भी उनके शिकागो धर्म सम्मेलन (1893) में प्रकट किए गये आध्यात्मिक विचारों को नहीं भूला। उनके प्रमुख धार्मिक विचारों की व्याख्या इस प्रकार से की जा सकती है-

(1) मूर्ति पूजा को मान्यता

विवेकानन्द राजाराम मोहन राय व स्वामी दयानन्द की तरह मूर्ति पूजा के विरोधी नहीं थे। वे इसके समर्थक थे। उनका मत था कि- ‘मूर्ति पूजा हिन्दुत्व में आवश्यक भी होती है। वह हिन्दू के अनुष्ठानिक पक्ष से सम्बद्ध है। हिन्दू लोग दर्शन के स्थान पर मूर्ति पूजा को परम अनुभूति की प्राप्ति हेतु एक माध्यम के रूप में अपनाते हैं।”

(2) हिन्दू धर्म से सम्बन्धित विचार

विवेकानन्द के मत में धर्म वह नैतिक बल है जो व्यक्ति तथा राष्ट्र को शक्ति प्रदान करता है। वे धर्म को व्यक्ति व समाज दोनों के लिए उपयोगी मानते थे वे हिन्दू धर्म को समस्त धर्मों का स्त्रोत मानते थे। वे उनकी धर्म की मीमांसा सार्वभौमिक थी। उनके अनुसार हिन्दू धर्म में कोई दोष नहीं है, बल्कि दोष धर्म के गलत प्रयोग में है। अतः उसे समाप्त करना चाहिए।” वे सार्वभौमिक धर्म के प्रतिपादक थे।

(3) विश्व धर्म के समर्थक

वे विश्व धर्म या सर्वधर्म समन्वय के समर्थक थे। उनका 1893 में शिकागो (अमेरिका) में दिया गया भाषण भारत की सार्वदैशिकता व विशाल हृदयता से ओत प्रोत था। वे सर्व समभाव में विश्वास रखते थे। उन्होंने कहा था- “जिस प्रकार समस्त नदियां एवं सागर में जाकर मिलती हैं, ठीक उसी तरह मानव के सारे कर्म ईश्वर की ओर ले जाते हैं।”

(4) माया का सिद्धान्त

विवेकानन्द द्वारा माया के सिद्धान्त को अपनाया गया। किन्तु उनके मतानुसार इन्द्रियों द्वारा अनुभव होने वाला संसार अवास्तविक नहीं है।” माया संसार की व्याख्या का कोई सिद्धान्त न होकर तथ्यों का एक कथन है।

(5) दरिद्रों के सेवक

उन्हें दीन-दुखियों व दरिद्रों की सेवा में आनन्द मिलता था। उनके अनुसार “ईश्वर का एक रूप दरिद्र नारायण भी है। अतः दरिद्रों की सेवा ईश्वर की सेवा है। दरिद्र नारायण की सेवा से भी ईश्वर की प्राप्ति व उतनी ही आध्यात्मिक व धार्मिक उन्नति होती है। जितनी कि योग, ज्ञान, भक्ति, ध्यान एवं उपासना आदि साधनों से होती है।

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