महात्मा गांधी का सत्याग्रह सिद्धांत या सत्याग्रह की अवधारणा
सत्याग्रह की अवधारणा आधुनिक चिन्तन को गाँधी जी की विशिष्ट देन है। गाँधी जी ने अहिंसा के सिद्धान्त को मूर्त रूप देने के लिये राजनीतिक क्षेत्र में जिस कार्य पद्धति का प्रयोग किया वह सत्याग्रह है। गाँधीजी का मानना था कि सत्याग्रह से एक शक्तिशाली साम्राज्य की जड़ें हिलाई जा सकती हैं और उन्होंने यह सिद्ध भी कर दिखाया था। यह कहा जा सकता है कि यह अपने में कोई मौलिक अवधारणा नहीं है। क्योंकि उपनिषदों में यह कहा गया है कि विश्व सत्य पर टिका हुआ है और अहिंसा का सन्देश बुद्ध एवं महावीर स्वामी ने दिया ही था। परन्तु गाँधी जी का मुख्य योगदान इस तथ्य में है कि एक पुरानी अवधारणा के आधार पर उन्होंने बृहत पैमाने पर बुराई और अन्याय के विरुद्ध लड़ने की पद्धति आविष्कृत की।
सत्याग्रह से अभिप्राय
सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ है— सत्य के लिये आग्रह करना। दूसरे शब्दों में, “अहिंसा के माध्यम से असत्य पर आधारित बुराई का विरोध करना ही सत्याग्रह है।” यह शारीरिक बल अथवा शस्त्रों की भौतिक शक्ति से सर्वथा भिन्न है। यह आत्मा की शक्ति है। सत्याग्रह का संचालन आत्मिक शक्ति के आधार पर किया जाता है। सत्याग्रह के सम्पूर्ण दर्शन का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि, ‘सत्य की ही जीत होती है।’
सत्याग्रह की विशेषताएँ
सत्याग्रह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) यह अहिंसात्मक होना चाहिए।
(ii) सत्याग्रह विरोधी को कष्ट पहुँचाए बिना स्वयं कष्ट सहने की क्षमता है।
(iii) यह विरोधी के पशुबल का सामना अपने आत्मबल व नैतिक शक्ति के आधार पर करता है।
(iv) सत्याग्रह की पद्धति में विरोधी से घृणा नहीं की जाती वरन् उसकी सामान्य अवज्ञा से की जाती है।
(v) सत्याग्राही सदैव बुराई से घृणा करता है, बुरा करने वाले से नहीं।
(vi) सत्याग्रह सबल एवं वीर का अस्त्र है, कायर एवं निर्बल का नहीं।
(vii) सत्याग्रह के नैतिक शास्त्र का प्रयोग सभी व्यक्तियों द्वारा और सभी परिस्थितियों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
सत्याग्रह के नियम
सत्याग्रह के प्रमुख नियम निम्न प्रकार हैं-
(i) सत्याग्रहियों को गिरफ्तार होना चाहिए।
(ii) उन्हें अपने सेनापतियों के आदेशों का हृदय से पालन करना चाहिए, कोई बात अपने मन में छिपाकर नहीं रखनी चाहिए।
(iii) सत्याग्रही को शत्रु के प्रति मन-वचन-कर्म में हिंसा भाव नहीं रखना चाहिए सत्याग्रही में मृत्यु का कष्ट हंसते-हंसते सह लेने की शक्ति होनी चाहिए।
(iv) सत्याग्रही को किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे विरोधी का क्रोध सहन करना चाहिए।
(v) सत्याग्रही को विरोध का अपमान नहीं करना चाहिए।
सत्याग्रह का स्वरूप
गांधी जी ने भारत के राजनैतिक आन्दोलनों में सत्याग्रह का प्रयोग तीन रूपों में किया है
1. असहयोग आन्दोलन
महात्मा गाँधी के अनुसार, “असहयोग एक पीड़ित प्रेम का विस्तार है। यद्यपि सत्याग्रह के शास्त्रागार में असहयोग मुख्य अस्त्र है तथापि यह नहीं भूलना चाहिए कि सत्य एवं न्याय के साथ विरोधी के सहयोग को प्राप्त करने का एक साधन है।” भारत में सन् 1920-21 में गाँधीजी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया गया था। इस असहयोग का कार्यक्रम निम्नलिखित था—
(i) उपाधियों का त्याग तथा अवैतनिक से त्यागपत्र देना।
(ii) सरकारी आयोजनों एवं कार्यक्रमों में भाग न लेना।
(iii) सरकारी मान्यता एवं सहायता प्राप्त स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को न भेजना।
(iv) ब्रिटिश न्यायालयों का बहिष्कार।
(v) परिषदों के चुनाव के लिये उम्मीदवारों द्वारा अपना नाम वापस ले लेना।
(vi) विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार ।
गाँधी जी का मानना था कि देश की सारी जनता ब्रिटिश शासन के साथ असहयोग आरम्भ कर दें तो सीमित संख्या में अंग्रेज देश पर शासन नहीं कर सकते और इस प्रकार अहिंसक रीति से स्वराज मिल जाएगा।
2. सविनय अवज्ञा
गाँधी जी का दूसरा आन्दोलन 1930-31 में सविनय अवज्ञा-भंग का था। जब ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के प्रस्ताव के अनुसार भारत को पूर्ण स्वराज देना स्वीकार नहीं किया तो गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों की अवहेलना करने के लिए सविनय अवज्ञा भंग आन्दोलन चलाया। सविनय अवज्ञा सत्याग्रह का अन्तिम अस्त्र है। गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा को सशस्त्र क्रान्ति का एक पूर्ण, प्रभावशाली एवं रक्तहीन स्थानापत्र कहा है।
3. व्यक्तिगत सत्याग्रह
1940-41 में अंग्रेजों द्वारा भारत को द्वितीय विश्व युद्ध मे घसीटने के बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरोध में व्यक्तिगत सत्याग्रह का आन्दोलन शुरू किया, इसमें विनोबा भावे को प्रथम सत्याग्रही बनाया गया। सत्याग्रह की तकनीक- गाँधीजी के अनुसार सत्याग्रह की प्रमुख तकनीक (साधन) निम्नलिखित हैं—
(i) असहयोग— गाँधी जी का मानना था कि उत्पीड़न या शोषण जनता के सहयोग से ही सम्भव होता है। यदि लोग इसमें भागीदार न बने तो सरकार के लिए परेशानी पैदा हो जाएगी। इसके तीन रूप हो सकते हैं कार्य को बन्द करना, बहिष्कार करना धरना देना।
(ii) सविनय अवज्ञा– सविनय अवज्ञा को गांधी जी ने सबसे अधिक प्रभावशाली अस्त्र बताया जिसका उद्देश्य ‘अनैतिक नियमों’ को तोड़ना है। यह असहयोग की अन्तिम स्थिति है। सविनय अवज्ञा मानकर चलती है कि लोगों में बिना भय के स्वेच्छा से कानून पालन की आदत होती है। इसीलिए इसे अन्तिम अस्त्र के रूप में ही प्रयोग में लाना चाहिए।
(iii) उपवास- यह सत्याग्रह का कठिनतम अस्त्र है। गाँजी ने उपवास को ‘रामबाण’ कहा है। यह किसी भी हालत में किसी पर दबाव डालने के लिये नहीं किया जाना चाहिए। गांधी जी उपवास को न केवल आत्मशुद्धि के लिये अपितु दूसरों की शुद्धि के लिए और राजनैतिक समस्याओं को हल करने के लिए भी करते हैं। उपवास में विपक्षी को कष्ट न देकर स्वयं कष्ट सहन किया जाता है। यह आत्म-पीड़न विपक्षी को हृदय में न्याय और सत्य को जगाता है।
(iv) हिजरत- इसका अर्थ है, स्वैच्छिक देश निकाला। सत्याग्रह के अन्तर्गत इसका अर्थ है। दमन के स्थान को दमन के विरोध स्वरूप छोड़कर दूसरे स्थान पर चले जाना। गांधी जी ने उस तकनीक की सलाह उन लोगों को दी जो लोग अत्यन्त दुःख का अनुभव करते हैं और एक स्थान पर आत्म-सम्मान के साथ नहीं रह सकते और जो हिंसापूर्ण ढंग से अपनी रक्षा नहीं कर सकते ।
सत्याग्रह एवं निष्क्रिय प्रतिरोध में अन्तर
सामान्यतया सत्याग्रह एवं निष्क्रिय प्रतिरोध को एक समान अर्थ में समझ लिया जाता है जबकि इन दोनों के बीच मूलभूत अन्तर है। यद्यपि दक्षिण अफ्रीका में स्वयं गांधी जी ने ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ शब्द का प्रयोग सत्याग्रह के अर्थ में किया था, लेकिन बाद में वे सत्याग्रह और निष्क्रिय प्रतिरोध में स्पष्ट भेद करने लगे। इन दोनों में मूलभूत अन्तर निम्नलिखित हैं-
(i) सत्याग्रह शक्तिशाली व्यक्तियों का अस्त्र है, जब कि निष्क्रिय प्रतिरोध दुर्बल व्यक्तियों का अस्त्र है।
(ii) सत्याग्रह विशुद्ध रूप से आत्मा की शक्ति’ की सर्वोच्चता पर आधारित एक नैतिक अस्त्र है जबकि निष्क्रिय प्रतिरोध समयानुकूल परिस्थितियों को देखकर प्रयोग किया जाने वाला राजनीतिक अस्त्र है।
(iii) सत्याग्रह का उद्देश्य विरोधी को प्रेम, धर्म का आत्म-पीड़न के द्वारा गलती से मुक्त करना है। इसके विपरीत निष्क्रिय प्रतिरोध का उद्देश्य विरोधी को पीड़ा पहुँचाकर समर्पण को ओर लाना है।
(iv) सत्याग्रह में अहिंसा का पालन तथा हिंसा का पूर्णतया त्याग कर दिया जाता है। यद्यपि निष्क्रिय प्रतिरोध में भी हिंसात्मक साधनों का त्याग कर दिया जाता है पर इसका कोई निश्चित सिद्धान्त नहीं रहता।
सत्याग्रह का मूल्यांकन
युद्ध एवं क्रान्ति के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में सत्याग्रह के साधन का आविष्कार गांधीजी की एक बहुत बड़ी देन है। सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में उन्होंने सत्याग्रह के अस्त्र का सफलतापूर्वक प्रयोग किया और यह सिद्ध किया कि सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में इसका प्रयोग युद्ध एवं क्रान्ति के समान महत्त्वपूर्ण है। मार्क्सवादी जिसे परिवर्तन को हिंसक क्रान्ति के माध्यम से करना चाहते थे, गांधीजी ने उसे अहिंसक सत्याग्रह से सम्पन्न किया। फिर भी सत्याग्रह की धारणा की अनेक आधारों पर आलोचना की जाती है जो कि निम्नलिखित हैं-
(i) सत्याग्रह अहिंसा की धारणा के अनुकूल नहीं है।
(ii) सत्याग्रह का प्रयोग सभी परिस्थितियों में सम्भव नहीं है।
(iii) अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में या आक्रमण के प्रतिरोध में सत्याग्रह का प्रयोग सम्भव नहीं है।
(iv) अहिंसक साधनों से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाना अत्यधिक कठिन है।
(v) सत्याग्रह के नाम के दुरुपयोग की सम्भावना बराबर बनी रहती है।
- गाँधी जी के स्वराज और सर्वोदय सम्बन्धी विचार
- गांधी जी के अहिंसक राज्य के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- महात्मा गांधी के आर्थिक विचार | Gandhi Ke Aarthik Vichar
- गांधी जी के संरक्षकता सिद्धान्त | वर्तमान समय में संरक्षकता सिद्धान्त का महत्त्व
- वर्तमान समय में गांधीवाद की प्रासंगिकता | Relevance of Gandhism in Present Day in Hindi
- महात्मा गाँधी के राजनीतिक विचार | Mahatma Gandhi ke Rajnitik Vichar
- महात्मा गांधी के सामाजिक विचार | Gandhi Ke Samajik Vichar
इसे भी पढ़े…
- महादेव गोविन्द रानाडे के धार्मिक विचार | Religious Thoughts of Mahadev Govind Ranade in Hindi
- महादेव गोविंद रानाडे के समाज सुधार सम्बन्धी विचार | Political Ideas of Ranade in Hindi
- महादेव गोविन्द रानाडे के आर्थिक विचार | Economic Ideas of Ranade in Hindi
- स्वामी दयानन्द सरस्वती के सामाजिक विचार | Swami Dayanand Sarswati Ke Samajik Vichar
- स्वामी दयानन्द सरस्वती के राष्ट्रवाद सम्बन्धी विचार | दयानन्द सरस्वती के राष्ट्रवादी विचार
- भारतीय पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं? आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है?
- राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार | आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिन्तन को राजाराम मोहन राय की देन
- राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार | Raja Rammohan Raay Ke Samajik Vichar
- मैकियावेली अपने युग का शिशु | Maikiyaveli Apne Yug Ka Shishu
- धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावेली के विचार तथा आलोचना
- मैकियावेली के राजा सम्बन्धी विचार | मैकियावेली के अनुसार शासक के गुण
- मैकियावेली के राजनीतिक विचार | मैकियावेली के राजनीतिक विचारों की मुख्य विशेषताएँ
- अरस्तू के परिवार सम्बन्धी विचार | Aristotle’s family thoughts in Hindi
- अरस्तू के सम्पत्ति सम्बन्धी विचार | Aristotle’s property ideas in Hindi
- प्लेटो प्रथम साम्यवादी के रूप में (Plato As the First Communist ),
- प्लेटो की शिक्षा प्रणाली की विशेषताएँ (Features of Plato’s Education System)