भारत में जनसंख्या वृद्धि : कारण और नियंत्रित करने के उपाय
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण
भारत की जनसंख्या वृद्धि के बहुत से कारण है, उन्हें अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से तीन अग्रलिखित प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-
(अ) सामाजिक एवं धार्मिक कारण
1. विवाह की व्यापकता-
भारत में विवाह धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से अनिवार्य कार्य समझा जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति शादी करके संतान उत्पन्न करना एक अनिवाय कार्य समझता है।
2. बाल-विवाह-
आज भी हमारे देश में बाल-विवाह की प्रथा मौजूद है। शिक्षित परिवारों को छोड़कर सामान्यतः लड़कियों का विवाह 15 वर्ष की आयु से कम में ही कर दिया जाता है। इसलिए उनका सन्तानोत्पादन काल अधिक होता है, इस कारण बच्चों का जन्म होता है।
3. धार्मिक एवं सामाजिक अन्धविश्वास-
आमतौर पर अधिकांश भारतीय यह मानते हैं कि सन्तान ईश्वर की देन होती है और उसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
4. संयुक्त परिवार प्रथा-
आज भी हमारे देश में संयुक्त परिवार प्रणाली विद्यमान है। संयुक्त परिवार का आर्थिक दायित्व परिवार के सभी सदस्यों पर रहता है। इसलिए इनमें उत्तरदायित्व की भावना कम होती है और वे अन्धाधुन्ध सन्तान उत्पन्न करने लगते हैं।
(ब) आर्थिक कारण
1. निर्धनता-
हमारे देश में निर्धनता के कारण गरीब माँ-बाप की यह आशा रहती है कि जिनते अधिक बच्चे होंगे, उसके काम में हाथ बँटायेगे एवं आय में वृद्धि करेंगे। अस कारण वह अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित होता है। गुन्नार मिर्डल के अनुसार, “निर्धन समाज में बच्चे परिवार विशेष पर अधिक भार नहीं होते। इसके विपरीत प्रायः वे व्यक्ति के लिए सामाजिक सुरक्षा का एकमात्र साधन होते हैं।”
2. कृषि पर निर्भरत-
भारत में छोटी उम्र से ही बच्चों को पशुओं को चराने, खेत की रखवाली करने आदि कार्यों में लगा दिया जाता है। इसलिए कृषि कार्य में लगे व्याक्तियों के लिए बच्चे बोझ नहीं माने जाते। अतः वह अधिक सन्तान का होना बुरा नहीं समझते हैं।
3. गाँवों की प्रधानता-
भारत में 70 प्रति. जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। इस कारण वहाँ जन्म-दर बहुत अधिक है। अनेक विद्वानों का यह मत है कि भारत में जैसे-जैसे औद्यागिकीकरण बढ़ेगा, जन्म-दर में कमी होगी, किन्तु रॉबर्ट केसन के अनुसार, “भारत में जो भी शहरीकरण हुआ है, उसके साथ इस प्रकार के सामाजिक परिवर्तन नहीं हुए हैं जो जन्म-दरों को नीचे लाते हैं।”
4. प्रति व्यक्ति आय में प्रारम्भिक वृद्धि-
इस सम्बन्ध में प्रो. लेवन स्टीन का यह कथन है कि “जब किसी अल्पविकसित देश में स्थिरता टूटती है और प्रति व्यक्ति आय में थोड़ी-सी भी वृद्धि होती है, लोग अपने जीवन-स्तर को सुधारने के बजाय परिवार की वृद्धि करने लगते हैं।” हमारे देश में मृत्यु-दर में कमी होने के बावजूद भी जन्म-दर में कमी न करने की प्रवृत्ति से लेवेन स्टीन के विचारों की पुष्टि होती है।
5. विचित्र आर्थिक दृष्टिकोण-
हमारे देश में शिक्षा एवं दूरदर्शिता के अभाव में लोगों का आर्थिक दृष्टिकोण बड़ा ही विचित्र हो गया है। अधिकांश ग्रामीण जनता की यह धारणा है कि बच्चे पैदा करना अभिशाप नहीं, बल्कि एक वरदान है, क्योंकि जो एक पेट के साथ आता है, वह उसको भरने के लिए दो हाथ भी साथ में लाता है।
(स) अन्य कारण
1. जलवायु की उष्णता-
भारतीय जलवायु गर्म होने के कारण लड़कियाँ कम उम्र में युवावस्था प्राप्त कर लेती है। अतः इनकी शादी कम उम्र में जाती है और वे अधिक सन्तानें उत्पन्न करती हैं।
2. शिक्षा का अभाव-
जब तक भारतीय जनसंख्या अशिक्षित रहेगी, जब तक उसमें चेतना का अभाव रहेगा तथा जनसंख्या वृद्धि की दर ऊँची रहेगी।
3. सन्तान निरोधकों की कमी-
हमारे देश में सन्तान निरोधक का प्रयोग अत्यन्त सीमित है। इसका पहला कारण तो अज्ञानता है तथा दूसरा कारण इन साधनों का अभाव। इन कारणों से देश में सन्तान की वृद्धि होती जो रही है और जनसंख्या की दर ऊँची हो गई है।
जनसंख्या को नियंत्रित करने के उपाय
भारतवर्ष में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं-
1. आर्थिक विकास-
कुछ प्रमुख विद्वानों का यह मत है कि आर्थिक विकास के द्वारा जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है, किन्तु भारत जैसे गरीब देशों में जहाँ चारों ओर गरीबी है, तनसंख्या में तीव्र गति सं वृद्धि हो रही हो, हम जनसंख्या समाधान के लिए अर्थिक विकास होने तक इंतजार नहीं कर सकते हैं। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में हमारे लिये परिवार नियेजन की नीति को बढ़ावा देना आवश्यक है।
2. शिक्षा का स्तर-
शिक्षा के प्रसार के सम्बन्ध में प्रो. महालनोबीस ने कहा है कि जिन परिवारों का प्रति व्यक्ति व्यय बढ़ता है, उनमें कम बच्चे होते हैं। दूसरे शब्दों में, उच्च जीवन-स्तर होने पर जनसंख्या में कमी होने की सम्भावना है। शिक्षित लोग सामान्यतः गृहस्थी का भार उस समय तक नहीं उठाना चाहते जब तक उनमें स्वर अपने पैरों पर खड़े होने की शक्ति न हो। कार अथवा बच्चे में वे बहुधा कार को ही प्राथमिकता देते हैं।
3. शिशु मृत्यु-
दर में कमी-हमारे देश में शिशु मृत्यु-दर अधिक होने के कारण माँ को इस बात का विश्वास नहीं होता है कि उसका बच्चा जीवित रहेगा। फलस्वरूप वह अधिक बच्चों की इच्छा रखती है।
4. स्त्रियों की स्थिति-
जनसंख्या समस्या का प्रमुख कारण हमारे देश में स्त्रियों की स्थिति का दयनीय होना क्योंकि लड़कियों का परिवार में बोझ समझा जाता है और प्रत्येक दत्पत्ति पुत्र प्राप्ति की इच्छा करता है। पुत्र के अभाव में बार-बार गर्भ धारण करना पड़ता है और इस तरह नारी की दशा अत्यन्त खराब हो जाती है। अगर स्त्रियों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति में सुधार किया जाये तो निश्चित रूप से जन्म-दर में कमी आ जायेगी।
5. प्रेरणा कार्यक्रम-
परिवार नियोजन कार्यक्रम उस वक्त सफल हो सकता हे जब विज्ञापन और प्रचार के माध्यम से लोगों को छोटे आकार के परिवार के गुणों और लाभों से अवगत कराया जा सके। प्रेरणा अभियान का उद्देश्य लोगों के दिमाग में यह विचार उत्पन्न करना है कि परिवार को नियोजित करके और इच्छानुसार बच्चे उत्पन्न करना सम्भव है।
6. प्रोत्साहन-
लोगों में परिवार नियोजन अपनाने को प्रेरित करने के लिए तरह-तरह के प्रोत्साहन दिये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, जिसकी जनसंख्या समस्या भारत से अधिक है, “एक परिवार एक बच्चा” का आदर्श अपनाया है और अपनी जन्म-दर 18 प्रतिशत हजार कर ली है, जबकि भारत में जन्म-दर 1999 में 26.1 प्रति हजार है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए चीन की सरकार ने लोगों को प्रोत्साहन अर्थात् वजन में 12.5 प्रति, वृद्धि मकानों में प्राथमिकता, स्कूलों में प्राथमिकता एवं नौकरियों में प्राथमिकता दी है, साथ ही जो एक बच्चे के परिवार के आदर्श को मानने से इन्कार करते हैं उन पर भारी कर लगाये जाते हैं।
7. बल प्रयोग-
अगर ऊँची जन्म-दर देश के विकास में बाधा उत्पन्न करती है और लोगों के जीवन-स्तर की उन्नति में बाधा बन जाती है तो सरकार का यह कर्तव्य हो जाता है कि उचित विधान द्वारा इन रुकावटों को दूर करें, जैसे-गर्भपात के उपाय का प्रयोग या विवाह के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित करना आदि। ये उपाय इसी ओर संकेत करते हैं कि राज्य सरकार को परिवार को
सीमित करने का अधिकार प्राप्त है।
8. सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि-
सरकार को सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि करनी चाहिए, जिससे कि लोग वृद्धावस्था एवं रोगावस्था में सहारा पाने की दृष्टि से सन्तानोत्पत्ति की प्रवृत्ति से हतोत्साहित होकर परिवार कल्याण कार्यक्रम अपना सकें।
9. साताजिक सर्वसम्मति को बढ़ावा-
परिवार कल्याण नियेजन सम्बन्धी कार्यक्रमों के बारे में देश में व्यापक रूप से बहस आरम्भ की जा सकती है और लोगों से उनकी राय मालूम की जा सकती है, ताकि समाज के प्रत्येक वर्ग को इस कार्यक्रम कीजानकारी प्राप्त हो।
10. यौन शिक्षा-
मुदालियर कमेटी ने यौन शिक्षा को हाईस्कूल एवं कॉलेजों में अनिवार्य रूप से पड़ाई जाने की बात कही है, ताकि यौन शिक्षा से नवयुवकों एवं नवयुवातियों में इस समस्या के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो।
11. अधिक बच्चे, अधिक कर-
जनसंख्या की समस्या के प्रभावशाली नियंत्रण के लिये मुदालियर कमेटी के लगभग पाँचा सदस्यों ने यह सुझाव दिया था कि तीन बच्चों के बाद सरकार को प्रत्येक अगले बच्चे पर प्रगतिशील कर लगाना चाहिये।
12. आर्थिक विकास का व्यापक वितरण-
आर्थिक विकास तभी हो सकती है, जबकि इसके लाभों को समाज के गरीब वर्ग तक पहुँचाया जाये, लेकिन हमारे देश का यह दुर्भाग्य है । यहाँ आर्थिक विकास से सिर्फ धनी वर्ग हो लाभन्वित हुआ है और गरीब लोगों को कोई खास लाभ नहीं मिला है। गरीब वर्ग में ही जन्म दर अधिक होती है, इसलिए विकास की प्रक्रिया को इस तरह लागू करें कि गरीब वर्ग का भी विकास हो, तभी जन्म-दर कम होने की सम्भावना होगी।
13. प्रादेशिक दृष्टिकोण-
भारत एक विशाल देश है और विभिन्न प्रदेशों की स्थितियों में भी भारी अनतर है, जैसे-मध्य प्रदेश, दत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, नगालैण्ड, असम, हरियाणा एवं गुजरात में जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से हो रही है। इस तरह मध्य प्रदेश, दत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में लड़कियों का विवाह कम उम्र में कर दिया जाता है, – इसलिए इन क्षेत्रों में परिवार नियेजन कार्यक्रम को अधिक फैलाना आवश्यक है।
14. रिकार्ड और मूल्यांकन-
परिवार नियोजन कार्यक्रम का रिकार्ड रखने एवं मूल्यांकन के लिए प्रदेशिक स्तर पर केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए। इसके आधार पर परिवार नियेजन सम्बन्धी नीति और कार्यक्रमों में आवश्यक संशोधन किये जा सकते हैं, जिससे असफलता की सम्भावना कम हो सके।
15. परिवार नियेजन के साधनों का प्रचार-
प्रसार-जनसंख्या पर नियंत्रण लगाने के लिए परिवार नियेजन के साधनों का प्रचार एवं प्रसार करना आवश्यक है। इसके लिए अग्रलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-
(अ) गर्भ निरोधक साधनों का आसानी से उपलब्ध कराना-इसके अन्तर्गत निम्न उपाय किये जाने चाहिए-
1. देश में गर्भ निरोधक साधनों का मुफ्त वितरण बढ़ाया जाना चाहिए।
2. सन्तति निग्रह के हानि रहित उपायों की खोज करके उन्हें लोप्रिय बनाया जाये।
3. चलित चिकित्सालयों का विसतार करना चाहिए।
(ब) बन्ध्याकरण के बाद उचित देखभाल-जिन व्यक्तियों का बन्ध्याकरण किया जाये बाद में उनकी उचित देखभाल भी किं जानी चाहिए ताकि उन्हें मानसिक शांति मिले और यदि कोई परेशानी हो तो उचित उपचार किया जा सके।
(स) परिवार कल्याण केन्द्रों की स्थापना-बड़े पैमाने पर परिवार कल्याण केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए जिनो उद्देश्य सन्तति-निग्रह के बारे में लोगों को जानकारी देना और इस सम्बन्ध में आवश्यक चिकित्सा एवं देखभाल की सुविधाओं की व्यवस्था करना हो।
(द) संतति निग्रह साधनों के बारे में शोध का विस्तार-इस सम्बन्ध में शोध का विसतार करके यह प्रयत्न किया जाना चाहिए कि ये साधनं सरल एवं सते हों। इन्हें सामान्य रूप से स्वीकार करवाये जाने की कोशिश की जानी चाहिए।
(इ) गुप्तता-परिवार नियेजन सम्बन्धी बातें गुप्त होनी चाहिए, ताकि इसकी लोकप्रियता बढ़े, क्योंकि ये बातें व्यक्ति के निजी जीवन से सम्बन्धित होती है।
उपर्युक्त सभी उपायों का उद्देश्य भारत के सामाजिक, आर्थिक ढाँचे में ऐसे आधारभूत परिवर्तन लाना है, जो लोगों में परिवार नियोजन की तरफ रुचि उत्पन्न करें। डॉ. ज्ञानचन्द्र के अनुसार, “भारत में अत्यधिक जन्म-दर सामाजिक एवं धार्मिक स्थितियों का परिणाम है।” इसलिए तब तक हमारे धार्मिक एवं सामाजिक वातावरण में आमूल परिर्वत नहीं होगा। तब तक पश्चिमी देशों की तरह हमारे देश जन्म-दर की कमी की कोई आशा नहीं की जा सकती है।
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