सादा जीवन, उच्च विचार पर निबंध
प्रस्तावना- ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ नामक सूक्ति का तात्पर्य व्यक्तित्व एवं चरित्र से है। सादा जीवन अर्थात् सीमित आवश्यकताएँ तथा उच्च विचार अर्थात् उत्तम व्यवहार । जो व्यक्ति सादा जीवन व्यतीत करता है उसकी आवश्यकताएँ बहुत सीमित होती हैं। ऐसे व्यक्ति को कोई भी लोभ अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाता है। वह तो अपने उच्च विचारों से संसार में सम्मान अर्जित.करता है।
उपयोगिता- सादा जीवन जीने से जीवन में शान्ति आती है, ऐसे व्यक्तियोंके जीवन में न तो आडम्बर होता है, न ही कृत्रिमता। इस विचार वाले व्यक्तियों का व्यक्तित्व एवं चरित्र एकदम सादा होता है। ऐसा व्यक्ति सीमित साधनों में ही खुश रहता है। उसका मन इधर-उधर भटकता नहीं, अपितु सदैव ऊँची बातें सोचने में लगा रहता है। वह सदा दूसरों के हित के विषय में सोचता है, जहाँ दूषित भावों के लिए कोई जगह नहीं होती। उसके विचारों में स्वार्थपरता न होकर जनहित छिपा होता है। ‘जीओ और जीने दो’, विश्व-बन्धुत्व, हिन्दु-मुस्लिम भाई-भाई जैसे विचार सदा उसके कानों में गूंजते रहते हैं।
प्रमुख उदाहरण- हमारे विश्व का इतिहास ऐसे अनगिनत महापुरुषों के नामों से भरा हुआ है जिन्होंने अपने स्वार्थ को त्यागकर सदा दूसरों का हित ही सर्वोपरि माना। गाँधी जी, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मदर टेरेसा, टॉलस्टाय, गुरु नानक, गौतम बुद्ध तथा और भी न जाने कितने महापुरुषों ने एकदम सीधा-सादा जीवन जीकर मानवता के विकास के कार्य किए। उनके आदर्श आज भी अनुकरणीय हैं। ये सभी सम्पन्न परिवारों में पैदा हुए थे, किन्तु संसार के भौतिक सुख इन्हें अपनी ओर नहीं खींच पाए। इन सभी के जीवन का प्रमुख गुण सादगी रहा है। महात्मा गाँधी ने अपनी पूरी जिन्दगी एक सूती धोती पहनकर गुजार दी, किन्तु मानवता के विकास के लिए कार्य करते रहे, मदर टेरेसा बिना बच्चे पैदा किए ही ‘जगत माँ’ बन गई क्योंकि उनकी सादगी ही उनका सबसे बड़ा गुण था। वे तो दया की साक्षात् मूर्ति थी। टॉलस्टाय ने अपने एक निबन्ध में लिखा है कि श्रम न करने वालो को रोटी खाने का भी कोई अधिकार नहीं है। यह विचार टॉलस्टाय जैसे धनी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के मन में आने का एकमात्र कारण उनकी सादगी व मानव हित ही था। ऐसे व्यक्ति विलासी नहीं, परिश्रमी होते हैं। सादा जीवन जीने से उच्च विचार स्वतः ही मन में अपना घर बसा लेते हैं।
अनुचित साधनों से धन कमाने वाले व्यक्ति के विचार भला उच्च कैसे हो सकते हैं। वे तो बस स्वार्थपरक होते हैं। वे प्रदर्शनकारी, मिथ्यावादी, झूठे होते हैं। दिखावा पसन्द व्यक्ति के विचार सदा निम्न ही होते हैं क्योंकि वह तो सदा अपने ही स्वार्थ के विषय में सोचते हैं। इसलिए विचारों की उच्चता को महत्त्व देना बहुत आवश्यक है, अन्यथा मनुष्य संकुचित विचारों का ही रहता है। सादगी पसन्द व्यक्ति तो सन्त कबीर की भाँति यह सोचते हैं-
“साई इतना दीजिये, जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।”
जिस व्यक्ति के विचार उच्च नहीं हैं, वह पशु समान है। सादगी पसन्द व्यक्ति कठोर से कठोर व्यक्ति के हृदय को भी परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं। उन्हें किसी भी वस्तु के खोने का भय नहीं होता, क्योंकि उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं होता। ऐसे व्यक्ति समाज तथा राष्ट्र के निर्माता होते हैं। महात्मा गाँधी ने कहा है-“सदाचार में थोड़ी सी भी चूक हो जाने पर मुझे रोना आ जाता है।” ऐसे विचार वाले व्यक्ति कितने आदर्शवादी होते हैं, यह बात इस कथन से स्पष्ट हो जाती है। सदाचार रूपी धन ही आदर्श व्यक्ति के जीवन का सर्वस्व होता है क्योंकि कहा भी गया है, “धन गया, कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया, तो सब कुछ चला गया।”
‘सादा जीवन उच्च विचार’ में विश्वास रखने वाले सज्जनों का चरित्र सब को आनन्दित करता है। भर्तृहरि ने कहा है-“दान को गुप्त रखना, घर आए अतिथि का आदर-सत्कार करना, दूसरों का भला करके चुप रहना, दूसरों के लिए किए गए उपकार को सबके सामने न कहना, धनवान होकर अहंकार न करना, पर निन्दा से बचना-ये सारे गुण महापुरुषों के स्वभाव में ही होते हैं उनका ऐसा अभूतपूर्व चरित्र ही सच्चरित्रता है।” यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मानव मात्र के लिए सहनशीलता, प्रेम तथा उदाहरण से किया गया प्रत्येक कार्य लोक मंगलकारी होता है। सच्चरित्रवान् व्यक्ति दूसरों के अधिकारों को छीनना नहीं अपितु उसे देना चाहता है। सदाचार से ही मनुष्य की प्रतिष्ठा बढ़ती है, उसे सम्मान मिलता है।
उपसंहार- आज के भाग-दौड़ वाले जीवन में समाज का जीवन-दर्शन तथा जीवन-स्तर बदलता जा रहा है। आज कृत्रिमता ने हमें पूरी तरह जकड़ रखा है। हम आन्तरिक सज्जा पर कोई ध्यान नहीं देते, बस ऊपरी दिखावे तथा सुन्दरता पर ध्यान देते रहते हैं। हम दूसरों की नज़रों में तो महान बनने की कोशिश करते हैं, परन्तु स्वयं की ही नजरों में गिरते जाते हैं। हमारा अहम् हमने गलत कार्य करवाता है, जिसके कारण हमारा नैतिक पतन होता रहता है। लेकिन हमारे लिए यह बेहतर होगा कि हम भी अपने महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेते हुए कृत्रिमता से बचें तथा सरल एवं सादा जीवन व्यतीत करते हुए उच्च विचार रखें।
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