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सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला का निर्माण, आवश्यकता तथा आवश्यक उपकरण

सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला का निर्माण
सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला का निर्माण

सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला का निर्माण (Designing of Social Stud ies Laboratory)

सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला का निर्माण- सामाजिक अध्ययन समाज के विषय में जानकारी देता है। ऐसा माना जाता था कि इस विषय को पढ़ाने के लिये अध्यापक को पृथक कक्ष की आवश्यकता नही होती क्योंकि समाज के विषय में यह जानकारी इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र तथा अर्थशास्त्र आदि विषयों से पृथक-पृथक रूप से प्राप्त की जा सकती है और इसके लिये प्रयोगशाला की आवश्यकता न होकर विषय कक्ष में ही पढ़ाया जा सकता है। केवल विज्ञान के विषयों को पढ़ाने के लिये पृथक प्रयोगशाला की आवश्यकता महसूस की जाती थी। आज यह महसूस किया जाता है कि सामाजिक अध्ययन के विद्यार्थी नये तथ्यो और धारणाओं की खोज करते है उन्हें मानचित्र, रेखाचित्र, ग्लोब, मॉडल की समय-समय पर जरूरत होती है इसलिये सामाजिक अध्ययन कक्ष आवश्यक है वैज्ले के अनुसार, “जिस कक्ष में सामाजिक अध्ययन के लिए आवश्यक लिखित, दृश्य तथा श्रव्य सामग्री रखी होती है वह सामाजिक अध्ययन की प्रयोगशाला कहलाती है।” एम.पी. मुफात ने कहा है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में कक्षाकक्ष विद्यार्थियों के लिये अधिगम प्रयोगशाला है जिसमें विभिन्न गतिविधियों में भाग लेकर वह अधिक ज्ञानार्जन कर सकता है। सामाजिक अध्ययन कक्ष मे एक सम्मेलन या विचार-विमर्श कक्ष की व्यवस्था का होना आवश्यक है।

सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला की आवश्यकता (Need of Social Studies Laboratory )

(i) वैज्ञानिक दृष्टिकोण ( Scientific Attitude ):- सामाजिक अध्ययन के लिये प्रयोगशाला का होना आवश्यक है क्योंकि प्रयोगों के कारण इसका विषय मानव की वैज्ञानिक प्रवृति पर आधारित है और इसका शिक्षण भी अन्य वैज्ञानिक विषयों की भाँति किया जाता है।

(ii) व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge ):- सामाजिक अध्ययन का विषय सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक होता है। यहाँ विद्यार्थी अपने अनुभवों द्वारा ही ज्ञान प्राप्त करता है। विभिन्न प्रकरणों को समझने के लिये विभिन्न प्रकार की सहायक सामग्री की आवश्यकता होती है। जैसे चार्ट, फिल्म, चित्र, नक्शे आदि जिनकी उपलब्धि प्रयोगशाला या कक्ष से ही सम्भव है।

(iii) वास्तविक ज्ञान ( Real Knowledge ):- सामाजिक अध्ययन विभिन्न विषयों इतिहास, भूगोल, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, दर्शन आदि का समन्वित रूप है समय समय पर विद्यार्थियों को देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक, भौगोलिक स्थिति तथा देश की वनस्पति, खनिज सम्पत्ति, मानसून, वनस्पति आदि की जानकारी देने के लिये पाठ्य पुस्तकें ही काफी नहीं है परन्तु चित्र, मानचित्र, रेखाचित्र, ग्लोब, बिजली तथा सिंचाई के साधनों के चित्र, कल कारखानों के चित्र जैसी सहायक सामग्री को प्रयोगशाला में रखकर हम समय-समय पर विद्यार्थियों को वास्तविक ज्ञान देने में सहायता कर सकते है।

(iv) करके सीखने का सिद्धान्त ( Principle of Learning by doing ):- सामाजिक अध्ययन का विषय ‘करके सीखने के सिद्धान्त’ पर आधारित है। प्रयोगशाला में प्रयोग करके ही विद्यार्थी इस उद्देश्य को प्राप्त कर सकते है।

(v) दत्तकार्य में उपयोगी (Useful in Assignment ) :- समय-समय पर विद्यार्थियों को दत्तकार्य करने के लिए दिया जाता है जिसके लिये उन्हें विभिन्न प्रकार की पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती है। विषय-विशेष पुस्तकें प्रयोगशाला से उपलब्ध करके विद्यार्थी सरलता से अपना काम कर सकते है।

(vi) आत्म-निर्भरता में सहायक (Helpful in self-dependence):- सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला द्वारा विद्यार्थियों में कला-कौशल को भी विकसित किया जाता है। यहाँ विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की चीजें बनाकर छोटे-छोटे कला कौशल का ज्ञान प्राप्त करते है जो कि उनके भावी जीवन में आत्म-निर्भरता के विचार को विकसित करने में सहायक होता है।

(vii) आत्म-अनुशासन (Self discipline ):- प्रयोगशाला में विद्यार्थी अपनी रूचि, क्षमता तथा इच्छा के आधार पर अपनी सूझ-बूझ का प्रयोग करके स्वयं काम करके सीखते है, जिससे उनमें काम करने की आदत पड़ती है और अनुशासन की भावना विकसित होती है।

(viii) अन्तर्निहित शक्तियों का विकास (Development of Innate Powers ):- विद्यार्थियों में सृजनात्मक तथा कलात्मक शक्ति होती है वह तर्क शक्ति, विचार विश्लेषण शक्ति तथा चिन्तन मनन शक्ति का विकास स्वयं प्रयोगशाला में काम करते हुए। विकसित कर सकते है। इससे उन्हें जीवन से सम्बन्धित वास्तविक, रोचक व स्थाई ज्ञान प्राप्त होता है।

( ix ) सहजीवन के गुणों का विकास (Development of Group Dynamics ):- प्रयोगशाला में बच्चे सीमित उपकरणों के द्वारा मिलजुलकर काम करना सीखते हैं। समय पड़ने पर एक दूसरे की मदद करते है। योजना को पूरा करने के लिये समूह में काम करते है जिससे उनमें परस्पर मिलकर कार्य करने की आदत पड़ती है जो भावी जीवन में आवश्यक है।

(x) रचनात्मक अभिव्यक्ति में सहायक ( Helpful in Creative Expression ):- इस प्रयोगशाला में विद्यार्थियों को चित्र, मानचित्र, मॉडल, रेखाचित्र, ग्रॉफ आदि को बनाने का अवसर प्राप्त होता है जिनके द्वारा विद्यार्थियों में रचनात्मक अभिव्यक्ति विकसित होती है। प्रभावशाली शिक्षण के लिये बच्चों में विभिन्न सामाजिक गुणों, कुशलताओं, रूचियों, अनुशासन और आत्म-निर्भरता विकसित करने में तथा स्थायी व्यावहारिक और वास्तविक ज्ञान देने के लिये सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला का विशेष महत्व तथा आवश्यकता है।

सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला के आवश्यक उपकरण (Necessary Equip ments for Social Studies Lab)

सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला में निम्नलिखित उपकरणों की व्यवस्था होनी चाहिए

(a) चॉक बोर्ड (Chalk Board) :- सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला में चॉक बोर्ड का होना आवश्यक है। चॉक बोर्ड जरूरी नहीं कि काले रंग का हो। यह किसी भी रंग को हो सकता है। आजकल हरे रंग के बोर्ड को अधिक महत्व दिया जाता है। यह अध्यापक का सहायक होता है। इसकी सहायता से अध्यापक चित्र, रेखाचित्र, चार्ट आदि बनाकर शब्द तथा वाक्य लिखकर समय-समय पर बच्चों को स्पष्ट ज्ञान देता है। बोर्ड ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहाँ से सभी विद्यार्थी देख सकें।

(b) बुलेटिन बोर्ड (Bulletin Board ):- सामाजिक अध्ययन एक व्यावहारिक विषय है, जिसकी विषय वस्तु समाज में होने वाली घटनाओं से सम्बन्धित है। बुलेटिन बोर्ड पर रेखाचित्र, देश-विदेश के समाचार, फ्लैश कार्ड आदि प्रदर्शित किए जा सकते है। जब विद्यार्थी उन चीजों को देखेंगे, उन्हें बनायेंगे, वे स्वयं बुलेटिन बोर्ड पर लगायेंगे तो उन्हें व्यावहारिक जीवन की बहुत सी बाते समझ में आ जायेगी और वह उसमें रूचि लेंगे।

(c) फर्नीचर (Furniture ) :- सामाजिक अध्ययन कक्ष में विद्यार्थियों के बैठने के लिए ऐसा फर्नीचर होना चाहिए जिससे यदि प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अलग-अलग स्टूल और मेज हो तो अच्छा रहेगा। अध्यापक के बैठने के लिये कुर्सी और मेज की व्यवस्था अपेक्षाकृत ऊँचे स्थान पर होनी चाहिए ताकि सभी विद्यार्थी मेज पर दिखाई जा रही वस्तुओं को अच्छी प्रकार से देख सकें। इसके अतिरिक्त पुस्तकें, रजिस्टर आदि रखने के लिए अलमारियाँ होनी चाहिए। हो सकें तो एक शब्दकोष, एटलस, मेज का कैलेण्डर, एक पैन, एक पैड स्याही आदि की व्यवस्था अध्यापक के लिये होनी चाहिए।

(d) पुस्तकें (Books ):- पुस्तके शिक्षा ग्रहण करने के लिए आवश्यक है। सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला के लिये पुस्तकें आवश्यक ही नही अनिवार्य भी है। यह पढ़ाने के लिये एक महत्वपूर्ण उपकरण है। विषय की आधारभूत सामग्री पुस्तकों से ही उपलब्ध होती है। सम्बन्धित पुस्तकें उचित समय पर उपलब्ध होने पर विद्यार्थियों में पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों को पढ़ने की आदत पड़ जाती है। इससे उसकी मौलिकता का विकास होता है। पुस्तकों को रखने के लिये प्रयोगशाला कक्ष में खुली या बन्द अलमारी होनी चाहिए जिससे कक्ष का सौन्दर्य भी बढ़ जाता है और उपयोगिता भी।

(e) दृश्य-श्रव्य सामग्री ( Audio Visual Aids ):- प्रयोगशाला या कक्ष में उन सभी दृश्य-श्रव्य साधनों की उचित व्यवस्था होनी चाहिए जिनका प्रयोग विभिन्न शिक्षण विधियों में किया जाता है जैसे नक्शे, ग्लोब, ग्राफ, फिल्म पट्टियाँ, रेडियो, टेपरिकॉर्डर, प्रोजेक्टर आदि। इन सभी उपकरणों के प्रयोग के लिये उचित सुविधाओं तथा स्थान की भी व्यवस्था होनी चाहिए। कक्षा में काले रंग के पर्दे की भी आवश्यकता होती है। अतएव यह सुविधा भी कक्षा में अवश्य होनी चाहिए ताकि अध्यापक सुविधानुसार प्रयोगशाला की व्यवस्था कर सकें।

(f) अन्य उपकरण (Other Materials):- सामाजिक अध्ययन शिक्षण में कई प्रकार कि क्रियाओं को आयोजित किया जाता है क्योंकि अधिगम की प्रयोगशाला विद्यार्थियों की क्रियाओं का आकर्षक स्थल है इसलिये इसमें कार्य करने के लिये सभी उपकरणों की व्यवस्था होनी चाहिए। इसमें रंग, ब्रुश, कागज, पेन्सिल, पैन, पैन होल्डर, रबर, सुई धागा, कैंची, ड्राईंग बोर्ड, कील, पिन, गोंद इत्यादि की व्यवस्था होनी चाहिए। क्रियात्मक कार्य करते समय इन सभी वस्तुओं की अध्यापक को आवश्यकता होती है। अतएव चित्र, मॉडल, चार्ट, ग्राफ बनाने या सर्वेक्षण करने के लिये इनमें सम्बन्धित सभी उपकरणों की व्यवस्था सामाजिक अध्ययन प्रयोगशाला में होनी चाहिए।

(g) फाइल तथा कैबिनेट (files and cabinet ):- विभिन्न प्रकार की कैबिनेट व फाइल होनी आवश्यक है। फाइल पर लेबल लगाकर उचित स्थान पर रखना चाहिए। बच्चों को काम खत्म होने पर सारा सामान कैबिनेट में रख देना चाहिए। समय-समय पर सामग्री का मूल्यांकन करते रहना चाहिए और अनावश्यक वस्तुऐं हटा देनी चाहिए।

सफाई तथा व्यवस्था (Cleanliness )- प्रयोगशाला अन्धकारपूर्ण नहीं होनी चाहिए। इसमें प्रकाश की उचित व्यवस्था पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए। भारत की विशेष प्रकार की जलवायु होने के कारण प्रकाश और वायु-संचार का महत्व और भी बढ़ जाता है। पश्चिमी देशो में तो ठंड इतनी पड़ती है कि प्रकाश को बनावटी प्रबन्धन करना पड़ता है। परन्तु भारत में जलवायु ऐसी नहीं है कि कक्ष को बनायें रखने लिये हमेशा बन्द रखना पड़े। इसलिये इसमें उपयुक्त स्थानो पर खिड़कियाँ और रोशनदान होने चाहिए। उपयुक्त विद्युत प्रकाश व्यवस्था भी होनी चाहिए। विद्युत प्रकाश को छत से सम्बन्धित करा देने से प्रकाश को आवश्यकतानुसार कम या अधिक किया जा सकता है। कक्ष के दरवाजे और खिड़कियों पर रंगीन पर्दे लगा दिए जाने चाहिए ताकि जब आवश्यकता हो तो कमरे में पर्याप्त मात्रा में अन्धेरा किया जा सकें। ऐसा शिक्षण उपकरणों जैसे- फिल्मों और स्लाइडों के प्रयोग करने के लिए आवश्यक हो गया है। इसी प्रकार कमरे में वायु संचार का भी उचित प्रबन्ध हो। पश्चिमी देशों के पास तो इतना धन है कि वे एयरकन्डिशनर लगवा सकते है, परन्तु भारत जैसे देश में तो खिड़की और रोशनदान से ही पर्याप्त वायु-संचार सम्भव है। इसके अतिरिक्त कक्षा की साफ-सफाई की उचित व्यवस्था होनी आवश्यक है। साफ कमरे में काम करने की इच्छा बच्चों की बढ़ जाती है।

कक्षा-कक्ष की व्यवस्था (Classroom Arrangment)- सामाजिक अध्ययन की प्रयोगशाला के संगठन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(a) प्रयोगशाला के लिए केवल सामग्री को इकट्ठा करना ही आवश्यक नहीं है इसे उपयुक्त स्थानों पर रखना अधिक आवश्यक है। व्यवस्था इस प्रकार की हो कि कोई भी एक सामग्री किसी दूसरे के प्रदर्शन में रूकावट न बनें।

(b) प्रयोगशाला की सफाई समय-समय पर होनी चाहिए।

(c) प्रयोगशाला का प्रयोग अन्य विषयों के कार्य के लिये नही होना चाहिए।

(d) प्रयोगशाला की व्यवस्था उत्तरदायित्व विद्यार्थियों पर छोड़ देना चाहिए। प्रयोगशाला के भिन्न-भिन्न पहलुओं की देखभाल करने के लिये विद्यार्थियों की समितियाँ बना देनी चाहिए।

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