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जानने का अधिकार। Right to Know in Hindi

जानने का अधिकार से आप क्या समझते है ? Right to Know in Hindi
जानने का अधिकार से आप क्या समझते है ? Right to Know in Hindi

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जानने का अधिकार। Right to Know in Hindi

जानने का अधिकार (Right to Know)-जानने के अधिकार पदावली को सूचना का अधिनियम, 2005 में परिभाषित नहीं किया गया है। इस अधिनियम के लागू होने के पूर्व जानने के अधिकार को सूचना के अधिकार के रूप में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के अन्तर्गत भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता प्रदान किया था।

श्री निवास बनाम मद्रास राज्य, A.I.R. 1951 मद्रास के मामले द्वारा यह निर्णीत किया गया कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल अपने ही विचारों के प्रसार की स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है। इसमें दूसरों के विचारों के प्रचार एवं प्रकाशन की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है जो केवल प्रेस की स्वंत्रता से ही संभव है और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए।

एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य, ए0 आई0आर 1982 S.C. 14 के मामले में यह निर्धारित किया गया था कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के अन्तर्गत जानने के अधिकार में सरकार के संचालन से संबंधित सूचनाएँ जानने का अधिकार भी आता है। प्रत्येक लोकतांत्रिक सरकार एक खुली सरकार होती है जिसके विषय में जनता को जानने का अधिकार होता है।

केवल आपवादिक मामलों में कुछ सूचनाओं को प्रकट नहीं किया जा सकता है-

(1) वे सूचनाएँ जो देश की सुरक्षा से संबंधित हैं,
(2) वे सूचनाएँ जो व्यापक रूप से लोकहित को प्रभावित करती हों।

रिलायंस पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड बनाम प्रोपराइटर्स आफ इण्डियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स बाम्बे प्राइवेट लिमिटेड, ए0 आई0 आर 1989 S.C. 190 के मामले में यह निर्णय दिया गया कि लोकहित के महत्व की बातों का प्रकाशन करने का समाचारपत्रों को पूर्ण अधिकार है और उस पर पूर्ण अवरोध नहीं लगाया जा सकता है। नागरिकों को जानने का अधिकार एक मूल अधिकार है तथा इस पर वर्तमान और आसन्न खतरे के आधार पर निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं। ऐसी बातों के प्रकाशन पर पूर्ण अवरोध से प्रेस की स्वतंत्रता का अतिक्रमण होता है और वह असंवैधानिक है।

सेक्रेटरी जनरल, उच्चतम न्यायालय बनाम सुभाष चन्द्र अग्रवाल, ए0 आई0 आर 2010 दिल्ली 159 के प्रकरण में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में निर्णय दिया कि सूचना के अधिकार का स्रोत सूचना के अधिकार अधिनियम से उत्पन्न नहीं होता है जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में निर्धारित किया है। यह वह अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के अधीन प्रत्याभूत किए गए संवैधानिक अधिकार से उत्पन्न होता है।

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