समाजशास्‍त्र / Sociology

ईसाई विवाह का अर्थ-जीवन साथी का चुनाव तथा विवाह पद्धति

ईसाई विवाह का अर्थ
ईसाई विवाह का अर्थ

ईसाई विवाह का अर्थ

ईसाई विवाह का अर्थ बताते हुए कहा गया है कि ‘विवाह समाज में एक पुरुष और एक स्त्री के बीच समझौता है जो सामान्य रूप से सारा जीवन चलता रहता है और इसका उद्देश्य यौन सम्बन्ध, पारस्परिक संसर्ग और परिवार की स्थापना है।

जीवन साथी का चुनाव

ईसाइयों में जीवन-साथी के चुनाव के दो ढंग हैं- (1) माता-पिता द्वारा (2) स्वयं युवक व युवतियों द्वारा। दूसरे ढंग के विवाह का अधिक प्रचलन है। माता-पिता कोर्टशिप को प्रोत्साहित करते हैं। वे युवक व युवतियों को प्रेम करने का अवसर देते हैं।

जीवन साथी के चुनाव में निम्न बातों का ध्यान रखना होता है :

1. रक्त सम्बन्ध, 2. पारिवारिक स्थिति 3. सामाजिक स्थिति 4. शिक्षा, चरित्र एवं गुण, 5. शारीरिक स्वस्थता ।

रक्त सम्बन्धियों में ईसाई समाज में विवाह वर्जित है। समान योग्यता व स्थिति का ध्यान रखा जाता है। ईसाइयों में दहेज व मेहर की समस्यायें नहीं हैं। जीवन साथी के चुनाव में स्वतंत्रता तथा वर व कन्या की इच्छा को चुनाव में अन्तिम माना जाता है।

विवाह पद्धति

विवाह तय हो जाने के बाद मंगनी या सगाई की रस्म होती है। इसके लिए एक तारीख तय कर ली जाती है। कन्या व वर दोनों के माता-पिता अपनी सहमति पादरी के पास ले जाते हैं. पादरी इसे पंचों तक पहुंचा देता है। सभी की मिली-जुली राय से मंगनी की रस्म होती है। यह सदैव कन्या के घर होती है। इस दिन दोनों ही पक्ष के लोग एकत्र होते हैं। वर पक्ष मिठाई, अंगूठी, रुपया, नारियल और रूमाल लेकर लड़की के घर आते हैं। कभी-कभी लड़की के लिए कपड़े भी दिये जाते हैं जो मंगनी के अवसर पर लड़की पहनती है। वर-वधू के सामने पादरी. बाइबिल के कुछ अंश पढ़ता है, खुशी के गीत गाये जाते हैं। पादरी युवक या युवती से यह पूछता है कि क्या वे विवाह बन्धन को स्वीकार करते हैं। यदि उत्तर ‘हाँ’ में होता है तो स्वीकृति की निशानी लड़के की ओर से अंगूठी, रुपया व रूमाल व बाइबिल की पुस्तक दी जाती है और लड़की की ओर से अंगूठी, रुपया व रूमाल दिये जाते हैं। पादरी इन अंगूठियों को युवक-युवती को पहना देता है। फिर यह घोषणा करता है कि जब युवक व युवती ने गठबन्धन स्वीकार किया है तो उन्हें ऐसा करने दिया जाये। इसके बाद मिठाई बांटी जाती है। दावत दी जाती है और यह रस्म पूरी हो जाती है। मंगनी के बाद लड़की व लड़के को मिलने-जुलने व घूमने-फिरने की स्वतंत्रता होती है।

विवाह संपन्न होने से पहले युवक व युवती को निम्न बातें पूरी करनी होती हैं : 1. चर्च की सदस्यता का प्रमाण-पत्र । 2. चरित्र प्रमाण पत्र 3. विवाह के लिए प्रार्थना पत्र जो विवाह के तीन सप्ताह पहले आना चाहिए।

जब उपरोक्त शर्तें पूरी हो जाती हैं तो युवक व युवती दोनों के चर्चा में तीन रविवार इश्तिहार लगाये जाते हैं, जिनमें लिखा होता है कि अमुक युवक का विवाह अमुक युवती से होना मंजूर हुआ है। यदि किसी को किसी प्रकार का एतराज हो जिससे इन दोनों में विवाह न हो सके, तो अपना एतराज लिखकर दे और शाही हर्जाना भी जमा करें। यदि कोई विरोध नहीं होता तो पादरी प्रमाण पत्र देता है। तब विवाह संपन्न हो सकता है।

एक विवाह का आदर्श

ईसाई लोग एक विवाह को आदर्श मानते हैं और बहुविवाह को घृणा की दृष्टि से देखते हैं। चर्च बहुविवाह की सुविधा नहीं देता।

  1. विवाह का अर्थ | विवाह की परिभाषा | विवाह की प्रमुख विशेषताएँ
  2. हिन्दू विवाह के उद्देश्य | हिन्दू विवाह के प्रकार
  3. विवाह के भेद या प्रकार | Types of Marriage in Hindi
  4. हिन्दू विवाह के निषेध | Prohibitions of Hindu Marriage in Hindi
  5. भारतीय मुसलमानों में प्रचलित विवाह पर एक निबन्ध लिखिए।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment