राजनीति विज्ञान / Political Science

प्लेटो (Plato): महत्त्वपूर्ण रचनाएँ तथा अध्ययन शैली और पद्धति in Hindi

प्लेटो (Plato): महत्त्वपूर्ण रचनाएँ तथा अध्ययन शैली और पद्धति

प्लेटो (Plato): महत्त्वपूर्ण रचनाएँ तथा अध्ययन शैली और पद्धति

प्लेटो (Plato): महत्त्वपूर्ण रचनाएँ तथा अध्ययन शैली और पद्धति

महत्त्वपूर्ण रचनाएँ
( Important Works )

प्लेटो की रचनाएँ काल के आधार पर चार भागों में बाँटी जा सकती हैं। प्रथम वर्ग में सुकरात से सम्बन्धित रचनाएँ हैं। इन रचनाओं के विचार सुकरान्त के विचारों की ही अभिव्यक्ति है। अपोलाजी (Apology), क्रीटो (Crita), यूथीफ्रो (Euthyphro), जोर्जियस (Gorgias) आदि प्रथम वर्ग की रचनाएँ हैं। ये सभी रचनाएँ सुकरात की मृत्यु से सम्बन्धित है, प्रथम रचनाएँ राज्य की आज्ञा का पालन तथा उसकी सीमा से सम्बन्धित हैं।

द्वितीय वर्ग की रचनाएँ 380 ई. पू. की है। ये प्लेटो के अपने विचारों से सम्बन्धित हैं। इस वर्ग में मीनो (Meno), प्रोटागोरस (Protagoras), सिंपोजियम (Symposium), फेडो (Pleaedo), रिपब्लिक (Republic) और फेड्रस (Phaedrus) आदि रचनाएँ आती हैं। ये सभी रचनाएँ प्लेटो की चरमोत्कृष्ट साहित्यिक एवं दार्शनिक प्रतिमा को प्रतिबिम्बित करती है।

तीसरे वर्ग में संवाद या कथोपकथन (Dialogues) आते हैं जिनका सम्बन्ध प्लेटो की शैली, विचार और व्यक्तित्व से अधिक द्वन्द्वात्मक पद्धति से है। पार्मिनीडिज (Parmenides), थीटिटस (Theaetetus), सोफिस्ट (Sophist). स्टेट्समैन (Statesman) आदि रचनाएँ आती हैं। अन्तिम वर्ग में फीलिबस (Philobus), टायमीयस (Timacus), लाज (Laws) आदि ग्रन्थ आते हैं। लाज प्लेटो का अन्तिम ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में सुकरात एक चरित्र के रूप में पूर्णतः विलीन हो जाता है।

इन रचनाओं में प्लेटो की सर्वोत्तम रचना रिपब्लिक (Republic) है जिसके द्वारा प्लेटो राजनीति, दर्शन, शिक्षा, मनोविज्ञान, कला, नीतिशास्त्र आदि के क्षेत्र में एक मेधावी व सर्वश्रेष्ठ विचारक के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। यह रचना राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में प्लेटो की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण व अमूल्य देन मानी जाती है।

अध्ययन शैली और पद्धति
Style and Method of Study

प्लेटो ने प्रत्येक विषय को स्पष्ट करने के लिए सशक्त, रोचक और आकर्षक संवाद शैली अपनाई है। उसकी रचनाओं में केवल एक पात्र का दूसरे पात्र से वार्तालाप ही नहीं होता बल्कि दर्शन कविता के साथ, विज्ञान कला के साथ, सिद्धान्त व्यवहार के साध, राजनीति अर्थशास्त्र के साथ, भावना विवेक के साथ, शरीर आत्मा के साथ, व्यायाम संगीत के साथ स्वर में स्वर मिलाकर बोलते हुए प्रतीत होते हैं। इसके चलते जहाँ प्लेटो को समझना कुछ कठिन होता है, वहीं उन्हें पढ़ना उतना ही आनन्द देता है। क्रॉसमैन ने लिखा है- “मैं जितना अधिक रिपब्लिक को पढ़ता हूँ, उतना ही इससे घृणा करता हूँ, फिर भी इसे बार-बार पढ़े बिना अपने आप को रोक नहीं पाता हूँ।” उसके विचारों में औपन्यासिक रोचकता है। उसने पौराणिक दृष्टान्तों एवं कथाओं को शामिल करके रचनाओं को और अधिक मनोरंजक बना दिया है। प्लेटो का दर्शनशास्त्र भव्य रूप में प्रकट हुआ है। अतएव उसने ऐसी शैली अपनाई है जो सत्य और सौन्दर्य के समन्वय को प्रकट करती है।

प्लेटो ने अपने चिन्तन में अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया है। ये पद्धतियाँ नैतिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक समस्याओं के विश्लेषण के लिए प्रयोग में लाई गई हैं जिनमें प्रमख निम्न प्रकार से हैं :

प्लेटो की सबसे प्रमुख पद्धति द्वन्द्वात्मक पद्धति (Dialectical Method) है। प्लेटो ने यह पद्धति अपने गुरु सुकरात से ग्रहण की है। प्लेटो ने रिपब्लिक, स्टेटसनैन, लॉज, क्रीटो आदि ग्रन्थों में इस पद्धति का प्रयोग किया है। यह पद्धति चिन्तन की वह पद्धति है, जिसके द्वारा प्रश्नोत्तर एवं तर्क-वितर्क के आधार पर किसी सत्य की खोज की जाती है। इस पद्धति के द्वारा मस्तिष्क में छिपे विचारों को उत्तेजित कर उन्हें सत्य की ओर ले जाने का प्रयास किया जाता है। इसलिए अपने मौलिक रूप में द्वन्द्वात्मक (Dialectical) पद्धति का अर्थ वार्तालाप की प्रक्रिया से है। प्रश्न पूछने और उत्तर देने की शैली से हैं; तर्क-वितर्क की पद्धति से है; किसी विषय पर अपना मत प्रकट करने और दूसरे के मत को जानने की विधि से है। वही व्यक्ति किसी विषय पर अपना मत प्रकट कर सकता है, जिसे उस विषय का ज्ञान होता है। ग्रीक जगत में यह विधि कोई नई नहीं है। सुकरात ने कहा कि जब लोगों में परस्पर एक साथ मिलाकर विचार करने की प्रथा आई, तभी इस विधि का जन्म हुआ। लेकिन प्लेटो ने इसे वार्तालाप की प्रणाली मात्र न मानकर इसे सत्य की खोज करने की विधि माना, इस विधि का प्रयोग प्लेटो ने प्रचलित विश्वासों व धारणाओं का खण्डन करके नए विश्वासों व धारणाओं की स्थापना हेतु किया। प्लेटो का विश्वास था कि एक विचार को धराशायी करके ही दूसरे विचार को प्रतिष्ठित किया जा सकता है। बार्कर का मत है कि “वैचारिक क्षेत्र में सत्य को तभी एक विजयी के रूप में प्रतिष्ठित किया जा सकता है जब एक रुद्र विचार दूसरे विचार को निगलता है। प्लेटो का विश्वास था कि धीरे-धीरे ही सत्य की ओर बढ़ा जा सकता है। विशिष्ट विचार को ‘अनेक में एक’ और ‘एक में अनेक’ की खोज द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। यह विशिष्ट विचार ही सत्य है।

सत्य की खोज ही इस पद्धति का उद्देश्य है। डायलेक्टिक की उत्पत्ति इसी मौलिक तथ्य से होती है कि सभी वस्तुओं में एकता और अनेकता का सामंजस्य पाया जाता है। उसने अपने ग्रन्थ रिपब्लिक में यह स्पष्ट कर दिया है कि किस प्रकार प्रत्येक वस्तु का रूप दूसरी वस्तुओं के रूप से जुड़ा होता है। सभी वस्तुओं के रूप एक-दूसरे से मिलकर सत् या शिव का स्वरूप धारण करते हैं। प्लेटो ने संवाद प्रणाली के माध्यम से पात्रों के द्वारा अन्तिम सत्य का पता लगाने की कोशिश की है। उसने संवाद शैली को विचार क्रान्ति के सर्वोत्तम एवं रुचिकर साधन के रूप में प्रयोग किया है। इससे पात्रों व श्रोताओं के दिमागों में सत्य को ढूढ़ने की आवश्यकता नहीं होती। प्लेटो ने इस पद्धति का प्रयोग तीन उद्देश्यों के लिए किया है- (1) सत्य की खोज के लिए (2) सत्य की अभिव्यक्ति और प्रचार के लिए (3) सत्य की परिभाषा के लिए।

द्वन्द्वात्मक पद्धति एक महत्त्वपूर्ण पद्धति होने के बावजूद भी आलोचना का शिकार हुई। आलोचकों ने कहा कि इस पद्धति में प्रश्न अधिक पूछे जाते हैं, उत्तर कम दिए जाते हैं, इसलिए यह मस्तिष्क को भ्रांत करती है। यह सत्य को असत्य और असत्य को सत्य सिद्ध कर सकती है। सत्य की प्राप्ति वाद विवाद से न होकर मनन से ही हो सकती है। वाकपटुता के बल पर धूर्त व्यक्ति समाज अपना स्थान बना सकते हैं। यह पद्धति शंकाओं का समाधान करने की बजाय भ्रांति ही पैदा करती है। लेकिन अनेक त्रुटियों के बावजूद भी इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि प्लेटो ने इसके आधार पर न्याय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। यह विचार और चिन्तन करने की शक्ति को उत्प्रेरित करने की क्षमता रखती है।

प्लेटो ने अपने राजनीतिक चिन्तन में निगमनात्मक पद्धति (Deductive Method) का भी काफी प्रयोग किया है। इस पद्धति का सार यह है कि इसमें सामान्य से विशेष की ओर पहुँचा जाता है। इसका अर्थ यह है कि सामान्य सिद्धान्त के आधार पर विशेष के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाले जाते हैं। प्लेटो ने दार्शनिक राजा का सिद्धान्त इसी पद्धति पर आधारित किया है। प्लेटो के अनुसार, “सद्गुण ही ज्ञान है”। दार्शनिक ज्ञानी होते हैं, इसलिए वे सद्गुणी भी होते हैं और उन्हें ही शासक बनना चाहिए। इसी पद्धति का प्रयोग करके प्लेटो ने वर्ग-सिद्धान्त, शिक्षा-सिद्धान्त और दार्शनिक शासक का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। प्लेटो ने अपने सामान्य सिद्धान्त के आधार पर परम्पराओं और रूढ़ियों को तिलांजलि देते हुए निगमनात्मक पद्धति का ही प्रयोग किया है। इस पद्धति को सामान्य से विशिष्ट की ओर चलने वाली पद्धति भी कहा जाता है।

प्लेटो ने अपने चिन्तन में विश्लेषणात्मक पद्धति (Analytical Method) का भी प्रयोग किया है। इस पद्धति में वस्तु के मौलिक तत्त्वों को अलग-अलग करके अध्ययन किया जाता है ताकि सम्पूर्ण वस्तु का पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो सके। वह आत्मा के तीन तत्त्व विवेक, साहस एवं तृष्णा को मानकर, इनके पृथक-पृथक अध्ययन द्वारा मानव स्वभाव का वर्णन करता है। वह दार्शनिक राजा, सैनिक और उत्पादक वर्ग के अलग-अलग अध्ययन के आधार पर इनसे निर्मित राज्य का विश्लेषण करता है।

प्लेटो ने अपने चिन्तन में सादृश्य विधि (Analogy Method) का भी प्रयोग किया है। उसने अपने सादृश्यों और पौराणिक कथाओं का प्रयोग किया है। उसने इन्हें कहीं तो कलाओं से लिया है और कहीं पशु-जगत से। रिपब्लिक में कुत्ते के सादृश्य को अनेक स्थानों पर तर्क का आधार बनाया गया है कि जिस प्रकार चौकीदार के काम के लिए कुत्ता व कुत्तिया एक समान हैं, उसी प्रकार राज्य के संरक्षक बनने के लिए पुरुष और स्त्री समान हैं। कलाओं के सादृश्य में वह राजनीति को कला मानता है। अत: अन्य कलाओं की भाँति इसमें भी ज्ञान का आधार होना चाहिए। रिपब्लिक में दार्शनिक राजा की धारणा का आधार अन्य कलाकारों के सादृश्य पर आधारित है। उसका मानना है कि प्रत्येक राजनीतिज्ञ को अपने कार्य का पूरा ज्ञान होना चाहिए। उसका कहना है कि कलाकार की भाँति राजनीतिक कलाकार को भी व्यवहार के नियमों के प्रतिबन्ध से मुक्त रखना चाहिए। इस पद्धति का अर्थ है कि प्रत्येक वस्तु का कुछ उद्देश्य है और वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयासरत है और उसी की तरफ अग्रसर होती है। अर्थात् प्रत्येक वस्तु की गति उसे उद्देश्य द्वारा ही निरूपित होती है। प्लेटो के चिन्तन में उसके शिक्षा सिद्धान्त का दार्शनिक आधार सोद्देश्यता ही है। अतः प्रत्येक वास्तविक राज्य का उद्देश्य आदर्श राज्य की तरफ उन्मुख होना है।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्लेटो ने अपने चिन्तन में संवाद शैली का प्रयोग करते हुए बहुत सी पद्धतियों का अनुसरण किया है। उसकी द्वन्द्वात्मक पद्धति का हीगेल और मार्क्स के विचारों पर, सोद्देश्य पद्धति का अरस्तू, दाँते एवं ग्रीन पर प्रभाव पड़ा है। प्लेटो की अध्ययन-पद्धति अनेक पद्धतियों का मिश्रण है। प्लेटो ने आवश्यकतानुसार सभी पद्धतियों का प्रयोग किया है।

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