पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा | Meaning and definitions of Environment
पर्यावरण का अर्थ
पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा – मनुष्य के चारों ओर एक ऐसा पर्यावरण है, जो मानव की बुद्धि और प्रक्रियाओं के द्वारा उत्पन्न नहीं हुआ है अपितु यह पूर्णरूप से प्राकृतिक परिस्थितियों की देन है। प्रकृति द्वारा बनाये गये इस तरह के पर्यावरण को प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण कहते हैं। भौगोलिक पर्यावरण में वे सब परिस्थितियाँ सम्मिलित होती हैं, जो प्रकृति मानव को प्रदान करती है। जैसे—पृथ्वी, ऋतुयें, फल-फूल, वृक्ष, नदी, पर्वत, सागर आदि।
भौगोलिक पर्यावरण से तात्पर्य ऐसी ऐहिक दशाओं से है जिनका अस्तित्व मनुष्य के कार्यों से स्वतन्त्र है, जो मानव रचित नहीं है और बिना मनुष्य के अस्तित्व और कार्यों से प्रभावित हुए स्वतः परिवर्तित होती है।
कुछ वैज्ञानिकों ने पर्यावरण शब्द की अपेक्षा habitat शब्द या milieu शब्द का प्रयोग किया है जिसका अभिप्राय भी समस्त पारिस्थितिकी अथवा परिवृत्ति से है।
पर्यावरण शब्द फ्रेंच भाषा के Environer शब्द से बना है जिसका अभिप्रायः समस्त पारिस्थितिकी अथवा परिवृत्ति होता है। इसके अन्तर्गत सभी स्थितियाँ, परिस्थितियाँ, दशायें तथा प्रभाव जो कि जैव अथवा जैवकीय समूह पर प्रभाव डाल रहा है, सम्मिलित हैं।
यदि हम भारतीय दार्शनिक आधार पर पर्यावरण का अर्थ एवं पर्यावरण घटकों के विषय में जानें तो भारतीय दर्शन में आधुनिक पर्यावरण शब्द के स्थान पर ‘प्रकृति’ तथा ‘सृष्टि’ जैसे शब्दों का उपयोग किया गया है। प्रकृति अथवा सृष्टि जैसे शब्दों की व्यापकता वैज्ञानिक आधार पर आधुनिक शब्द अथवा पश्चिमी विचार पर्यावरण की अपेक्षा कहीं अधिक है।
भारतीय दर्शन प्राचीन काल से ही प्रकृति प्रधान एवं प्रकृति संरक्षणवादी रहा है। हमारे धर्म ग्रन्थों में भी जल, वायु, अग्नि, वृक्ष, जीव तथा भूमि की पूजा पर जोर दिया गया है, अर्थात् प्रकृति के इन सभी घटकों की महत्ता को स्वीकार किया गया है। भारतीय धर्मग्रन्थों में उल्लिखित प्रकृति शब्द यह विचार सामने रखता है कि वह किसी में समाहित नहीं है, वरन् उसके सभी सदस्य (घटक) परिवार में समाहित हैं। परिवार की भाँति उसके पर्यावरण में भी विभिन्न घटकों के बीच संसर्ग अवश्यंभावी है। अनेक बार यह संसर्ग पर्यावरण को विषम परिस्थितियों की ओर ले जाता हैं। कई बार इस तरह की विषम परिस्थितियाँ निर्जीव घटकों में कुछ प्राकृतिक घटनाओं के कारण उत्पन्न हो जाती हैं। इन प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाव हेतु परस्पर सामंजस्य की प्रक्रिया पर्यावरण को स्वतः सुधार प्रणाली की ओर ले जाती है। विकास के दौर में जो जीव अस्तित्व बनाये रखते हैं, वे योग्य समझे जाते हैं। यही कारण है कि वर्तमान पर्यावरण में मनुष्य श्रेष्ठ तथा सर्वोपरि समझा जाता है।
पर्यावरण भौगोलिक अध्ययन का एक केन्द्रीय बिन्दु है। भौगोलिक दृष्टि से पर्यावरण के अध्ययन में मोटे तौर पर-स्थल मण्डल, जल मण्डल, वायु मण्डल तथा जैव मण्डल का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन में पर्यावरण का मानव पर प्रभाव तथा मानव का पर्यावरण पर प्रभाव आदि का विश्लेषण व मूल्यांकन किया जाता है।
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पर्यावरण की परिभाषा
पर्यावरण वह परिवृत्ति है जो मानव को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उसके जीवन व क्रियाओं पर प्रभाव डालती है। इस परिवृत्ति अथवा परिस्थिति में मनुष्य से बाहर के समस्त तथ्य, वस्तुयें, स्थितियाँ तथा दशायें सम्मिलित होती हैं, जिनकी क्रियायें मनुष्य के जीवन विकास को प्रभावित करती हैं।
फिटिंग के अनुसार– “जीवों के पारिस्थितिकी कारकों का योग पर्यावरण है। अर्थात् जीवन की पारिस्थितिकी के समस्त तथ्य मिलकर वातावरण कहलाते हैं।”
टाँसले के अनुसार– “प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव रहते हैं, वातावरण कहलाता है।”
हर्सकोविट्स के अनुसार — “वातावरण उन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है, जो प्राणी के जीवन और विकास पर प्रभाव डालते हैं।”
मैकाइवर के अनुसार– “पृथ्वी का धरातल और उसकी सारी प्राकृतिक दशायें— प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान, खनिज पदार्थ, पौधे, पशु तथा सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियाँ जो पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।”
सोरोकिन के अनुसार– “भौगोलिक पर्यावरण का तात्पर्य ऐसी दशाओं और घटनाओं से है जिनका अस्तित्व मनुष्य के कार्यों से स्वतन्त्र है, जो मानव रचित नहीं है और बिना मनुष्य के अस्तित्व और कार्यों से प्रभावित हुए स्वतः परिवर्तित होती है। “
भूगोल परिभाषा कोष के अनुसार- “चारों ओर की उन बाहरी दशाओं का सम्पूर्ण योग, जिसके अन्दर एक जीव अथवा समुदाय रहता है या कोई वस्तु उपस्थित रहती है।”
टी. एन. खुशु के अनुसार- “उन सब दशाओं का योग जो कि जीवधारियों के जीवन और विकास को प्रभावित करता हो, पर्यावरण है।”
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वस्तुतः पर्यावरण विभिन्न अन्तनिर्भर घटकों-सजीव एवं निर्जीव के मध्य सामंजस्य एवं पूर्णता (प्रकृति) की अवधारणा है। पर्यावरण का निर्जीव घटक पाँच मुख्य उपघटकों में विभाजित है। जैसे-ऊर्जा, पानी, मिट्टी, हवा तथा अंतरिक्ष सजीवों के अनेक उप-घटक हैं जो न तो उत्पन्न किये जा सकते हैं और न ही समाप्त। हाँ इन्हें एक से दूसरे में रूपान्तरित किया जा सकता है। इस से प्रकार सजीव तथा निर्जीव में कोई मूलभूत अन्तर नहीं है। एक स्वरूप में यदि कोई उत्पादक है, तो वह दूसरे रूप में उत्पाद भी हो सकता है। यही प्रकृति भी है।
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