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पर्यावरण की विशेषताएँ एंव प्रकार | Characteristics and Types of Environment in Hindi

पर्यावरण की विशेषताएँ एंव प्रकार | Characteristics and Types of Environment in Hindi
पर्यावरण की विशेषताएँ एंव प्रकार | Characteristics and Types of Environment in Hindi

पर्यावरण की विशेषताएँ एंव प्रकार | Characteristics and Types of Environment in Hindi

पर्यावरण की विशेषताएँ

पर्यावरण की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  1. पर्यावरण भौतिक तत्वों का समूह या तत्व समुच्चय होता है।
  2. भौतिक पर्यावरण अपार शक्ति का भण्डार है।
  3. पर्यावरण में विशिष्ट भौतिक प्रक्रिया कार्यरत रहती हैं।
  4. पर्यावरण का प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में पड़ता है।
  5. यह परिवर्तनशील होता है।
  6. यह स्वपोषण और स्वनियन्त्रण प्रणाली पर आधारित है।
  7. इसमें क्षेत्रीय विविधता होती है।
  8. इसमें पार्थिव एकता पाई जाती है।
  9. यह जैव जगत का निवास्य या परिस्थान है।
  10. यह संसाधनों का भण्डार है।

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पर्यावरण के प्रकार

पर्यावरण के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं-

  1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण
  2. सांस्कृतिक या मानव निर्मित पर्यावरण

1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण : भौतिक पर्यावरण से तात्पर्य उन भौतिक क्रियाओं, प्रक्रियाओं और तत्वों से लिया जाता है जिनका मानव पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। भौतिक शक्तियों में सौर्थिक शक्ति (तापमान), पृथ्वी की दैनिक व वार्षिक गति, गुरुत्वाकर्षण शक्ति भूपटल को प्रभावित करने वाले बल, ज्वालामुखी, भूकम्प आदि शामिल किये जाते हैं। इन शक्तियों द्वारा पृथ्वी पर अनेक प्रकार की क्रियायें होती हैं। इसके पर्यावरण के तत्व उत्पन्न होते हैं। इन सबका प्रभाव मानव की क्रियाओं पर पड़ता है। भौतिक प्रक्रियाओं में भूमि का अपक्षय, ताप विकिरण, संचालन, ताप संवहन, अवसादीकरण, वायु व जल की गतियाँ, जीवधारियों की गतियाँ, जन्म-मरण व विकास आदि आती हैं। इन प्रक्रियाओं द्वारा भौतिक पर्यावरण में अनेक क्रियायें उत्पन्न होती हैं। वे मानव के क्रिया-कलापों पर अपना प्रभाव छोड़ती हैं। भौतिक तत्वों में उन तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है, जो भौतिक शक्तियों तथा प्रक्रियाओं के फलस्वरूप धरातल पर उत्पन्न होते हैं।

इन तत्वों के निम्न तीन भेद हैं-

(i) भाववाचक तत्व- प्रदेश की ज्यामितीय स्थिति, प्राकृतिक संस्थिति, प्रदेश का क्षेत्रफल या विस्तार, प्रदेश की आकृति व भौगोलिक अवस्थिति।

(ii) भौतिक तत्व – भूआकार, ऋतु एवं जलवायु, चट्टानें व खनिज, मिट्टियाँ, नदियाँ व जलाशय, भूमिगत जल, महासागर व तट।

(iii) जैविक तत्व- प्राकृतिक वनस्पति, प्रादेशिक जीव-जन्तु व सूक्ष्म जीवाणु ।

उपरोक्त सभी तत्व मिलकर मानव पर्यावरण का निर्माण करते हैं और मनुष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं। इसे प्राथमिक, प्राकृतिक या भौतिक पर्यावरण आदि नामों से अभिहीत किया जाता है। ये समस्त तत्व प्रकृति की देन हैं, इनका मनुष्य ने सृजन नहीं किया है।

2. सांस्कृतिक या मानव निर्मित पर्यावरण : मानव द्वारा निर्मित सभी वस्तुएँ सांस्कृतिक पर्यावरण की अंग हैं। मनुष्य अपनी तकनीकी के बल पर प्राकृतिक पर्यावरण के तत्वों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप बना लेता है। वह भूमि को जोतकर कृषि करता है, जंगलों को साफ करता है, सड़कें, रेलमार्ग व नहरें आदि बनाता है, पर्वतों को काटकर सुरंगें बनाता है, नई बस्तियाँ बसाता है, भूगर्भ से खनिज निकालता है, अनेक यन्त्र व उपकरण बनाता है तथा प्राकृतिक शक्तियां का विभिन्न प्रकार से दोहन कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। मानव द्वारा बनाई गयी। समस्त वस्तुएँ जिस संस्कृति को जन्म देती हैं, उसे मानव निर्मित संस्कृति या प्राविधिक पर्यावरण कहते हैं। इसे मानव की पार्थिव संस्कृति भी कहा जा सकता है। मानव को सांस्कृतिक पर्यावरण में औजार, गहने, अधिवास, परिवहन व संचार के साधन (वायुयान, रेल, मोटर, तार, जलयान), प्रेस आदि सम्मिलित किये जाते हैं। मानव की शारीरिक व बौद्धिक क्षमतायें भी मानव संस्कृति के ही अंग हैं। ये मानव की सांस्कृतिक विरासत हैं। संस्कृति के इस भाग को अपार्थिव संस्कृति कहते हैं।

प्राकृतिक पर्यावरण की भाँति सांस्कृतिक पर्यावरण में भी शक्तियाँ, प्रक्रियायें और तत्व कार्य करते हैं। सामाजिक पर्यावरण मानव का नियामक माना जाता है तथा सामाजिक प्रक्रियाओं का निर्देशक।

(i) सांस्कृतिक पर्यावरण की शक्तियाँ- इसमें मानव (जनसंख्या) उसका वितरण एवं घनत्व, लिंगानुपात, आयु वर्ग, प्रजातिगत रचना, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक क्षमता तथा जनसंख्या में वृद्धि और उसके कारणों को सम्मिलित किया जाता है।

(ii) सांस्कृतिक प्रक्रियायें – इसमें पोषण (आहार), समूहीकरण, पुनरुत्पादन, प्रभुत्व, स्थानान्तरण, पृथक्करण, अनुकूलन, विशिष्टीकरण और अनुक्रमण को सम्मिलित किया जाता है। इन प्रक्रियाओं के द्वारा मानव व मानव समूह वातावरण से सामंजस्य स्थापित करते हैं।

(iii) सांस्कृतिक तत्त्व- व्हाइट एवं रेनर के अनुसार सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्त्वों में निम्न तीन प्रतिरूप होते हैं-

(a) सामाजिक नियन्त्रण के प्रतिरूप- लोक रीतियाँ, रीति-रिवाज, मान्यतायें, आदर्श, संस्थायें-सरकार, विवाह-प्रथा, प्रशासन, कानून, पुलिस, युद्ध, विद्यालय, प्रेस आदि।

(b) क्रिया सम्बन्धी प्रतिरूप- मनुष्य के आर्थिक उद्यम, राजनीतिक व सैन्य संस्थायें, शैक्षिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ, मनोरंजन एवं सौन्दर्य वृद्धि सम्बन्धी प्रयास।

(c) सांस्कृतिक भूदृश्य या निर्माण प्रतिरूप- इसके अन्तर्गत भूमि, उसका वर्गीकरण तथा उस पर उत्पन्न भूदृश्य- नहरें, कृषि फसलें, पशुपालन, बस्तियाँ, कृषि व्यवस्थायें, खदानें, फैक्ट्रियाँ, बन्दरगाह, रेलमार्ग, सड़कें, संरक्षित स्थान (उद्यान, वन पार्क व मनोरंजन स्थल, श्मशान स्थल) आवासीय बस्तियाँ, राजनीतिक सीमायें, चुंगी, चौकियाँ, सैन्य किले आदि सम्मिलित किये जाते हैं।

मानव निर्मित पर्यावरण में पार्थिव संस्कृति में कल- कारखानों व यन्त्र उपकरणों का विशेष स्थान है। इनकी सहायता से मनुष्य अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं (भोजन, वस्त्र, मकान) की पूर्ति करता है। इनके अलावा सांस्कृतिक पर्यावरण के अपार्थिव घटक भी महत्वपूर्ण हैं। इनसे मानव समूह या समाज की आदतों, रीति-रिवाजों, आस्थाओं और अभ्यासों का ज्ञान होता है। मानव संस्कृति में भाषा, कलाओं, वैज्ञानिक ज्ञान, धार्मिक भावना, धर्म, परिवार व सामाजिक व्यवस्था, सम्पत्ति, सरकार, आर्थिक तन्त्र, संस्थायें, क्रीड़ा, संगीत, विशिष्ट संस्कार, उत्सव, पर्व, प्रथायें आदि भी महत्वपूर्ण होती हैं जो पार्थिक संस्कृति का निर्माण करती हैं।

मानव द्वारा पार्थिव और अपार्थिव संस्कृति का उपयोग प्रायः साथ-साथ किया जाता है। इनसे की आवश्यकताओं और समस्याओं का निदान होता है।

मनुष्य अतः स्पष्ट है कि भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत सम्पूर्ण प्राकृतिक साम्राज्य की वे सभी शक्तियाँ, प्राक्रियायें तथा तत्व सम्मिलित हैं जिनका प्रभाव मानव की क्रियाओं, भोजन, वस्त्र तथा आदतों आदि पर पड़ता है। दूसरी ओर सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्गत मानव को संचालित करने वाले और सामाजिक क्रियाओं को निर्देशित करने वाले तत्व सम्मिलित हैं, जो मानव के जीवन स्तर पर निर्धारण करते हैं। अनुकूल पर्यावरण में जीवधारियों को कोई कठिनाई नहीं होती जबकि प्रतिकूल पर्यावरण में जीवों को रहने के लिए कठिनाई होती है। अनुकूल पर्यावरण उसे कहते हैं, जो किसी जीवधारी के अस्तित्व की रक्षा, विकास और उन्नति तथा वृद्धि में सहायक होता है। इसके विपरीत, जो पर्यावरण जीवधारी के अस्तित्व की रक्षा और विकास में बाधक होता है, उसे प्रतिकूल पर्यावरण कहा जाता है। कभी-कभी एक ही पर्यावरण किसी प्राणी या समूह के लिए एक परिस्थिति में अनुकूल हो सकता है तथा दूसरी स्थिति में प्रतिकूल हो सकता है। भिन्न-भिन्न पर्यावरण भिन्न-भिन्न प्राणियों के लिए अनुकूल तथा प्रतिकूल हुआ करते हैं।

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पर्यावरण के सभी भौतिक तत्वों (अजैव व जैव) में पर्यावरण के अजैव तत्त्व- जलवायविक तत्व (सूर्य का प्रकाश एवं ऊर्जा, तापमान, वर्षा, आर्द्रता, वायु, वायुमण्डलीय गैसें आदि), स्थल जगत तत्त्व (उच्चावच, ढाल, पर्वतों की दिशा), जलीय स्रोत (सागर, झील, नदी, भूमिगत जल), मिट्टियाँ, खनिज व शैल (धात्विक व अधात्विक खनिज, ऊर्जा स्रोत एवं चट्टानें), भौगोलिक स्थिति (तटीय, महाद्वीपीय, सागरीय, द्वीपीय, पर्वतपदीय) आदि अधिक प्रभावशाली है। परन्तु जैव तत्वों में वनस्पति, जीव-जन्तु व सूक्ष्म जीवाणु भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। पर्यावरण के अजैव व जैव तत्व अपनी विशेषता के अनुसार पर्यावरण का निर्माण करते हैं। वे आपस में गुँथे हुए हैं। इनमें होने वाले परिवर्तनों का व्यापक प्रभाव पर्यावरण के विविध अंगों पर पड़ता है। उदाहरणार्थ जलवायु में परिवर्तन होने से स्थलाकृति का विकास, जल स्रोत, मिट्टी तथा जैव तत्व आदि सभी प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार वनस्पतियों में परिवर्तन का प्रभाव जलवायु और अन्य जीवों पर भी पड़ता है।

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