पर्यावरण अध्ययन के विषय क्षेत्र तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
पर्यावरण अध्ययन का विषय क्षेत्र
पर्यावरण अध्ययन के विषय क्षेत्र में निम्न को सम्मिलित किया जाता है-
- पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी क्या है, का अध्ययन।
- पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी के विभिन्न घटकों का अध्ययन |
- पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी के घटकों का एक-दूसरे के साथ क्रियात्मक सम्बन्धों का अध्ययन।
- प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्रों का अध्ययन।
- मानव एवं पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन।
- मानव द्वारा अपनाये गये अनुकूलन तथा रूपान्तरणों का अध्ययन।
- पर्यावरण घटकों की क्षेत्रीय भिन्नता तथा उनका पारिस्थितिकी पर प्रभाव का अध्ययन।
- प्रमुख पारिस्थितिक तन्त्रों में जीवन के विकास के स्वरूप, आवास एवं समाज का अध्ययन।
- मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं- कृषि, उद्योग-धन्धे आदि का अध्ययन तथा उनका पर्यावरण पर प्रभाव का अध्ययन।
- पर्यावरण प्रदूषण के स्वरूप, कारणों एवं प्रभावों का अध्ययन |
- पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के सम्बन्ध का अध्ययन ।
- क्षेत्रीय पर्यावरणीय समस्याओं का अध्ययन एवं उनके निराकरण के उपायों का अध्ययन।
- प्राकृतिक आपदाओं– भूकम्प, बाढ़, सूखा, अकाल, ज्वालामुखी, चक्रवातीय तूफान आदि का अध्ययन।
- प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग का पर्यावरण पर प्रभाव का अध्ययन तथा संसाधन संरक्षण का अध्ययन।
- पर्यावरण अवकर्षण का विभिन्न क्षेत्रों में स्तर एवं प्रभाव का अध्ययन।
- जनसंख्या, नगरीकरण तथा औद्योगीकरण का पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तन्त्र पर प्रभाव का अध्ययन।
- विकासात्मक गतिविधियों- बाँध बनाने, सड़क बनाने आदि का पर्यावरण पर प्रभाव का अध्ययन।
- पर्यावरण प्रबन्धन का अध्ययन।
- संसाधन संरक्षण एवं पर्यावरण प्रदूषण के निवारण में व्यक्ति एवं समाज की भूमिका का अध्ययन।
- पर्यावरण अवबोध का विकास करना।
- पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी विधियों का निर्माण करना, उनकी व्याख्या करना तथा अनुपालना आदि।
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पर्यावरण अध्ययन का महत्व
वर्तमान में पर्यावरण अध्ययन का बहुत अधिक महत्व है। बढ़ते प्रदूषण से इसका महत्व और अधिक बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण के महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. पर्यावरण जीवन का आधार- पर्यावरण अध्ययन का सर्वाधिक महत्त्व इसलिए है कि पर्यावरण जीवन का आधार है। पृथ्वी तल पर जैविक विकास, संवर्द्धन और रक्षा के लिए पर्यावरण ऐसी दशा का निर्माण करता है जिसके बिना जीवन की कल्पना असम्भव है। इस प्रकार पर्यावरण जीवन का आधार है।
2. पर्यावरण के विविध घटकों का जीवन पर प्रभाव- सभी जीव अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होते हैं तथा पर्यावरणीय घटकों का जीवों पर प्रभाव पड़ता है। सन्तुलित पर्यावरण में जीवों का स्वस्थ विकास होता है तथा असन्तुलित पर्यावरण में पर्यावरण के घटक स्वस्थ जीवन को बाधित करते हैं। पर्यावरणीय अध्ययन में इन घटकों को प्रभावित करने वाले कारणों तथा उनके निराकरण का अध्ययन किया जाता है।
3. पर्यावरण प्रदूषण – पर्यावरण प्रदूषण आज की मुख्य पर्यावरण समस्या है। यह आधुनिक युग का एक बहुचर्चित विषय व आधुनिक सभ्यता द्वारा उत्पन्न एक गम्भीर व भयानक समस्या है। प्रदूषण वायु, जल व स्थल के रासायनिक, भौतिक व जैविक गुणों में होने वाला ऐसा अवांछनीय परिवर्तन है जो कि मानव जीवन, औद्योगिक प्रगति, जीवन की परिस्थितियों एवं सांस्कृतिक धरोहर के लिए अत्यन्त हानिकारक है। वर्तमान में पर्यावरण में मुख्यतः जल, वायु, ध्वनि, मृदा तथा रेडियोधर्मी प्रदूषण तीव्रता से बढ़ते जा रहे हैं। इनका मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर हो रहा है। मानव अनेक बीमारियों का शिकार हो रहा है तथा उसका स्वाभाविक विकास रुक रहा है। पर्यावरण अध्ययन द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को रोका जा सकता है तथा मानव को उसकै दुष्प्रभावों से बचाया जा सकता है।
4. पर्यावरण विकास का मूल- पर्यावरण अध्ययन में प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन किया जाता है। प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग से ही मनुष्य विकास करता है। इस प्रकार पर्यावरण विकास का मूल है। मनुष्य अपने बौद्धिक ज्ञान से पर्यावरण का उपयोग कर विकास करता है।
5. जलवायु में परिवर्तन – जलवायु में परिवर्तन भी पर्यावरण की एक प्रमुख समस्या है। जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवों पर की बर्फ पिघल रही है। इससे समुद्रों का जल स्तर धीमे-धीमे बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से सूखों में वृद्धि होगी तथा खाद्यान्न उत्पादन में कमी आयेगी। वर्षा की मात्रा में कमी आयेगी तथा मिट्टी में नमी भी कम होगी। जलवायु परिवर्तन से अनेक संक्रामक रोगों का प्रकोप भी बढ़ रहा है। पर्यावरण अध्ययन द्वारा समुचित उपाय करके जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाया जा सकता है।
6. विश्व तापमान में वृद्धि – विश्व तापमान में वृद्धि पर्यावरण की सबसे प्रमुख समस्या है। पर्यावरण प्रदूषण हरित गृह प्रभाव, ओजोन क्षयीकरण आदि अनेक पर्यावरणीय समस्याओं का सम्मिलित प्रभाव विश्व तापमान में वृद्धि कर रहा है। विश्वव्यापी तापन का सम्पूर्ण जीव समुदाय पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। विश्व तापमान में वृद्धि के नजदीकी तथा दूरगामी दोनों प्रभाव मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए घातक होंगे। नजदीकी प्रभावों में तापीय वृद्धि के कारण मृत्यु सूखा, तूफान, बाढ़ एवं पर्यावरण अवनयन प्रमुख हैं तथा दूरगामी प्रभावों में संक्रमण एवं सम्बन्धि रोग, खाद्य समस्या, अकाल तथा जैव विविधता को खतरा पैदा होगा। इसके अतिरिक्त तापमान वृद्धि से ध्रुवीय तथा उच्च पर्वतीय बर्फ पिघलने से समुद्री किनारे पर स्थित कई शहर डूब सकते हैं। पर्यावरण अध्ययन में विश्वव्यापी तापन के कारण तथा निराकरण के उपायों का अध्ययन किया जाता है।
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7. जल संकट – वर्तमान में जल संकट भी निरन्तर बढ़ता जा रहा है। वर्षा की कमी, वनों के विनाश के कारण जल का मिट्टी से सम्बन्ध टूटना, जल प्रबन्धन का अभाव, जल प्रदूषण, जल की व्यर्थ बर्बादी, बढ़ती माँग आदि के कारण जल संकट निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण अध्ययन द्वारा जल संकट की स्थिति पर भी काबू पाया जा सकता है।
8. वन एवं जीव-जन्तु संरक्षण का ज्ञान – वन्य जीवों के आवास वन, धतरी पर बड़े जटिल बुद्धिमान तथा महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तन्त्र हैं। वन विनाश के साथ ही वन्य जीवों के विनाश की कहानी आरंभ हुई थी। तीव्र पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण भी वन्य जीवों का विलोपन हुआ है। ऊष्ण कटिबन्धीय वनों में विश्व की 50 प्रतिशत जैव विविधता पायी जाती है। लेकिन तीव्र वनोन्मूलन से यहाँ वन्य जीवों में कमी आई है। सागर तल में परिवर्तन के कारण सागर तटीय दलदली क्षेत्रों तथा प्रवाल भित्तियों के जीव भी संकट में हैं। इस प्रकार वनों के अंधाधुंध दोहन, विनाशकारी वनाग्नि, भीषण भूस्खलन एवं पशु-पक्षियों व सरीसृपों की विविध प्रजातियों के अवैध शिकार के कारण इनको खतरा बढ़ गया है। पर्यावरण अध्ययन में इनके संरक्षण के उपाय किये जाते हैं।
9. ठोस अपशिष्ट निस्तारण – तीव्र गति से बढ़ रहे नगरीकरण तथा औद्योगिकरण ने ठोस.. अपशिष्टों के निस्तारण की समस्या को जन्म दिया है। विश्व में प्रतिवर्ष 24 बिलियन टन गैर-ईंधन खनिजों का खनन औद्योगिक प्रक्रिया के लिए किया जा रहा है, जिसका लगभग 90 प्रतिशत अन्त में प्रक्रिया में आकर ठोस अपशिष्टों को जन्म देता है। ठोस अपशिष्टों में खनन से उत्पन्न अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट, औद्योगिक अपशिष्ट, नगरपालिका अपशिष्ट, रेडियोएक्टिव अपशिष्ट आदि प्रमुख हैं। इनके निस्तारण के अभाव में भूमि प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है। पर्यावरण अध्ययन में इनके निस्तारण के उपाय किये जाते हैं।
10. संसाधन संरक्षण एवं ऊर्जा का समुचित उपयोग- पर्यावरण अध्ययन से संसाधन संरक्षण तथा ऊर्जा के समुचित उपयोग का ज्ञान होता है।
11. पर्यावरण प्रबन्धन में योगदान- पर्यावरण अध्ययन द्वारा ही पर्यावरण प्रबन्धन को प्रभावी बनाया जा सकता है।
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