पूर्वी एशिया का एक विशद प्रादेशिक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
पहले बताया जा चुका है कि एशिया विविधता और विषमता का बृहत्तम महाद्वीप है। फलतः एशिया के कई ऐसे प्रखंड हैं, जो भौगोलिक स्वरूप में एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं। एवं उनकी अपनी विशिष्टता है। इन्हीं मौलिक विशिष्टताओं के आधार पर एशिया को कई आधारों पर विभक्त किया जा सकता है।
प्राकृतिक प्रदेश
प्राकृतिक विशेषता से एशिया को पाँच प्रदेशों में बाँटा जा सकता है।
(1) पर्वतीय एशिया- एशिया का मध्य भाग पर्वतों एवं उच्च पठारों से भरा हैं। इनमें हिमलाय, कराकोरम हिंदूकुश, कुनलून, आस्टिनटाग, टियेनशान अधिक उल्लेखनीय हैं। इस मध्यवर्ती प्रदेश में पर्वतों की उपस्थिति के कारण जलवायु वनस्पति एवं मानव बसाव तथा कार्य कलाप का ऊर्ध्वाधर संस्तरण (ऊँचाई स्तर के अनुसार) भिन्नता मिलती है। जलवाष्प युक्त वायु की ओर उन्मुख ढालों पर अधिक वृष्टि (हिमपात तथा वर्षा) तथा वनस्पति मिलती है तो दूसरी ओर वायु विमुख ढाल पर शुष्कता एवं मरूद्भिद् का साम्राज्य मिलता है। उदाहरणार्थ, हिमालय के दक्षिणी ढाल पर प्रचुर वर्षा एवं वनस्पति हैं तो उत्तरी ढाल शुष्क एवं वीरान है। उसके निचले भागों में ऊष्णार्द्र जलवायु तथा प्रचुर मानसूनी वन मिलते हैं परंतु शिखर पर ध्रुवीय दशाएं मिलती हैं। मानव निवास एवं जीवन पद्धति में भी ढाल तथा ऊँचाई के अनुसार विविध प्रतिरूप दृष्टिगत होते हैं।
(2) मानसूनी एशिया- एशिया में जहाँ तक मानसूनी जलवायु का प्रभाव है, उस भू भाग को मानसूनी एशिया कहते हैं। इस अर्धचंद्राकार क्षेत्र का विस्तार पाकिस्तान से लेकर मंचूरिया तक (सिंधु नदी से आभूर नदी तक) है। इस प्रदेश में मानसूनी जलवायु का प्रभाव संपूर्ण जीवन पद्धति पर स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसके अंतर्गत सभी महत्वपूर्ण नदी बेसिन सम्मिलित हैं, जिनमें विश्व की लगभग आधी जनसंख्या निवास करती है। ऊष्णार्द्र जलवायु की प्रमुखता तथा कृषि प्रधान अर्थतंत्र इसकी विशिष्टता है। इसी क्षेत्र को एशियाई मूल के नाम से भी अभिहित किया गया है, क्योंकि पूर्वी सभ्यता एवं संस्कृति (Oriental Culture) का यही क्रोड़ है। ईश्वरवाद, लौकिक जीवन के प्रति निस्पृहता, उदारता, अतिथि सत्कार इत्यादि को परंपरागत रूप में श्रेयस्कर मानने वाला यही क्षेत्र है।
(3) ऊष्ण मरूस्थलीय एशिया- एशिया का लगभग एक-तिहाई पश्चिमी भाग इसके अंतर्गत पड़ता है। इस क्षेत्र में भूमि उपयोग सिर्फ नखलिस्तानों तक सीमित हैं। मेसोपोटामिया (दज़ला-फरात बेसिन) में ही विस्तृत क्षेत्र पर कृषि एवं पर्वत श्रेणियों के दक्षिण तथा मंचूरिया एवं कांशू के पश्चिम स्थित क्षेत्र हैं। यह क्षेत्र दुर्गम हैं। यह क्रोड़ क्षेत्र पर्वताकीर्ण, अति शुष्क तथा विरल जनसंख्या वाला है। इसमें कृषिगत खनिज संसाधन अत्यल्प हैं तथापि इस क्रोड़ क्षेत्र की एशिया के राजनीतिक घटना चक्र में विशिष्ट भूमिका रही है। यहाँ के मंगोल आक्रामकों ने चीन तथा यूरोप पर आक्रमण किया तथा अफगान कबीलों ने भारत पर प्रहार किया। मंगोलिया तथा सिनकियांग के लिये सोवियत संघ एवं चीन के मध्य झड़पें हुईं। तिब्बत, भारत और चीन के बीच विवाद का विषय रहा है। अब इस क्रोड़ क्षेत्र के विभिन्न भागों पर रूस, मध्य एशियाई देश तथा चीन का आधिपत्य स्थापित है। मंगोलिया नाममात्र का गणराज्य है, जबकि अफगानिस्तान की अंदरूनी स्थिति कभी शांतिपूणर्क नहीं रही है।
(4) दक्षिण एशिया- कोड़ क्षेत्र के दक्षिण में दक्षिणी एशिया के राष्ट्र हैं जिनमें भारत सर्वप्रमुख हैं दक्षिणी एशिया में समुद्र तदीं से आंतरिक क्षेत्रों तक (नेपाल, भूटान को छोड़कर) रेल तथा सड़क मार्गों से आवागमन सुगम हैं। इस अधिवास मिलते हैं। उसी के अनुसार यहाँ जनसंख्या का वितरण भी अत्यधिक असमान है। यहाँ इस्लाम धर्म एवं संस्कृति का वर्चस्व है।
( 5 ) शीत मरूस्थलीय एशिया- मध्यवर्ती पर्वतीयक एशिया के उत्तर स्थित साइबेरिया का विशाल भू-भाग इसके अंतर्गत आता है। यहाँ वर्षपर्यंत शीत का साम्राज्य रहता है। सिर्फ ग्रीष्मकाल में दो-तीन महीनों में जब बर्फ पिघलती है तो जीवन के कुछ लक्षण यहाँ दृष्टिगत होते हैं। इसके अंतर्गत, टैगा तथा टुण्ड्रा दो वनस्पति पेटियाँ पूरब से पश्चिम विस्तृत हैं। टैगा विश्व का विशालतम कोणधारी वनों का क्षेत्र हैं। कृषि यहाँ सिर्फ टैगा क्षेत्र में ग्रीष्मकाल के तीन माह में ही समान है। स्पष्ट है कि यहाँ जनसंख्या अति विरल है। अधिवास सिर्फ खानों या वन दोहन केंद्रों तक ही सीमित हैं।
भूराजनीतिक प्रदेश
जैसा कि पहले संकेत किया जा चुका है एशिया विश्व राजनीति का रंगमंच है। राजनीतिक भूगोल के विद्वानों ने भूराजनीति की दृष्टि से एशिया के विभिन्न प्रदेशों का मूल्यांकन किया है। मैकिण्डर ने एशिया के आंतरिक भाग को जो पश्चिम-दक्षिण में शुष्क प्रदेश, पूर्व-उत्तर में उच्च पर्वत तथा उत्तर में शीत मरूस्थल एवं हिमाच्छादित उत्तरी सागर से आवृत्त है, एक ऐसे अभेद्य किले के रूप में माना है जो अजेय क्षेत्र है। इसीलिए उन्होंने इसे ‘हृदयस्थल’ की संज्ञा दी है। इसके पश्चात् उन्होंने एक आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र का निरूपण किया है, जिसका विस्तार पश्चिमी एशिया से मंचूरिया तक है। इसके बाहर के समुद्र की ओर उन्मुख क्षेत्र को उन्होंने उपांत (Rim land) कहा। इसके विपरीत स्पाइकमैन ने समुद्री ताकत की महत्ता को स्वीकार करते हुए। उपांत क्षेत्र को ही अधिक महत्त्वपूर्ण बताया है।
भौगोलिक प्रदेश
ऊपर एशिया के प्राकृतिक एवं भू-राजनीतिक वृहत् प्रदेशों को सम्मिलित करते हुए वृहत् भौगोक प्रदेशों का सीमांकन किया जा सकता है। वृहत् भौगोलिक प्रदेशों का तनाव भी दिनों-दिन भयंकर होता जा रहा है।
ईस्ट एवं स्पेट के अनुसार यह प्रदेश पूर्व एवं पश्चिम के मध्य अवरोध एवं सेतु दोनों ही रूपों में कायम रहता है। पिछड़ी प्राविधिकी के क्षेत्र में विशाल पेट्रोल भंडार के कारण इस क्षेत्र में बाहरी महाशक्तियों की जोर-आजमाइश होती रही है।
दक्षिणी एशिया- इस प्रदेश के अंतर्गत भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल तथा भूटान सम्मिलित हैं। मानसूनी जलवायु से संपूर्ण क्षेत्र का प्राकृतिक आर्थिक स्वरूप प्रभावित है। ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन से प्रत्यक्ष जुड़े होने के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् इस प्रदेश के सभी राष्ट्र आर्थिक विकास हेतु प्रयत्नशील हैं। कृषि इनके अर्थतंत्र की रीढ़ है। कृषि के व्यापारीकरण तथा औद्योगीकरण हेतु इस प्रदेश के सभी राष्ट्र न्यूनाधिक प्रयत्नशील हैं, तथापि, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् इस प्रदेश के राष्ट्रों में विविध कारणों से परस्पर तनाव भी रहा है। सांस्कृतिक दृष्टि से इस प्रदेश में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई धर्म एवं संस्कृति का समागम है। यह प्रदेश. हिंद महासागर की ओर उन्मुख हैं।
दक्षिणी पूर्वी एशिया- इस प्रदेश का विस्तार म्यांमार से फिलीपींस तक है। इस क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास विविधतापूर्ण है। इसमें ब्रिटिश (म्यांमार), फैन (हिंदचीन), डच (हिंदेशिया), अमेरिका (फिलीपींस) के औपनिवेशिक आधिपत्य के साथ निरंतर कुछ स्वतंत्र राष्ट्र (थाईलैंड) का भी अस्तित्व रहा है। मानसूनी जलवायु एवं विविधतापूर्ण धरातल इस प्रदेश के प्राकृतिक स्वरूप की प्रमुख विशेषताएं हैं। कृषि में बागाती कृषि का अधिक महत्त्व रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् विशेषतया हिंदचीन, वियतनाम, लाओस, कम्पूचिया युद्धग्रस्त रहे हैं और अभी भी इस क्षेत्र की राजनीतिक तस्वीर बहुत साफ नहीं है। सांस्कृतिक दृष्टि से यहाँ भारतीय एवं चीनी संस्कृति का न्यूनाधिक संगम एवं संक्रमण है। अधिकतर देश बौद्ध धर्म के अनुयाई हैं। यह क्षेत्र हिंद तथा प्रशांत महासागर दोनों की ओर उन्मुख रहा है।
पूर्वी एशिया- पूर्वी एशिया के अंतर्गत प्रशांत महासागर की ओर उन्मुख चीन, उत्तरी एवं दक्षिणी कोरिया तथा जापान आते हैं। तिब्बत भी अब चीन का अभिन्न अंग होने से इसी प्रदेश का भाग माना जाता है।
इस प्रदेश में चीन तथा जापान राजनीतिक एवं आर्थिक तंत्र आधारित सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र हैं। इस क्षेत्र की संस्कृति बौद्ध धर्म से अनुशासित थी परंतु चीन में 1949 के पश्चात् साम्यवाद के प्रभाव से अब बौद्ध धर्म का प्रभाव क्षीण होता जा रहा है। एशिया में कम्युनिस्ट शासन प्रणाली का प्रतीक चीन माना जाता है। इसे ‘जागता हुआ दैत्य’ (Awakening Ghost) की संज्ञा दी जाती है। वि की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या युक्त, आर्थिक प्रगति एवं राजनीतिक प्रभुत्व वाले दो राष्ट्रों को शामिल करने वाला यह प्रदेश निश्चय ही विश्व में अति महत्त्वपूर्ण स्थान का हकदार है। यहाँ दो विषम विधियों (बाजार प्रतिस्पर्द्धा तथा सरकारी नियंत्रण) से संचालित आर्थिक प्रगति के मॉडल विद्यमान हैं। एक में (चीन) आंतरिक कृषिगत एवं खनिज संसाधनों एवं आंतरिक बाजार क्षेत्र पर आधारित आर्थिक विकास को ऊँचा उठाने का संकल्प है। तो दूसरी ओर जापान में मात्र कुशल तकनीशियनों और प्रबंधन के भरोसे निर्यात आधारित आर्थिक विकास की चोटी पर कदम रखने का इरादा है।
उत्तरी एशिया- एशिया के विशाल उत्तरी भाग में विपुल प्राकृतिक (खनिज) संसाधनों पर रूस का एकाधिपत्य है, जिसका सिर यूरोप में है परंतु पैर एशिया के पूर्वी छोर प्रशांत महासागर तट तक फैला है। विकट शीत जलवायु में इन संसाधनों के सदुपयोग पर ही विश्व महाशक्ति के रूप में सोवियत संघ की ताकत कायम है। सिर्फ दक्षिण की ओर मध्य एशिया के गर्म-शुष्क भाग में मुस्लिम संस्कृति की छाप है जो अब कम्यूनिज्म के विघटन के बाद रूस से अलग हो गये हैं। यहाँ विशुद्ध महाद्वीपीय प्राकृतिक स्वरूप दृष्टव्य है। ईष्ट एवं स्पेट के शब्दों में मूलतः यह एशिया में यूरोपीय तकनीकी अतिक्रमण का प्रतीक है। इस प्रदेश में ऊर्जा की निहित क्षमता संपूर्ण एशिया के लिए पर्याप्त है।
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