पश्चिमी एशिया की राजनीति से सम्बन्ध नियन्त्रक तत्व बताइए।
खनिज तेल का पश्चिमी एशिया की राजनीतिक से सम्बन्ध
खनिज तेल का पश्चिमी एशिया की राजनीतिक से सम्बन्ध- पश्चिमी एशिया की राजनीति का प्रमुख नियन्त्रक तत्व खनिज तेल है जिसके कारण यहाँ विदेशियों का आकर्षक रहा और आज भी है। इस क्षेत्र को अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों का केन्द्र बनाने का श्रेय भी खनिज तेल को ही है। यहाँ खनिज तेल के भण्डार का इतना अधिक महत्त्व है कि यहाँ की कूटनीति तेल कूटनीति का समरूप हो गई है। निसन्देह पश्चिमी एशिया में विदेशियों का प्रमुख आकर्षण खनिज तेल रहा है, इसी कारण उन्होंने यहाँ की स्थानीय राजनीति में सक्रिया रूप से भाग लेना प्रारम्भ किया। फलस्वरूप आज विश्व के अनेक देश इस क्षेत्र में रुचि रखते हैं। पश्चिमी एशिया वास्तव में एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि सामरिक महत्व के खनिज किस प्रकार से राजनीति के विविध स्वरूपों को प्रभावित करते है।
विश्व के अनुमानित पेट्रोलियम भण्डार का लगभग 55.8 प्रतिशत भाग इसी क्षेत्र में स्थित हैं, जबकि अनुमानित सुरक्षित भण्डार की दृष्टि से संयुक्त राज्य में विश्व का 4.9 प्रतिशत दक्षिणी अमेरिका में 10 प्रतिशत और पूर्व सोवियत संघ में केवल 6 प्रतिशत है। यह तथ्य यहाँ की राजनीतिक में विश्व-शक्तियों की रुचि में और अधिक वृद्धि कर देता है। यद्यपि वर्तमान की दृष्टि से संयुक्त राज्य का उत्पादन सर्वोच्च हैं।
पश्चिमी एशिया के खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र का विस्तार उत्तर-पश्चिमी से दक्षिण-पूर्व को टर्की के दक्षिण-पूर्व से, पूर्वी तथा मध्य इराक, पश्चिमी ईरान एवं पूर्वी सऊदी अरब तक है।
ईरान में खनिज तेल का उत्पादन 1911 से प्रारम्भ हुआ यहाँ के कुल खनिज तेल भण्डार का अनुमान 9,300 लाख टन है। 1970 एवं 1971 में यहाँ का उत्पादन क्रमशः 1,920 लाख एवं 2,200 लाख मीट्रिक टन था तथा 2003 में 1,760 लाख टन था, जो 2007 में मीट्रिक टन हो गया। ईरान की, जिसके कारण यहाँ के अधिकांश तेल उत्पादक क्षेत्र ब्रिटिश 1,975 लाख अधिक में रहे। यहाँ के प्रमुख खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र काजीतन के चारों ओर मस्जिद-ऐ सुलेमान, हाट-केल, नफ्त शफीद, लाली आदि हैं ईरान को तेल की रायल्टी से पर्याप्त आय थी,
किन्तु ब्रिटिश सरकार की रायल्टी दर से असन्तुष्ट होने के कारया 1951 में ईरान ने अपनी तेल कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। ईरान ने पेट्रोलियम को राजनीतिक अस्त्र के रूप में पर्याप्त उपयोग किया है। इसका उदाहरण अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों को बन्दी बनाना प्रमुख है। संयुक्त राज्य द्वारा लागू की गई पाबन्दियों के होते हुए भी पेट्रोलिया के बल पर ही ईरान अनेक देशों से सम्बन्ध बनाये रहा तथा वस्तुओं की कमी की पूर्ति करता रहा।
इराक में विश्व के खनिज तेल भण्डार के 9 प्रतिश का अनुमान है। यहाँ का प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र बाबा-गागुर का क्षेत्र है। यहाँ से कुछ किमी उत्तर में किरकुक से हादिया तक तथा इसके पश्चात् दो भागों में ट्रिपोली एवं हायफा पाइप लाइन जाती है। इसकी लम्बाई लगभग 2,400 किमी है। इसका निर्माण 1935 में किया गया तथा इसकी क्षमता 85,000 बैरल प्रतिदिन है। कुछ समय पूर्व एक 16 इंच मोटी पाइप लाइन इसी के समानान्तर डाली गई है। यहाँ ब्रिटिश तथा इराक दोनों ही के अधिकार में तेल क्षेत्र हैं। यहाँ का उत्पादन 1978 में 86.9 करोड़ बैरल था। जो 1984 में कम हो गया तथा इसके पश्चात् खाड़ी युद्ध का यहाँ के तेल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव रहा, यहाँ तक कि इसके तेल निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया जिसमें अप्रैल, 1995 में एक सीमित मात्रा में ही तेल निर्यात करने की अनुमति थी। 2003 में इराक का तेल उत्पादन 1240 लाख टन था।
सऊदी अरब के खनिज तेल क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक एवं तकनीकी नियन्त्रण में है। यह सुविधा अमेरिका को सर्वप्रथम 1933 में दी गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में यहाँ के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई। इसके पश्चात् भी यह क्रम चलता रहा। यहाँ 1955 में केवल 3.566 लाख बैरल उत्पादन था, जिसकी वृद्धि होकर 1971 में 17,408 लाख बैरल तथा 1978 में 30,490 लाख बैरल हो गया तथा 2003 में 376 मिलियन टन हो गया। यहाँ सुरक्षित भण्डार की दृष्टि से विश्व का 10 प्रतिशत खनिज तेल प्राप्त होने की आशा है।
पश्चिमी एशिया में खनिज तेल का आर्थिक एवं राजनीतिक महत्व इससे सम्बन्धित विश्व के प्रमुख देशों अर्थात् ब्रिटेन, संयुक्त राज्य एवं पूर्व सोवियत संघ के सन्दर्भ में समझा जा सकता है। ब्रिटेन में खनिज तेल का लगभग अभाव है। अतः उन्हें जल, वायु एवं सड़क परिवहन के लिये तथा वहाँ स्थित तेल शोधक कारखानों एवं उनसे उत्पादित पदार्थों के लिये कच्चा खनिज पश्चिमी एशिया में ही उपलब्ध होता है। अतः ब्रिटेन इस क्षेत्र में सदैव सक्रिय रहा।
संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रमुख आकर्षक यहाँ के खनिज तेल ही है। इसी कारण पश्चिमी एशिया के अनेक देशों में विशेषकर सऊदी अरब में संयुक्त राज्य ने तेल सुविधा प्राप्त की है। इसके साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से यहाँ की राजनीति में भी उसका आकर्षण है, क्योंकि यह क्षेत्र पूर्व सोवियत संघ के निकट तथा एशिया एवं यूरोप के मध्य अति महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति रखता है। पूर्व सोवियत संघ का यद्यपि स्वयं का उत्पादन विश्व का लगभग 10 प्रतिशत है, किन्तु वहाँ इसकी खपत में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इसी आवश्यकता के कारण इस क्षेत्र में खनिज तेल में विशेषकर उत्तरी ईरान के खनिज तेल में उसका विशेष आकर्ष है।
पश्चिमी एशिया के देशों के लिये खनिज तेल आय का एक प्रमुख स्त्रोत है। खनिज तेल मात्र रायल्टी के रूप में राजस्व का साधन ही नहीं अपितु यहाँ के आर्थिक, औद्योगिक एवं सांस्कृतिक विकास का प्रमुख साधन है। इस क्षेत्र में अधिकांशतया विकास खनिज तेल की प्राप्ति के पश्चात ही हुआ। वास्तव में खनिज तेल ने इस क्षेत्र के स्वरूप को ही परिवर्तित कर दिया तथा विश्व शक्तियों के आकर्षण का केन्द्र बना दिया है। खनिज तेल का अत्यधिक सामरिक महत्व होने के कारण यह पश्चिमी एशिया के हाथों में एक प्रमुख भू-राजनीति अस्त्र है, जिसके द्वारा यहाँ की राजनीतिक नियन्त्रिक हैं कार्लसन ने सही ही कहा कि यहाँ की कूटनीति तेल नीति केसमरूप हो गई है।
खनिज तेल का ‘राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अक्टूबर, 1973 के संघर्ष के पश्चात् स्पष्ट हो जाता है। अरब देशों के लिये खनिज तेल का भण्डार एक महान हथियार है, जिसका प्रयोग ये देश आज भी कर रहे हैं। इससे पूर्व इसका स्पष्ट प्रयोग नहीं किया गया। अरब देश ‘तेल अस्त्र’ का प्रयोग आज खुलकर कर रहे हैं अरब देशों ने, जिनमें सऊदी अरब तथा कुबैत भी सम्मिलित हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका को तेल भेजने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। 5 देशों ने हालैण्ड को तेल भेजने पर रोक लगा दी थी बेहरीन ने तो यहाँ तक कदम उठाया कि संयुक्त राज्य अमेरिका के नौ-सैनिक अड्डे भी समाप्त कर दिये गये। अनेक देश अपने खनिज तेल उत्पादन में कमी की घोषणा समय-समय पर करते रहते हैं तेल निर्यात में कटौती तथा इजरायल समर्थक देशों के लिये तेल भेजने पर प्रतिबन्ध लगाये गये है। इसका प्रभाव जापान पर भी पड़ा है। यूरोपीय आर्थिक समुदाय के देशों ने भी इसी धमकी के कारण अरबों के पक्ष में विचार व्यक्त किये हैं इसके अतिरिक्त जो देश अरबों का समर्थन कर रहे हैं उनको पर्याप्त तेल उपलबध हो रहा है। ईरान-इराक युद्ध में अमेरिकी और यूरोपीय देशों की भागीदारी के कारण भी तेल है। इसी कारण इराक को पंगु बनाने हेतु इसके तेल निर्यात पर प्रतिबन्ध 1991-94 के मध्य रहा तथा पिछले गत वर्षों में इराक पर अमेरिकी आक्रमण भी इसी का प्रतिफल है। इसके पश्चात् भी आंशिक छूट दी गई। इससे स्पष्ट हो रहा हैं कि खनिज तेल का अत्यधिक सामरिक महत्व है तथा पश्चिमी एशिया की राजनीतिक इसी के द्वारा नियन्त्रित एवं निर्धारित हो रही है। सम्पूर्ण विश्व की इस प्रदेश में दिलचस्पी का कारण भी तेल ही है।
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