B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed. इतिहास / History

असहयोग आन्दोलन –

असहयोग आन्दोलन के कारण तथा असहयोग आन्दोलन का स्थगन

असहयोग आन्दोलन 

असहयोग आन्दोलन

असहयोग आन्दोलन के कारण

असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित कारण हैं- जनता की घोर निराशा और असन्तोष ,रोलट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड, हण्टर कमेटी की रिपोर्ट, खिलाफत आन्दोलन, चौरी-चौरा काण्ड और आन्दोलन का अन्त.

जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड । रौलेट एक्ट ऐसा कानून था, जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर उसे मनमाने तरीके से बन्द रखा जा सकता था । रौलट एक्ट के विरोध में गाँधी जी ने ‘सत्याग्रह’ प्रारम्भ करने का निश्चय किया गया । गाँधी जी और पंजाब के दो नेता डॉ. सत्यापल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया । जनता ने इसका विरोध किया और स्थिति तनावपूर्ण हो गयी । रौलेंट एक्ट और सरकार के इन कार्यों का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल, 1919 ई. को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा हुई । इस सभा में सैनिक शासन के प्रमुख जनरल डायर ने अनावश्यक गोली चलाने के आदेश दिये, जिससे लगभग 1000 व्यक्ति मारे गये तथा 2000 घायल हो गए । इसी हत्याकाण्ड के विरोध में गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया, लेकिन चौरी-चौरा काण्ड के कारण गाँधीजी को असहयोग आन्दोलन बन्द करना पड़ा । असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित कारण हैं-

1. जनता की घोर निराशा और असन्तोष –

युद्धकाल में भारत राष्ट्र ने ब्रिटेन को जन और धन से भरपूर सहायता दी थी और युद्ध से भारतीय राष्ट्रवाद को अपूर्व प्रोत्साहन प्राप्त हुआ था । अब भारतीय जनता स्वतन्त्रता और लोकतन्त्र के स्वप्न सँजोने लगी थी, लेकिन घटनाओं ने जनता की आशा को निराशा और घोर असन्तोष में बदल दिया ।

2. रोलट एक्ट –

ब्रिटिश सरकार युद्धकाल के बाद भी, आतंकवादी तत्वों पर नियन्त्रण के नाम पर दमनात्मक शक्तियाँ अपने हाथ में बनाये रखना चाहती थी । अतः भारत के सभी वर्गों के विरोध के बावजूद रौलट कमेटी की रिपोर्ट को कानूनी रूप देते हुए रौलट एक्ट’ बनाया गया, जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर उसे मनमाने समय तक नजरबन्द रखा जा सकता था । 18 मार्च, 1919 को रोल्ट एक्ट पारित हुआ, जिसने पं. मोतीलाल नेहरू के शब्दों में, “अपील, वकील और दलील की व्यवस्था का अन्त कर दिया।”

3. जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड –

महात्मा जी ने रौलट एक्ट के विरुद्ध ‘सत्याग्रह’ प्रारम्भ करने का निश्चय किया । सत्याग्रह का प्रारम्भ सार्वजनिक हड़ताल के माध्यम से 6 अप्रैल, 1919 को सारे देश में शहरों और गाँव में पूर्ण और अधिकांशतया शान्तिपूर्ण हड़ताल हुई । सरकार ने कुछ स्थानों की हिंसात्मक घटनाओं को आधार बनाकर दमनचक्र प्रारम्भ करते हुए 7 अप्रैल को महात्मा जी को गिरफ्तार कर लिया । पंजाब में ब्रिटिश सरकार का विरोध करने के लिए विशेष उत्साह था । 10 अप्रैल को प्रात: अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ने बिना किसी कारण के पंजाब के दो प्रसिद्ध नेताओं सत्यपाल और डॉ. किचलू को धर्मशाला में नजरबन्द कर अमृतसर से निष्कासन के आदेश दे दिये । जनता ने इसका विरोध किया और स्थिति तनावपूर्ण हो गयी । रौलट एक्ट और सरकार के इन कार्यों का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल, 1919 ई. को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा हुई । इस सभा में सैनिक शासन के प्रमुख जनरल डायर के द्वारा अनावश्यक और अन्धाधुन्ध गोलियों की वर्षा की गयी, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 800 व्यक्ति मरे और 2000 घायल हुए । इसके बाद भी सैनिक शासन घोषित कर अमानवीय व्यवहार ओर दमनचक्र जारी रखा गया । मनमानी गिरफ्तारी, कोड़ों की मार और मई की तपती दोपहरी में विद्यार्थियों को 16-16 मील तक मार्च कराना, दमनकारी शासन के अंग थे।

4. हण्टर कमेटी की रिपोर्ट –

हत्याकाण्ड की जाँच करने के लिए ‘हण्टर कमेटी’ की नियुक्ति की गयो, लेकिन इस कमेटी ने हत्याकाण्ड के उत्तरदायी जनरल डायर को दण्ड देने की सिफारिश करने के स्थान पर उनके कार्य को कर्त्तव्य से सत्यनिष्ठ, लेकिन गलत धारणा पर आधारित’ बतलाते हुए उसका परोक्ष समर्थन किया । ब्रिटिश लॉर्ड सभा और आंग्ल भारतीय प्रेस ने जनरल डायर को ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक’ कहा । यह सब कुछ भारतीयों के जले पर नमक छिड़कना था और इससे उदार भारतीयों को असहनीय ठेस पहुँची ।

5. खिलाफत आन्दोलन –

महायुद्ध में ब्रिटिश सरकार ने भारत के मुसलमानों को टी के सुल्तान की स्थिति बनाये रखने के सम्बन्ध में कुछ आश्वासन दिये थे, लेकिन युद्ध के बाद ब्रिटेन ने टर्की के साथ जो ‘सेवर्स को सन्धि’ की, उसके द्वारा इन आश्वासनों को भंग कर दिया गया । इस सन्धि के द्वारा टर्की के सुल्तान के अधिकार छीन लिए गये । इससे टर्की के सुल्तान को अपना ‘खलीफा’ (धर्मगुरु) मानने वाले भारतीय मुसलमान ब्रिटिश शासन के विरोधी हो गये और उन्होंने ‘खिलाफत आन्दोलन’ (खलीफा की सत्ता की पुनर्स्थापना का आन्दोलन) शुरू कर दिया । महात्मा गाँधी ने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया और हिन्दू-मुस्लिम एकता के आधार पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन करने का निश्चय किया।

असहयोग आन्दोलन का स्थगन

चौरी-चौरा काण्ड और आन्दोलन का अन्त 

लेकिन 7 दिन का समय समाप्त होने के पूर्व ही एक ऐसी घटना हुई, जिसने सम्पूर्ण स्थिति को बदल दिया । 5 फरवरी, 1922 ई. को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक ग्राम में पुलिस के बल प्रयोग से जनता ने उत्तेजित होकर थाने में आग लगा दी, जिसके फलस्वरूप थानेदार और 21 सिपाही जलकर मर गये । अहिंसावादी गाँधी हिंसा के इस क्रूर प्रयोग को सहन नहीं कर सके और उन्होंने चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय और सुभाषचन्द्र बोस आदि सभी नेताओं द्वारा मना किये जाने पर भी 11 फरवरी, 1922 ई. को आन्दोलन स्थगित कर दिया । 10 मार्च, 1922 ई. को गाँधी जी गिरफ्तार कर लिये गए तथा उन पर मुकदमा चलाकर 6 वर्ष की सजा दे दी गई।

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