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भारतीय शिक्षण प्रणाली में यूनिसेफ (UNICEF) की भूमिका एवं कार्य का वर्णन कीजिए।

भारतीय शिक्षण प्रणाली में यूनिसेफ (UNICEF) की भूमिका एवं कार्य
भारतीय शिक्षण प्रणाली में यूनिसेफ (UNICEF) की भूमिका एवं कार्य

भारतीय शिक्षण प्रणाली में यूनिसेफ (UNICEF) की भूमिका

यूनीसेफ की स्थापना U.N.O. द्वारा की गई द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस संस्था की स्थापना उन हजारों, लाखों बेघर, भूखे, बीमार बच्चों को सहायता के लिए हुई थी, जिन्होंने इस विश्व युद्ध में अपना सब कुछ खो दिया था तथा तब इस संस्था का नाम यूनाइटेड नेशन्स इन्टरनेशनल चिल्ड्रेन्स इमरजेन्सी फण्ड रखा गया था। इसके नाम में थोड़ा परिवर्तन कर अब इसका नाम “ यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेन्स फण्ड’ रखा गया है।

यूनिसेफ का पूरा नाम ‘यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेन्स फंड’ (United Nations Children’s Fund या UNICEF) है। पहले इसे ‘यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चिल्ड्रेन इमरजेन्सी फंड’ कहा जाता था क्योंकि इस संघ की स्थापना द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुई थी। उस समय आपातकाल को देखते हुए युद्ध की विभीषिका द्वारा बेघर हुए 34 लाख बच्चों तथा कुपोषण के शिकार बच्चों के कल्याण के लिए यह संघ बनाया गया था तथा इसे यह नाम दिया गया। अब इसको इस पूरे नाम से ‘International’ तथा ‘Emergency’ शब्द हट गये हैं फिर भी इसके अंग्रेजी के संक्षिप्त नाम में ‘I’ तथा ‘E’ अब भी शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा सन् 1946 में ‘यूनिसेफ’ की स्थापना हुई। प्रथम चार वर्षों तक इस संगठन ने द्वितीय महायुद्ध की चपेट में आये बच्चों के लिये कार्य किये तथा इसके बाद भी यह अन्य विकासशील देशों के बच्चों के लिए सहायता दे रहा है। यूनिसेफ यह भी समझता है कि विकासशील देशों में गरीबी के कारण

निरक्षता है क्योंकि धन की कमी से बच्चे पाठशाला नहीं जा पाते हैं। यही निरक्षरता कुपोषण का भी एक बड़ा कारण है। क्योंकि पोषण आहार सम्बन्धी ज्ञान होने पर संतुलित भोजन प्राप्त करना उतना मुश्किल नहीं होता है। अतः यूनिसेफ जैसा संगठन बच्चों के विकास के लक्ष्य को लेकर चलता है वही संयुक्त शब्द संघ मानव कल्याण एवं उत्थान के लिए कार्य करता है। किसी भी देश का भविष्य उसके बच्चों पर निर्भर करता है। उसके बच्चों के स्वास्थ्य, गुणों, कलाओं, योग्यताओं के आधार पर ही देश के अगले बीस वर्षों के बाद के भविष्य की कल्पना की जाती है इसलिए यूनिसेफ के सारे कार्य एवं सहायता प्राथमिक रूप से शिशु स्वास्थ्य पर केन्द्रित हैं।

के यूनिसेफ यह भी समझता है कि अज्ञानता का कारण गरीबी है और कुपोषण अज्ञानता कारण होता है। धन की कमी के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पाते और अनेकों बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं तथा इन्हीं बीमारियों के कारण निर्धरता आती है।

यूनीसेफ के कार्य-

(1) बाल अपराध रोकने की दिशा में परिवार का विशेष उत्तरदायित्व है। समुचित पारिवारिक परिस्थितियाँ उत्पन्न करके बाल अपराध को कम करना। माता-पिता इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्हें जहाँ तक सम्भव हो बालकों के समक्ष आपस में लड़ना नहीं चाहिए। माता-पिता को सभी बच्चों के साथ एक समान व्यवहार करना चाहिए। उन्हें स्वयं आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए जिसका बालक अनुसरण करें। बालकों को उनकी त्रुटियों पर समझाना चाहिए। उन्हें शारीरिक दण्ड तो कभी नहीं देना चाहिए।

(2) बाल अपराधों को रोकने के लिए स्वस्थ्य मनोरंजन का विकास किया जाना चाहिए। बच्चों के लिए छोटे-छोटे उद्यानों की व्यवस्था की

जानी चाहिए। इन उद्यानों में खेलकूद की व्यवस्था होनी चाहिए। बच्चों के लिए पुस्तकालय तथा वाचनालय होने चाहिए।

(3) बाल अपराध को रोकने हेतु शिक्षा की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। विद्यालयों में बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ शिक्षक रखने चाहिए। पाठ्यक्रम रोचक बनाना चाहिए। ताकि बालक पढ़ने में आनन्द प्राप्त करें और कक्षा से बाहर भागने का विचार भी मन में न आये। विद्यालय में उनकी रुचि के अनुकूल विषय होने चाहिए। उनके लिए मनोरंजन के साधन होने चाहिए। शिक्षा संस्था में नैतिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।

(4) अपराधों को जन्म देने वाली गंदी बस्तियों को समाप्त कर देना चाहिए। इसके स्थान पर स्वच्छ और स्वस्थ आवास की व्यवस्था की जानी चाहिए।

(5) बाल अपराध मनोवैज्ञानिक विधि के द्वारा भी कम किए जा सकते हैं। अनेक मनोवैज्ञानिक कारण बाल-अपराध के लिए उत्तरदायी होते हैं। बाल अपराधों को रोकने के लिए मनोवैज्ञानिक विधियाँ हैं। जैसे-1 नान डायरेक्टिव टेक्नीक्स, 2. साइक्रोड्रामा ।

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