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दूरस्थ शिक्षा के लिये प्रयुक्त होने वाले प्रचलित शब्द | common words used for distance education

दूरस्थ शिक्षा के लिये प्रयुक्त होने वाले प्रचलित शब्द

दूरस्थ शिक्षा के लिये प्रयुक्त होने वाले प्रचलित शब्द

दूरस्थ शिक्षा के लिये प्रयुक्त होने वाले प्रचलित शब्दों का वर्णन कीजिए।

सामान्यतया लोग दूरस्थ शिक्षा {distance education} को “पत्राचार शिक्षा’ समझते हैं। आपके मन में भी जानने की उत्सुकता होगी कि दूरस्थ शिक्षा और मुक्त शिक्षा एवं पत्राचार शिक्षा में वास्तव में कोई अन्तर है या वे एक ही हैं। क्या इसे गैर पारम्परिक शिक्षा कहना ठीक होगा, क्या यही ‘जीवनपर्यन्त शिक्षा’ अथवा ‘प्रौढ़ शिक्षा’ है। आप जानते हैं कि मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा ने सम्पूर्ण विश्व में अपना स्थान बना लिया है इस पर व्यय भी बहुत कम आता है। उन सभी विद्यार्थियों के लिये यह वरदान है जिन्हें किसी कारण से पारम्परिक शिक्षण संस्था में प्रवेश नहीं मिल पाता है। दूरस्थ शिक्षा के लिये सामान्य रूप से प्रयुक्त होने वाले विविध शब्दों निम्नवत् का अध्ययन हैं-

मुक्त शिक्षा-

औपचारिक शिक्षा में प्रवेश, पाठ्यक्रम शिक्षण विधियों तथा मूल्यांकन पद्धति में कुछ प्रतिबंध और नियम लागू होते है। मुक्त शिक्षा में इन प्रतिबंधों को ढीला कर देते हैं, या हटा देते हैं। इस प्रकार मुक्त शिक्षा अधिक लचीली हो जाती है। मुक्त शब्द इस बात का द्योतक है कि इस प्रणाली में प्रवेश के लिये आवश्यक योग्यता, परीक्षा के उदार नियम, अपनी गति से आगे बढ़ने के प्रावधान हैं। मुक्त शिक्षा में शैक्षिक तथा प्रशासनिक नियंत्रण भी कठोर नही है। मुक्त शिक्षा अधिक से अधिक व्यक्तियों, अधिक से अधिक स्थानों पर दी जा सकती है। इसमें शिक्षण के लिये भी अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है। इसमें नवाचारों (Innovations) को अपनाने की स्वतंत्रता है। मुक्त शिक्षा-परम्परागत-शिक्षा पद्धति के नियमों से मुक्त होकर शिक्षण कार्य करती है।

मुक्त शिक्षा प्रदान करने के लिये मुक्त विश्वविद्यालयों की संरचना की गई। इस समय देश में एक राष्ट्रीय तथा 15 राज्य सरकारों के विश्वविद्यालय कार्यरत है।

मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा-

यहाँ पर आवश्यक है कि आप जान जायें कि मुक्त और दूरस्थ शिक्षा की संकल्पनायें क्या हैं? क्या वे एक-दूसरे से पृथक हैं या एक दूसरे की पूरक हैं, क्योंकि आज-कल मुक्त विश्व विद्यालय/दूरस्थ शिक्षा संस्थान जैसे शब्दों का प्रयोग प्रायः किया जाता है। वास्तव में दूर से तात्पर्य भौगोलिक दूरी है।दूर एक साधन है। जबकि मुक्तता (Openness) एक दर्शन (Philosophy) है। इससे तात्पर्य बंधनों के लचीले होने से है। प्रायः इन दोनों को एक दूसरे के समानार्थी शब्दों के रूप में प्रयोग किया जाता है। मुक्त शिक्षा (Open Education) के साथ-साथ अधिगम (Open Learning) शब्द का प्रयोग भी शिक्षा जगत में किया जा रहा है। मुक्त अधिगम का शाब्दिक अर्थ है बिना किसी बंधन के सीखना। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा प्रदान करने के क्षेत्र में अग्रणी है। इसका कार्यक्षेत्र न सिर्फ भारतवर्ष वरन् एशिया है।

वर्तमान समय में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा का प्रयोग एक साथ किया जाता है। अर्थात् वह शिक्षा जिसमें शिक्षक शिक्षार्थी के मध्य भौतिक दूरी भी है तथा नियमों और प्रतिबंधों में शिथिलता भी है। इसी अवधारणा को शिक्षा जगत में स्वीकार किया गया है। हम लोग भी मुक्त और दूरस्थ शिक्षा की इसी अवधारणा के साथ आगे की इकाईयों में अध्ययन करेंगे।

पत्राचार शिक्षा-

पत्राचार शिक्षा मूलतः डाक व्यवस्था द्वारा अध्ययन सामग्री छात्रों को भेजने पर आधारित है। इसमें छात्र अध्ययन करके अभ्यास के प्रश्न हल करके भेजते है और अध्यापक उत्तरों को मूल्यांकित कर, टिप्पणी और सुझाव के साथ उसे छात्र को वापस भेजता हैं। इस तरह शिक्षक के मार्गदर्शन में शिक्षा प्रक्रिया आगे बढ़ती है। इसमें भी अल्पकालिक शिक्षक शिक्षार्थी सम्पर्क कार्यक्रम की व्यवस्था की गई है। साधारणतया इसमें अध्ययन करने वाले परिपक्व छात्र होते हैं जो स्वप्रेरणा द्वारा अध्ययन सामग्री का अध्ययन करते है। अध्ययन सामग्री अत्यन्त सावधानीपूर्वक विशेषज्ञों द्वारा लिखवायी और सम्पादित की जाती है। सम्पर्क कार्यक्रमों में छात्र अपनी समस्याओं को अध्यापक के सामने रखता है। विचार-विमर्श करता है और पाठ्यक्रम की समाप्ति पर परम्परागत शिक्षा की भाँति परीक्षा देकर पाठ्यक्रम पूरा करने में सफल होता है।

जहाँ तक दूर शिक्षा और पत्राचार में अन्तर का प्रश्न है, दोनों ही प्रकार की शिक्षा पद्धति स्व अध्ययन सामग्री पर निर्भर करते हैं। दूरस्थ शिक्षा में बहुमाध्यमों का प्रयोग बहुत होता है। साथ ही यह भी आवश्यक नहीं है कि छात्र और अध्यापक आपस में सम्पर्क करें। दूरस्थ शिक्षा में छात्र सहायता सेवायें बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होती हैं। पत्राचार शिक्षण संस्थान किसी न किसी पारम्परिक विश्वविद्यालय के अंग रूप में कार्य करता है। अत: इसकी प्रवेश प्रक्रिया एवं मूल्यांकन पद्धति परम्परागत शिक्षण प्रणाली के समान होती है।

द्वि-विध पद्धति (Dual Mode System)-

आप विद्यार्थीगणों को इस समय द्वि- विध (Dual Mode System) विश्वविद्यालयों के प्रत्यय को भी अवश्य समझ लेना चाहिये। जिन विश्व विद्यालयों में विश्वविद्यालय के साथ-साथ पत्राचार संस्थान संलग्न रहता है उन्हें द्विमार्गीय विश्वविद्यालय कहते हैं जैसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय। कुछ स्थानों पर पत्राचार संस्थान स्वतंत्र
इकाई के रूप में कार्य करता है। पत्राचार संस्थान उच्च शिक्षा के अतिरिक्त माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर भी कार्य करता है।

जीवन पर्यन्त शिक्षा (Life Long Education)-

यूनेस्को की ‘लर्निंग टू बी’ में जीवन पर्यन्त चलने वाली शिक्षा पर बहुत बल दिया गया है। शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक लगातार सीखता रहता है। मनुष्य स्वयं शिक्षक भी है और वह सीखता भी है और सिखाता भी है। मानव स्वभाव से सीखने के लिये उत्सुक रहता है। बच्चे, युवा, प्रौढ़ सभी आयु वर्ग के लोग जीवन भर किसी न किसी रूप में सीखते रहते हैं। जीवन पर्यन्त शिक्षा एक प्रक्रिया है एक अवधारणा है। दर्शन और आदर्श भी है। शिक्षा आजीवन चलने वाली एक ऐसी विचारपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति का शारीरिक, बौद्धिक, भावात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक आदि विकास सम्यक रीति से होता है। इसके फलस्वरूप व्यक्ति अपने व्यवहार में परिवर्तन और परिवर्द्धन लाता है जिसमें व्यक्ति, जाति समाज और राष्ट्र तथा विश्व सभी का हित होता है। जीवन पर्यन्त शिक्षा की अवधारणा को भली भाँति समझने के लिये शिक्षाविदों द्वारा दी गई परिभाषाओं का अध्ययन आवश्यक है।

जारीवस (1990)- “जीवन पर्यन्त शिक्षा योजनाबद्ध मानवीय आधारित घटनाओं की श्रृंखला है।”

दूबे (1976)- “जीवन पर्यन्त शिक्षा जीवन भर चलती रहती है, जिससे व्यक्ति और समुदाय के जीवन स्तर को उन्नत बनाया जा सके।”

यूनेस्को (1976)- “जीवन पर्यन्त शिक्षा एक प्रक्रिया है। व्यक्ति औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा से सीखता है।”

सार रूप में जीवन पर्यन्त शिक्षा एक अत्यन्त व्यापक अवधारणा है। इसके अन्तर्गत वे सभी प्रक्रियायें शामिल हैं जिससे व्यक्ति शिक्षा पाता रहता है। इसमें व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास की सम्भावनायें निहित होती है।

दूरस्थ शिक्षा आज मानव समाज की सर्वाधिक एवं सशक्त आवश्यकता के रूप में विकसित हो रही है। यह एक मात्र ऐसी शिक्षा व्यवस्था है जो 21 वीं शताब्दी की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है। कुछ वर्षों पूर्व तक दूरस्थ शिक्षा औपचारिक शिक्षा की पूरक शिक्षा व्यवस्था मानी जाती रही हैं, लेकिन 21वीं सदी के आगमन के साथ दूरस्थ शिक्षा अपने अभिनव स्वरूप साथ उभरी है। मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा को भारतीय संविधान ने शैक्षिक विकल्प के रूप में स्वीकार किया।

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