समय-सारणी का अर्थ
समय-सारणी का अर्थ- प्रशासन की दृष्टि से समय-सारणी एक महत्वपूर्ण लेखा है। यदि विद्यालय का कार्य सुव्यवस्थित एवं सफलतापूर्वक चलाना है, तो विद्यालय के सम्पूर्ण कार्य की एक विस्तृत समय-सारणी होगी, जिसमें शिक्षण सम्बन्धी क्रियाओं एवं पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं आदि के लिए समय निश्चित कर दिया जाता है। समय-सारणी के निर्माण में प्रधानाध्यापक को बड़ी सावधानी रखनी चाहिए और उसमें अध्यापकों की सहायता लेनी चाहिए क्योंकि अच्छी समय-सारणी विद्यालय के कार्य को सफलतापूर्वक एवं सुचारु रूप से चलाती है। शक्ति और समय का ह्रास नहीं होता और छात्रों को व्यक्तित्व के विकास के अवसर मिलते हैं। विद्यालय विभिन्न कक्षाओं में विभाजित होता है और विद्यालय का समय सीमित होता । इस सीमित समय को इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विषय, खेल-कूद तथा अन्य पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था हो सके। पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों के किस-किस समय एवं कितनी-कितनी देर तक पढ़ाये जाने की योजना-बद्ध रूप से प्रस्तुत करती है। उसे समय-सारणी कहते है।
समय-सारणी के गुण / लाभ
समय-सारण एक ऐसा यंत्र है जिसके माध्यम से प्रधानाचार्य अपने विद्यालय के समस्त कार्यों का वितरण इस प्रकार करता है कि विद्यालय के समस्त कार्य नियमानुसार तथा समय अनुसार हो सकें। इससे विद्यालय की व्यवस्था में स्थिरता आती है। इसके अभाव में अव्यवस्था का साम्राज्य होगा।
समय-सारणी प्रधानाचार्य के अनेक प्रकार से सहायता प्रदान करती है-
(1) योग्यतानुसार कार्य का वितरण- समय-सारणी के माध्यम से प्रधानाचार्य शिक्षकों को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य का वितरण कर देता है। इससे अध्यापकों में भी संतोष रहता है तथा कार्य भी निपुणता के साथ पूरा होता है। छात्र को भी अत्यधिक लाभ मिलता
(2) समय पर पाठ्यक्रम की समाप्ति- समय-सारणी से विद्यालय का पाठ्यक्रम योजना रूप में समय से कार्य समाप्त कर लिया जाता है तथा विषय की कठिनाई एवं सुबोधता तथा सरलता के आधार पर प्रधानाचार्य समय व्यवस्था कर देते हैं।
(3) सदा कार्य में व्यस्त रखना- एक कहावत प्रचलित है कि ‘खाली मस्तिष्क शैतान का घर होता है’ ‘Empty mind devil’s workshop’ अतः समय-सारणी के द्वारा प्रधानाचार्य शिक्षकों तथा छात्रों को कार्य में व्यस्त रख सकते हैं। इसके अनावश्यक कार्य कम हो जायेंगे।
(4) पाठ्यक्रम सहगामिनी क्रियाओं को उचित स्थान- समय सारणी के माध्यम से प्रधानाचार्य पाठ्यक्रम सहगामिनी क्रियाओं को भी उचित स्थान देता है जिससे बालकों में कार्य करने की रुचि, उपयोगी कलाओं को सीखने के अवसर उन्हें प्राप्त होते हैं, तथा छात्र अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं।
(5) कार्य करने की क्षमता के आधार पर कार्य विभाजन- समय-सारणी के द्वारा प्रधानार्चा छात्रों की मानसिक तथा शारीरिक क्षमता को ध्यान में रखकर समय विभाजन करता है जिससे भिन्न-भिन्न आयु के छात्रों पर अनावश्यक भार नहीं पड़ता है।
समय सारणी बनाते समय सावधानियाँ
समय-सारणी का निर्माण करते समय अग्रलिखित सावधानियों पर ध्यान दिया जाय-
(1) समय-सारणी सरल और स्पष्ट हो। समय-सारणी का निर्माण इस ढंग से किया जाय, जिसे छात्र सफलतापूर्वक समझ सकें।
(2) समय-सारिणी में इस प्रकार की व्यवस्था हो कि छात्रों को प्रत्येक घण्टे में एक कक्षा से दूसरी कक्षा में नहीं जाना पड़े। इससे समय की बचत होती है।
(3) समय-सारणी इस प्रकार की हो कि जिसमें अध्यापक तथा छात्रों के मध्य किसी प्रकार का संघर्ष न हो।
(4) समय-सारणी अत्यधिक जटिल न हो, उसमें लचीलापन भी हो।
(5) समय-सारणी निर्माण में ग्रामीण आवश्कताओं को भी ध्यान में रखा जाय।
(6) समय-सारणी के निर्माण में इस बात को भी ध्यान रखा जाय कि छात्र और अध्यापकों में अधिक सम्पर्क की सम्भावना हो।
समय-सारणी के निर्माण में कठिनाइयाँ
विद्यालय की समय-सारिणी का निर्माण करना कोई सरल कार्य नहीं है। इसके निर्माण में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता ।
इनमें से कुछ प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं-
1. अध्यापकों का अभाव- समय-सारणी निर्माण में सबसे अधिक कठिनाइयों अध्यापकों के अभाव के कारण आती है। अध्यापकों की कमी के कारण समय-सारणी के निर्माण के सिद्धान्तों को नहीं अपनाया जा सकता। परिणामस्वरूप छात्रों को उनकी रुचि के अनुकूल विषय नहीं मिल पाते और इसी प्रकार अध्यापकों को भी अपनी रुचि के अनुसार शिक्षण के अवसर प्राप्त नहीं होते। अत: इसके निवारणार्थ ध्यान दिया जाय।
2. कक्षाओं को अभाव- जब विद्यालय में पर्याप्त कमरे और विशेष कक्ष नहीं होते तब समय-सारणी का निर्माण करना कठिन हो जाता है। अतः प्रधानाध्यापक को इस पर ध्यान देना चाहिए।
3. भौतिक साधनों का अभाव- पर्याप्त फर्नीचर, अध्यापक कक्ष तथा पुस्तकालय आदि का अभाव भी एक कठिनाई है। इन अभावों की पूर्ति की जाय।
4. विद्यालय में छात्रों की अधिक संख्या- जब विद्यालय में छात्रों की संख्या अत्यधिक होती है तो समय-सारणी बनाना असुविधाजनक हो जाता है। अतः छात्र-संख्या विद्यालय क्षमता के अनुसार होनी चाहिए।
5. अंशकालीन अध्यापकों की नियुक्ति- अंशकालीन अध्यापकों (Part-time teachers) की नियुक्ति के कारण भी समय-सारणी बनाने में बाधाएँ आती हैं क्योंकि उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षण संस्थाओं में जाना पड़ता है। अतः स्थायी अध्यापक ही नियुक्त किये जायें।
समय-सारणी के प्रकार
(1) शिक्षक के अनुसार (Teacher-wise)
(2) कक्षा के अनुसार (Class-wise)
(3) विषय के अनुसार (Subject Activities).
समय-सारणी के उद्देश्य
इसके उद्देश्य निम्न हैं-
(1) विद्यालय के विद्यार्थियों को वर्षभर कार्य में व्यस्त रखना।
(2) विद्यालय के पाठ्यक्रम को निर्धारित समय के अन्तराल में ही पूर्ण करना।
(3) विद्यालय की समय-सारणी के अन्तर्गत शिक्षकों को उनकी मानसिक सामर्थ्य एवं क्षमता के अनुसार अध्यापन कार्य देना।
(4) विद्यालय के अन्तर्गत पाठ्यक्रम का विषय विभाजन बच्चों की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति के अनुरूप ही करना चाहिए।
(5) विषय को उसकी उपयोगिता एवं कठिनाई के आधार पर समय एवं स्थान की व्यवस्था करना है।
(6) छात्र एवं अध्यापक को अपने कार्य के प्रति सजग बनाना।
(7) कम समय में अधिक लाभ उठाना।
(8) विद्यालय के अन्तर्गत व्यवस्थित एवं योजनाबद्ध कार्य का संचालन करना।
(9) विद्यालय में होने वाली पाठ्यक्रम-सहगामिनी क्रियाओं को उचित स्थान देना।
(10) प्रधानाध्यापक के निरीक्षण कार्य को सरल बनाना।
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