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क्या एक बैंक की लेखाबहियाँ आज्ञप्ति के निष्पादन में कुर्क और बिक्री की जा सकती हैं?

क्या एक बैंक की लेखाबहियाँ आज्ञप्ति के निष्पादन में कुर्क और बिक्री की जा सकती हैं?
क्या एक बैंक की लेखाबहियाँ आज्ञप्ति के निष्पादन में कुर्क और बिक्री की जा सकती हैं?

क्या एक बैंक की लेखाबहियाँ आज्ञप्ति के निष्पादन में कुर्क और बिक्री की जा सकती हैं?

व्यवहार प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 60 इन सम्पत्तियों का वर्णन करती है जिन्हें डिक्री के निष्पादन में कुर्क और उनका विक्रय किया जा सकेगा। उपधारा (1) के परन्तुक के अधीन रहते हुए समस्त विक्रय योग्य सम्पत्ति, जो निर्णीत ऋणी से सम्बन्धित है, उसके विरुद्ध पारित डिक्री के निष्पादन में कुर्क तथा विक्रय की जा सकेगी।

जिन सम्पत्तियों को कुर्क किया जा सकता है उनमें मुख्य है- भूमि, गृह, माल, धन, बैंक नोट, चेक, विनिमय पत्र, हुण्डी, वचन पत्र, सरकारी प्रतिभूतियाँ, धन के लिए बन्धपत्र या अन्य प्रतिभूतियाँ, ऋण, निगम, अंश तथा सभी जंगम या स्थावर सम्पत्ति, जो निर्णीत ऋणी की हैं या जिसके लाभों पर वह ऐसी व्ययन शक्ति रखता है जिसे वह अपने फायदे के लिए प्रयोग कर सकता है चाहे वह निर्णीत ऋणी के नाम में धारित हो या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसके नाम में या उसकी ओर से धारित हो।

• धारा 60 के अन्तर्गत उन सम्पत्तियों का भी उल्लेख किया गया है जिनकी कुर्की तथा विक्रय नहीं किया जा सकता है। जिन सम्पत्तियों की कुर्की तथा विक्रय नहीं किया जा सकता है। वे निम्न प्रकार हैं

(1) निर्णीत ऋणी, उसकी पत्नी या उसकी सन्तानों के पहनने के आवश्यक वस्त्र, खाने के बर्तन, चारपाई और बिछौने तथा निजी आभूषण, जिन्हें कोई स्त्री धार्मिक प्रथा के अनुसार अपने से पृथक् नहीं कर सकती है जैसे-सगाई की अंगूठी, मंगलसूत्र इत्यादि।

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(2) शिल्पी के औजार और जहाँ निर्णीत ऋणी कृषक है यहाँ उसके खेती के उपकरण और ऐसे जानवर और बीज जैसा कि न्यायालय की राय में उसे वैसी हैसियत में अपने जीविकोपार्जन के लिए समर्थ बनाने के लिए आवश्यक है और कृषिक उपज का या कृषिक उपज का ऐसा प्रभाग जैसा कि आगामी धारा 61 के उपबन्धों के अधीन दायित्व से मुक्त घोषित कर दिया गया है।

(3) घर और अन्य निर्माण, उनके सामानों और स्थानों के साथ-साथ और उनसे निकटतम सम्बन्धित भूमि जो उनके उपयोग के लिए आवश्यक हो, जो कृषक, श्रमिक अथवा घरेलू नौकर की है, और वह उनके अधिभोग में है।

(4) लेखा पुस्तिका

(5) नुकसानी के लिए वाद लाने का अधिकार।

(6) वैयक्तिक सेवा कराने का कोई अधिकार।

(7) वे वृत्तिकाएँ एवं उपादान जो कि सरकार के या किसी स्थानीय प्राधिकारी या अन्य नियोजन के पेंशनभोगियों को प्राप्त है।

(8) श्रमिकों और घरेलू सेवकों की मजदूरी भले ही वह धन या वस्तु के रूप में देय हो।

(9) भरण-पोषण की डिक्री से भिन्न किसी डिक्री के निष्पादन में प्रथम 1,000 रुपये वेतन और बाकी की दो तिहाई वेतन से वे समस्त मासिक उपलब्धियाँ अभिप्रेत हैं जो कि व्यक्ति

के अपने नियोजन से व्युत्पन्न होती हैं चाहे वह कर्तव्यारूढ़ हो या छुटटी पर हो । इत्यादि । इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि बैंक की लेखा बहियाँ डिक्री के निष्पादन में कुर्क तथा विक्रय नहीं की जा सकेंगी।

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