परिसीमन तथा चिरभोगाधिकार में अन्तर (Difference Between Limitation and Perpetual Jurisdiction)
परिसीमन तथा चिरभोगाधिकार में अन्तर – परिसीमन तथा चिरभोगाधिकार परिसीमन के नियम वह समय अवधि निर्धारित करते हैं जिनके व्यतीत हो जाने के पश्चात न्यायालय में वाद या विधिक कार्यवाही प्रारम्भ नहीं की जा सकती। चिरभोगाधिकार के नियम वह समय निर्धारित करते हैं जिनके व्यतीत होने के पश्चात् कोई मौलिक अधिकार या तो प्राप्त होता है या समाप्त हो जाता है। इस प्रकार चिरभोगाधिकार का दोहरा अर्थ है, एक अधिकार सृजन तथा दूसरा अधिकार समाप्ति | परिसीमन अधिनियम के अन्तर्गत प्रयुक्त चिरभोग परिसीमन के प्रतिकूल है।
परिसीमन तथा चिरभोगाधिकार में निम्नलिखित अन्तर हैं-
परिसीमन |
चिरभोगाधिकार |
परिसीमन विधि किसी निश्चित समयावधि बीत जाने के पश्चात् वाद, अपील या अन्य कार्यवाही करने पर प्रतिबन्ध लगाती है। | चिरभोग विधि एक समयावधि निर्धारित करती है जिसके बीत जाने के पश्चात् कुछ परिस्थितियों में प्राथमिक या मौलिक अधिकार या तो समाप्त हो जाते हैं या प्राप्त होते हैं। |
परिसीमन सिर्फ उपचार बाधित करती है परन्तु अधिकार समाप्त नहीं करती। | चिरभोग अधिकार समाप्त करती है या अधिकार का सृजन कुछ परिस्थितियों में करती है। |
परिसीमन अधिकार लागू करने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। | चिरभोग परस्पर विरोधी अधिकारों की विषयवस्तु को प्रभावित करती है। |
परिसीमन विधि अपने आप में नकारात्मक है क्योंकि यह एक व्यक्ति से ऐसा अधिकार छीन लेती है जो उसे किसी निश्चित समय सीमा के पूर्व प्राप्त था। | चिरभोग सकारात्मक है तथा एक व्यक्ति को यह वह अधिकार देती है जो उसे तथ्यतः था परन्तु अधिकार पूर्ण रीति से नहीं था। |
इसे भी पढ़ें…
- साइबर अपराध क्या है?
- साइबर कैफे किसे कहते हैं?
- बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर टिप्पणी
- वित्तीय अपराध पर संक्षिप्त लेख
- बाल अश्लीलता क्या है?
- साइबर अश्लीलता क्या है
- हैकिंग कैसे करते हैं?
- हैकिंग क्या है?
- अन्तर्राष्ट्रीय साइबर अपराध की विधि
- साइबर अपराध क्या है?
Disclaimer
Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com