वैध अभिस्वीकृति के आवश्यक तत्व
किसी सम्पत्ति या अधिकार के सम्बन्ध में एक वर्तमान दायित्व की जानबूझकर की गयी अभिस्वीकृति नवीन मर्यादा अवधि को जन्म देती है। एक वैध अभिस्वीकृति के लिए निम्न आवश्यक तत्व साबित करना आवश्यक है-
1. अभिस्वीकृति निर्धारित मर्यादा अवधि बिताने से पूर्व की जानी चाहिए – अभिस्वीकृति को वैध होने के लिए अभिस्वीकृति मर्यादा अवधि के समाप्त होने से पूर्व की जानी आवश्यक है। यदि अभिस्वीकृति निर्धारित समयावधि बीत जाने के पश्चात् की गयी है तो दावा समयबाधित माना जायेगा। इस प्रकार एक कर्ज के दायित्व की अभिस्वीकृति यदि ऋण की तिथि से तीन वर्ष पश्चात् की गयी है तो यह वैध अभिस्वीकृति नहीं मानी जायेगी तथा ऋण को पुनर्जीवित करने के लिए उससे लाभ नहीं लिया जा सकता।
परन्तु यदि अभिस्वीकृति लिखित है तथा इसके साथ ऐसे ऋण के भुगतान करने का वचन भी है जो कालबाधित हो चुका है तब परिसीमन नियम का लाभ लिया जा सकता। उसके पीछे कारण यह है कि ऋण के भुगतान करने का वयन यदि लिखित रूप से किया गया है तो वह (पूर्ववर्ती ऋण भुगतान की संविदा की भांति ही) एक नवीन प्रकृति की संविदा हो जाती है। यह पुराने कालबाधित दावे को पुनर्जीवित तब करती जब यह मर्यादा अवधि बीतने से पूर्व दिया गया होता।
इस प्रकार कालबाधित ऋण को पुनर्जीवित करने हेतु अभिस्वीकृति संविदा अधिनियम की धारा 25 के अन्तर्गत भुगतान करने के वचन के साथ-साथ की गयी होनी चाहिये अर्थात यहाँ अभिस्वीकृति मात्र पर्याप्त नहीं है। उसके साथ पूर्ववर्ती ऋण भुगतान करने का वचन भी होना चाहिये।
2. अभिस्वीकृति उस पक्षकार (व्यक्ति) या उसके अभिकर्ता द्वारा की गयी होनी चाहिये – जिसके विरुद्ध दावा किया जाना है या जिसके प्रतिवादी अपना हक या दायित्व प्राप्त कर रहा है सामान्यतः अभिस्वीकृति उस व्यक्ति द्वारा की जानी चाहिये जिसके विरुद्ध दावा किया जाना है या जो व्यक्ति दायित्वाधीन है। यदि अभिस्वीकृति वैध रूप से नियुक्त अभिकर्ता द्वारा अपने अधिकार की सीमा के अन्तर्गत दी गयी है तो वह स्वामी को बाध्य करती है। एक भागीदारी फर्म के भागीदार एक दूसरे के अभिकर्ता माने जाते हैं। सी०आर०जी० अम्मा बनाम स्टेट बैंक ऑफ मैसूर AIR 1990 केरल के बाद में एक अभिकर्ता द्वारा ऋण की अभिव्यक्ति की गई। इस विषय में शक्ति प्रदायी प्रावधान के अनुसार फर्म के प्रबन्धक द्वारा बैंक के प्रति फर्म में अवशेष ऋण की अभिस्वीकृति का अधिकार था।
यह प्रावधान सभी भागीदारों पर बाध्यकारी था। केरल उच्च न्यायालय ने यह विचार व्यक्त किया कि उक्त प्रावधान के रहते हुये ऋण की अभिस्वीकृति के उद्देश्य से भागीदार को प्राधिकृत करने के उद्देश्य से विशिष्ट मुख्तारनामे की आवश्यकता नहीं थी।
न्यू एज राइस मिल्स हनुमानगढ़ बनाम मेसर्स महावीर राइस एण्ड दाल मिल्स हनुमानगढ़ AIR 2001 राजस्थान नामक वाद में भागीदारी फर्म के एक भागीदार (Partner) ने ऋणी फर्म के भागीदार की हैसियत से ऋण को स्वीकार करते हुए चेक निर्गत (Issue) किया। ऋणी फर्म ने चेक निर्गत करने वाले भागीदार की चेक निर्गत करने की सक्षमता का खण्डन नहीं किया अतः देनदार (creditor) (ऋणदाता) फर्म ने अपने सबूत के भार का निर्वहन कर दिया।
चेक निर्गत करने की तिथि से ऋण की अभिस्वीकृति मानते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि चेक निर्गत करने की तिथि से नवीन परिसीमन अवधि (Limitation Period) चलनी प्रारम्भ होगी।
3. अभिस्वीकृति लिखित होनी चाहिये- एक वैध अभिस्वीकृति को बाध्यकारी होने के लिए उसका लिखित होना आवश्यक है। किसी ऋण की मौखिक अभिस्वीकृति मान्य नहीं है। कोई भी लेखबद्ध दस्तावेज जिसमें अधिकार या दायित्वों की अभिस्वीकृति है तथा वह हस्ताक्षरित है जैसे-वाद पत्र तो यह पर्याप्त है। उसके अन्य उदाहरण हैं, ऋणी द्वारा विक्रय को स्थगित रखने के लिए आवेदन लिखित वचन तथा साक्षी द्वारा दी गयी ऐसी गवाही जो उसके (गवाह द्वारा हस्ताक्षरित हो। यदि लिखित अभिस्वीकृति पर दिनांक अंकित नहीं है तो दिनांक के निर्धारण हेतु मौखिक साक्ष्य दिया जा सकता है।
4. अभिस्वीकृति हस्ताक्षरित होनी चाहिये- परिसीमन अधिनियम की धारा 18 के अनुसार अभिस्वीकृति कर्ता द्वारा हस्ताक्षरित होना अनिवार्य है क्योंकि अहस्ताक्षरित अभिस्वीकृति का विधि की दृष्टि में कोई महत्व नहीं होता।
अभिस्वीकृति उस व्यक्ति द्वारा जिसके विरुद्ध दावा किया जाना है, व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षरित हो सकती है, जिसने अभिस्वीकृति की है या अभिस्वीकृति इसके अभिकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित हो सकती है, जिसे उस उद्देश्य के लिए समुचित रूप से अधिकृत किया गया हो। यदि दायित्वाधीन व्यक्ति (ऋणी) अनपढ़ है तो उसके हस्ताक्षर के स्थान पर अंगूठे का निशान मान्य है। उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित अभिस्वीकृति भी वैध हैं।
जिससे प्रतिवादी हित प्राप्त कर रहा है। एक संरक्षक या प्रबन्धक द्वारा हस्ताक्षरित अभिस्वीकृति इस धारा के अन्तर्गत अभिस्वीकृति है। एक संयुक्त हिन्दू परिवार का प्रबन्धक उसी सीमा तक अभिस्वीकृति करने का अधिकारी है जिस सीमा तक वह संयुक्त हिन्दू परिवार की ओर से ऋण लेने का अधिकार रखता हो।
एक वकील मुवक्किल का अधिकृत अभिकर्ता है तथा उसके वकील द्वारा दी गई अभिस्वीकृतियों से मुवक्किल बाध्य होता है। एक प्रशासक दिवालिया व्यक्ति का अभिकर्ता नहीं होता। अतः उसके द्वारा की गई अभिस्वीकृति परिसीमन अवधि को नहीं बचाती।
5. अभिस्वीकृति विद्यमान (वर्तमान) दायित्वों के बारे में होनी चाहिये – यह आवश्यक नहीं है कि अवशेष राशि को भुगतान करने का वचन हो।
आवश्यक सिर्फ यही है कि समयावधि व्यतीत होने के पूर्व दायित्वों की अभिस्वीकृति की गई हो अर्थात् ऐसे दायित्वों को स्वीकार किया गया हो अभिस्वीकृति करते समय जिसका अस्तित्व हो। भूतकालीन या समयबाधित अभिस्वीकृति का कोई विधिक महत्व नहीं है।
दायित्व की अभिस्वीकृति अभिव्यक्त होनी आवश्यक नहीं है। यह विवक्षित हो सकती है। अभिस्वीकृति स्पष्ट तथा निश्चित होनी चाहिये तथा उसका दावाकृत अधिकार से स्पष्ट तथा निश्चित सम्बन्ध होना आवश्यक है।
ई-मेल द्वारा अभिस्वीकृति
ई-मेल द्वारा की गई ऋण की अभिस्वीकृति विधिमान्य (Acknowledgment of debt by E-Mail constitutes valid and legal acknowledgment.)
मान्य अभिस्वीकृति के कुछ उदाहरण-एक मान्य स्वीकृति (अभिस्वीकृति) के लिए यह आवश्यक है कि पत्र या लिखित दस्तावेज जिसमें अभिस्वीकृति अन्तर्निहित है, उसे पढ़ने से यह स्ट होना चाहिये कि दायित्वों के दायित्व को पूर्ण रूप से स्वीकार किया गया है। यदि दायित्व किसी शर्त के साथ स्वीकार किये गये हों तो स्वीकृति के साथ की शर्तें पूरी कर ली गई हो यह आवश्यक है।
कुछ मान्य या पर्याप्त अभिस्वीकृति के उदाहरण निम्न हैं
(1) बकाया उस दिन तक नहीं चुकाया गया उसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ।
(2) जो वचन पत्र मैंने दिया था वह स्टैम्पयुक्त नहीं है, अतः मैं भुगतान नहीं करूंगा।
(3) मैं नया ऋण उसी प्रकार नहीं चुका सकूँगा जिस प्रकार पुराना ऋण जो मुझ पर बकाया है।
(4) कृपया मुझे मार्च तक का हिसाब (लेखा) प्रेषित करें।
(5) मैं बकाया रकम किस्मों में चुकाता रहूँगा।
(6) मैं चालू खाते के अस्तित्व को स्वीकार करता हूँ। मेरा प्रतिनिधि लेखा की जाँच करेगा तथा जो बकाया पाया जायेगा उसका मैं भुगतान करूंगा।
(7) जैसा कि हमने आपके मुवक्किल को सूचित किया है हम उसे मौरूसी पट्टा के अन्तर्गत बकाया चुकता करने के लिए तैयार हैं यदिवह हमें उचित रसीद देने के हक का सबूत दे सके जिससे हमारा वकील सन्तुष्ट हो सके। यदि वह पूर्ण हक प्रस्तुत करने में असफल भी रहता है तो भी हम उसे किराये का भुगतान करने के लिए तैयार हैं यदि वह सारवान क्षतिपूर्ति दे।
कुछ अपर्याप्त (अमान्य) अभिस्वीकृतियों के उदाहरण –
(1) पुराने बकाये का बकाया 100 रुपये के भुगतान को संलग्न करने मात्र से यह अभिस्वीकृति नहीं हो जाती कि कुछ भुगतान बकाया है जब तक बकाये को स्पष्ट रूप से स्वीकार न किया गया हो।
(2) “मैं आपका लेखा देखना चाहूँगा मेरे अपने लेखा के अनुसार मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता कि भुगतान बकाया हा। कृपया लेखा प्रेषित करें। उस कथन से भी बकाया की पूर्णरूप से अभिस्वीकृति नहीं होती।
(3) “मैं ऋण को स्वीकार करता हूँ, परन्तु मैंने ऋण का भुगतान कर दिया है।”
(4) रेलवे कम्पनी को लिखा गया एक पत्र अभिस्वीकृति नहीं मानी जायेगी जिसमें उसने रेलवे को सूचना दी है कि माल किसी अन्य पक्षकार को प्रदान कर दिया गया है। जिसने इण्डेमनीटी बाण्ड पर माल छुड़ाया है तथा वादी उसे स्वीकार नहीं करता यह मान्य अभिस्वीकृति नहीं है।
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