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समाहारक परामर्श का अर्थ, विशेषताएँ, उद्देश्य, शैक्षिक निहितार्थ, लाभ, सीमाएँ

समाहारक परामर्श का अर्थ
समाहारक परामर्श का अर्थ

समाहारक परामर्श का अर्थ (Meaning of Eclectic Counselling)

समाहारक परामर्श का अर्थ- इस परामर्श को अन्य नामों, जैसे-संग्रही परामर्श, समन्वित परामर्श, मध्यमवर्गीय या मिश्रित परामर्श आदि नामों से जाना जाता है। इसके मुख्य प्रवर्तक एफ.सी. थोर्न एवं ऐलन बोर्डिन को माना जाता है। जब कभी ऐसी परिस्थिति आती है जिसमें कोई व्यक्ति/सेवार्थी निदेशात्मक एवं अनिदेशात्मक दोनों प्रकार के परामर्श से असहमत होता है ऐसी परिस्थिति के लिए परामर्श का एक अन्य स्वरूप विकसित किया गया जिसे समाहारक/ समन्वित/संग्रही / मिश्रित / मध्यमार्गीय परामर्श के नाम से जानते हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस परामर्श में निदेशात्मक एवं अनिदेशात्मक दोनों प्रकार के परामर्श की विशेषताओं को सम्मिलित किया जाता है, इसीलिए इसे मिश्रित परामर्श के नाम से भी जाना जाता है। एक प्रकार से ये निदेशात्मक एवं अनिदेशात्मक दोनों के बीच का मार्ग है, अतः इसे मध्य मार्गीय परामर्श भी कहा जाता है।

इस परामर्श की प्रक्रिया लचीली होती है। आवश्यकता के अनुसार इसमें समायोजन कर लिया जाता है। इसमें परामर्शदाता न अधिक सक्रिय रहता और न ही निष्क्रिय । इसकी प्रकृति के अनुरूप इसमें आवश्यक होने पर सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता के हित को ध्यान में रखते हुए भावात्मक अभिव्यक्ति को नियन्त्रित भी किया जाता है। इसमें परामर्शदाता पूर्णतः तटस्थ नहीं रहता है। इसमें अनावश्यक रूप से सेवार्थी को अत्यधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है। परिस्थिति (Situation) के अनुसार सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता एवं परामर्शदाता के सम्बन्धों में कुछ अधिकारगत दूरी बनी रहती है। परामर्श का यह एक व्यावहारिक प्रारूप है। इसमें परामर्शदाता द्वारा सेवार्थी / व्यक्ति के व्यक्तित्व का अध्ययन एवं उसकी आवश्यकताओं की जानकारी ही की जाती है, तत्पश्चात् परामर्शदाता द्वारा उन विधियों का चयन किया जाता है जो सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता के लिए अधिक सहायक रहती है।

समाहारक परामर्श में प्रविधियाँ सेवार्थी एवं परिस्थति के अनुसार ही उपयोग की जाती हैं। परामर्श में इस प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करना (Giving Information), केश हिस्ट्री (Case History), परीक्षण (Tests) आदि प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है। इस परामर्श में परामर्शदाता एवं सेवार्थी दोनों ही सक्रिय रहते हैं और सहयोगात्मक रूप से कार्य करते हैं। दोनों आपस में बातचीत करते हैं एवं संयुक्त रूप से मिलजुल कर समस्या का समाधान प्राप्त करते हैं। वस्तुतः समाहारक परामर्श अतिवादी विचारधाराओं से अलग हटकर परामर्श का एक सन्तुलित प्रारूप विकसित करने का एक सराहनीय प्रयास है। आवश्यक एवं अच्छी बातों को ग्रहण कर एवं अनुपयोगी / कम उपयोगी व अनावश्यक बातों का परित्याग करके इससे परामर्श के सर्वोत्तम स्वरूप को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।

समाहारक परामर्श की विशेषताएँ (Characteristics of Eclectic Counselling)

समाहारक परामर्श की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) समाहारक परामर्श की प्रक्रिया लचीली (Flexible) होती है।

(2) परामर्श का यह प्रारूप निदेशात्मक परामर्श एवं अनिदेशात्मक परामर्श का मिला-जुला रूप है। इसमें इन दोनों की विशेषताएँ विद्यमान हैं।

(3) इस परामर्श में सेवार्थी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निदेशात्मक या अनिदेशात्मक विधियों के प्रयोग करने का निर्णय लिया जाता है।

(4) सेवार्थी को अपेक्षित अवसर उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जाता है जिससे वह समस्या का समाधान स्वयं कर सके।

(5) इस परामर्श के अन्तर्गत वस्तुनिष्ठ एवं व्यक्तिनिष्ठ विधियों (Objective and Subjective) का प्रयोग किया जाता है।

(6) सामान्यतः परामर्श के प्रारम्भ में उन प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है जिसमें परामर्श प्राप्तकर्ता / सेवार्थी की भूमिका सक्रिय एवं परामर्शदाता की भूमिका निष्क्रिय होती है।

(7) इसका प्रयोग करते समय अल्प व्यय के सिद्धान्त का ध्यान रखा जाता है।

(8) इस परामर्श के अन्तर्गत कार्यकुशलता एवं उपचार प्राप्त कराने को विशेष महत्त्व दिया जाता है।

समाहारक परामर्श के उद्देश्य (Objective of Eclectic Counselling)

समाहारक परामर्श के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) छात्र द्वारा अन्य परामर्श प्रविधियों से सहमत न होने पर समाहारक द्वारा उसे परामर्श देना।

(2) छात्र को परामर्श की एक लचीली प्रक्रिया प्रदान करना।

(3) आवश्यकतानुसार छात्र के भावात्मक अभिव्यक्ति को नियन्त्रित करना।

(4) अतिवादी विचारधारा से अलग एक सन्तुलित परामर्श का प्रारूप विकसित करना।

(5) छात्रों की शैक्षिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं को हल करना।

समाहारक परामर्श प्रक्रिया के सोपान (Steps in the Process of Eclectic Counselling)

समाहारक परामर्श प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान हैं-

समाहारक परामर्श प्रक्रिया के सोपान

समाहारक परामर्श प्रक्रिया के सोपान

(1) सेवार्थी की आवश्यकताओं एवं व्यक्तित्व की विशेषताओं का अध्ययन (Study of the Needs and Characteristics of Personality of Counselee) – इस प्रकार के परामर्श के प्रथम सोपान में परामर्शदाता परामर्श प्राप्तकर्ता / सेवार्थी की वास्तविक आवश्यकताओं के विषय में जानकारी प्राप्त करता है एवं उसके व्यक्तित्व के विषय में भी जानकारी एकत्रित करता है।

(2) प्रविधियों का चयन और उनको उपयोग में लाना (Selection and Application of Techniques) – इसके अन्तर्गत सेवार्थी की आवश्यकताओं के अनुसार प्रविधियों का चयन किया जाता है। चयनित प्रविधियों का आवश्यकतानुसार उपयोग किया जाता है। जिन प्रविधियों को चयनित किया जाता है उनका उपयोग सेवार्थी की परिस्थितियों के अनुसार किया जाता है। कुछ प्रविधियों का उपयोग कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में ही किया जाता है।

(3) प्रभावशीलता का मूल्यांकन (Evaluation of Effectiveness) – इस सोपान में उपयोग में लाई गई प्रविधियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया जाता है। प्रयुक्त प्रविधियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है।

(4) परामर्श की तैयारी (Preparation for Counselling) – परामर्श प्रक्रिया के इस चरण में सेवार्थी की यथासम्भव, यथोचित परामर्श एवं मार्गदर्शन के लिए आवश्यक तैयारी की जाती है।

(5) सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता एवं अन्य व्यक्तियों का अभिमत प्राप्त करना (Seeking the Opinion of the Counselee and Other Related Persons)- परामर्श प्रक्रिया का यह अन्तिम सोपान है। इस सोपान के अन्तर्गत परामर्श सम्बन्धी कार्यक्रम एवं अन्य आवश्यक उद्देश्यों व नियमों पर प्रार्थी एवं उससे सम्बन्धित व्यक्तियों के अभिमत प्राप्त किए जाते हैं।

समाहारक परामर्श में परामर्शदाता की सक्षमता (Competence of Counsellor in Eclectic Counselling)

समाहारक परामर्श उच्च स्तरीय क्षमता की कल्पना करता है तथा अन्य दर्शन में विशेष प्रक्रियाओं की अनदेखी या वकालत के लिए परामर्शदाता द्वारा एक युक्तीकरण के रूप में कभी प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। सक्षम समाहारक परामर्शदाता दर्शन के सभी प्रमुख सिद्धान्तों से अच्छी तरह परिचित होता है तथा इस ज्ञान का उपयोग प्रार्थी के साथ सकारात्मक कार्य सम्बन्धों की स्थापना तथा तकनीकी चयन के लिए करता है। यदि कार्य को पूर्ण करने का बेहतर तरीका परामर्शदाता के हाथ में है तो किसी भी दार्शनिक ढाँचे की अस्वीकृति परामर्शदाता द्वारा न्यायोचित है।

समस्या वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर होती है परामर्शदाता को इस तथ्य के बारे में पता होना चाहिए। प्रार्थी को वैसे ही समझना चाहिए जैसे वह है या वैसे ही प्रयास उसको समझने के लिए करना चाहिए। प्रत्येक समस्या का उपचार अद्वितीय रूप से करना चाहिए। प्रार्थी की सभी व्यक्तिगत समस्याओं से निपटने के लिए उसी तरह की पूर्व कल्पना को नामंजूर करना चाहिए। परामर्शदाता का कार्य बहुत मुश्किल होता है। परामर्शदाता को प्रार्थी के बारे में उपलब्ध सभी प्रकार की सूचना को व्याख्या हस्तान्तरित करना होता है। प्रार्थी के साथ कार्य करते समय कार्यकर्ता को मित्रवत व्यवहार, उत्तरदायी/अनुक्रियाशील, ग्रहणशील, उग्र होने का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि उसी समय पर उसे अवैयक्तिक एवं वस्तुपरक भी होना पड़ सकता है। अतः उसे नर्म, उदासीन एवं अरुचिकर होने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।

समाहारक परामर्श के शैक्षिक निहितार्थ (Educational Implication of Eclectic Counselling)

समाहारक परामर्श के शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित हैं-

(1) समाहारक परामर्श निदेशात्मक एवं अनिदेशात्मक परामर्श की प्रक्रिया को सम्मिलित करता है तथा इसमें दोनों के गुणों के द्वारा संयुक्त रूप से छात्र की समस्या का निराकरण होता है।

(2) इस प्रकार के शैक्षिक परामर्श में परामर्शदाता एवं सेवार्थी दोनों सक्रिय रहते हैं तथा अधिकतम समस्याओं को हल कर लेते हैं।

(3) इसमें छात्र की शैक्षिक समस्याओं को हल करने में कम समय लगता है जिससे वे जल्दी समस्या मुक्त हो जाते हैं।

(4) यह छात्र के साथ-साथ घर, समाज एवं विद्यालय की चिन्ताओं को समाप्त करता है।

(5) इसके द्वारा अधिकतम लाभान्वित होकर अपनी रुचि एवं क्षमता के अनुसार कैरियर का चुनाव करने में समर्थ होते हैं।

समाहारक परामर्श के गुण/लाभ (Merits/Advantages of Eclectic Counselling)

समाहारक परामर्श के निम्नलिखित गुण / लाभ होते हैं-

(1) समाहारक परामर्श की प्रक्रिया एक लचीली प्रक्रिया है जिसमें निदेशात्मक परामर्श एवं अनिदेशात्मक परामर्श, दोनों के गुणों को आत्मसात किया गया है।

(2) इसमें परामर्शदाता एवं सेवार्थी दोनों सक्रिय रहते हैं।

(3) इसमें सेवार्थी की आवश्यकता को ध्यान में रखकर ही उपयुक्त विधियों का चयन किया जाता है।

(4) इससे प्राप्त सूचनाएँ अपेक्षाकृत अधिक विश्वसनीय एवं वैध होती हैं।

(5) इसमें सेवार्थी को भाव एवं विचार अभिव्यक्ति करने के लिए स्वतंत्र अवसर मिलते हैं।

(6) परामर्शदाता का समन्वयवादी दृष्टिकोण परामर्श प्राप्तकर्ता / सेवार्थी / प्रार्थी को अधिक से अधिक लाभ पहुँचाने का प्रयास करता है।

(7) इसमें परामर्शदाता सेवार्थी को समस्या के हल के विषय में निर्णय लेने में भी सहायता करता है एवं अन्तर्दृष्टि भी उत्पन्न करने में सहायक बनता है।

(8) इसमें अपेक्षाकृत कम समय लगता है।

समाहारक परामर्श की कमियाँ/सीमाएँ (Demerits/ Limitations of Eclectic Counselling)

समाहारक परामर्श की अपनी कुछ सीमाएँ हैं जिनके अन्तर्गत यह सम्पादित होता है तथा कुछ कमियाँ भी हैं जो इस प्रकार हैं-

(1) समाहारक परामर्श निदेशात्मक परामर्श एवं अनिदेशात्मक परामर्श का मिला-जुला रूप है लेकिन व्यावहारिक रूप से दोनों को मिश्रित करना एक कठिन कार्य है।

2) इस परामर्श के अन्तर्गत उपयोग की जाने वाली प्रविधियाँ/ युक्तियाँ अस्पष्ट एवं अवसरवादी हैं।

(3) सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता को कितनी स्वतंत्रता प्रदान की जाए इस विषय में कोई निश्चित नियम निर्धारित नहीं है।

(4) परामर्शदाता में व्यावसायिक दक्षता, अनुभव एवं समायोजन की योग्यता होना अति आवश्यक है।

(5) इसमें यह निर्धारित करना कठिन होता है कि कब परामर्शदाता तटस्थ एवं निष्क्रिय रहेगा तथा कब सक्रिय होना चाहिए।

(6) इस परामर्श के अन्तर्गत वस्तुनिष्ठ एवं व्यक्तिनिष्ठ विधियों (Objective and Subjective) का प्रयोग किया जाता है।

(7) सामान्यतः परामर्श के प्रारम्भ में उन प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है जिसमें परामर्श प्राप्तकर्ता/सेवार्थी की भूमिका सक्रिय एवं परामर्शदाता की भूमिका निष्क्रिय होती है।

(8) इसका प्रयोग करते समय अल्प व्यय के सिद्धान्त का ध्यान रखा जाता है।

(9) इस परामर्श के अन्तर्गत कार्य कुशलता एवं उपचार प्राप्त कराने को विशेष महत्त्व दिया जाता है।

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