निरीक्षण (Observation)
अवलोकन या निरीक्षण प्रविधि एक प्राचीन प्रविधि है। निरीक्षण द्वारा किसी के व्यवहार का अध्ययन, रोगियों का उपचार आदि किया जाता है।
निरीक्षण या अवलोकन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Observation)
निरीक्षण को प्रेक्षण या अवलोकन भी कहा जाता है। इन सभी के लिए अंग्रेजी में ‘Observation’ शब्द प्रयुक्त होता है। मनुष्य अपने दैनिक जीवन में अपने चारों ओर घटित होने वाली घटनाओं का ज्ञान बहुधा निरीक्षण के आधार पर ही प्राप्त करता है। निरीक्षण प्रविधि का प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। प्राकृतिक विज्ञान की समस्याओं के अध्ययन में इसका प्रयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है।
निरीक्षण का उपयोग शोध से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन में एक स्वतन्त्र विधि के रूप में तथा एक सहायक विधि के रूप में होता है। इसके द्वारा मनोविज्ञान की उन सभी समस्याओं का अध्ययन किया जा सकता है जो हमें आँखों से दिखाई देती हैं।
निरीक्षण केवल वैज्ञानिक अनुसंधान का आधार नहीं बल्कि अपने प्रतिदिन के जीवन में चारों तरफ घटने वाली घटनाओं के ज्ञान में भी इसकी प्रमुख भूमिका रहती है लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि सभी निरीक्षण या अवलोकन वैज्ञानिक नहीं होते हैं। यह वैज्ञानिक तभी होता है जब यह पूर्णतः पूर्व नियोजित हो, सैद्धान्तिक मान्यताओं से सम्बद्ध हो एवं व्यवस्थित ढंग से उपयोग किया गया हो तभी इसके द्वारा प्राप्त परिणाम परिशुद्ध, वैज्ञानिक एवं महत्त्वपूर्ण होंगे।
निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि प्राकृतिक अध्ययनों, सामाजिक मनोवैज्ञानिक व शैक्षिक अध्ययनों तथा निर्देशन एवं परामर्श आदि में महत्त्वपूर्ण है।
भिन्न-भिन्न विद्वानों ने निरीक्षण / अवलोकन का भिन्न-भिन्न ढंग से परिभाषित किया है। निरीक्षण के विषय में यहाँ कुछ विद्वानों के मत प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
मोजर के अनुसार, “निरीक्षण का तात्पर्य कानों या वाणी के स्थान पर अपनी स्वयं की दृष्टि का अधिकाधिक उपयोग करना है।”
According to C.A. Moser, “Observation implies the use of the eyes rather than that of the ears and the voice.”
पी.वी. यंग के अनुसार, “निरीक्षण घटनाओं को स्वाभाविक रूप से घटित होते समय नेत्रों द्वारा किया गया एक क्रमबद्ध एवं सुविचारित अध्ययन है।”
According to P.V. Young, “Observation is a systematic and deliberate study through the eye of spontaneous occurrences at the time they occur.”
गुड के अनुसार, “निरीक्षण का उपयुक्त परिस्थितियों में व्यक्ति के प्रकट व्यवहार से सम्बन्ध होता है।”
According to Goode, “Observation deals with the overt behaviour of person in appropriate situation.”
इस प्रकार कहा जा सकता है कि “निरीक्षण एक वैज्ञानिक विधि है जिसमें अध्ययनकर्ता कानों एवं वाणी की अपेक्षा प्रकृति में घटित होने वाली घटनाओं का अध्ययन अपनी आँखों से करता है। यह एक व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन है जो यथार्थ रूप में या समाज की जीवन्त परिस्थितियों में किया जाता है।”
निरीक्षण प्रविधि की विशेषताएँ (Characteristics of Observation Technique)
उपरोक्त विवरण के आधार पर निरीक्षण प्रविधि की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) यह कानों एवं वाणी की अपेक्षा अपनी आँखों द्वारा किया गया एक अध्ययन है।
(2) यह प्रकृति में घटित होने वाली स्वाभाविक घटनाओं का यथार्थ अध्ययन है।
(3) निरीक्षणकर्ता / अध्ययनकर्ता स्वाभाविक रूप से घटित होने वाली घटनाओं का अध्ययन वास्तविक या यथार्थ रूप में करता है।
(4) निरीक्षणकर्ता / अध्ययनकर्ता निष्पक्ष होकर क्रमबद्ध रूप में वैज्ञानिक ढंग से स्वाभाविक घटनाओं का अध्ययन करता है।
(5) इस प्रविधि में सामाजिक घटनाओं का विश्वसनीय एवं वैध अध्ययन किया जाता है। क्योंकि यह निरीक्षणकर्ता/अध्ययनकर्ता का आँखों से देखे गए तथ्यों एवं उनके विश्लेषण पर निर्भर करता है।
(6) इसमें निरीक्षणकर्ता / अध्ययनकर्ता के निरीक्षणों का उद्देश्य सूक्ष्म अध्ययन करना होता है। निरीक्षणकर्ता / अध्ययनकर्ता सूक्ष्म ही नहीं वरन् अपने मन व मस्तिष्क से समस्या का गहन अध्ययन भी करता है।
(7) इस प्रविधि में निरीक्षणकर्ता / अध्ययनकर्ता तथ्यों का निरीक्षण एवं उनका अभिलेखन (Recording) सुनियोजित और क्रमबद्ध तरीके से करता है।
निरीक्षण प्रविधि के पद (Steps of Observation Technique)
निरीक्षण प्रविधि अनेक प्रकार की होती हैं और इन सब में कुछ न कुछ अन्तर होता है। निरीक्षण प्रविधि के भिन्न-भिन्न प्रकारों को ध्यान में रखते हुए कुछ सामान्य पद निम्नलिखित हैं-
(1) समस्या चयन एवं उद्देश्य निर्धारण (Problem Selection and Determination of Objectives) – निरीक्षणकर्ता सबसे पहले समस्या का चयन करता है फिर उससे सम्बन्धित साहित्य का सर्वेक्षण कर समस्या से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों, जिनका कि पूर्व में अध्ययन हो चुका है एवं उनके परिणामों का अध्ययन करता है। साहित्य सर्वेक्षण के आधार पर निरीक्षणकर्ता अपनी समस्या से सम्बन्धित अध्ययन के उद्देश्यों को निर्धारित करता है।
(2) अध्ययन की योजना (Planning of the Study) – समस्या और उसके उद्देश्यों के निर्धारण के बाद निरीक्षणकर्ता अब यह तय करता है कि समस्या का अध्ययन किस विधि द्वारा करना उचित होगा। इस बारे में निरीक्षणकर्ता एक उपयुक्त योजना बना लेता है। इसी के अन्तर्गत निरीक्षणकर्ता यह भी निर्धारित करता है उसे किन व्यक्तियों का निरीक्षण करना है, निरीक्षण में किन-किन उपकरणों की सहायता से आलेखन करना है। योजना के अन्तर्गत ही निरीक्षणकर्ता निरीक्षण हेतु क्षेत्र, उपकरण, सामग्री एवं समय आदि के सम्बन्ध में पहले ही निर्धारण कर लेता है। योजना जितनी उपयुक्त होगी, उतने ही वैज्ञानिक ढंग से समस्या का अध्ययन भी होगा।
(3) निरीक्षण वातावरण (Observation Setting)- निरीक्षण करने से पूर्व ही निरीक्षणकर्ता यह निश्चित कर लेता है कि उसे किस समूह का निरीक्षण कहाँ करना है। यदि समूह बड़ा होता हो तो निरीक्षण वहाँ करना चाहिए जहाँ समूह निवास करता है और यदि समूह छोटा है तो उसे बुलाकर प्रयोग शाला में अध्ययन करना चाहिए जब निरीक्षणकर्ता अनियन्त्रित प्रविधि से निरीक्षण करता है तब वह निरीक्षण वातावरण में कोई परिवर्तन नहीं कर पाता जिससे अध्ययन समूह के सदस्यों का व्यवहार बिल्कुल स्वाभाविक हो जाता है लेकिन जब वह नियन्त्रित प्रविधि से निरीक्षण करता है तब वह निरीक्षण वातावरण में कुछ ऐसा परिवर्तन करता है जिससे अध्ययन समूह के सदस्यों के व्यवहार में परिवर्तन न हो सके और उनके व्यवहार को अधिक स्वाभाविक ढंग से नोट किया जा सके।
(4) सूचना / तथ्य संकलन हेतु उपकरण एवं अन्य सामग्री (Apparatus and Other Materials for Data Collection)- निरीक्षण प्रविधि एक ऐसी प्रविधि है जिसमें निरीक्षणकर्ता अपनी आँखों से देखकर तथ्यों का संकलन करता है। इस निरीक्षण के साथ ही निरीक्षणकर्ता तथ्य / सूचना संकलन हेतु उपकरण, जैसे- कैमरा, वीडियो कैमरा, टेपरिकार्डर, अनुसूची, डायरी आदि का उपयोग करता है। इन उपकरणों की सहायता से निरीक्षणकर्ता अपेक्षाकृत अधिक अच्छे ढंग से व्यवहार प्रतिमानों की रिकार्डिंग कर सकता है।
(5) व्यवहार का निरीक्षण (Observation of Behaviour) – निर्धारित पूर्व योजना के आधार पर उपकरणों की सहायता से स्वयं अपनी आँखों से घटना का या व्यवहार का निरीक्षण करता है। निरीक्षण करने से पूर्व यदि कोई आवश्यक तैयारी होती है तो निरीक्षणकर्ता उसे कर लेता है और घटना या व्यवहार का निरीक्षण निष्पक्ष एवं तटस्थ होकर करता है जिससे अध्ययन के निष्कर्ष पर उसकी रुचियों, अभिवृत्तियों या व्यक्तिगत विचारों आदि का प्रभाव न पड़े।
(6) व्यवहार का आलेखन (Recording of Behaviour) – निरीक्षणकर्ता निर्धारित योजना के अनुसार व्यवहार की रिकार्डिंग करता है। निरीक्षणकर्ता को रिकार्डिंग करते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि रिकार्डिंग वैसी ही होनी चाहिए जिस रूप में व्यवहार हो। निरीक्षणकर्ता के लिए यह भी आवश्यक होता है कि वह व्यवहार / घटना की रिकार्डिंग साथ-साथ करता जाए। इसके लिए उपकरणों का उपयोग करना चाहिए जिससे कि घटना / व्यवहार से सम्बन्धित सभी पक्षों की रिकार्डिंग साथ-साथ होती जाए।
(7) सूचनाओं / तथ्यों का विश्लेषण (Analysis of Information / Data) – सूचनाओं / तथ्यों को संकलित करने के बाद निरीक्षणकर्ता इनका विश्लेषण, वर्गीकरण और सारणीयन सांख्यिकीय विधियों द्वारा करता है। सूचनाओं / तथ्यों का विश्लेषण सांख्यिकीय आधार पर तभी हो सकता है जब निरीक्षित सूचनाओं / तथ्यों को अंकात्मक आँकड़ों के रूप में परिवर्तित किया जा सकता हो
(8) निष्कर्ष एवं विवेचना (Result and Interpretation) – निरीक्षणकर्ता तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर प्राप्त निष्कर्षो की विवेचना करता है। इस विवेचना में वह सामाजिक घटनाओं / व्यवहार प्रतिमानों पर न केवल प्रकाश डालता है बल्कि उनके कारणों की भी विवेचना करता है। यदि सम्भव होता है तो वह समस्या के कारणों के समाधान को भी प्रस्तुत करता है। अपने निरीक्षण से प्राप्त परिणामों की तुलना वह अन्य विद्वानों द्वारा प्राप्त परिणामों से भी करता है।
इस प्रकार उपरोक्त वर्णित आठ सामान्य पदों / चरणों में निरीक्षण प्रविधि की प्रक्रिया पूर्ण होती है।
निरीक्षण प्रविधि के गुण / लाभ (Merits / Advantages of Observation Technique)
सामाजिक एवं प्राकृतिक सभी विज्ञानों में निरीक्षण प्रविधि की भूमिका अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण रही है। बिना निरीक्षण के किसी अध्ययन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ज्ञान-विज्ञान सभी का जो मूल आधार है, वह है निरीक्षण। तथ्यों / सूचनाओं / आँकड़ों के संकलन में इसकी अति महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
निरीक्षण प्रविधि के गुणों / लाभों को निम्न बिन्दुओं द्वारा सरलतापूर्वक समझा जा सकता है-
(1) वास्तविक / स्वाभाविक परिवेश में अध्ययन (Study in Natural Environment) – इस प्रविधि में स्वाभाविक परिवेश में निरीक्षणकर्ता द्वारा घटना/ व्यवहार का प्रत्यक्ष अध्ययन किया जाता है। किसी अन्य प्रविधि में ऐसा नहीं सम्भव है।
(2) सरल विधि (Simple Method)- सामाजिक घटनाओं / व्यवहार प्रतिमानों के अध्ययन की निरीक्षण प्रविधि सबसे सरल विधि है। अनियन्त्रित निरीक्षण प्रविधि तो सबसे सरल प्रविधि है बल्कि अन्य निरीक्षण प्रविधियों द्वारा अध्ययन अपेक्षाकृत कुछ कम सरल होता है। इन प्रविधियों में निरीक्षणकर्ता को कुछ प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
(3) आनुभाविक अध्ययन (Empirical Study)- निरीक्षण प्रविधि ज्ञानेन्द्रियों के व्यवस्थित प्रयोग से सम्बन्धित है। इसमें निरीक्षणकर्ता ध्यान से सुनने के साथ ही जहाँ आवश्यक है वाक् शक्ति का भी प्रयोग करता है लेकिन सर्वाधिक केन्द्रण आँखों द्वारा घटना के निरीक्षण पर होता है। बिना ज्ञानेन्द्रियों के प्रयोग के निरीक्षण सम्भव नहीं है।
(4) व्यापक अध्ययन (Wide Study) – निरीक्षण प्रविधि द्वारा छोटे-बड़े सभी प्रकार के समूहों का और उनसे सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं का अध्ययन किया जा सकता है। कोई समूह कितनी ही दूर में फैला हो उसका भी अध्ययन इस प्रविधि द्वारा सम्भव है।
(5) प्रत्यक्ष (Direct Study) – इस प्रविधि में निरीक्षणकर्ता किसी सामाजिक घटना / व्यवहार प्रतिमानों का अध्ययन स्वयं अपनी आँखों से देखकर करता है। इसलिए अध्ययन के परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण ज्ञान ही नहीं बल्कि विश्वसनीय निष्कर्ष भी प्राप्त होते हैं।
(6) विभिन्न प्रकार के प्रयोज्यों के अध्ययन में उपयोगी (Useful in the Study of Types of Subjects)- निरीक्षण प्रविधि द्वारा भिन्न-भिन्न वर्ग के प्रयोज्यों का अध्ययन किया जा सकता है। बच्चों, वयस्कों आदि के व्यवहार से सम्बन्धित समस्याओं, पशु-पक्षियों से सम्बन्धित व्यवहार आदि के अध्ययन में यह प्रविधि बहुत उपयोगी है।
(7) अपरिचित भाषा-भाषी लोगों का अध्ययन (Study of Different Language Speaking Subject)- चूँकि निरीक्षण प्रविधि में आँखों का ही उपयोग किया जाता है इसलिए निरीक्षणकर्ता उन प्रयोज्यों या समूहों का अध्ययन कर सकता है जो दूसरी या अन्य भाषा बोलने वाले लोग हैं।
(8) गहन अध्ययन (Intense Study) – निरीक्षण प्रविधि द्वारा सामाजिक घटनाओं / व्यवहारों का अध्ययन गहनतापूर्वक किया जा सकता है। सहभागी निरीक्षण में तो निरीक्षणकर्ता अध्ययन समूह के सदस्यों के बीच जाकर रहता है, घनिष्ठता स्थापित करता है और उनके साथ रहते हुए उनके व्यवहारों एवं सामाजिक घटनाओं का गहनतम अध्ययन करता है।
(9) विश्वसनीयता (Reliability) – यह एक विश्वसनीय अध्ययन प्रविधि है क्योंकि इसमें घटनाएँ जिस रूप में घटती हैं, उसी रूप में उसका प्रत्यक्ष अध्ययन किया जाता है। निरीक्षणकर्ता आँखों देखी घटनाओं के सम्बन्ध में तथ्य / सूचनाएँ एकत्रित करता है इसलिए इस प्रविधि द्वारा प्राप्त परिणाम विश्वसनीय, वैध एवं वैज्ञानिक होते हैं।
(10) सत्यापन की सम्भावना (Possibility of Verification) – निरीक्षण प्रविधि द्वारा एकत्रित किए गए तथ्यों या सूचनाओं के संदेह की स्थिति में निरीक्षणकर्ता दोबारा जाँच कर सकता है।
(11) भविष्य कथन में सक्षम (Power of Prediction)- निरीक्षण द्वारा प्राप्त सूचनाएँ / तथ्य निष्पक्ष एवं वस्तुनिष्ठ होते हैं। उनकी सत्यता को पुनः जाँचा भी जा सकता है इसलिए प्राप्त निष्कर्षों की विश्वसनीयता एवं वैधता उच्च स्तर की होती है। इस कारण इनके निष्कर्षों में भविष्य कथन करने की पर्याप्त क्षमता होती है।
(12) परिकल्पना निर्माण में सहायक (Useful in Hypothesis Formulation) – निरीक्षण प्रविधि एक ऐसी प्रविधि है जिसकी सहायता से अध्ययन हेतु परिकल्पनाओं को निर्मित किया जा सकता है या परिकल्पनाओं की जाँच की जा सकती है। निरीक्षण करते समय निरीक्षणकर्ता में स्वतः ऐसी सूझबूझ उत्पन्न हो जाती है जिसके द्वारा नवीन परिकल्पनाओं को विकसित करने में सहायता मिलती है।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि निरीक्षण प्रविधि एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन प्रविधि है। इसके महत्त्व को स्पष्ट करते हुए गुड एवं हॉट (Goode and Hatt) ने कहा है- “विज्ञान निरीक्षण से प्रारम्भ होता है और अपनी अन्तिम सत्यापनशीलता के लिए भी इसे निरीक्षण पर ही निर्भर रहना पड़ता है। “
According to Goode and Hatt, “Science begins with observation and must ultimately return to observation for its final validation.”
निरीक्षण प्रविधि की कमियाँ / सीमाएँ / दोष (Demerits/Limitations of Observation Technique)
यद्यपि निरीक्षण प्रविधि एक महत्वपूर्ण प्रविधि है जिसका प्रयोग प्राथमिक स्तर पर तथ्य / सूचनाओं को संकलित करने में अत्यधिक प्रयोग किया जाता है लेकिन फिर भी इसकी कुछ सीमाएँ हैं। इस प्रविधि की प्रमुख सीमाएँ / कमियाँ / दोष निम्नलिखित हैं-
(1) केवल व्यक्त व्यवहार के अध्ययन तक सीमित (Limited only to the Study of Overt Behaviour)- इस प्रविधि की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसके द्वारा प्राणी के व्यक्त व्यवहार का ही अध्ययन किया जा सकता है, उन व्यवहारों का नहीं जो आन्तरिक हैं या अव्यक्त हैं या वाह्य रूप से दर्शनीय नहीं हैं, जैसे- प्राणियों की भावनाएँ, संवेदना, विचार आदि
(2) अभिनति या पक्षपात की समस्या (Problem of Biasness)- निरीक्षण करते समय कभी-कभी निरीक्षणकर्ता समूह के सदस्यों से इतना घुलमिल जाता है कि उसकी तटस्थता समाप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त उसकी व्यक्तिगत भावनाओं, अभिवृत्तियों, रुचियों आदि का प्रभाव भी निरीक्षित तथ्यों / सूचनाओं पर पड़ता है।
(3) कृत्रिम व्यवहार (Artificial Behaviour) – जब कभी अध्ययन समूह के सदस्यों को यह ज्ञात हो जाता है कि उनके व्यवहार का निरीक्षण किया जा रहा है तो उनका व्यवहार स्वाभाविक नहीं रह जाता। उनके व्यवहार में कृत्रिमता आ जाती है जिससे सही तथ्य / सूचनाओं का संकलन नहीं हो पाता है।
(4) सीमित उपयोग (Limited Scope of the Study) – सामान्यतः इसका प्रयोग सभी प्रकार के अध्ययन विषयों में किसी न किसी सीमा तक अवश्य होता है लेकिन एक लम्बे समय तक एक विशेष क्षेत्र में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। एक लम्बे समय तक निरीक्षण करने से समूह के सदस्य निरीक्षणकर्ता के प्रति शंकालु हो जाते हैं एवं उनके व्यवहार में कृत्रिमता आ जाती है। इसके अतिरिक्त निरीक्षणकर्ता की अपनी भी सीमाएँ हैं। इस कारण निरीक्षण एक सीमित क्षेत्र तक ही सफलतापूर्वक सम्भव हो सकता है।
(5) घटनाओं की आकस्मिकता (Casual Nature of Events) – अनेक महत्त्वपूर्ण सामाजिक घटनाएँ यदा-कदा अचानक घटित होती हैं जिसकी पुनरावृत्ति कब होगी नहीं कहा जा सकता। निरीक्षण हेतु उनकी पुनरावृत्ति के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। प्रतीक्षा अनिश्चित समय के लिए होती है। इसलिए निरीक्षणकर्ता की रुचि एवं धैर्य दोनों ही समाप्त होने लगते हैं। जैसे- “अपातकाल में व्यक्ति की मनोदशा” विषय का अध्ययन निरीक्षण विधि द्वारा नहीं सम्भव होगा।
(6) अनावश्यक तथ्यों / सूचनाओं का संकलन (Collection of Unnecessary Information Data) – निरीक्षण प्रविधि में कभी-कभी निरीक्षणकर्ता कई अनावश्यक तथ्यों / सूचनाओं का संकलन कर लेते हैं जिसका समस्या से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। कभी-कभी निरीक्षणकर्ता आकर्षक प्रतीत होने वाले तथ्यों, जिनकी आवश्यकता नहीं होती हैं उनका संकलन कर लेते हैं।
(7) अनेक अध्ययनों में अनुपयुक्त (Inadequate in Various Observations) – व्यक्ति व्यवहार के अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ निरीक्षण प्रविधि का उपयोग सम्भव नहीं है। जैसे- जीवन की ऐतिहासिक घटना, अनैतिक व्यवहार, व्यक्तिगत पारिवारिक घटनाएँ, पारिवारिक तनाव आदि । इसके अतिरिक्त कुछ व्यवहारों के निरीक्षण की सामाजिक अनुमति नहीं होती, जैसे- पति-पत्नी का दाम्पत्य सम्बन्ध।
(8) मात्रात्मक तथ्यों का अभाव (Lack of Quantitative Data)- निरीक्षण प्रविधिका एक प्रमुख दोष यह है कि इस प्रविधि द्वारा जो तथ्य या आँकड़ें / सूचनाएँ एकत्रित किए जाते हैं अधिकतर यह विवरणात्मक होते हैं। मात्रात्मक रूप में न होने पर इससे प्राप्त परिणामों का सांख्यिकीय विश्लेषण करने में समस्या आती है।
(9) विश्वसनीयता एवं वैधता का अभाव (Lack of Reliability and Validity) – जब किसी भी कारण वास्तविक व्यवहार का निरीक्षण नहीं हो पाता तब हमें सही तथ्य या सूचनाएँ नहीं प्राप्त होती और निष्कर्ष सही नहीं निकलता। इस प्रकार प्राप्त निष्कर्ष विश्वसनीय एवं वैध नहीं होते।
(10) सीमित भविष्य कथन (Limited Prediction) – निरीक्षण द्वारा प्राप्त तथ्यों/सूचनाओं में आत्मनिष्ठता (Subjectivity) पाई जाती है। इसलिए इनके आधार पर प्राप्त निष्कर्षो को आधार बनाकर केवल सीमित स्तर पर ही भविष्य कथन करना सम्भव है।
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