भारतीय संविधान (INDIAN CONSTITUTION)
किसी भी राष्ट्र के दर्शन को मार्गदर्शक के रूप में निर्धारित करने के लिए उस राष्ट्र का अपना संविधान होता है। यह संविधान ही राष्ट्र की जनता के अधिकारों और हितों की रक्षा करने तथा जीवन के सभी क्षेत्रों में उसके कल्याण के लिए कार्य करने में सरकार को मार्गदर्शन तथा दिशा प्रदान करता है। संविधान के अभाव में राष्ट्र में एक संगठित राजनैतिक तन्त्र के स्थान पर अस्त-व्यस्तता और अराजकता व्याप्त रहेंगी। अतः प्रत्येक राष्ट्र के लिए उसका अपना संविधान अनिवार्य है, चाहे उसका राजनीतिक तन्त्र किसी भी प्रकार का क्यों न हो।
भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा के द्वारा किया गया जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बनाए गए। 29 अगस्त सन् 1947 को संविधान सभा द्वारा डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में ‘प्रारूप समिति बनायी गयी। गम्भीर चिन्तन के पश्चात् संविधान सभा द्वारा इसे 26 नवम्बर सन् 1949 को स्वीकार किया गया, जिसे 26 जनवरी सन् 1950 को लागू किया गया। इसीलिए प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में यह राष्ट्रीय पर्व मनाया जाता है। भारतीय संविधान का निर्माण संविधान निर्मात्री सभा द्वारा दो वर्ष ग्यारह माह और अट्ठारह दिन में किया गया। इसके निर्माण पर कुल व्यय 6.4 करोड़ ₹ में हुआ। इसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं।
भारतीय संविधान की विशेषताएँ (Characteristics of Indian Constitution)
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) लिखित एवं विशाल (Written and Broad)
भारतीय संविधान का निर्माण एक विशेष संविधान सभा के द्वारा किया गया है और इस संविधान की अधिकांश बातें लिखित रूप में हैं। इस दृष्टिकोण से भारतीय संविधान, अमेरिकी संविधान के समतुल्य है। जबकि ब्रिटेन और इजरायल का संविधान अलिखित है। भारतीय संविधान केवल एक संविधान नहीं है वरन् देश की संवैधानिक और प्रशासनिक पद्धति के महत्वपूर्ण पहलुओं से सम्बन्धित एक विस्तृत वैज्ञानिक संहिता भी है। इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक संविधान है।
भारत के मूल संविधान में कुल 395 अनुच्छेद थे जो 22 भागों में विभाजित थे और इसमें 8 अनुसूचियाँ थीं। (इनमें पश्चात्वर्ती संशोधनों द्वारा वृद्धि की गई) बहुत-से उपबन्धों का निरसन करने के पश्चात् भी इसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं। 1950-1993 के बीच की अवधि में बहुत से अनुच्छेदों का लोप कर दिया गया है। संविधान में 64 से अधिक अनुच्छेद और 4 अनुसूचियाँ जोड़ी गई हैं अर्थात् अनुच्छेद 31क-31ग, 35, 39क, 48क 51क, 131क, 134क, 189क, 144क, 224क, 233क, 239क, 239क क. 239क ख 239ख, 243, 243क से 243च छ तक, 244क, 257क, 258, 290, 300क, 312क, 323, 323, 350क, 350ख, 361ख, 361क, 368क 371क 371झ, 3725, 3785, 349क; जबकि अमेरिका के संविधान में केवल 7, कनाडा के संविधान में 147, आस्ट्रेलिया के संविधान में 128 और दक्षिण अफ्रीका के संविधान में 253 अनुच्छेद ही हैं। संविधान के इतने विशाल होने के अनेक कारण हैं-
(i) इसमें राज्य के प्रशासन से सम्बन्धित उपबन्ध हैं। अमेरिकी संविधान इससे भिन्न है। वहाँ राज्यों ने अपने-अपने संविधान अलग से बनाए। हमारे संविधान में कनाडा का अनुसरण किया गया। हमारे संविधान में संघ और सभी राज्यों के संविधान हैं- जम्मू-कश्मीर को छोड़कर। जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान बनाने की अनुमति दी गई। संविधान के उपबन्ध भी जम्मू-कश्मीर राज्य पर स्वतः लागू नहीं किए गए। वहाँ संविधान के उपबन्ध अनुच्छेद 370 के अधीन धीरे-धीरे लागू किए गए। इनमें से कुछ उपान्तरित रूप में लागू किए गए।
(ii) संविधान में प्रशासनिक मामलों के बारे में विस्तार से उपबन्ध हैं। संविधान निर्माताओं की इच्छा थी कि यह एक विस्तारवान दस्तावेज हो और उनके सामने भारत शासन अधिनियम 1935 का दृष्टान्त था । उसमें न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, निर्वाचन आयोग आदि के बारे में विस्तृत उपबन्ध रखे गए थे। डॉ. अम्बेडकर ने इन प्रशासनिक बातों को सम्मिलित किए जाने को इस आधार पर उचित ठहराया था कि दुर्भाव से काम करने वाले व्यक्ति संविधान को छद्म रूप से भ्रष्ट न कर सकें।
(iii) भारत शासन अधिनियम, 1935 के अधिकांश उपबन्ध यथावत् अंगीकार कर लिए गए। 1935 का अधिनियम एक बहुत लम्बा दस्तावेज था । उसे आदर्श मानकर उसका बहुत बड़ा भाग संविधान में समाविष्ट कर लिया गया। इससे संविधान की लम्बाई बढ़ना स्वाभाविक था
(2) संसदीय प्रभुता तथा न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय (Cooperation in Parliamentary Sovereignty and Judicial Supermacy)
ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में संसद को सर्वोच्च तथा प्रभुतासम्पन्न माना गया है। इसकी शक्तियों पर सिद्धान्त के रूप में कोई अवरोध नहीं है, क्योंकि वहाँ पर कोई लिखित संविधान नहीं है। किन्तु अमेरिकी प्रणाली उच्चतम न्यायालय सर्वोच्च है क्योंकि उसे न्यायिक पुनरीक्षण तथा संविधान के निर्वचन की शक्ति प्रदान की गई है। भारतीय संविधान की एक विशेषता यह है कि संविधान में ब्रिटेन की संसदीय प्रभुसत्ता तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की न्यायिक के मध्य का मार्ग अपनाया गया है। ब्रिटेन में व्यवस्थापिका सर्वोच्च है और ब्रिटिश पार्लियामेन्ट द्वारा निर्मित कानून को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके विपरीत अमरीका के संविधान में न्यायपालिका की सर्वोच्चता के सिद्धान्त को अपनाया गया है, जिसका तात्पर्य है कि न्यायालय संविधान का रक्षक और अभिभावक है। किन्तु भारतीय संसद तथा उच्चतम न्यायालय, दोनों अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोच्च हैं। जहाँ उच्चतम न्यायालय संसद द्वारा पारित किसी कानून को संविधान का उल्लंघन करने वाला बताकर संसद के अधिकार से बाहर, अवैध और अमान्य घोषित कर सकता है, वहीं संसद कतिपय प्रतिबन्धों के अधीन रहते हुए संविधान के अधिकांश भागों में संशोधन कर सकती है।
(3) संसदीय शासन प्रणाली (Parliamentary Administration System)
भारत का संविधान भारत के लिए संसदीय प्रणाली की शासन व्यवस्था का प्रावधान करता है। हालांकि भारत एक गणराज्य है और उसका अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है किन्तु यह मान्यता है कि अमरीकी राष्ट्रपति के विपरीत भारतीय राष्ट्रपति कार्यपालिका का केवल नाममात्र का या संवैधानिक अध्यक्ष होता है। वह यथार्थ राजनीतिक कार्यपालिका यानि मन्त्रिपरिषद की सहायता तथा उसके परामर्श से ही कार्य करता है। भारत के लोगों को 1919 और 1935 के भारतीय शासन अधिनियमों के अन्तर्गत संसदीय शासन का अनुभव था और फिर अध्यक्षीय शासन प्रणाली में इस बात का भी डर था कि कहीं कार्यपालिका अपनी निश्चित पदावधि के कारण निरंकुश न हो जाए। अतः संविधान सभा ने विचार-विमर्श करके यह निर्णय लिया कि भारत के लिए अमरीका के समान अध्यक्षीय शासन प्रणाली के स्थान पर ब्रिटिश मॉडल की संसदीय शासन प्रणाली अपनाना उपयुक्त रहेगा। संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका, विधायिका के प्रति उत्तरदायी रहती है तथा उसका विश्वास खो देने पर कायम नहीं रह सकती।
यह कहना समीचीन नहीं होगा कि भारत में ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को पूर्णरूपेण अपना लिया गया है। दोनों में अनेक मूलभूत भिन्नताएँ हैं। उदाहरण के लिए- ब्रिटेन का संविधान एकात्मक है, जबकि भारतीय संविधान अधिकांशतः संघीय है। वहाँ वंशानुगत राजा वाला राजतन्त्र है, जबकि भारत निर्वाचित राष्ट्रपति वाला गणराज्य है। ब्रिटेन के विपरीत, भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है। इसलिए भारत की संसद प्रभुत्वसम्पन्न नहीं है तथा इसके द्वारा पारित विधान का न्यायिक पुनरीक्षण हो सकता है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 74 (1) निर्दिष्ट करता है कि कार्य संचालन में राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे परामर्श देने के लिए प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में एक मन्त्रिपरिषद होगी तथा राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री के परामर्श से ही कार्य करेगा।
(4) नम्यता एवं अनम्यता का समन्वय (Cooperation Between Flexibility and Inflexibility)
संशोधन की कठिन या सरल प्रक्रिया के आधार पर संविधानों को नम्य अथवा अनम्य कहा जा सकता है। संघीय संविधानों की संशोधन प्रक्रिया कठिन होती है, इसलिए उन्हें सामान्यतया अनम्य श्रेणी में रखा जाता है। अनुच्छेद 368 के अनुसार कुछ विषयों में संशोधन के लिए संसद के समस्त सदस्यों के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के अतिरिक्त कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों का अनुसमर्थन भी आवश्यक है, जैसे- राष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि, संघ और इकाइयों के बीच शक्ति विभाजन, राज्यों के संसद में प्रतिनिधि, आदि । संशोधन की उपर्युक्त प्रणाली निश्चित रूप से कठोर है, लेकिन कुछ विषयों में संसद के साधारण बहुमत से ही संशोधन हो जाता है। उदाहरणस्वरूप- नवीन राज्यों के निर्माण, वर्तमान राज्यों के पुनर्गठन और भारतीय नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों में परिवर्तन आदि कार्य संसद साधारण बहुमत से कर सकती है।
इस प्रकार भारतीय संविधान नम्यता एवं अनम्यता का अद्भुत सम्मिश्रण है। भारतीय संविधान न तो ब्रिटिश संविधान की भांति नम्य है और न ही अमेरिकी संविधान की भांति अत्यधिक अनम्य। पिछले 50 वर्षों के दौरान संविधान में 100 संशोधन किए जा चुके हैं जो कि संविधान की पर्याप्त लोचशीलता को स्पष्ट करते हैं।
(5) विश्व के प्रमुख संविधानों का प्रभाव (Impact of World’s Major Constitutions)
संविधान निर्माताओं ने संविधान निर्माण से पूर्व विश्व के प्रमुख संविधानों का विश्लेषण किया और उनकी अच्छाइयों को भारतीय संविधान में समाविष्ट किया। भारतीय संविधान अधिकांशतः ब्रिटिश संविधान से प्रभावित है। प्रभावित होना स्वाभाविक भी है क्योंकि भारतीय जनता को लगभग दो सौ वर्षों तक ब्रिटिश प्रणाली के अनुभवों से गुजरना पड़ा था। ब्रिटिश संविधान से संसदीय शासन प्रणाली, संसदीय प्रक्रिया, संसदीय विशेषाधिकार, विधि निर्माण प्रणाली और एकल नागरिकता को संविधान में समाविष्ट किया गया है। भारतीय संविधान अमेरिकी संविधान से भी कम प्रभावित नहीं है क्योंकि अमेरिकी संविधान के कई मुख्य तत्वों को भारतीय संविधान में स्थान दिया गया है, जैसे- न्यायिक पुनर्विलोकन, मौलिक अधिकार, राष्ट्राध्यक्ष का निर्वाचन, संघात्मक शासन व्यवस्था, सर्वोच्च एवं उच्च – न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया । संविधान में नीति-निर्देशक तत्वों का विचार आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा सदस्यों का मनोनयन और राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली भी आयरलैण्ड के संविधान से प्रेरित है।
संघीय शासन प्रणाली कनाडा के संविधान से ली गई है। गणतान्त्रिक व्यवस्था की आधारशिला फ्रांसीसी संविधान के आधार स्तम्भ पर रखी गई है, जबकि आपातकालीन उपबन्ध जर्मन संविधान से उद्धृत हैं। मूल संविधान में तो केवल मौलिक अधिकारों की ही व्यवस्था की गई थी, लेकिन 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा मूल संविधान में एक नया भाग 4क जोड़ दिया गया है और उसमे नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। रूसी संविधान मूल कर्तव्यों का प्रेरणा स्रोत है। संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को दक्षिण अफ्रीका के संविधान से समाविष्ट किया गया है।
(6) ऐकिकता की ओर उन्मुख परिसंघ प्रणाली (Unitary-Oriented Federation System)
भारत के संविधान की सबसे महत्वूर्ण उपलब्धि यह है कि उसने परिसंघ प्रणाली को एकिक सरकार का बल प्रदान किया। सामान्यतः सरकार परिसंघ प्रणाली की है किन्तु संविधान परिसंघ को ऐकिक राज्य में परिवर्तित होने के लिए समर्थ बनाता है। एक ही संविधान में परिसंघ और एकिक प्रणालियों का यह संयोजन विश्व में अनूठा है।
भारतीय संविधान पर विश्व के संविधानों का प्रभाव (Impact of World’s Constitutions Over Indian Constitution)
लक्षण (Effects) | देश (Country) |
विधि का शासन, संसदीय शासन, संसदीय शासन, नागरिकता, विधि – निर्माण प्रक्रिया | ब्रिटेन |
संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन, राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ, अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की रक्षा, उच्चतम न्यायालय का निचले स्तर के न्यायालयों पर नियन्त्रण, केन्द्रीय शासन का राज्य के शासन में हस्तक्षेप, व्यवस्थापिका के दो सदन। | 1935 का भारत सरकार अधिनियम |
संविधान के सभी सामाजिक नीतियों के सन्दर्भ में निदेशक तत्वों का उपबन्ध। | आयरलैण्ड / स्विटजरलैण्ड |
प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, स्वतन्त्र न्यायपालिका, न्यायिक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदमुक्ति, राष्ट्रपति कार्यपालिका का प्रमुख और उप-प्रधानमन्त्री उच्च सदन का पदेन अधिकारी। | संयुक्त राज्य अमेरिका |
मौलिक कर्तव्य, प्रस्तावना में न्यायिक आदर्श। | भूतपूर्व संघ / रूस सोवियत |
राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति का निर्वाचन, उच्च सदन में सदस्यों का नामांकन। | आयरलैंड |
गणतन्त्र व्यवस्था, स्वतन्त्रता, समानता एवं बन्धुत्व का सिद्धान्त। | फ्रांस |
सशक्त केन्द्र के साथ संघीय व्यवस्था, शक्तियों का वितरण तथा अवशिष्ट शक्तियों का केन्द्र को हस्तान्तरण, राज्यों में राज्यपाल की केन्द्र द्वारा नियुक्ति। | कनाडा |
समवर्ती सूची, व्यापार एवं वाणिज्य सम्बन्धी प्रावधान। | आस्ट्रेलिया |
आपातकालीन उपबन्ध। | जर्मनी (वाइमर संविधान) और 1985 का भारत सरकार अधिनियम |
संविधान संशोधन प्रावधान, उच्च सदन के सदस्यों का निर्वाचन। | दक्षिण अफ्रीका |
विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया। | जापान |
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