बालिका विद्यालयीकरण से क्या तात्पर्य हैं? (What do you mean by Schooling of Girls?)
बालिका विद्यालयीकरण से तात्पर्य है- बालिकाओं की विद्यालय में पहुँच अथवा उपस्थिति दर्ज कराना। स्वतंत्रता के पश्चात् बालिकाओं की शिक्षा को उनकी वैयक्तिक उन्नति न मानकर समाज और राष्ट्र की उन्नति से जोड़कर देखा जा रहा है। बालिका विद्यालयीकरण में बालिकाओं का विद्यालयी कक्षा में नामांकन और उनकी उपस्थिति की निरन्तरता बनाये रखने से है। बालिका विद्यालयी इस प्रकार बालिकाओं की शिक्षा से सम्बद्ध है जिसके अन्तर्गत वे विद्यालयी शिक्षा निर्बाध और अनिवार्य रूप से प्राप्त कर सकें। बालिका विद्यालयीकरण में लिंगीय, जातीय, आर्थिक, सामाजिक इत्यादि किसी भी आधार पर भेदभाव न करके उनकी शिक्षा और विद्यालय में नियमित आने हेतु प्रयास किये जाते हैं।
बालिका विद्यालयीकरण के उद्देश्य (Aims)
बालिका विद्यायीकरण के उद्देश्य कालों में भिन्न-भिन्न रहे हैं, क्योंकि शिक्षा पर समाज का प्रभाव अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से पड़ता है। अतः विभिन्न कालों में बालिकाओं की शिक्षा के उद्देश्य निम्न प्रकार रहे हैं-
प्राचीन कालीन स्त्री शिक्षा में स्त्रियों की शिक्षा, उनकी आध्यात्मिक तथा भौतिक, दोनों ही प्रकार की उन्नति कराती हैं, परंतु मध्यकाल तक आते-आते स्त्रियों की पारिवारिक और सामाजिक अर्थात् घर तथा बाहर दोनों ही स्थलों पर कमजोर हो गयी। आधुनिक काल में लोकतंत्र की सुदृढ़ नींव रखने के लिए स्त्रियों की शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया जाने लगा जहाँ एक बार फिर वे पारिवारिक उत्तरदायित्वों के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व विकास और राष्ट्रीय विकास में शिक्षा के द्वारा अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने लगी हैं।
बालिका विद्यालयीकरण का महत्त्व तथा आवश्यकता (Importance and Need)
आज ज्ञान-विज्ञान ने चाहे जितनी भी उन्नति क्यों न कर ली हो, कितने ही बड़े-बड़े औपचारिक शिक्षण संस्थानों की स्थापना हो गयी हो, कितने ही सुयोग्य तथा प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गयी हो, परंतु माता को ही बच्चे की प्रथम शिक्षिका माना जाता है। स्त्री शिक्षा के विषय में महात्मा गाँधी का कथन अक्षरशः सत्य प्रतीत होता है कि जब एक स्त्री शिक्षित होती है तो उसका पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है, जबकि एक पुरुष शिक्षित होता है तो वह स्वयं ही शिक्षित होता है। इस प्रकार बालिका शिक्षा अर्थात् बालिका विद्यालयीकरण की आवश्यकता और महत्त्व का क्षेत्र अति व्यापक है जिसे निम्न रूप में देख सकते है-
1. पारिवारिक उन्नति हेतु- पारिवारिक उन्नति में स्त्रियों का योगदान पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है, क्योंकि पारिवारिक सुख-शान्ति की नींव उन्हीं के कर कमलों द्वारा रखी जाती है। बालिका विद्यालयीकरण की आवश्यकता और उनकी शिक्षा का महत्त्व इस दृष्टि से भी अत्यधिक है, क्योंकि पढ़ी-लिखी बालिका जब पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करेगी तो उसकी समझदारी से पारिवारिक सदस्यों में प्रेम तथा सहयोग इत्यादि सकारात्मक भावनाओं का विकास होगा, जिससे पारिवारिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा।
2. योग्य सन्तान हेतु- बालिका विद्यालयीकरण इस हेतु भी महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है कि गर्भ में नौ मास तक सन्तान को वही रखती है, उसके विचारों का अप्रत्यक्ष प्रभाव यहाँ पड़ता है। जन्म के पश्चात् भी प्रारम्भ के कुछ वर्षों में संतान सर्वाधिक माता के सान्निध्य में रहता है, इसीलिए परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला तथा माता को प्रथम शिक्षिका कहा जाता है। शिक्षित बालिकाओं द्वारा भविष्य में सुयोग्य तथा कर्तव्यनिष्ठ सन्तानों का जन्म दिया जायेगा।
3. आर्थिक स्वावलम्बन हेतु- दैनिक व्यवहार में भी यह देखने को मिलता है कि शिक्षित व्यक्तियों की अपेक्षा अशिक्षित व्यक्तियों की कार्यकुशलता कम होती है। अतः बालिकाओं में शिक्षा के प्रसार द्वारा उनके आर्थिक स्वावलम्बन की नींव डाली जाती है। बालिकाओं को लिंगीय असमानता का शिकार होना पड़ता है जिसे दूर करने हेतु उनके आर्थिक स्वावलम्बन पर बल दिया जा रहा है और यह कार्य शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है।
4. राष्ट्रीय एकता तथा उन्नति हेतु- राष्ट्रीय एकता और उन्नति में स्त्रियों की भूमिका सराहनीय रही है। बालिकाओं के विद्यालयीकरण के द्वारा उन्हें जनसंख्या, पर्यावरण, राष्ट्रीय एकता में बाधक तत्व अन्तर्राष्ट्रीय की आवश्यकता इत्यादि से परिचय प्राप्त कराया जाता है और वे अपने जीवन में इन शिक्षाओं का प्रयोग करके राष्ट्रीय एकता और उन्नति में सहयोग प्रदान करती हैं।
5. संस्कृति संरक्षण हेतु- बालिका विद्यालयीकरण के द्वारा उन्हें भारत की अमूल्य संस्कृति धरोहरों से परिचित कराया जाता है जिसके कारण वे अपनी पारिवारिक संस्कृति साथ-साथ भारतीय संस्कृति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित करके संरक्षण प्रदान करने का कार्य करती हैं। पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ संस्कृति के गलत तत्वों की अपेक्षा उसके सकारात्मक पक्षों को संरक्षित करती हैं। ऐसी ही सांस्कृतिक कथा-कहानियों और लोकोक्तियों को हम दादी, नानी के मुख से सुनकर बड़े हुए हैं।
6. मानवीय संसाधन की गुणवत्ता हेतु- किसी भी देश के विकास में प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता हो, परंतु मानवीय संसाधन न हों या अशिक्षित और अकुशल हों तो राष्ट्रीय विकास नहीं हो सकता है। शिक्षा के द्वारा महिलाओं, जो महत्त्वपूर्ण मानवीय संसाधन हैं, उनका समुचित उपयोग किया जाता है। इस प्रकार बालिका विद्यालयीकरण के द्वारा मानवीय संसाधन के रूप में उनकी गुणवत्ता और दक्षता का विकास किया जाता है।
7. संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा हेतु- संविधान ने स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय इत्यादि जो प्रावधान किये हैं वे स्त्रियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों को समान धारा में लाने के लिए किये हैं, परंतु शिक्षा के बिना इन प्रावधानों से लाभान्वित नहीं हुआ जा सकता है। अत: संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा करने के लिए बालिका विद्यालयीकरण को प्रोत्साहित किया जाना अत्यावश्यक है।
8. सभ्य समाज की स्थापना हेतु- बालिकाओं की शिक्षा की उपेक्षा करके कोई भी समाज सभ्य समाज नहीं बन सकता, क्योंकि कोई भी परिवर्तन परिवार और घर से प्रारम्भ होता है, जिसकी अग्रदूत स्त्रियाँ होती हैं। अतः बालिका विद्यालयीकरण सभ्य समाज की स्थापना के लिए आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है।
9. जागरूकता हेतु- समाज में अनेक प्रकार की रूढ़ियाँ, अन्धविश्वास तथा कुरीतियाँ व्याप्त हैं जिन्हें अशिक्षित स्त्रियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी वहन करती रहती हैं, परंतु समाज में जागरूकता तभी आयेगी जब बालिकाओं के विद्यालयीकरण को गति प्राप्त होगी। दहेज प्रथा, बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, पुत्र की प्रधानता आदि कुरीतियों के प्रति जागरूकता बालिकाओं के विद्यायलीकरण द्वारा लायी जा सकती है।
10. नेतृत्व हेतु – बालिका विद्यालयीकरण के द्वारा विद्यालय में बालिकाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास किया जाता है, जिससे वे पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, प्रबंधन आदि क्षेत्रों में नेतृत्व के लिए तैयार होती हैं। महिलायें श्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता सिद्ध हो रही हैं, अतः विद्यालयीकरण की आवश्यकता उनमें नेतृत्व के गुणों के विकास हेतु भी है।
11. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता हेतु- घर के सदस्यों तथा सन्तानों के खान-पान और आहार व्यवस्था की जिम्मेदारी का निर्वहन भारतीय समाज में महिलाओं द्वारा किया जाता है। ऐसी स्थिति में उन्हें सन्तुलित आहार, पोषक तत्वों, संक्रामक बीमारियों के लक्षण तथा बचाव आदि से परिचित होना चाहिए। बालिका शिक्षा के अन्तर्गत इन विषयों का समावेश होता है। अशिक्षा के कारण भारत में कितने बच्चे और स्त्रियाँ कुपोषण की शिकार हैं, बीमारियों से ग्रस्त हैं, रक्ताल्पता इत्यादि बीमारियों से ग्रस्त हैं। अशिक्षित स्त्रियाँ अपने तथा परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाती हैं और गरीबी में बीमारी की मार झेलने के कारण उनकी स्थिति और भी बुरी हो जाती है। अशिक्षा के कारण कितने बच्चे डायरिया से मर जाते हैं, संक्रामित भोजन खाकर बीमार पड़ जाते हैं, दूषित पानी पीकर मर तक जाते हैं। भारत में मातृ मृत्यु दर 677 प्रति लाख है तथा शिशु मृत्यु-दर भी अत्यधिक है । अत: स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने के लिए बालिका विद्यालयीकरण महत्त्वपूर्ण है।
12. सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति हेतु- सामाजिक कुरीतियों की शुरूआत किसी घर तथा परिवार से होती है। लड़के-लड़की में भेदभाव, लड़कियों को बोझ समझना, येना-टोटका, अन्धविश्वास इत्यादि समाज में फैली कुरीतियों की समाप्ति बालिका विद्यालयीकरण द्वारा उनकी शिक्षा के प्रबंध से ही सम्भव है।
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