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बाल्यावस्था में मानसिक विकास | Mental Development in Childhood in Hindi

बाल्यावस्था में मानसिक विकास
बाल्यावस्था में मानसिक विकास

बाल्यावस्था में मानसिक विकास (Mental Development in Childhood)

मानसिक अथवा बौद्धिक विकास से तात्पर्य बालक की उन सभी मानसिक योग्यताओं और क्षमताओं में वृद्धि और विकास से है जिसके परिणामस्वरूप वह अपने निरंतर बदलते हुए वातावरण में ठीक प्रकार से समायोजन करता है और बड़ी-बड़ी कठिन तथा उलझनपूर्ण समस्याओं को सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों को पूरी तरह समर्थ पाता है। वास्तव में संवेदना, प्रत्यक्षीकरण, कल्पना, स्मरण शक्ति, तर्क शक्ति, विचार शक्ति, निरीक्षण, परीक्षण और सामान्यीकरण शक्ति, बुद्धि और भाषा सम्बन्धी योग्यता, समस्या समाधान योग्यता और निर्णय लेने की शक्ति आदि सभी प्रकार की मानसिक और बौद्धिक शक्तियों, योग्यताएँ और क्षमताएँ हमारी मानसिक वृद्धि और विकास की प्रक्रिया द्वारा ही नियंत्रित होती हैं। ये सभी मानसिक शक्तियाँ अथवा योग्यताएँ एक दूसरे से बहुत सम्बन्धित हैं। इनमें से किसी का अपने आप में अकेले होना किसी दूसरे को प्रभावित किए हुए – विकसित होना संभव नहीं है। इसलिए, जब भी किसी स्तर पर किसी बालक के मानसिक विकास की बात करते हैं तो उस समय हमारा ताप्तर्य इन सभी योग्यताओं, क्षमताओं और शक्तियों के समन्वित विकास से होता है।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार – ” व्यक्ति के जन्म से परिपक्वता तक की मानसिक क्षमताओं एवं मानसिक कार्यों के उत्तरोत्तर प्रकटन एवं संगठन की प्रक्रिया को मानसिक विकास कहा जाता है।”

“Progressive appearance and organization of mental abilities and functions in course of the individuals passage from birth to maturity is called mental development.” -James drever

रेबर के अनुसार – ” मानसिक विकास का तात्पर्य संज्ञानात्मक विकास के उन सभी प्रणाली परिवर्तनों से है जो समय बीतने के साथ व्यक्ति में घटित होते हैं।”

मानसिक विकास के पक्ष (Aspects of mental development)

मनोवैज्ञानिक ने मानसिक विकास के अन्तर्गत निम्नलिखित योग्यताओं एवं मन की क्रियाओं को रखा है-

(i) संवेदन (Sensation)

(iii) निरीक्षण (Observation)

(ii) प्रत्यक्षीकरण (Perception)

(iv) ध्यान (Attention)

(v) स्मरण (Remembering) तथा विस्मरण ( Forgetting)

(vi) कल्पना (Imagination)

(vii) चिन्तन (Thinking)

(viii) तर्क (Reasoning)

(ix) निर्णय ( Judgement)

(x) सीखना (Learning)

(xi) बुद्धि (Intelligence)

(xii) भाषा (Language)

(xiii) रुचि (Interest) तथा अभिवृत्ति (Attitude)

उपर्युक्त क्रियाओं का क्रमिक विकास समयानुसार शैशव, बाल्य तथा किशोर अवस्थाओं में होता है।

मानसिक विकास की प्रमुख विशेषताएँ (Chief characteristics of mental development)

मानसिक विकास की प्रमुख विशेषताओं को निम्नवत् प्रस्तुत किया जा सकता है-

1. मानसिक विकास कई अवस्थाओं से होकर गुजरता है (Mental Development Passage Through Different Stages)- मानसिक विकास कई अवस्थाओं से होकर गुजरता है। मनोवैज्ञानिक ने इन अवस्थाओं को मुख्यतया तीन भागों में बाँटा है-

I. सहज प्रक्रिया अवस्था

II. ऐच्छिक क्रियाओं की अवस्था

III. उद्देश्यपूर्ण क्रियाओं की अवस्था

आयु की दृष्टि से मानसिक विकास को निम्नलिखित अवस्थाओं में विभाजित किया गया है-

I. शैशवावस्था

II. बाल्यावस्था

III. किशोरावस्था

2. मानसिक विकास सरल से जटिल के नियमानुसार होता है (Mental Development Takes place According to the Rule of ‘From Simple to Complex’)- मानसिक विकास की दूसरी प्रमुख विशेषता यह है कि मानसिक विकास की प्रक्रिया सरल से जटिल की ओर बढ़ती है। इसके अनुसार संवेदन पहले होता है, बाद में प्रत्यक्षण और तदुपरांत निरीक्षण ।

3. मानसिक विकास विभिन्नता के सिद्धांत पर आधारित होता है (Mental Development is Based on the Principle of Individual Differences) – प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक क्षमता और रुचियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। अतएव मानसिक विकास का स्वरूप और गति, दिशा भी भिन्न-भिन्न होती है। जैसा कि क्रो एवं क्रो ने कहा है- “मानसिक अभिवृद्धि तथा विकास सभी व्यक्तियों में एक समान प्रतिदर्श का अनुभव नहीं करता है।” उदाहरणार्थ, कोई बालक किसी प्रकरण को जल्दी समझ जाता है तो कोई अन्य बालक देर में ग्रहण करता है। कोई बालक देर तक याद रखता है तो कोई जल्दी भूल जाता है।

4. मानसिक विकास आनुवंशिकता तथा वातावरण द्वारा प्रभावित होता है (Mental Development is Influenced by Heredity and Environment)- मानसिक विकास आनुवंशिकता तथा वातावरण से सर्वाधिक प्रभावित होता है। बी. एन. झा के अनुसार, “आनुवंशिकता, व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है। जिस्बर्ट के अनुसार ” जो किसी एक वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है वह वातावरण होता है।” व्यक्ति के विकास की प्रक्रिया में दोनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, मानसिक विकास भी इसका अपवाद नहीं है।”

5. मानसिक विकास तथा अन्य विकास परस्पर सम्बन्धित होते हैं (Mental Development and Other Development are Inter-related)- व्यक्ति का मानसिक विकास तथा शारीरिक विकास परस्पर सम्बन्धित होते हैं । दूसरे शब्दों में मानसिक विकास का व्यक्ति के शारीरिक विकास से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। यह कहा भी गया है-“स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है । इसी प्रकार भावात्मक, संज्ञानात्मक तथा सामाजिक विकास भी मानसिक विकास से सम्बन्धित होते हैं।

बाल्यावस्था में मानसिक विकास (Mental development during childhood.)

बाल्यावस्था में मानसिक विकास की गति अति तीव्र होती है। बालक की मानसिक क्रियाओं में परिपक्वता दिखाई पड़ती है।

1. छठवाँ वर्ष- बालक की बुद्धि एवं मानसिक शक्तियों का पर्याप्त विकास हो जाता है । वह सार्थक प्रश्नों का सही उत्तर देने लगता है। उसमें स्मरण शक्ति एवं कल्पना शक्ति का पर्याप्त विकास हो जाता है तथा भाषा का कुशलतापूर्वक प्रयोग करने लगता है।

2. सातवाँ वर्ष- बालक छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन कर लेता है। वस्तुओं में समानताएँ और अंतर बताता है। संदेश ला एवं ले जा सकता है।

3. आठवाँ वर्ष- आठवें वर्ष में बालक छोटी-छोटी सामान्य समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित कर लेता है। कहानियाँ, कविताएँ याद कर लेता है।

4. नवाँ वर्ष- बालक समय, दिन, तारीख, वर्ष आदि बताने लगता है। उसे सिक्कों का ज्ञान हो जाता है। बालक को रुपए-पैसे गिनना, जोड़ना-घटाना, समय, दिन, तारीख महीना व वर्ष आदि का ज्ञान हो जाता है।

5. दसवाँ वर्ष- बालक द्रुत गति से बोलने से लगता है। 3-4 मिनट में 60-70 शब्द कह सकता है । दैनिक जीवन के नियमित कार्यों को स्वयं करने में सफल हो जाता है। वह सही ढंग से निरीक्षण और तार्किक चिन्तन करने लगता है।

6. ग्यारहवाँ वर्ष- लगभग 6 अंक आगे की ओर लगभग 4 अंक पीछे की ओर उल्टी गिनती तथा पुनरावृत्ति कर सकता है। साधारण गद्यांश पढ़कर उसका सारांश बता सकता है। छोटी-छोटी वस्तुओं तथा घटनाओं की तुलना कर सकता है। किसी घटना का कारण बता सकता है।

7. बारहवाँ वर्ष- बालक में तर्क और समस्या को हल करने की योग्यता का विकास हो जाता है। वह विभिन्न परिस्थितियों की वास्तविकता जानने का प्रयत्न करता है। कठिन शब्दों की व्याख्या करने तथा छोटी-छोटी बातों का कारण बताने की क्षमता का विकास हो जाता है। विवेक में वृद्धि हो जाती है जिससे वह दूसरे बालकों को सलाह भी देने लगता है। वह देखी हुई वस्तु या घटना के बारे में 75% तक बातें बता सकता है। बाल्यावस्था के दौरान बालक-बालिकाओं की ज्ञानेन्द्रियाँ परिपक्व हो जाती हैं।

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors influencing mental development)

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में क्रो व क्रो ने लिखा है-“विभिन्न कारक मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं। वंशागत नाड़ी मंडल की रचना संभावित विकास की गति और सीमा को निश्चित करती है। कुछ अन्य भौतिक दशाएँ या व्यक्तिगत और वातावरण सम्बन्धी, कारक मानसिक प्रगति को तीव्र या मंद कर सकते हैं।” (“Various factors affect mental development. The Constitution of the inherited nervous system determines the rate and extent of possible development. Certain other physical conditions or individual and environmental factors may accelerate or retard mental progress.”-Crow and Crow)

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्नवत् हैं-

1. वंशानुक्रम (Heredity) – मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों के द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि बालक को वंशानुक्रम से मानसिक गुण और योग्यताएँ प्राप्त होती हैं। इस सम्बन्ध में गेट्स तथा अन्य का कहना है-“किसी व्यक्ति का उससे अधिक विकास नहीं हो सकता है, जितना कि उसका वंशानुक्रम संभव बनाता है।”

2. परिवार का वातावरण (Family Environment) – बालक के मानसिक विकास को परिवार का वातावरण बहुत प्रभावित करता है। बालक परिवार के वातावरण के अनुसार ही भाषा, बोलने का ढंग आदि सीखता है। जिन परिवारों में बालक के पढ़ने-लिखने पर ध्यान दिया जाता है, वातावरण शान्त और रचनात्मक होता है, बालकों के मानसिक अभ्यास के लिए तरह-तरह के गेम तथा उपकरण उपलब्ध होते हैं, वहाँ मानसिक स्वास्थ्य का विकास उत्तम ढंग से होता है। जिन परिवारों के सदस्य आपस में सौहार्द्र से नहीं रहते, एक-दूसरे के लिए अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहाँ बालक का मानसिक विकास वांछित दिशा में नहीं होता ।

3. परिवार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति (Socio-economic Status of the Family)- उच्च सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति से आने वाले बालक का मानसिक विकास निम्न सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति वाले बालक से अधिक अच्छा होता है। इसका कारण यह है कि प्रथम प्रकार की स्थिति से आने वाले बालक को सभी साधन सुविधाएँ एवं अवसर प्राप्त होते हैं।

4. स्वास्थ्य (Health)- शारीरिक स्वास्थ्य का मानसिक स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। प्राचीन काल से ही स्वीकार किया जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है। शारीरिक दृष्टि से सबल तथा स्वस्थ बालक प्रायः निर्बल और अस्वस्थ बालक की अपेक्षा अपनी मानसिक क्षमताओं को अधिक अच्छे ढंग से विकसित कर लेता है।

5. माता-पिता की शिक्षा (Education of Parents) – अशिक्षित माता-पिता की अपेक्षा शिक्षित माता-पिता का बालक के मानसिक विकास पर कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है। स्ट्रैंग के अनुसार- “माता-पिता की शिक्षा, बच्चों की मानसिक योग्यता से निश्चित रूप से सम्बन्धित है।”

6. बालक की शिक्षा (Education of the Child) – बालकों के मानसिक विकास में विद्यालय की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। एक अच्छा विद्यालय बालकों को मानसिक विकास के पूर्ण अवसर प्रदान करता है, जिससे बालकों की मानसिक शक्तियों का अधिकतम विकास हो सके। वह बालक की रुचि और आवश्यकता के अनुरूप विविध पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन करता है, जिससे कि बालक उन क्रियाओं में भाग ले सकें और उनका उत्तम मानसिक विकास सम्भव हो सके।

7. अध्यापक (Teacher) – बालक के मानसिक विकास पर अध्यापक का बहुत प्रभाव पड़ता है। जैसा कि कहा गया है कि शिक्षा द्विमुखी प्रक्रिया है, इसमें अध्यापक और विद्यार्थी के मध्य शिक्षा की क्रिया चलती है। अतः अध्यापक को बालक के प्रति स्नेह और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए तथा उपयुक्त शिक्षण विधि तथा सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।

8. समाज (Society) – बालक किसी-न-किसी समाज का सदस्य होता है। उसके मानसिक विकास को उसका समाज काफी प्रभावित करता है। यदि समाज अपने भावी नागरिकों के लिए अच्छे विद्यालय, पुस्तकालय, वाचनालय तथा मनोरंजन के साधनों की व्यवस्था करता है तो बालकों का मानसिक विकास स्वाभाविक ढंग से निरंतर होता रहता है। इन सुविधाओं के अभाव में बालकों के मानसिक विकास की गति, दिशा तथा सीमा प्रायः संकुचित हो जाती है।

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