माउंटबेटन योजना पर प्रकाश डालिए।
लार्ड माउण्टबेटन योजना और भारत-विभाजन – लार्ड वेवेल के स्थान पर लाई माउण्टबेटन की नियुक्ति की गयी और घोषणा की गई कि अंग्रेज जून, 1948 तक अवश्य भारत से चले जायेंगे। घोषणा में यह भी बताया गया कि ब्रिटिश सरकार केवल उसी संविधान को स्वीकार करने के लिए तैयार होगी जो मन्त्रिमण्डल – मिशन योजना के अनुसार निर्मित संविधान सभा द्वारा बनाया गया हो। और, “यदि यह प्रतीत होगा कि निश्चित समय से पहले भारत के सभी प्रमुख दलों द्वारा स्वीकृत संविधान का निर्माण न हो सकेगा तो ब्रिटिश सरकार को यह निश्चय करना पड़ेगा कि निश्चित सागर पर सत्ता किसे हस्तांतरित की जाये- ब्रिटिश भारत की किसी केन्द्रीय सरकार को, प्रान्तीय सरकार को अथवा किसी शक्ति को जो भारतीयों के हित में सबसे अधिक उपयुक्त हो।” इस घोषणा से आशा की जाती थी कि सभी दल अपने अतभेद दूर कर लेंगे। परन्तु ऐसा न हुआ और घोषणा के के पश्च तू मार्च-अप्रैल, 1947 में पश्चिमी पंजाब और सीमाप्रान्त में साम्प्रदायिक दंगे हुए। मुसलमानों ने हिन्दुओं पर पाशविक अत्याचार किये लाहौर, रावलपिंडी और मुल्तान में मारकाट की जो घटनाएँ हुई वे अत्यन्त दुःखद थीं।
भारत के अन्तिम वाइसराय लार्ड माउण्टबेटन ने 23 मार्च, 1947 को भारत आकर यहाँ की राजनीतिक स्थिति का अध्ययन किया। परामर्श के फलस्वरूप वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मुस्लिम लीग संयुक्त भारत के संविधान के निर्माण के लिए आयोजित संविधान सभा में किसी भी प्रकार से सहयोग देने के लिए तैयार नहीं है। अतः भारत के विभाजन को छोड़कर अन्य कोई विकल्प है। वे 18 मई को ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल से आवश्यक परामर्श लेने लन्दन गये। वहाँ से लौटकर 3 जून को भारतवासियों के नाम रेडियो पर संदेश देते हुए एक नयी योजना की घोषणा की जिसे ‘माउण्टबेटन योजना’ कहा जाता है।
योजना की मुख्य बातें
माउण्टबेटन योजना की मुख्य बातें निम्नलिखित थी-
(1) योजना में कहा गया कि वर्तमान परिस्थिति में भारत की समस्या का एकमात्र हल भारत का विभाजन है। अतः भारत को दो भागों- भारत और पाकिस्तान में बाँटा जाएगा।
(2) बंगाल, पंजाब व असम के विधान मण्डलों के अधिवेशन दो भागों में होंगे, एक भाग में उन जिलों के सदस्य होंगे जिनमें मुसलमान बहुमत में हैं और दूसरे में उनका जिनमें मुसलमान बहुमत में नहीं है। दोनों को यह निर्णय करना होगा कि वे भारत में अथवा पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं।
(3) सिंध के विधान-मण्डल को भी अपने अधिवेशन में अपने निर्णय करने की छूट दी जायेगी।
(4) उत्तरी-पश्चिमी सीमाप्रान्त के लीग जनमत के द्वारा यह निर्णय करेंगे कि वे पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं या भारत में ही बने रहना चाहते हैं।
(5) असम के सिलहट जिले के मुस्लिम बहुमत वाले क्षेत्रों को भी जनमत संग्रह के द्वारा भारत या पाकिस्तान में रहने का अधिकार दिया जायगा।
(6) बंगाल, पंजाब व असम के विभाजन के लिए एक सीमा आयोग की नियुक्ति होगी जो उपर्युक्त प्रान्तों की सीमा निर्धारित करेगी।
(7) नये दोनों राज्यों का दर्जा औपनिवेशिक दर्जा होगा, परन्तु दोनों ही राज्यों को ब्रिटिश राष्ट्र-मण्डल से पृथक् होने की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी।
(8) देशी रियासतों से भी 15 अगस्त, 1947 से ब्रिटिश सर्वोच्चता हटा ली जायगी और उनको स्वतन्त्रता होगी कि वे भारत अथवा पाकिस्तान किसी भी राज्य में सम्मिलित हों अथवा अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दें।
योजना की स्वीकृति
उपर्युक्त योजना दोषपूर्ण थी। काँग्रेस और मस्लिम लीग दोनों ही योजना से प्रसन्न नहीं थे फिर भी उन्होंने योजना को एक ‘आवश्यक बुराई’ के रूप में स्वीकार कर लिया। पंडित गोविन्दवल्लभ पन्त ने कहा कि “कॉंग्रेस ने एकता के लिए बहुत कार्य किया है और इसके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर किया है। परन्तु आज कॉंग्रेस को या तो इस योजना को स्वीकार करना है या फिर आत्महत्या करनी है।”
योजना के अनुसार बंगाल और पंजाब के विधान- मण्डलों ने प्रान्तों के विभाजन के पक्ष में अपना निर्णय दिया, जिसके फलस्वरूप इन प्रान्तों के दो-दो भाग हो गये। पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में गये। पश्चिमी बंगाल और पूर्वी पंजाब भारत में सम्मिलित हो गये। उत्तरी-पश्चिमी सीमाप्रान्त, सिन्ध, विलोचिस्तान और असम के सिलहट जिलों ने भी पाकिस्तान में सम्मिलित होने का निर्णय किया।
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