सम्प्रेषण के सिद्धान्त
सम्प्रेषण के सिद्धान्त (Principai of Communication)- सम्प्रेषण कौशल को सुधारने के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों का अनुसरण करना चाहिए-
1. विभिन्न और उपयुक्त चैनलों का सिद्धान्त (Principle of using Multiple and Appropriate Channels)- सम्प्रेषण की स्पष्टता में विभिन्न चैनलों के प्रयोग से सुधार लाया जा सकता है। अर्थात् प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता (Sender and Receiver) के बीच सम्प्रेषण के कुशल और प्रभावशाली प्रवाह के लिए शाब्दिक या अशाब्दिक या दोनों साधन एवं माध्यम। एकल माध्यम या चैनल के प्रयोग की तुलना में बहुमाध्यम के प्रयोग को महत्त्व दिया जाना चाहिए।
विभिन्न चैनलों का प्रयोग करते हुए संदेश की पुनरावृत्ति या उसे दोहराना पुनर्बलन (Reinforcement) का कार्य करता है विचलन (Distance) की अशंका को भी कम करता है।
2. भाषा पर आधिपत्य या प्रभुत्व का सिद्धान्त (Principle of Mastery on Language)- प्रम्प्रेषण की प्रभावशीलता भाषा के अधिकार पर निर्भर करती है प्रेषक को आसान तथा सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि प्राप्तकर्त्ता इसे समझ सके। कठिन भाषा प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता के बीच अवरोधन (Barrier) उत्पन्न करती है। कक्षा में कई बार विद्वान अध्यापक की भी भाषा समस्या के कारण कमजोर शिक्षक (Poor Teacher) सिद्ध होते हैं । यदि अध्यापक अंग्रेजी बोलता है और विद्यार्थी उसे समझने में असफल रहते हैं तो ऐसी स्थिति में कोई सम्प्रेषण नहीं होगा अतः भाषा पर अधिकार होना दोनों सिरों पर आवश्यक है।
3. अभिप्रेरणा (Motivation) – सम्प्रेषण प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है सम्प्रेषणकर्त्ता एवं सम्प्रेषण प्राप्तकर्त्ता दोनों ही सम्प्रेषण में अधिक से अधिक रुचि रखने वाले होने वाले चाहिए अर्थात् जितनी अधिक अभिप्रेरणा होगा उतना ही बेहतर सम्प्रेषण होगा।
4. संप्रत्ययों की स्पष्टता (Clearity of Concep) – प्रभावशाली सम्प्रेषण के लिए उन समप्रत्ययों की स्पष्टता आवश्यक होती है जो कि संदेश में निहित या शामिल होते है। कक्षा-कक्ष परिस्थिति में अध्यापक प्रेषक (Sender) है तथा विद्यार्थी प्राप्तकर्त्ता (Receiver) है विषयवस्तु के संप्रत्यय अध्यापक को बिल्कुल स्पष्ट होने चाहिए ताकि उन्हें विद्यार्थियों तक प्रभावशीलता के साथ सम्प्रेषित किया जा सके या पहुँचाया जा सके। जब प्रेषक स्पष्टता में असफल हो जाता है, सम्प्रेषण प्रक्रिया भी अपने उद्देश्य में असफल हो जाती है।
5. केन्द्रीयकरण का सिद्धान्त (Principle of Focus) – सम्प्रेषण प्रक्रिया के दौरान प्रेषक को मुख्य बिन्दुओं को फोकस करना चाहिए। यह फोकस (Focus) प्राप्तकर्त्ता को समझने या बोध (Understanding) में सहायता देता है।
6. आमने-सामने की अन्तः क्रिया (Fact to Face Introduction)- यह निकटता के लिए उत्तरदायी है। कक्षा-कक्ष परिस्थिति में अध्यापक और विद्यार्थी के बौच दूरी कम से कम हो प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता के बीच न्यूनतम फासला इन दोनों के बीच सम्प्रेषण को अधिकतम करता है।
7. उपयुक्त हावभावों का सिद्धान्त (Principle of Appropriate Gestures)–सम्प्रेषण प्रक्रिया में उचित हावभावों का महत्त्वपूर्ण स्थान है उपयुक्त हावभाव सम्प्रेषण भाषा को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। शाब्दिक भाषा के साथ-साथ अशाब्दिक भाषा का प्रयोग सम्प्रेषण को कई गुना प्रभावशाली बना देता है।
8. उपयुक्त पृष्ठपोषण का सिद्धान्त (Principle of Approriate Feed-back)- प्राप्तकर्त्ता की ओर से प्रेषक को दिया गया उपयुक्त पृष्ठपोषण सम्प्रेषण प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाता है। यह पृष्ठपोषण सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है। कक्षा-कक्ष परिस्थिति में, यदि अध्यापक को निरन्तर सही पृष्ठपोषण मिलता रहता है तो वह अपने शिक्षण कार्य को अधिक से अधिक प्रभावी और उद्देश्य केन्द्रित बनाने में सफल रहता है । पृष्ठपोषण उचित समय पर एवं विशिष्ट व्यवहार के लिए होना चाहिए।
9. सहायक वातावरण का सिद्धान्त (Principle of Conduction Environment)– सहायक वातावरण उपयुक्त या सही सम्प्रेषण का मूल तत्व है। इसे मध्यवर्ती चर (Intervening variable) से रहित होना चाहिए, जैसे-शोर से परेशानी, अस्पष्टता (Ambigeity), अशुद्ध उच्चारण (Poor pronunciation) आदि। मौखिक सम्प्रेषण (Oral Communication) प्राप्तकर्त्ता को सही और स्पष्ट रूप से सुनाई देना चाहिए इस प्रकार, एक सहायक वातावरण सम्प्रेषण की प्रभावशीलता में वृद्धि करता।
10. योग्यता का सिद्धान्त (Principle of Competency)- प्रेषक एवं प्राप्तकर्त्ता के पास सम्प्रेषण कौशल (Communication Skill) का होना आवश्यक है। ये कौशल प्रेषक को संदेश भेजने तथा प्राप्तकर्त्ता को संदेश बोध एवं संप्रत्ययों की स्पष्टता के साथ प्राप्त करने में सहायता देते हैं। यदि अध्यापक योग्य एवं सक्षम नहीं है, तो उसका संदेश सही तरीके से नहीं समझा जायेगा तथा प्राप्तकर्त्ता बोधगम्यता (Understanding) के साथ संदेश प्राप्त नहीं कर पायेगा। यदि विद्यार्थी संदेश प्राप्त करने में सक्षम या योग्य नहीं तो समस्त सम्प्रेषण प्रक्रिया अप्रभावी सिद्ध होती है।
11. सम्प्रेषण ब्यूह रचना का सिद्धान्त (Principle of Communication Strategy) – अध्यापक कक्षा-कक्ष परिस्थिति में विद्यार्थी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, उनमें रुचि एवं अभिप्रेरणा स्तर पैदा करते हुए और उसे बनाये रखते हुए सम्प्रेषण व्यूह रचना को बदलता है। अतः सम्प्रेषण प्रक्रिया सम्प्रेषण व्यूह रचना पर भी निर्भर करती है।
12. सक्रिय श्रवण का सिद्धान्त (Principle of Active Listening ) – सुनना (Hearing) और श्रवण (Listening) में अन्तर है सुनना तो केवल ध्वनियों-तरेंगों को पकड़ता है जबकि श्रवण (Listening) से अभिप्राय है- इन ध्वनि तरंगों जिन्हें हम सुनते हैं से कोई अर्थ निकालना अर्थात श्रवण करने के लिए ध्यान देना, व्याख्या तथा ध्वनि-उद्दीपनों (Sound Stimuli) को याद करना आवश्यक होता है। सक्रिय श्रवण कौशल से निम्नलिखित व्यवहार जुड़े होते हैं-
(i) आँखों का सम्पर्क बनायें (Make Eye Contact)- हम अपने कानों से सुन सकते हैं, लेकिन, दूसरे लोग हमारी आँखों को देखकर यह जानने या अनुमान लगाने का प्रयास करते हैं कि क्या वास्तव में ही सुन रहे हैं या श्रवण कर रहे हैं।
(ii) सकारात्मक सिर हिलाना और उपर्युक्त मुखाभिव्यक्ति का प्रदर्शन (Exhibit affirmative head nods and appropriate facial expression)- ये सभी अशाब्दिक संकेत होते हैं ताकि श्रवण-क्रिया प्रभावशाली हो तथा जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी रुचि का प्रदर्शन कर सके।
(iii) हमें ध्यान भंग करने वाले कार्यों या हावभावों को श्रवण- प्रक्रियायों के दौरान नजर अंदाज (Avoid) रखना चाहिए जैसे अपनी घड़ी को देखना, कागजों को उलट-पुलट करना, पेन या पेन्सिल से खेलना आदि।
(iv) बोलने वाले (Speaker) प्रका पूरा विचार सुनने के बाद ही अनुक्रिया करनी चाहिए। बोलने वाले की बात में हस्तक्षेप या टोकना नहीं चाहिए।
(v) अधिक न बोलें। (Don’t Overtalk)
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