भारतीय संविधान में राजभाषा हिन्दी के संबंध में क्या उल्लेख किया गया है?
भारत के संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिया गया परन्तु अंग्रेजी भी साथ-साथ चलती रहनी चाहिए ऐसा भी विधान किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजी की प्रमुखता बनी रही तथा दक्षिणी प्रदेशों व अहिन्दी प्रदेशों ने हिन्दी का विरोध करना आरम्भ कर दिया और अंग्रेजी को महत्व दिया। आरम्भ में हिन्दी का विरोध नहीं था क्योंकि राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता का प्रश्न प्रमुख था। अंग्रेजों और अंग्रेजी का विरोध सभी ने किया और हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में सभी ने स्वीकार किया था जिस प्रकार अंग्रेजों को देश से निकाल दिया गया उस प्रकार अंग्रेजी का निष्कासन नहीं हुआ। परिणाम यह हुआ कि हिन्दी राष्ट्र भाषा के रूप में सबल नहीं हो सकी, अंग्रेजी ने अपना महत्व बनाये रखा और अहिन्दी प्रदेशों ने अंग्रेजी को अपनाया, जबकि राष्ट्र भाषा अपने ही देश की भाषा होनी चाहिए। विदेशी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में प्रयुकः करना दासता का प्रतीक है। इस सम्बन्ध में अनेक तर्क दिये जाते हैं।
(1) हिन्दी में वे सभी गुण हैं जो एक राष्ट्र भाषा में होने चाहिए। हिन्दी सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली भाषा है। सभी प्रदेशों के निवासी इसे सरलता से बोधगम्य कर लेते हैं। एक विशाल क्षेत्र की मातृभाषा है। हिन्दी का राष्ट्र भाषा होना अधिक व्यावहारिक तथा गौरव की बात है।
(2) हिन्दी भाषा की आदि जननी संस्कृत को कहा जाता है। भारत की अन्य भाषायें भी संस्कृत से निकली है और अधिक समीप है। दक्षिणवासी संस्कृत को अधिक प्रयुक्त करते हैं। हिन्दी का प्रयोग अधिक सरस तथा सुगम हैं।
(3) हिन्दी भाषा की विशेषता यह है कि ध्वनि और लिपि में साम्य होने के कारण उसे बोधगम्य करना तथा सीखना सरल है। हिन्दी के अक्षरों का उच्चारण एक ही होता है। हिन्दी वैज्ञानिक विधि से सीखी जा सकती है।
(4) राष्ट्र-भाषा का महत्त्व राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता को बनाये रखने में होता है। आज भाषा के आधार पर देश के विभाजन सम्बन्धी समस्यायें आती हैं। अंग्रेजी से राष्ट्रीय एकता नहीं बनाये रख सकते, क्योंकि भावात्मक पक्ष की अभिव्यक्ति अपनी भाषा के माध्यम से होती है राष्ट्रीयता का भाव राष्ट्र भाषा के माध्यम से सफलीभूत होता है।
जवाहर लाल नेहरू के अनुसार- ‘हिन्दी का ज्ञान राष्ट्रीयता को प्रोत्साहन देता है और हिन्दी अन्य भाषाओं की अपेक्षा सबसे अधिक राष्ट्र-भाषा बनने की योग्यता रखती है।’
(5) अपने देश की भाषा को राष्ट्र भाषा का स्थान न देकर विदेशी भाषा को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रयुक्त करना, हमारी दासता का प्रतीक है। मानसिक रूप से अंग्रेजों तथा अंग्रेजी की दासता बनी हुई है।
राजर्षि टण्डन के अनुसार- ‘हिन्दी को राष्ट्र-भाषा इसलिये नहीं मानता कि उसे अधिकांश व्यक्ति बोलते और समझते हैं। इस कारण भी नहीं कि भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, इसलिये भी नहीं कि वह प्रगतिशील और वैज्ञानिक भाषा है। अपितु मैं हिन्दी को राष्ट्र भाषा इसलिये मानता हूँ कि इसमें हमारी दासता की प्रतीक अंग्रेजी को निष्कासन करने की क्षमता है।
(6) भारतीय धार्मिक चारों धामों बद्रीनाथ, पुरी, रामेश्वरम् तथा द्वारिका में हिन्दी का बाहुल्य है। यह धार्मिक स्थल भी राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन देते हैं। हरिद्वार, मथुरा, अयोध्या, काशी, चित्रकूट आदि स्थलों पर हिन्दी का ही प्रयोग होता है।
(7) हिन्दी भाषा भावात्मक अभिव्यक्ति का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। हिन्दी भारत के हृदय की वाणी रही है। हिन्दी भाषी क्षेत्र देश का हृदय माना जाता है। हिन्दी साहित्य की रचनायें भारत की संस्कृति का प्रतीक है, किसी विशिष्ट क्षेत्र तक सीमित नहीं है।
(8) आज तकनीकी माध्यमों-रेडियो तथा दूरदर्शन पर अधिकांश कार्य हिन्दी में ही प्रस्तुत किये जाते हैं। सभी भारतवासी उन्हें सुनते हैं तथा देखते हैं और समझना सभी के लिए सरल एवं सुगम होता है । इसलिये राष्ट्र-भाषा में व्यावहारिक कठिनाई भी नहीं है।
(9) हिन्दी भाषा में उन सभी गुणों का समावेश है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की श्रेणी में स्थान ले सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेशमन्त्री के समय में संयुक्त राष्ट्र की भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाया था।
(10) भारत के महानगरों में प्राय हिन्दी का ही प्रयोग अधिक किया जाता है। आज फिल्मों (चलचित्रों) का युग है। अधिकांश हिन्दी फिल्मों का निर्माण हिन्दी में ही हो रहा है । भारत के महान कवियों की रचनायें हिन्दी में उपलब्ध है। हिन्दी-प्रेमी तथा हिन्दी केन्द्रीय संस्थान, हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में केवल भारत में नहीं अपितु अन्य देशों में प्रयत्नशील है हिन्दी प्रगति एवं विरोध के मध्य की अवस्था में है।
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