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अध्यापक का प्रबंधक सुगमीकरणकर्त्ता और परामर्शदाता के रूप में

अध्यापक का प्रबंधक सुगमीकरणकर्त्ता और परामर्शदाता के रूप में
अध्यापक का प्रबंधक सुगमीकरणकर्त्ता और परामर्शदाता के रूप में

अध्यापक का प्रबंधक सुगमीकरणकर्त्ता और परामर्शदाता के रूप में वर्णन करें।

प्रबन्धक कार्य दूसरे व्यक्ति से कार्य कराने से है। प्रबन्धक दूसरों के प्रयासों में समन्वय लाता है। इस प्रकार की परिस्थितियों का निर्माण करता है जिनके अन्तर्गत कार्यकर्त्ता उत्साह तथा लगन से कार्य करते हैं। प्रबन्धक किसी मानवीय समूह का निर्देशन करता है। समूह के प्रत्येक सदस्य के गुणों को उभारता है जिससे निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति सुगमता से हो जाती है।

अध्यापक कक्षा के कार्य का प्रबन्धक है। वह कक्षा में इस प्रकार का वातावरण तथा स्थितियों का निर्माण करता है जिससे छात्रों की सभी मानसिक तथा भौतिक क्षमताओं का अधिकतम विकास हो सके।

अध्यापक कक्षा में छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं पर ध्यान देता है। प्रगतिशील शिक्षण-अधिकतम विधियों का प्रयोग करता है।

परम्परागत शिक्षण-अधिगम दृष्टिकोण के अनुसार अध्यापक का मुख्य कार्य छात्रों को सूचना प्रदान करना था। वह प्रायः पुस्तकीय ज्ञान पर मौखिक माध्यम का ही प्रयोग करता था। रटने पर बल दिया जाता था तथा इसी तत्व पर मूल्यांकन आधारित था । वह कक्ष में.. भाषण कला का प्रदर्शन करता था। छात्रों में सूचनाएँ जिसे ज्ञान की संज्ञा दी जाती थी, हँस-हँस कर भरता था । ‘करके सीखने’ पर बल नहीं था। छात्रों को स्वयं सोचकर सीखने के बहुत कम अवसर प्राप्त थे। वे प्रश्नोत्तर भी नहीं कर सकते थे। वास्तव में अनुदेशन प्रक्रिया में छात्र प्रायः निष्क्रिय तथा निष्वेष्ट रहते। उनके सृजनात्मक तथा रचनात्मक व्यक्तियों के प्रदर्शन तथा विकास के बहुत ही कम अवसर प्राप्त होते। अनुदेशन अध्यापक निर्देशित तथा नियन्त्रित था। छात्रों की पहल शक्ति पर कुठाराघात किया जाता।

अनेक शैक्षिक सुधारकों तथा मनोवैज्ञानिक ने परम्परागत अनुदेशन प्रक्रिया के विरुद्ध प्रचार किया। छात्रों की आन्तरिक शक्तियों तथा विकास पर बल दिया। अनुदेशन में प्रबन्धक की अवधारणा ने जोर पकड़ा।

अध्यापक परामर्शदाता के रूप में (Teacher as a Counsellor)

अध्यापकों को छात्रों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं का अच्छा ज्ञान होता है क्योंकि वे छात्रों के अधिक निकट सम्पर्क में आते हैं तथा छात्रों का अध्ययन विभिन्न परिस्थितियों में करते हैं अतः वे निर्देशन तथा परस्पर कार्य में व्यापक सहयोग दे सकते हैं।

अध्यापकों के इस दिशा में प्रमुख उत्तरदायित्व निम्नलिखित हो सकते हैं

1. छात्रों के साथ व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करना।

2. छात्रों के विकास के लिए उचित परिस्थितियाँ प्रदान करना।

3. कुसमायोजित छात्रों का पता लगाना।

4. छात्रों के अभिभावकों से समय-समय पर छात्रों की प्रगति के बारे में परामर्श करना।

5. सामाजिक संस्थाओं में सम्बन्ध स्थापित करना।

6. सीखने में कठिनाई अनुभव करने वाले छात्रों के सम्बन्ध में परामर्शदाता की सहायता लेना।

7. छात्रों को पुस्तकालय का उचित उपयोग सिखाना।

8. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में स्वयं भाग लेना तथा छात्रों को प्रोत्साहित करना ।

9. अपने विषयों से सम्बन्धित जीविकाओं एवं शैक्षिक अवसरों की छात्रों को सूचनाएँ देना।

10. समय पर छात्रों से साक्षात्कार करके उनकी रुचियों को जानना।

11. निर्देशन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रधानाचार्य तथा परामर्शदाता को सहयोग देना।

12. अपने विषय में नये ढंग के टैस्ट बनाना तथा छात्रों का परीक्षण लेना।

13. छात्रों को अध्ययन सम्बन्धी अच्छी आदतें निर्माण करने में सहायता देना।

14. छात्रों को संक्षिप्त भाषण देना सिखाना।

निर्देशन तथा परामर्श कार्य में अध्यापक तभी पर्याप्त सहायता दे सकते हैं जब वे छात्रों को भली प्रकार समझने का प्रयास करें। वे बच्चे को केवल निस्सहाय प्राणी के रूप में न समझें। वे प्रत्येक छात्र के व्यक्तित्व को समझें। छात्रों के बारे में अपने निर्णय ध्यानपूर्वक उचित तथ्यों के आधार पर दें । तथ्यों को विभिन्न विश्वसनीय सूत्रों से इकट्ठा किया जाए। वे इस बात का भी ध्यान रखें कि उनके व्यक्तित्व का भी छात्रों पर विशेष प्रभाव पड़ता है।

अध्यापक समुदाय के नेता के रूप में

अध्यापक को समाज तथा समुदाय के प्रकाश स्तम्भ की संज्ञा दी गई है। उसे समाज का पथ-प्रदर्शक माना गया है। शिक्षा आयोग 1964 66 ने शिक्षा की समुदाय तथा समाज में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए लिखा, “यदि बिना किसी हिंसात्मक क्रान्ति के बड़े पैमाने पर यह परिवर्तन करना है तो केवल एक ही साधन है जिसका प्रयोग किया जा सकता है और वह है शिक्षा । अन्य तत्व इसमें सहायता कर सकते हैं और वास्तव में, कभी-कभी तो उनका प्रभाव ऊपरी तौर पर अधिक भी जान पड़ता है । परन्तु शिक्षा ही राष्ट्रीय प्रणाली का एक ऐसा साधन है जो सभी जनसमुदाय तक पहुँच सकता है।” यह कार्य शिक्षा अध्यापकों के माध्यम से ही कर सकती है-

शिक्षक समुदाय में नेतृत्व का कार्य प्रकार से करता है—

1. स्कूल के भीतर कार्य, 2. स्कूल के बाहर कार्य

स्कूल के भीतर अध्यापक विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों द्वारा छात्रों में नेतृत्व के गुणों का विकास करता है तथा प्रशिक्षण प्रदान करता है। स्कूल इस प्रकार समुदाय के भावी नेता तैयार करता है । परम्परागत दृष्टिकोण से माना जाता है कि अध्यापक समुदाय के अन्य वर्गों की अपेक्षा अधिक प्रभावी होता है, विशेषकर ऐसे समुदाय में जहाँ अधिकांश जनसंख्या निरक्षर रही हो, अंधविश्वासों में जकड़ी हुई हो। अध्यापक समुदाय को सामाजिक कुरीतियों से अवगत कराते हैं। उनमें वैज्ञानिक दृष्टि तथा सोच का विकास करते हैं। समुदाय में प्रौढ़ शिक्षा कार्य को बढ़ावा देते हैं।

भारत की अधिकांश जनसंख्या सैंकड़ों वर्षों तक अनपढ़ रही है। ऐसा भी समय था जब कि गाँवों में कुछ लोग ही पढ़े-लिखे थे तथा व्यवसाय भी बहुत कम थे। पत्र पढ़ने-पढ़ाने का कार्य भी अध्यापक ही किया करते हैं। अतः अध्यापक का समाज में ऊँचा स्थान था। इस कारण अध्यापक समुदाय को नेता के रूप में देखा जाता था।

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