विद्यालय में शिक्षक के संदर्भ में व्यावसायिक आचरण (मूल्य)
शिक्षक को मनुष्यों का निर्माता, राष्ट्र-निर्माता तथा शिक्षा पद्धति की आधारशिला माना जाता है। प्राचीन काल से शिक्षक ब्रह्मा, विष्णु महेश सदृश पूज्य रहा है, परन्तु इस भौतिकतावादी युग में उसकी प्रतिष्ठा में कमी आयी है। फिर वर्तमान समय में शिक्षक को अपने अतीत से प्रेरणा लेते हुए कार्य करना चाहिए। वर्तमान शैक्षिक प्रक्रिया में शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम तीन ध्रुव हैं इनमें शिक्षक का स्थान सर्वोपरि है, जो अन्य दोनों को प्रभावित करता है। रॉस के अनुसार, “शिक्षक अपने प्रयासों से विद्यार्थी को जो अपनी प्रकृति के नियमों के अनुसार विकसित होता है, उस उच्चता पर पहुँचने में सहायता देता है, जिस पर वह अपने आप नहीं पहुँच सकता है।” शिक्षक ही विद्यालय तथा शिक्षा-पद्धति की वास्तविक गत्यात्मक शक्ति है। यह सत्य कि पाठ्यक्रम, पाठ्य सहगामी क्रियाएँ, पाठ्य-पुस्तकें आदि सभी शैक्षिक कार्यक्रम में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं, परन्तु जब तक उनमें अच्छे शिक्षकों द्वारा जीवन-शक्ति प्रदान नहीं की जाती तब तक वे सब निरर्थक हैं। शिक्षक को यह शक्ति उसके व्यावसायिक आचार नीति के पालन एवं आचरण से प्राप्त होती है। अन्य व्यवसायों की भाँति शिक्षण व्यवसाय की अपनी व्यावसायिक आचार नीति तथा विशिष्ट आचरण होता है, जिसकी अपेक्षा प्रत्येक शिक्षकों से की जाती है। शिक्षण व्यवसाय समाज द्वारा विशिष्ट व्यक्तियों को दिया गया विशिष्ट कार्य है। शिक्षक का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विद्यार्थियों के जीवन के प्रत्येक पक्ष को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। अतः इस व्यावसाय में व्यवसायगत मूल्य तथा उनके अनुरूप आचरण एक शिक्षक के लिए परम आवश्यक हो जाता है।
शिक्षकों की व्यावसायिक आचार नीति/संहिता के बारे में प्रसिद्ध विद्वान लॉरी ने लिखा है, “यदि अध्यापक के पास सच्चा आदर्श प्राप्त नहीं है, उसे शीघ्र ही दुकानदार बन जाना चाहिए, वहाँ उसे अपनी योग्यता के अनुसार निस्सन्देह आदर्श प्राप्त होगा।
माध्यमिक शिक्षा आयोग के शब्दों में, “ वे अपने कार्य को जीविकोपार्जन का अरूचिकर साधन नहीं समझेंगे, वरन् उसे समाज-सेवा करने का एक महत्त्वपूर्ण मार्ग समझेंगे, साथ ही आत्मसिद्धि एवं आत्माभिव्यक्ति का उपाय समझेंगे।”
शिक्षक को अपने व्यवसाय/वृत्ति के महत्त्व को समझना चाहिए। इस व्यवसाय के महत्त्व के कारण ही शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है। वह अपने व्यवसाय के प्रति अन्याय तथा विश्वासघात करता है यदि वह एक बार इस वृत्ति को अपना कर दूसरे कार्यों में व्यस्त रहता है। अपने व्यवसाय / वृत्ति के प्रति निष्ठावान हुए बिना वह अपने विद्यार्थियों को वास्तविक एवं उचित मार्ग दर्शन कदापि नहीं कर सकता। अपने विद्यार्थियों का मार्ग-दर्शन करने एवं उन्हें विकासोन्मुख बनाने के लिए शिक्षक को आवश्यक है कि वह अपने व्यवसाय या वृत्ति से सम्बन्धित मानदण्डों, मूल्यों तथा आचरण को अपने में विकसित कर उसका पालन करे।
शिक्षण व्यवसाय/वृत्ति से सम्बन्धित मूल्य / आचार (Values / Ethics Related to Teaching Profession)
शिक्षण व्यवसाय / वृत्ति को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षक से निम्नलिखित मूल्यों की अपेक्षा की जाती है-
1. मानवीय मूल्य (Human value) — शिक्षण कार्य व्यक्ति निर्माण का कार्य है। शिक्षक सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया की गत्यात्मक शक्ति है। विद्यार्थियों के उच्च मानवीय मूल्यों के विकास के लिए आवश्यक है कि शिक्षक में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, नैतिकता, आदर्शवादिता, परोपकार, सहानुभूति आदि मानवीय मूल्य विद्यमान हों।
2. मानवाधिकार (Human rights) — शिक्षक को शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को बाल्यावस्था में ही मानवाधिकारों से अवगत करा देना चाहिए। ऐसी अपेक्षा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शिक्षक से की गयी है। ऐसे में शिक्षक को स्वयं मानवाधिकारों को पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
3. कर्त्तव्यपरायणता (Dutiful) — शिक्षण का कार्य एक विशिष्ट कार्य है, जिसे बाह्य नियंत्रण द्वारा नियन्त्रित नहीं किया जा सकता। यह कार्य उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य है, जिसे शिक्षक की कर्त्तव्य परायणता से और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
4. निजता का सम्मान (Respect of privacy) — शिक्षक को अपने शिक्षण कार्य के दौरान विद्यार्थियों के साथ अच्छे पारस्परिक सम्बन्ध विकसित करने लिए आवश्यक है कि वह विद्यार्थियों की निजता का सम्मान करें तथा विद्यार्थियों को ऐसा विश्वास भी कराने में सक्षम हो।
5. समयनिष्ठता (Punctualit) — अपने छात्र-छात्राओं में समय निष्ठता का विकास करने के लिए शिक्षक को अपने कार्यों में इसे समाहित कर प्रदर्शित करना होगा। जो उसके विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
6. समानता (Equality) — शिक्षक को अपने शैक्षिक जीवन में सभी विद्यार्थियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। उसका व्यवहार सभी के प्रति पक्षपात रहित होना चाहिए।
7. सम्मान एवं आत्मसम्मान (Respect and self-respect) — शिक्षक को आत्मसम्मान से परिपूर्ण होना चाहिए ताकि वह विद्यार्थियों में आत्म सम्मान का भाव विकसित कर सके। साथ ही वह दूसरे के प्रति भी सम्मान का भाव रखें।
8. परानुभूति एवं शिक्षण कुशलता (Empathy and skilled teaching) — शिक्षक में अपने कक्षा के विद्यार्थियों के संवेगों को ठीक से समझने और नियन्त्रित करने के लिए परानुभूति होना आवश्यक हैं। शिक्षक को शिक्षण कौशलों में कुशल होने पर अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने में सहायता मिलती है।
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