शिक्षण एक वृति है। (Teaching is a Profession)
शिक्षण एक वृति है।- शिक्षण का अहम् आधार होता है शिक्षक इससे पहले कि हम शिक्षण को एक वृत्ति के तौर पर कैसे देखा जाए इस पर चर्चा करें पहले यह जानते हैं कि शिक्षक क्या है? कहा जाता है कि भगवान हर जगह उपस्थित नहीं रह सकते इसलिए उन्होंने माँ बनाई उसी तरह ज्ञान की देवी हर जगह उपस्थित नहीं रह सकती इसलिए उन्होंने शिक्षक को बनाया, एक आदर्श शिक्षक ही विद्यार्थी के भविष्य को सँवार सकता है । एक आदर्श शिक्षक को हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।
नेल्सन-वासिङ्ग का कथन है कि “किसी भी शिक्षा योजना में मैं शिक्षक को निर्विवाद केन्द्रीय स्थान देता हूँ और शैक्षणिक प्रक्रिया के प्रमुख संचालक होने के नाते अवश्य ही उसका स्थान प्रमुख है।” विद्यार्थी ही देश के भावी नागरिक हैं इसलिए ब्रबेकर के इस कथन में कि “सभ्यता की उन्नति शिक्षक की योग्यता पर निर्भर है” में अवश्य सार है। अब अगर हम शिक्षण को एक वृत्ति के तौर पर देखें तो पाते हैं कि यह सबसे आदर्श तथा उच्च स्तरीय वृत्ति है क्योंकि वह देश का आने वाल कल निर्धारित करती है । शिक्षा – क्षेत्र में मस्तिष्क पर तथा व्यक्तित्व का व्यक्तित्व पर प्रभाव डालने वाला शिक्षक के समान कोई दूसरा नहीं है। शिक्षण एक विशिष्ट या अनूठी वृत्ति है, जिसकी कुछ निजी विशेषताएँ हैं। शिक्षक तथा छात्र के सम्बन्ध सदैव प्रगाढ़ रहते हैं।
एक आदर्श तथा ज्ञानी शिक्षक को अपनी वृत्ति में प्रवेश से पूर्व दीर्घकालिक अधिगम की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। उसे विशिष्ट ज्ञान, प्रशिक्षण तथा कार्यानुभव अर्जित करना होता है, क्योंकि इसके पश्चात् ही वह अपने ज्ञान को हस्तान्तरण कर सकता है तथा नये ज्ञान तथा विज्ञान का सृजन व विस्तार कर सकता है।
शिक्षण वृत्ति का एक भावनात्मक पहलू यह भी है कि इसमें शिक्षक अपने विद्यार्थियों से सीधा सम्पर्क बनाते हैं तथा उनकी समस्याओं को अनुभव करके उनका समाधान भी सुझा हैं।
शिक्षण को वृत्ति के तौर पर पूर्णता प्राप्त नहीं हुई है। शिक्षण अभी भी अर्धवृत्ति अथवा प्रभासी वृत्ति ही है जो वृत्तिकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है। जो कि निकट भविष्य में विशुद्ध वृत्ति का दर्जा प्राप्त कर लेगा।
हम वृत्यात्मकता का आंकलन भी कर सकते हैं जिसके कुछ आधार निम्न प्रकार है-
1. उपस्थिति / समय बद्धता।
2. तैयारी / शिक्षण संरचना।
3. वृत्तिक छवि/सम्प्रेषण कौशल।
4. वृत्तिक प्रतिबद्धता / उत्साह।
शिक्षकों का वृत्तिक विकास उनकी एक व्यवसाय के रूप में अधिष्ठापित होने की आवश्यकता है और परिवर्तनशील तकनीकी समाज की माँग भी।
अगर हम सभी वृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाते हैं कि शिक्षण सबसे बेहतर या कहें कि सबसे सर्वोच्च वृत्ति है क्योंकि यह हमें हमारा आज बनाने में मदद करता है जिससे हम अपने कल को बेहतर बना सकें और खुद को एक जिम्मेदार, आज्ञाकारी तथा जागरूक व्यक्ति के रूप में स्थापित कर सकें। यह वृत्ति इसलिये भी सर्वोच्च कही जा सकती है क्योंकि इसमें हम एक जीवन को सार्थक बना सके यह एक ऐसा वृत्ति हैं जिसमें सिखने तथा सिखाने की प्रक्रिया साथ-साथ चलती है और एक शिक्षक, सिर्फ अपने विद्यार्थियों को ही निपुण नहीं बनाता है बल्कि वह स्वयं को भी तराशता है।
शिक्षण वृत्ति को और भी ज्यादा विकासशील बनाने हेतु जो सबसे पहली जरूरत है वह एक शिक्षक और एक बेहतर शिक्षक बनने के लिए कुछ गुण होने अनिवार्य है जैसे-
1. शिक्षक को सदा शान्त, मुखाकृति, सन्तुलित भाव तथा आत्मविश्वास रखना चाहिए।
2. निभाने की क्षमता- शिक्षक में इतनी क्षमता होनी चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारियों को हर परिस्थिति में निभा सके।
3. उत्साह – शिक्षक में अपने कार्य के लिए असीम उत्साह और रूचि होनी चाहिए।
4. शीघ्र निर्णय क्षमता– शिक्षक में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए तथा उसे अपने निर्णय पर अटल भी रहना चाहिए।
5. न्याय-प्रियता- शिक्षक को हमेशा निष्पक्ष न्याय करना चाहिए ताकि उसके विद्यार्थियों का विश्वास सदा उस पर बना रहे । इस प्रकार नेतृत्व करना चाहिए
6. नेतृत्व करने की योग्यता- शिक्षक को खुद को जिससे वह एक पथ-प्रदर्शक के रूप में सामने आ सके।
7. सहकारिता (सहायता, स्वामिभक्ति)
8. प्राबल्य (साहस, दृढ़ता)
9. शिष्टता (उत्तम रूचि, सादगी)
10. विद्वत्ता (बौद्धिक, जिज्ञासा)
सरल शब्दों में व्यवसाय का अर्थ होता है कोई भी कार्य जिसके द्वारा हम अपना जीविकोपार्जन कर सकें व्यवसाय कहलाता है । परन्तु यह व्यवसाय का संकुचित अर्थ है । विस्तृत रूप से व्यवसाय का अर्थ है वह कार्य जिसको करने के लिए हमें कुछ विशिष्ट कौशलों की आवश्यकता होती है और जिनके द्वारा हम जीविकोपार्जन भी कर सकते हैं, व्यवसाय कहलाता है।
Marriam webster dictionary के अनुसार, Any job that requires speciallized knowledge and long and intensive academic preparation for earning the livelihood, is called profession.”
अर्थात् कोई भी वह कार्य जिसको करने के लिए हमें कुछ विशिष्ट कौशलों को ज्ञान की तथा तैयारी की आवश्यकता होती है और वह हमारी जीविकोपार्जन का साधन बनते हैं, व्यवसाय कहलाता है।
इन्हीं विशिष्ट कौशलों को हम विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों में सीखते हैं। अलग-अलग व्यवसाय के लिए अलग-अलग प्रकार के विशिष्ट कौशलों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचि एवं आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण ग्रहण कर व्यवसाय चुन सकता है।
शिक्षा का क्षेत्र भी वर्तमान समय में विशिष्ट व्यवसाय बन चुका है। अर्थात् वर्तमान समय में शिक्षा को व्यापार एवं व्यवसाय माना जाता है। इसका दूसरा कारण यह कि कुशल शिक्षण करने के लिए विशिष्ट कौशलों का विकास एवं विषयिक ज्ञान होना आवश्यक होता है। यह लक्षण व्यवसाय के लक्षणों से समानता रखते हैं। जिस कारण शिक्षण कार्य को व्यवसाय कहना उचित लगता है।
व्यवसाय के लक्षण- व्यवसाय अपने आप में एक पूर्ण इकाई होता है। इसके लक्षण हम निम्न बिन्दुओं के द्वारा समझ सकते हैं-
1. व्यवसाय के लिए कुछ निश्चित कौशलों की आवश्यकता होती है, जो अपने आप में विशिष्ट होते हैं।
2. यह कौशल जन्मजात नहीं होते अपितु, निश्चित प्रशिक्षण संस्थानों में सीखे जा सकते हैं।
3. व्यवसाय समाज के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लाभकारी होता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह समाज में रहने के लिए हमें जीविकोपार्जन के प्राथमिक साधन उपलब्ध कराता है।
4. व्यवसाय का चुनाव एवं विकास समाज की प्रकृति एवं उसकी आवश्यकताओं पर निर्भर करता है अर्थात् जो व्यवसाय समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम होता है उसी का विकास होता है।
5. व्यवसाय समाज के सदस्यों को समुचित विकास के साधन उपलब्ध करने में सहायक होता है।
6. व्यवसाय समाज की प्रगति के साथ नये आविष्कारों एवं तकनीकों में उन्नति के साथ-साथ वृद्धि करता है। अर्थात् व्यवसाय समाज के समकक्ष होता है।
7. एक व्यक्ति प्रत्येक व्यवसाय के लिए कौशल विकसित नहीं कर सकता है। यह उसकी रूचि एवं प्रकृति पर निर्भर होता है।
8. प्रत्येक व्यवसाय के अपने नियम एवं नैतिक सिद्धान्त होते हैं। यही नियम एवं नैतिक सिद्धान्त व्यवसाय की दिशा तथा उसकी प्रगति का मापदण्ड निर्धारित करते हैं।
9. नैतिक नियम व सिद्धान्त व्यवसाय में एकरूपता लाते हैं जिससे सभी व्यवसाय समाज में सुचारू रूप से चल सकते हैं।
10. व्यवसाय व्यक्ति की सफलता, व्यक्ति की रूचि एवं उसके व्यक्तित्व का प्रदर्शन करते हैं। जैसे एक अच्छे शिक्षक का व्यक्तित्व एवं उसकी रूचि शिक्षा के माध्यम से प्रदर्शित हो जाती है।
11. व्यवसाय सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ अपनी प्रकृति तथा लक्षण को बदलता एवं निर्धारित करता है ।
शिक्षण एक व्यवसाय के रूप में
उपर्युक्त लक्षणों के अनुशासन के उपरान्त हम कह सकते हैं कि शिक्षण एक व्यवसाय है क्योंकि एक अच्छे शिक्षण कार्य के लिए भली प्रकार से प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसी कारण इसे व्यवसाय कहना उचित होगा।
प्राचीन समय में शिक्षण का कार्य समाज सेवा के रूप में किया जाता था। जहाँ शिक्षक अपने जीविकोपार्जन की आवश्यकता नहीं समझते थे बल्कि उसे अपने कर्त्तव्य समझते थे और अपनी समस्त क्षमताओं के अनुरूप शिक्षण का कार्य करते थे।
शिक्षण को व्यवसाय कहना इसलिए भी उचित है क्योंकि कार्य की सफलता इस बात पर निर्भर रहती है कि विद्यार्थियों का किस प्रकार विकास हो रहा है और विद्यार्थियों के समुचित विकास के लिए शिक्षक को सभी प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान होना आवश्यक है। इस प्रकार का ज्ञान शिक्षक को प्रशिक्षण के अनुरूप ही बनता है।
जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के व्यवसाय समाज के कल्याण में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहभागिता निभाते हैं। उसी प्रकार शिक्षण का कार्य भी प्रत्यक्ष रूप से समाज कल्याण के लिए उत्तरदायी होती है इसी कारण शिक्षण रूपी व्यवसाय बहुत ही उत्तरदायित्व पूर्ण होता है क्योंकि इससे समाज प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा होता है।
शिक्षक समाज के सदस्यों तथा उसकी युवा पीढ़ी के चरित्र तथा व्यवसाय निर्माण में सहायक होता है फलतः राष्ट्र के कल्याण तथा विकास में सहायता करता है।
शिक्षक समाज में सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायता करता है। क्योंकि वह उन सामाजिक परिवर्तनों को लाने में सहायता करता है, जो आवश्यक होते हैं और समाज की प्रगति में सहायक होते हैं।
सभी व्यवसायों की भाँति शिक्षण भी एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें अपनी गुणवत्ता बनाये रखने के लिए एक शिक्षक को अपनी शिक्षा जारी रखनी पड़ती है। अपने कौशलों का विकास बदलाव समाज के अनुरूप करना पड़ता है। इस प्रक्रिया को निरन्तरं व्यावसायिक विकास कहते हैं।
एक शिक्षक का रूप समाज की सभ्यता एवं संस्कृति के अनुरूप बदलता रहता है । समाज की सभ्यता तथा संस्कृति के अनुसार ही शिक्षण की गुणवत्ता एवं उसके स्वरूप में परिवर्तन आवश्यक भी है क्योंकि शिक्षक ही वह माध्यम होता है जिसके द्वारा समाज के सदस्य परिवर्तनों को स्वीकार करते हैं। अतः शिक्षण रूपी व्यवसाय का चयन करने से पहले अपनी क्षमताओं, रूचि एवं व्यक्तित्व और कौशलों पर ध्यान देना अति आवश्यक है क्योंकि शिक्षक ही समाज के निर्माण में सहायक होता है और विद्यार्थी के भविष्य रूपी चित्र में रंग भरने के क्षमता व उत्तरदायित्व उसी के पास होता है। इन्हीं सभी कारणों के कारण शिक्षण को एक आदर्श व्यवसाय माना गया है और शिक्षक को समाज में उच्च स्थान दिया जाता है और उसे समुचित सम्मान अन्य व्यवसायों की अपेक्षा मिलता है।
शिक्षण क्षेत्र में व्यावसायिकता – सिम्सन और स्टूड ने शिक्षण में व्यावसायिकता के निम्नलिखित रूप बताये हैं
1. प्रतिदिन उपस्थिति के साथ शिक्षक को सामयिकता से कक्षा में उपस्थित होना चाहिए।
2. एक अच्छे शिक्षक का शिक्षण कार्य व्यवस्था वैज्ञानिक प्रारूप से होनी चाहिए।
3. उसके कौशल तथा व्यक्तित्व शिक्षण व्यवसाय पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं। अर्थात् वह शिक्षक के अनुरूप होना चाहिए।
4. उसका शिक्षण कार्य के लिए उत्साह तथा कटिबद्धता होनी चाहिए।
शिक्षण क्षेत्र में व्यवसायिकता लाने के लिए कार्य के लिए कुछ नियम और सिद्धान्त बनाये गये हैं। यह सिद्धान्त का निर्माण तथा इनका विकास National council of teaching education द्वारा किया जाता है। यह संस्था भारत में शिक्षकों के लिए सिद्धान्तों का गठन करने के उत्तरदायी होती है।
व्यवसाय की प्रकृति (Nature of Profession) — किसी भी व्यवसाय की प्रकृति उस व्यवसाय के कार्य की प्रकृति, व्यवसाय चलाने वाले के अनुभव उसकी संतुष्टि से निर्धारित होती है। सभी व्यवसायों की प्रकृति अपने-अपने स्वरूप लिये होती है।
शिक्षा व्यवसाय के रूप में इसकी प्रकृति आदर्श रूप लिए हुए हो। यह काफी चुनौती पूर्ण कार्य है। क्योंकि शिक्षकों द्वारा समाज का निर्माण तथा विकास प्रत्यक्ष रूप से होता है। शिक्षण कार्य की प्रकृति सामाजिक परिवर्तन के बदलती रहती है। क्योंकि निर्माण कार्य समयानुसार, परिस्थितिनुसार बदलता रहता है इसी कारण उसकी प्रकृति भी बदलती रहती है।
A.P.J. Abdulkalam के अनुसार, “The teacher is the most link in the growth and development of a child.”
है अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षण एक ऐसा व्यवसाय है जिसकी प्रकृति परिवर्तनशील परन्तु फिर भी यह आदर्श रूप में है। वह सिद्धान्तों और आदर्शों का मिश्रण लिए हुए व्यवसाय को भली-भाँति विकसित करता है।
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