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भारत में पब्लिक स्कूल के उद्भव, विशेषता एवं गुण-दोष

भारत में पब्लिक स्कूल के उद्भव
भारत में पब्लिक स्कूल के उद्भव

भारत में पब्लिक स्कूल के उद्भव

पब्लिक स्कूल का शाब्दिक अर्थ होता है- जनता का स्कूल। परन्तु यह सब कहने मात्र के लिए है। शाब्दिक अर्थ उन स्कूलों की प्रकृति तथा क्रिया-कलापों से भिन्न है क्योंकि इन स्कूलों में सिर्फ उच्च व धनी वर्ग के बच्चे ही शिक्षा प्राप्त करते हैं। इन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले बालकों की शिक्षा का खर्च बहुत अधिक होता है । सामान्य परिवारों के साधारण व्यक्ति इन स्कूलों के खर्च को उठा नहीं सकते हैं जिसके कारण वे अपने बच्चों को इन स्कूलों में नहीं भेज पाते हैं।

भारत में पब्लिक स्कूलों का प्रारम्भ (Starting Stage of Public School in India)

भारत में पब्लिक स्कूल सर्वप्रथम राज परिवार के बच्चों की शिक्षा के लिए खोले गए थे। सबसे पहला स्कूल सन् 1870 में राजकोट में खोला गया था । उन्नीसवीं सदी के अंत तक रायपुर, काल्विन, लखनऊ, ग्वालियर आदि में अनेक स्कूलों को खोला गया लेकिन इन स्कूलों में केवल राज परिवारों या अन्य उच्च धनी वर्गों के बच्चों को शिक्षा दी जाती थी । भारत में ब्रिटिश काल में एक अन्य प्रकार के स्कूल खोले गए। इन्हें भी पब्लिक स्कूल कहा जाता था लेकिन इसमें केवल यूरोपीय नागरिकों के लड़के-लड़कियों को ही शिक्षा प्रदान की जाती थी।

इंग्लैण्ड के विनचेस्टर स्कूल को विश्व का सर्वप्रथम पब्लिक स्कूल माना जाता है । यह स्कूल अपने आप में स्वायत्त व आवासीय सुविधायुक्त स्कूल था । इसकी स्थापना का उद्देश्य उच्च गुणवत्तापरक शिक्षा देना था। इंग्लैण्ड के पब्लिक स्कूलों की ख्याति को देखते हुए इन विद्यालयों से अध्ययन करने हेतु अन्य देशों से बच्चे आने लगे । भारत में पब्लिक स्कूलों का प्रारम्भ वस्तुतः इंग्लैण्ड के पब्लिक स्कूलों का अनुसरण करना ही था । भारत में पब्लिक स्कूलों की परम्परा का प्रारम्भ इंग्लैण्ड के विनचेस्टर, इंटर तथा हैरी पब्लिक स्कूलों का अनुसरण करने का प्रयास था । इंग्लैण्ड में 500 वर्ष पूर्व सामन्तों, धनाढ्यों तथा हैरी पब्लिक स्कूलों का अनुसरण करने का प्रयास था। इंग्लैण्ड में 500 वर्ष पूर्व सामन्तों, धनाढ्यों तथा कुलीन वर्ग के बालकों की शिक्षा हेतु पब्लिक स्कूल खोले गए थे। इन विद्यालयों को राजसी ठाट-बाट के वातावरण में शिक्षा प्रदान की जाती थी।

एक अध्ययन के अनुसार सन् 1857 से सन् 1929 तक दूतावासों में उच्च पदों पर कार्य करते थे तथा शेष 40 प्रतिशत में से अधिकांश विद्यार्थी रेलवे तथा बैंक आदि में उच्च पदों पर कार्यरत थे। ब्रिटिश प्रभाव के कारण भारत में पब्लिक स्कूलों से तात्पर्य गैर सरकारी, आवासीय एवं उच्च गुणवत्तापरक शिक्षा देने वाले स्कूल से लगाया जाता है। यह एक सही धारणा है कि पब्लिक स्कूलों में ऐसे शिक्षा केन्द्र हैं । धनी वर्ग के लड़के-लड़कियाँ पाँच सितारा संस्कृति में शिक्षा प्राप्त करते हैं। वे कारों, बसों आदि वाहनों से स्कूल जाते हैं जहाँ स्कूल की फीस आम आदमी की पहुँच से दूर होती है। जो बच्चे अंग्रेजी बोलते हैं और अंग्रेजी साहित्य तथा अंग्रेजों द्वारा लिखित इतिहास पढ़ते हैं वे साफ-सुथरे और महँगे कपड़े पहनते हैं। इनका रहन-सहन, खान-पान अत्यधिक महँगा होता है। यहाँ के बच्चे डिनर’ पार्टियों, पाइप सिगारों की बात करते हैं। अंग्रेजी फिल्में देखना पसन्द करते हैं, कॉमिक्स पढ़ते हैं। ये पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित रहे हैं तथा इन्हें अपनी संस्कृति व सभ्यता का नाममात्र का ज्ञान भी नहीं होता है।

इन स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र साधारण स्कूलों में अध्ययन करने वाले छात्रों को हेय दृष्टि से देखते हैं। आज भारत में अनेक पब्लिक स्कूल हैं जो गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

पब्लिक स्कूल की विशेषताएँ (Characteristics of Public School)

पब्लिक स्कूलों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. साम्प्रदायिकता से रहित (Free from Secularism) — इन स्कूलों में जाति, धर्म आदि में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया जाता है। ये स्कूल जातिवाद, ऊँच-नीच एवं साम्प्रदायिकता की भावना से मुक्त रहते हैं। इस कारण इनमें सभी धर्मों व जातियों के बच्चों को प्रवेश की सुविधा रहती है।

2. गुरुकुल सभ्यता (Gurukul Culture) – पब्लिक स्कूलों के प्राचीन शिक्षा के समान गुरुकुल की भाँति छात्रों को छात्रावासों में रखकर उन्हें सहभागिता व सह-अस्तित्व के साथ भावी जीवन हेतु तैयार करती है

3. श्रेष्ठ अध्यापक (Excellent Teachers) — इन विद्यालयों में श्रेष्ठ अध्यापक

होते हैं क्योंकि इन स्कूलों में अध्यापकों का वेतन प्रायः अन्य विद्यालयों के वेतन से अधिक होता है। यहाँ अध्यापकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ विद्यालय द्वारा प्रदान की जाती है जिसके कारण अच्छे अध्यापक इन स्कूलों में अध्यापन कार्य करने हेतु इच्छुक रहते हैं तथा वे एकाग्रचित होकर तथा अध्यापन में पूर्ण रूप से रुचि लेते हुए अपना शिक्षण कार्य करते हैं।

4. विकासोन्मुख लक्षण (Developmental Aims) — इन स्कूलों में छात्रों के चहुमुखी विकास पर बल दिया जाता है। यहाँ छात्रों के बौद्धिक तथा मानसिक विकास के साथ शारीरिक विकास तथा स्वच्छता पर भी जोर दिया जाता है। यहाँ समय-समय पर छात्रों के नाखून एवं बालों तथा कपड़ों की सफाई की जाँच की जाती हैं। सुयोग्य चिकित्सकों द्वारा छात्रों के आँख, नाक, कान, दाँत आदि का परीक्षण कराया जाता है और जरूरत पड़ने पर उन्हें वांछित चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है।

5. आर्थिक दृष्टि से मजबूत (Economically Strong) – पब्लिक स्कूल मुख्य रूप से समाज के विशिष्ट व आभिजात्य वर्गों की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं, जिसके कारण इन स्कूलों पर किसी भी प्रकार का आर्थिक दबाव नहीं रहता है। फलस्वरूप इन स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की शिक्षा स्तर अन्य स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की अपेक्षा उच्च होती है।

6. अनुशासित वातावरण (Disciplined Environment) – पब्लिक स्कूलों में छात्रों के अनुशासन पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है। पब्लिक स्कूलों का शैक्षिक वातावरण अच्छा होता है। शिक्षकों का छात्रों पर नियंत्रण होता है। शिक्षकों के नियंत्रण में छात्रों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने के कारण ही छात्रों का सर्वांगीण विकास होता है।

7. लघु समाज (Small Society)— पब्लिक स्कूलों का स्वरूप एक संगठित समाज की भाँति होता है जिसके कारण इन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र एक साथ रहते हुए सामुदायिक जीवन के क्रिया-कलापों व सह-अस्तित्व से भली-भाँति परिचित हो जाते हैं।

8. स्वायत्तता (Autonomous) – पब्लिक स्कूलों में विद्यालय संचालन की बागडोर प्रधानाचार्य के हाथों में होती है। विद्यालय के संचालन से सम्बन्धित समस्त अधिकार इसके होते हैं। स्कूल के अन्य अध्यापकों की नियुक्ति, उन्नति,, छात्रों के प्रवेश व निष्कासन सम्बन्धी निर्णय लगभग स्वतंत्र रूप से ले सकते हैं जिसके कारण इन स्कूलों का प्रशासन व नियंत्रण प्रभावी रहता है।

9. मॉनीटर की व्यवस्था (Arrangement of Monitor) – पब्लिक स्कूलों में प्रत्येक कक्षा में एक छात्र का चुनाव करके उसे मॉनीटर (प्रोफैक्ट) नियुक्त किया जाता है। ये अपनी कक्षा के छात्रों का नेतृत्व करता है तथा कक्षा-कक्ष की सफाई बनाए रखने एवं अध्यापक की अनुपस्थिति में कक्षा में अनुशासन बनाने हेतु उत्तरदायी होता है।

10. सहयोग की भावना (Feelings of Co-operation)- पब्लिक स्कूलों के अध्यापकों में सहयोग व सहकारिता की भावना अपेक्षाकृत अधिक पायी जाती है। इन्हीं भावनाओं से प्रेरित होकर अध्यापक विद्यालय की गतिविधियों के संचालन में पूरे परिश्रम से लगे रहते हैं जिसका लाभ प्रकारान्तर से छात्रों के सर्वांगीण विकास व शिक्षा स्तर के उच्च होने के रूप में मिलता है।

11. सुविधायुक्त (With Amenity)- पब्लिक स्कूल साफ-सुथरे स्थानों पर होते हैं। यह सुन्दर भवन के रूप में होते हैं। इन स्कूलों के पास साधनों की कमी नहीं होती है, इसलिए ये स्कूल पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं, संग्रहालयों, क्रीड़ा-स्थलों, व्यायामशालाओं, तरणताल, छात्रावासों तथा प्राकृतिक वातावरण से युक्त होते हैं। इस प्रकार का वातावरण छात्रों के शैक्षिक विकास के साथ-साथ मानसिक एवं शारीरिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

12. हाउस सिस्टम (House System) – पब्लिक स्कूलों में सभी छात्रों को कुछ वर्गों में विभक्त कर दिया जाता है। इन वर्गों को गृह या हाउस कहते हैं। उनका नाम या तो रंगों के आधार पर अथवा प्रसिद्ध व्यक्तियों, स्थानों, पर्वतों आदि के आधार पर कर दिया जाता है। प्रत्येक हाउस किसी अध्यापक के नेतृत्व में कार्य करता है जिसे हाउस मास्टर कहते हैं। यह प्रणाली छात्रों में प्रतियोगिता की भावना विकसित करती है।

पब्लिक स्कूलों के दोष (Demerits of Public Schools)

वर्तमान में पब्लिक स्कूल खुलने की दिशा में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। प्रत्येक 100 मी. की दूरी पर एक पब्लिक स्कूल दिखाई पड़ जाता है जिसके कारण इन स्कूलों की शिक्षा के स्तर में गिरावट आने लगी है। पब्लिक स्कूलों के कुछ प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

(i) अत्यधिक महँगा होना पब्लिक स्कूलों का प्रमुख दोष है। इन स्कूलों द्वारा लिया जाने वाला शुल्क व अन्य खर्च इतने अधिक होते हैं कि साधारण आय वाला व्यक्ति उन्हें कदापि वहन नहीं कर सकता है।

(ii) पब्लिक स्कूलों में दिखावे की प्रवृत्ति की अधिकता होती है जिससे छात्रों की जीवन शैली वास्तविक नहीं रहती है। इस प्रकार की आडम्बरयुक्त जीवन शैली छात्रों, समाज तथा राष्ट्र के हित में कदापि नहीं होती है।

(iii) पब्लिक स्कूल का यह भी मुख्य दोष है कि इन स्कूलों में भारतीय सभ्यता व संस्कृति की अवहेलना की जाती है। छात्रों को अपनी सभ्यता व संस्कृति का ज्ञान नहीं होता है। छात्रों को पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति में ढालने का प्रयास किया जाता है जो कि किसी भी तरह से उपयुक्त स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

(iv) पब्लिक स्कूलों में प्रवेश के समय योग्यता के स्थान पर आर्थिक स्थिति को योग्यता का आधार मानना गलत है।

(v) पब्लिक स्कूलों में प्राय: छात्रों का छात्रावास में रहना आवश्यक होता है। ऐसी स्थिति में आत्म-विश्वास की कमी होती है तथा आत्महीनता व असुरक्षा की भावना रहती है।

(vi) अत्यधिक महँगे होने की वजह से पब्लिक स्कूलों में आज भी विशिष्ट अभिजात्य वर्ग के व्यक्तियों, जैसे पूँजीपतियों, सरकारी उच्च अधिकारी व नेताओं के बच्चे प्रवेश पाते हैं। इन बालकों में अहंकार की भावना रहती है। यह अपने को समाज के अन्य बालकों से श्रेष्ठ समझते हैं। यह प्रवृत्ति समाज को गरीब व अमीर दो वर्गों में विभाजित करके सामाजिक समरसता को प्रभावित करती है। इन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त ये बच्चे जब ऊँचे पदों पर बैठ जाते हैं तो जनसाधारण से दूर होने के कारण ये उनकी समस्याओं को समझने तथा उनको सुलझाने में असफल रहते हैं।

(vii) पब्लिक स्कूलों का परिवेश भारतीय परिवेश से भिन्न होता है जिसके कारण यहाँ पर शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र-छात्राएँ जब इन स्कूलों से पढ़कर बाहर निकलते हैं तो वे भारतीय समाज के वातावरण से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं ।

(viii) लोकतंत्र में सभी को शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर उपलब्ध होने चाहिए। पब्लिक स्कूलों में शिक्षा के समान अवसरों की अवधारणा को पूर्ण रूप से नकार दिया गया है। पब्लिक स्कूल लोकतांत्रिक आधारों की पूर्ण रूप से उपेक्षा करते हैं। इन स्कूलों में धन को विशेष महत्व दिया जाता है तथा व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के आधार पर ही इन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध रहते हैं जो लोकतंत्र की भावना के प्रतिकूल है।

(ix) पब्लिक स्कूल अहंकारी तथा समाज में सामान्य वर्ग से अलग एक अन्य वर्ग ही तैयार कर रहे हैं जिसमें राष्ट्रभक्ति की भावना का नितान्त अभाव होता है।

भारत में पब्लिक स्कूलों की वर्त्तमान स्थिति (Present Status of Public Schools in India)

भारत के पब्लिक स्कूलों का वर्तमान स्वरूप परिवेश पूर्णरूप से भारत के राष्ट्रीय आदर्शों, प्रजातांत्रिक व्यवस्था तथा संवैधानिक संकल्पों के विपरीत है। अतः स्कूलों को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए तथा भारत सरकार को उन पर अंकुश लगाकर इन्हें भारतीय परिवेश में रहते हुए भारतीय आदर्शों के अनुकूल ही बालकों को शिक्षित करने हेतु बाध्य किया जाना चाहिए। कोठारी आयोग ने तो अपने प्रतिवेदन में पब्लिक स्कूलों का विरोध किया था। कोठारी आयोग का मानना था कि हमें जनजीवन की सर्वमान्य तथा समरूप शिक्षा प्रणाली के लक्ष्य की ओर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

आज अधिकांश पब्लिक स्कूलों में केवल स्वच्छ रहने, यूनिफार्म पहनने, अनुशासन बनाए रखने और अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने पर बल दिया जाता है। साधारण जनता उसी पब्लिक स्कूल को अच्छा समझती है जहाँ पर यूनीफार्म व अनुशासन की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है और अधिक शुल्क वसूल किया जाता है। आजकल इन स्कूलों में अधिक शुल्क के साथ अभिभावकों के पास इन स्कूलों को देने के लिए पैसा है तो योग्यता न होने पर भी वह अपने नालायक बच्चे का प्रवेश इन स्कूलों में करवा सकते हैं। पब्लिक स्कूलों में धन को अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा पैसा लेकर अच्छे अंक देकर पास कर दिया जाता है ज्यादातर व्यक्ति यह समझते हैं कि पब्लिक स्कूलों में अध्ययन करने वाले छात्र बहुत मेधावी होते हैं परन्तु इनकी यह धारणा गलत है। जनसाधारण से आए हुए बालकों को जब इन स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण करनी होती है तो उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वे न अंग्रेजी ही सीख पाते हैं और न ही अपनी मातृभाषा का पूरी तरह से ज्ञान अर्जित कर पाते हैं।

पब्लिक स्कूलों की उपयोगिता के सम्बन्ध में डॉ. सम्पूर्णानन्द जी ने कहा है कि-“इन स्कूलों के बारे में जो दावे किए जाते हैं वे सत्य नहीं हैं। इन स्कूलों से पढ़े हुए ऐसे कितने छात्र हैं जो हमारे देश में वैज्ञानिक बने हैं ? ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने देश की सेवा की है ?

कितने लोग पब्लिक स्कूलों से निकले हैं जिन्होंने चरित्र बल पर यह साबित किया है कि वह ऊँचे चरित्र के लोग हैं? यदि आप इनका औसत निकालेंगे तो यह बहुत ही कम होगा।”

पब्लिक स्कूलों का प्रशासन एवं संगठन (Organisation and Administration of Public Schools)

पब्लिक स्कूल कुछ स्थानीय संस्थाओं, राज्य व केन्द्रीय सरकारों व विदेशी संस्थाओं द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। इन पब्लिक स्कूलों में प्रवेश की परीक्षा की परम्परा समाप्त हुई है। नर्सरी कक्षा में बच्चे को प्रवेश दिलाने के लिए अत्यन्त कठिनाई का सामना करना पड़ता है । भारत में जहाँ तक पब्लिक स्कूलों के औचित्य का प्रश्न है, इन स्कूलों का वर्तमान स्वरूप जारी रखते हुए समर्थन नहीं किया जाना चाहिए। ये पब्लिक स्कूल भारतीय सभ्यता संस्कृति के बारे में छात्रों को कोई ज्ञान नहीं देते हैं जबकि इन स्कूलों के अधिकांश बच्चों को भारतीय परिवेश में रहते हुए जीवन व्यतीत करना होता है। इसलिए आवश्यक है कि बालकों को उनकी अपनी सभ्यता व संस्कृति का ज्ञान दिया जाए।

पब्लिक स्कूलों में सुधार हेतु सुझाव (Suggestions for Modifications in Public Schools)

प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री हुमायू कबीर ने पब्लिक स्कूलों को लघु भारतीय समाज के रूप में परिवर्तित करने पर जोर दिया है। उनका कहना था कि इन विद्यालयों को भारतीय समाज का प्रतिबिम्ब होना चाहिए। पब्लिक स्कूलों में शिक्षा का माध्यम हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए और इन विद्यालयों द्वारा लिए जाने वाले शुल्क पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रण लगाया जाना चाहिए। डोनेशन को रोकना चाहिए। तभी इन पब्लिक स्कूलों द्वारा दी जाने वाली उच्च गुणवत्ता की शिक्षा का लाभ साधारण जनता को मिल सकेगा।

भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति — 1986 के संकल्पों के अनुरूप नवोदय विद्यालय रूपी अनेक पब्लिक स्कूल खोले हैं जिनके प्रवेश का आधार योग्यता है। मुदालियर आयोग ने पब्लिक स्कूलों का सुधार करने हेतु अनेक सुझाव दिए थे जिसमें से कुछ प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं-

(i) इन स्कूलों को राज्य तथा केन्द्रीय सरकार द्वारा दी जाने वाली अनुदान सहायता में कमी की जानी चाहिए।

(ii) पब्लिक स्कूलों में सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान तथा हस्तशिल्प का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए।

(iii) इन स्कूलों में सभी वर्गों के छात्रों हेतु शिक्षा के अवसर प्राप्त होने चाहिए। छात्रों के प्रवेश का आधार योग्यता होना चाहिए न कि धन गरीब प्रतिभावान छात्रों हेतु छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जानी चाहिए।

(iv) पब्लिक स्कूलों के ढाँचे को राष्ट्रीय आवश्यकतानुसार राष्ट्रीय ढाँचे में ढाला जाना चाहिए। इसके अलावा योरोपीय सभ्यता एवं संस्कृति पर जोर दिया जाना चाहिए।

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