B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

गिजू भाई का शिक्षा दर्शन | Educational Philosophy of Gijju Bhai in Hindi

गिजू भाई का शिक्षा दर्शन
गिजू भाई का शिक्षा दर्शन

गिजू भाई का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy of Gijju Bhai)

गिजू भाई का शिक्षा दर्शन- गिजुभाई का जन्म 15 नवम्बर, सन् 1885 को हुआ था। गुजरात में इस बालक के जन्म के सोलह वर्ष पूर्व महात्मा गाँधी ने भी जन्म लिया था, जिन्होंने बाद में देश-विदेश में अत्यधिक ख्याति प्राप्त की और राष्ट्रपिता कहलाये। गिजूभाई का जन्म सौराष्ट्र के चितलगाँव में हुआ था। उनका पूरा नाम था गिरजाशंकर भगवान जी बधेका । इस पूरे नाम की अपेक्षा लोग उन्हें गिजुभाई कहकर ही पुकारते थे।

गिजुभाई ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत का पेशा प्रारम्भ किया। वकालत में वे खूब मन लगाकर और केस की बारीकी से अध्ययन करके मुकदमें में बहस करते थे। किन्तु वकालत में उनका मन अधिक दिनों तक नहीं लग सका। उन्होंने वकालत छोड़ दी और शिक्षक बन गये। शिक्षा के क्षेत्र में पदार्पण करने के बाद उनकी आदत अब माता-पिता, परिवार व विद्यालय बन गया और उन्होंने उन सुकूमारमति बालकों की वकालत करने का बीड़ा उठाया जो अपने परिवार में कुछ कह नहीं पाते थे और बहुत से बच्चों को अपने माता-पिता के अत्याचारों को सहन करना पड़ता था। बच्चों के दुःख का यहीं अन्त नहीं था। उन्हें विद्यालय में पढ़ाई के नाम पर डाँट फटकार तथा हिंसा का शिकार होना पड़ता था। इन सबके विरुद्ध माता-पिता व शिक्षकों की अदालत में उन्होंने बालकों के पक्ष में वकालत की और बच्चों की शिक्षा पर गम्भीर चिन्तन किया, प्रचुर साहित्य का निर्माण किया और बालकों के जीवन को सुखमय बनाने का भरसक प्रयास किया।

शिक्षा के क्षेत्र के इस कर्मठ कार्यकर्ता व नायक का 54 वर्ष की आयु में 23 जून, 1939 को निधन हो गया। बालकों के एक प्रबल समर्थक, साथी एवं उन्नायक के निधन से बालकों की शिक्षा की अपूरणीय क्षति हो गई।

तत्कालीन शैक्षिक दशा

सन् 1835 में मैकाले का विवरण-पत्र प्रस्तुत हो चुका था। 1854 के वुड घोषणा पत्र ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति का ढाँचा स्वीकृत कर दिया था। लोगों को व ब्रिटिश शासकों को विश्वास था कि वे करोड़ों भारतीयों के दिलो-दिमाग को इन अंग्रेजी शिक्षा द्वारा पूरी तरह बदल देंगे। मैकाले ने गर्वपूर्वक अपने पिता को लिखे पत्र में घोषणा की थी—

“मुझे पक्का विश्वास है कि यदि शिक्षा की हमारी योजना को आगे बढ़ाया गया तो तीस वर्ष बाद बंगाल के सम्भ्रान्त वर्गों में एक भी मूर्ति पूजक शेष नहीं रहेगा और यह परिणाम बिना किसी धर्मांतरण के, बिना उसकी धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किये ही निकल सकेगा। “

अलेक्जेंडर व डफ ने 1835 में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा था “जब रोमन लोग किसी नये प्रदेश को जीतते थे तो वे तुरन्त उसका रोमनीकरण करने में जुट जाते थे।

अर्थात् वे अपनी अधिक विकसित भाषा और साहित्य के प्रति रुचि जगाकर विजेता लोगों के संगीत, रोमांस, इतिहास, चिन्तन और भावनाओं, यहाँ तक कि कल्पनाओं को भी रोमन शैली में प्रवाहित होने की स्थिति उत्पन्न कर देते थे, जिससे रोमन हितों का पोषण व सुरक्षा होती थी। क्या रोम इसमें सफल नहीं हुआ?”

अंग्रेजों की सांस्कृतिक विजय की यह तमन्ना आंशिक रूप से ही पूरी हो रही थी। भारत में भारतीयों के मन में इस शिक्षा के प्रति आक्रोश था। श्रीमती ऐनी बेसेन्ट ने राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन को गति प्रदान की। स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, श्री अरविन्द, लाला लाजपत राय, विपिनचन्द्र पाल, लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी आदि ने राष्ट्रीय शिक्षा की वकालत की। राष्ट्रीय जागरण की लहर चल पड़ी।

राष्ट्रीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए गुरुकुल संस्थाएँ, डी० एस० जी० कॉलेज, विद्यापीठ निरन्तर प्रयास करने लगे। राष्ट्रीय शिक्षा परिषद्, रामकृष्ण मिशन, ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज जैसी अनेक संस्थाएँ भारतीय शिक्षा में राष्ट्रीय प्रयोग करने लगीं।

दक्षिणामूर्ति विद्यार्थी भवन

उपर्युक्त राष्ट्रीय शिक्षा और राष्ट्रीय आन्दोलन को गि प्रदान करने के लिए देश भर में अनेक संस्थाओं ने जन्म लिया। भावनगर, गुजरात में भी एक ऐसी संस्था थी जिसका नाम था- दक्षिणामूर्ति विद्यार्थी भवन । यह संस्था राष्ट्रीय शिक्षा देने के लिए संगठित हुई थी। इस संस्था में गिजुभाई के मामा श्री हरगोविन्द पाण्ड्या भी कार्य करते थे । उन्होंने गिजुभाई को प्रेरित किया कि वे इस संस्था के सदस्य बन जायें। फलत: सन् 1916 में गिजुभाई इस संस्था के आजीवन सदस्य बन गये। उस समय वे केवल 31 वर्ष के थे। इस संस्था द्वारा एक बाल भवन चलाया जाता था जिसका नाम था विनय भवन । इसी विनय भवन के आचार्य के रूप में गिजुभाई ने कार्य प्रारम्भ किया।

बालकों के गाँधी

दक्षिणामूर्ति विद्यार्थी भवन में विनय-भवन के आचार्य के रूप में चार वर्ष तक कार्य करने के बाद सन् 1920 में गिजुभाई ने दक्षिणामूर्ति विद्यार्थी भवन में एक बाल-मन्दिर की स्थापना की और इस बाल मन्दिर में 2½ वर्ष की आयु से लेकर 6 वर्ष की आयु वाले बच्चों को रखा। उनके बीच उन्होंने शिक्षा प्रदान की।

उस समय देश में गाँधी जी की आँधी प्रारम्भ हो गई थी। स्वराज्य आन्दोलन को गाँधी जी का नेतृत्व मिल गया था । गाँधी जी की प्रेरणा से देश में राष्ट्रीयता की लहर चल पड़ी थी| महात्मा गाँधी ने स्पष्ट कहा था कि उनके राष्ट्रीय आन्दोलन का एक प्रमुख अंग शिक्षा – -सुधार है। गाँधी जी के इस शैक्षिक प्रयोग पर सन् 1985 में लेखक ने एक लम्बा लेख लिखा था जो ‘मंथन’ के राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन विशेषांक में प्रकाशित हुआ था। उसके प्रारम्भिक अंश को यहाँ पर देना प्रासंगिक होगा।

भारतीय शैक्षिक क्षितिज पर गाँधी जी के अवतरण के पूर्व ही अनेक शिक्षा-चिन्तकों ने आंग्ल शिक्षा-प्रणाली की व्यर्थता का अनुभव करते हुए तत्कालीन शिक्षा-प्रणाली की कटु आलोचना की थी भारतीय संस्कृति का पुनरुत्थान करने, युवकों में स्वदेश-प्रेम का स्फुटण करने एवं शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने के लिए उस समय यह अनुभव किया जा रहा था कि सात समुद्र पार से लाई गई शिक्षा प्रणाली के विकल्प के रूप में कोई राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली विकसित की जाये। कुछ प्रयोग इस दिशा में किये जा रहे थे। ऐसे ही समय में सन् 1915 में गाँधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से लौटे तो कुछ समय गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शैक्षिक प्रयोग शान्ति निकेतन के सान्निध्य में रहे वहाँ पर गाँधी जी के विचारों के अनुसार कुछ दिनों के कार्य को देखकर गुरुदेव ने कहा था “गाँधी जी के इस प्रयोग में स्वराज्य की कुंजी है।”

इसे भी पढ़े…

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment