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मानववाद का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप, विशेषताएँ तथा शैक्षिक योगदान

मानववाद का अर्थ
मानववाद का अर्थ

मानववाद से आप क्या समझते हैं?

मानववाद (Humanism) – 20वीं शताब्दी के अन्त तक अनेक दार्शनिक मानववादियों के मानववाद का समर्थन किया है। भारतीय मानववादी चिन्तकों में पण्डित जवाहर लाल नेहरू, डॉ. जाकिर हुसैन तथा डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् आदि मानववाद के समर्थकों में से हैं। भारतीय दर्शन में आज के वातावरण में मानववाद से सम्बन्धित विचारधारा पर बहुत बल दिया गया है। 18वीं और 19वीं शताब्दी में विज्ञान सम्बन्धी खोज के फलस्वरूप सृष्टि का अन्तिम तत्त्व प्रकृति को स्वीकार किया गया। इससे आदर्शवाद को आघात लगा। यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति के बाद मानव औद्योगिक समाज का नमूना बन गया। मानवतावाद ने मानवीय कल्याणों को बल दिया। मानवतावाद ने मनुष्य तथा उसकी नियति को चिन्तन का केन्द्र बिन्दु माना है।

मानववाद का अर्थ (Meaning of Humanism)

मानववाद का अर्थ मानवीय विचारों से है जिसमें मनुष्य को केन्द्र बिन्दु माना जाता है। यह मनुष्य के सम्मान एवं आदर में आस्था रखता है। यह मानवता तथा सत्यान्वेषण के साधन विज्ञान में आस्था प्रकट करता है। मानववाद से तात्पर्य मानव की रुचि, आवश्यकताओं, धार्मिक स्वतन्त्रता और जीवन में उचित समायोजन प्राप्त करना। मानववाद के अनुसार स्वयं मानव ही अपने भाग्य का निर्माता है।

मानववाद की परिभाषा 

मानववाद की व्याख्या विभिन्न दार्शनिकों ने निम्नलिखित प्रकार से दी है-

(1) मानववाद का उद्देश्य मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में रुचि उत्पन्न कर मनुष्य का सब प्रकार से विकास करना है।

(2) मानववाद से तात्पर्य जीवन में उचित समायोजन स्थापित करना है।

(3) डॉ. एस. राधाकृष्णन (Dr. S. Radhakrishanan) के शब्दों में “मानव ही अपने भविष्य का रचयिता है।” Man is the architect of his own future.”

(4) मानव ही संसार में सब प्रकार की क्रियाओं का केन्द्र और मापदण्ड है।

मानववाद का स्वरूप (From of Humanism)

मानववादी दर्शन का स्वरूप मनुष्यवाद को उन्नत करने वाला आन्दोलन है। इसका अस्तित्व स्वतः है इसे किसी ने नहीं बनाया फिर भी यह मानव मूल्यों को नवीन अर्थ प्रदान करता है। जीवन के मूल्यों का निर्माण मानवीय सम्बन्धों के परिणामस्वरूप हुआ है। प्रकृति के नियमों को समझ का कार्य तथा मानववाद के तत्त्वों का निर्माण मानव बुद्धि द्वारा किया गया है। मानववादी दर्शन निरन्तरता के सिद्धान्त को मानता है। मानव इस सृष्टि का एक अंग है तथा सृष्टि के विकास की सतत् प्रक्रिया का फल है। विश्व की सृजनात्मक शक्तियों का उच्चतम परिणाम मानव है, जिससे ऊपर मानव की आकांक्षाएँ हैं। मानवीय आदर्श, आकांक्षाओं का अनुशासन और पालन मानववाद के उद्देश्य को पूर्ण करने के साधन हैं।

मानवतावाद के दर्शन की विशेषताएँ (Characteristics of the Physical of Humanism)

मानववाद के दर्शन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) मानववाद का दर्शन संसार में मानव को सबसे अधिक महत्त्व देता है कि “संसार का केन्द्र ही मानव है।” डॉ. राधाकृष्णन् कहते हैं कि “मानव ईश्वर की छाया में बना है। इकबाल का भी विचार है कि “मानव सृजन कार्य में ईश्वर का साथी है। उनका कहना इस कारण उसे सृजनता में भागीदार होना है।” यह विचार मनुष्य की महानता का प्रतीक है कि ईश्वर ब्रह्माण्ड का परम् सृजनकर्ता है।”

(2) मानववाद का दर्शन इस बात पर बल देता है कि मानव में अपनी समस्याओं को अपने प्रयास से ही सुलझाने की योग्यता है। मानव उस समय पर ही अपनी योग्यताओं का प्रयोग कर सकता है, जब उसे पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हो । मानवता के विकास के लिए मानव को पूर्ण स्वतन्त्रता होगी। यदि मनुष्य पर पाबन्दी लगा दी जाए तो वह मानवता से नीचे गिर सकता है। स्वतन्त्रता से आशय दूसरों का हित सुरक्षित करते हुए कार्य करने से है।

(3) मानववाद की धारणा है कि मनुष्य ने अपने प्राकृतिक वातावरण को दूषित कर दिया है और इस कारण सम्पूर्ण समाज तथा सम्पूर्ण राष्ट्र को अनेक यातनाएँ सहनी पड़ रही हैं। उसने जंगल के वृक्ष काट डाले हैं। वन के पशुओं को मार डाला है। नदियों के पानी उत्पन्न कर दिया है। जनसंख्या में वृद्धि मानववाद के लिए सौतन का रूप लेकर संसार में उत्तर आयी है। उसका परिणाम यह है कि वह आपसी द्वेष अहंकार तथा जलन से पीड़ित है। शारीरिक रूप से वह घातक रोगों से ग्रसित है। मानसिक रूप से भी उसमें कलह एवं द्वन्द्व पनप रहे हैं। अतः सच्ची मानवीय शिक्षा की आवश्यकता है।

(4) मानववाद वातावरण के साथ-साथ समरसता पर बल देता है। जब मनुष्य वातावरण के सम्पर्क में आता है और उससे संगति करने की चेष्टा करता है तो उसकी चिन्तन होने लगता है। मानववाद कहता है कि मनुष्य को अपने वातावरण में सामंजस्य करने की चेष्टा करनी चाहिए ।

(5) मानववाद का यह भी दृष्टिकोण है कि कोई भी सांसारिक वसु अपने आप में अच्छी या बुरी नहीं है। अच्छाई या बुराई का अनुमान इस तथ्य पर निर्भर है कि किस सीमा तक मानव और समाज के लिए उपयोगी है? मानववाद किसी पदार्थ के मूल्य को उसकी मानव और समाज के लिए उपयोगिता की कसौटी पर निर्धारित करना है। नेहरू ने कहा था कि “तुम ईश्वर के बारे में एक भूखे व्यक्ति से बातचीत नहीं कर सकते। पहले तुम्हें उसे भोजन देना होगा।” मानववाद मानव के सम्पन्न जीवन की कामना करता है। इस कारण वह आर्थिक प्रगति भी चाहता है। मानववाद कल्याण का द्योतक है।

(6) मनुष्य तो इस संसार की रचना है। इस पृथ्वी पर स्वर्ग को प्रकृति की महान शक्तियों, ताकतों पर विजय प्राप्त करना ही उसका ध्येय है। यह कार्य विज्ञान ही सम्भव है। मानववाद की विशेषताओं में मानववादी विचारधारा के लोग पूर्ण विश्वास रखते हैं।

(7) मानववाद मनुष्य को लचीला तथा परिवर्तन मानता है। मानव प्रकृति में परिवर्तन सम्भव हैं, इसीलिए मानव की शिक्षित करने की आवश्यकता है। शिक्षा के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को वांछित दिशा की ओर मोड़ा जा सकता है। इस प्रकार ऐसीशिक्षा से मानववाद का कार्य शीघ्रता से पूरा होने की प्रबल सम्भावना बनती है।

मानववादी के शैक्षिक योगदान (Educational Implications of. Humanism)

मानववादी शिक्षा मानव केन्द्रित है, जिसका लक्ष्य नियति का उच्च बनाना है तथा समाज को उत्तम जीवन जीने के योग्य बनाना है। मानववादी शिक्षा से सम्बन्धित अभिप्रेतार्थ निम्नलिखित प्रकार है-

1. शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)- मानववाद शिक्षा को मनुष्य और समाज के विकास में महत्त्वपूर्ण मानता है। मानवतावाद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य शिक्षा ही व्यक्तियों को तैयार करना है जो मानवीय समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो और मानव कल्याण के लिए कर सकें। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में स्वतन्त्रता विवेकपूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो एवं मनुष्य को पूर्णता एवं श्रेष्ठता की प्राप्ति हो । शिक्षा न केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित हो बल्कि इसके द्वारा भावनाओं का प्रशिक्षण भी देना चाहिए। एक शिक्षित मनुष्य वह है, जो दूसरों की भावनाओं और विचारों को समझे और उसका आदर करे। कोई भी ऐसा कार्य न करे, जिससे दूसरों के विचारों और भावनाओं को ठेस लगे और उसे आत्मिक पीड़ा पहुँचे।

2. विद्यालय (School)— मानववादी विद्यालय को ऐसा स्थान मानते हैं, जहाँ पर नैतिक और व्यवसाय सम्बन्धी दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती है। मानववादी इस बात पर बल देते हैं कि विद्यालय मनुष्य को अपनी मनुष्यता को समझने और विकसित करने की शिक्षा देते हैं । विद्यालय ‘जियो और जीने दो’ का सन्देश पढ़ाते हैं ।

3. पाठ्यक्रम (Curriculum)- मानववाद के अनुसार — पाठ्यक्रम इस प्रकार का होना चाहिए कि व्यक्तियों का सांस्कृकि विकास हो सके। पाठ्यक्रम छात्र के आन्तरिक जीवन और वैयक्तिक विकास तथा गुणों को उभारने वाला होना चाहिए। पाठ्यक्रम छात्र की योग्यता, अभिरुचि और अधिगम क्षमता के अनुसार चाहिए। मानववाद श्रेष्ठ ग्रन्थ के अध्ययन पर बल देता है। उसके अनुसार श्रेष्ठ ग्रन्थ मन में व्यापकता लाता है तथा लक्ष्य को सम्पन्न बनाता है।

4. शिक्षा (Teacher)- मानववाद शिक्षक को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है राधाकृष्णन् के अनुसार, “अच्छा विद्यार्थी वह नहीं है जो अधिक पढ़ा हो, लेकिन वह रह जिसे अच्छा शिक्षण मिला हो।” शिक्षक को अच्छे और मानवीय गुणों से युक्त होना चाहिए । शिक्षक में केवल विद्वता न हो अपितु उसमें विद्यार्थियों के लिए सहानुभूति हो। अच्छे शिक्षक ही विद्यार्थियों का उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ा सकते हैं।

5. शिक्षण विधियाँ (Teaching Method)- मानववाद शिक्षण विधियों पर निम्नलिखित आधारों पर बल देता है-

(1) बालक की मानसिक अवस्थाएँ।

(2) वैज्ञानिक प्रक्रिया।

(3) मानववादी उपागम।

मानाववाद में उन शिक्षण विधियों पर बल दिया जाता है, जो विद्यार्थी को अपने स्वयं के प्रयास से सीखने में सहायता करें। राधाकृष्णन् के अनुसार—“विद्यार्थी के सामने सबसे उत्तम एवं किसी विशिष्ट विषय पर चिन्तन किया गया है, कहा गया है, उस छात्र पर छोड़ देना चाहिए कि वह इस पर विचार करें और निर्णय लें।” इस प्रकार शिक्षण देने से विद्यार्थी को स्वतन्त्रता से चिन्तन करने की आदत पड़ जाएगी। आधुनिक समय में चलचित्र, दूरदर्शन एवं रेडियो आदि विद्यार्थियां के मन में विषमताएँ भर रहे हैं। इनसे बचाव केवल स्वतन्त्र चिन्तन करने से ही होगा तथा इससे विद्यार्थियों का मानववादी विचास हो सकेगा।

6. अनुशासन (Discripline)- मानववाद विचारों और वाणी की स्वतन्त्रता को मान्यता देता है वह दबाव तथा डर जैसी सभी बुराइयों को शिक्षा जगत् से हटाने पर बल देता है। अनुशासन न तो कड़ा और न ही ढीला-ढाला होना चाहिए । मनुष्य को स्वयं अनुशासन में रहना चाहिए । विद्यार्थी को यह समझना चाहिए कि अनुशासन के बिना स्वतन्त्रता बेकार है अनुशासन के बिना प्रत्येक मनुष्य मनमानी करेगा, समाज में भी कोई व्यवस्था स्थिर नहीं रहेगी । इसके फलस्वरूप तनाव तथा अशान्ति पैदा होगी और समाज तथा राष्ट्र में बिखराव उत्पन्न हो जाएगा ।

7. मानववाद का मूल्यांकन (Evaluation of Humanism) – मानववाद आधुनिक संसार में बहुत ही महत्वपूर्ण है विज्ञान ने मनुष्य के जीवन को अनेक कार्यों से मुक्त कर दिया है, वहीं मानवता पर भी प्रहार किया है आज के युग में मानव छोटी-सी बात पर भी एक-दूसरे को मारने पर तुल जाता है। इस दशा में मानववाद की शिक्षा संसार के सभी मानवों में मानवता का विकास कराती है और सन्देश देती है कि सभी प्राणी समान हैं तथा सभी को मान और मौलिकता के साथ जीने का अधिकार है।

मानववाद इस बात पर भी बल देता है कि विद्यार्थी को ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए कि विद्यार्थी की शारीरिक और मानसिक माँगों की पूर्ति करे। विद्यार्थी निम्न स्तर से उठकर जीवन की अच्छाइयों को अपनाएँ। विद्यार्थी के जीवन में उच्च मूल्यों की आदत जागृत् हो। विद्यार्थी में दयाभाव अधिकाधिक उत्पन्न हो। विद्यार्थी दूसरों के सुख-दुःख में सहयोगी हों और दूसरे मनुष्यों के प्रति संवेदनशील बनें। मानववाद की कुछ सीमाएँ भी हैं। मानववाद का दर्शन दूसरे सम्प्रदायों के दर्शन पर निर्भर करता है। इसकी विचारधाराएँ आदर्शवाद से भी मिलती हैं। किसी अनैतिक सत्ता के पक्ष में नहीं है । वह इस सम्बन्ध में अपने विचार मानववाद की रक्षा के लिए प्रस्तुत करता है। मानव ही आदर्शों का केन्द्र-बिन्दु है। मानववाद कहता है कि मानवीय आदर्श या मूल्य मनुष्य की मानवता को जागृत करें तथा मनुष्य दृष्टिकोण उन्नति की ओर ले जाएँ।

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