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आदर्शवाद क्या है? आदर्शवाद के मूल सिद्धांत क्या हैं?

आदर्शवाद क्या है
आदर्शवाद क्या है

आदर्शवाद क्या है?

आदर्शवाद एक अत्यन्त प्राचीन वाद है जिसका प्रभाव किसी न किसी रूप में जीवन के प्रत्येक पक्ष पर पड़ता रहा है। प्राचीन भारत तथा यूनान के साहित्य में इसका विशेष महत्त्व रहा है। वास्तव में आज चारों ओर विश्व में यह अनुभव किया जा रहा है कि संसार में शान्ति तथा भाई-चारे की स्थापना आदर्शवाद के मूल्य ही कर सकते हैं।

अरस्तु का विचार है, “शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को नैतिक एवं बौद्धिक सद्गुणों को आधार बनाना है। व्यक्ति को ऐसे श्रेष्ठतम मूल्यों से अलंकृत करना है जो मानवता के लिए आवश्यक है। यह धारणा ही आदर्शवाद का प्रतिरूप है। 

प्लेटो के अनुसार, “विचार अन्तिम तथा सार्वभौमिक महत्त्व वाले होते हैं। यही. वे परमाणु हैं, जिनसे विश्व को ज्ञान प्राप्त होता है। ये वे आदर्श अथवा प्रतिमान हैं जिनके द्वारा ‘उचित’ की परीक्षा की जाती । ये विचार अन्तिम तथा अपरिवर्तनीय हैं।”

एच. एन. हॉर्न के शब्दों में, “आदर्शवाद वह सिद्धान्त है जिसके अनुसार देश और काल में सृष्टि का क्रम नित्य तथा आध्यात्मिक सत्य के प्रकटीकरण के कारण चलता है।”

जे. एस. रॉस का कहना है, “आदर्शवाद के अनेक विविध रूप हैं, परन्तु सबका आधारभूत तत्त्व यह है कि संसार की उत्पत्ति का कारण मन तथा आत्मा है तथा वास्तविक स्वरूप मानसिक रूप है। “

हेराल्ड बी. टाइरस के मतानुसार, “आदर्शवाद के अनुसार वास्तविकता विचारों, मन तथा आत्मा में निहित है न कि भौतिक संसार की सत्ता में।”

बूबेकर के अनुसार, “आदर्शवादियों का मानना है कि संसार को समझने के लिए मन की भूमिका मुख्य होती है। उनके लिए इससे अधिक कोई बात नहीं है कि मन संसार को समझने के प्रयास में मानसिक क्रिया के अतिरिक्त और कोई वास्तविकता नहीं है।”

आदर्शवाद भौतिक जगत् की अपेक्षा आध्यात्मिकं जगत् को उत्कृष्ट तथा महान् मानता है । यह वस्तु की अपेक्षा विचारों तथा भावों को स्वीकार करता है। केवल आध्यात्मिक जगत् ही सत्य है। आदर्शवाद में प्राकृतिक तथा वैज्ञानिकों की अपेक्षा मानव के विचार तथा भाव अधिक महत्त्व रखते हैं ।

आदर्शवाद के प्रवर्तक

आदर्शवाद संसार की प्राचीनतम विचारधाराओं में से प्रमुख विचारधारा है समस्त वैदिक साहित्य आदर्शवाद के सिद्धान्तों पर आधारित है।

याज्ञवल्क्य (लगभग छठी ई. पू.), स्वामी दयानन्द (1825-1887), स्वामी विवेकानन्द (1868-1903), गाँधीजी तथा डॉ. राधाकृष्णन् इस विचारधारा के प्रमुख प्रतिपादक हैं। पश्चिम में इसका सूत्रपात सुकरात ने किया, परन्तु प्लेटो (427-347) ने इस विचारधारा को चरम सीमा तक पहुँचाया। कान्त (1724-1804) तथा फ्रेबेल (1772-1852) इस विचारधारा के अन्य प्रमुख समर्थक थे|

आदर्शवाद के मूल सिद्धान्त (Main Principles of Idealism)

(1) ईश्वर अथवा ब्रह्म की सत्ता सबसे ऊपर है। वह अनादि, अनन्त, निराकार तथा निर्गुण है।

(2) ईश्वर को प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक पूर्णता आवश्यक है।

(3) मानव जीवन का सार आध्यात्मिकता है।

(4) मन, विचार व आत्मा वास्तविकता है|

(5) आध्यात्मिकता का आधार आत्मानुभूति है।

(6) आत्मानुभूति आत्म-साक्षात्कार का आधार है, ‘अपने आपको पहचानो’।

(7) आत्मानुभूति अच्छे आचरण द्वारा तथा इन्द्रिय निग्रह से प्राप्त होती है। मन को वश में करना होगा।

(8) भिन्नता में एकता है।

(9) नैतिक मूल्य ही अन्तिम तथा वास्तविक है।

(10) जो कुछ मन संसार को देता है, वही वास्तविकता है।

(11) आतंकवाद व्यक्त्वि के उन्नयन पर बल देता है।

(12) ज्ञान का सच्चा रूप अन्तर्दृष्टि है।

(13) इन्द्रियों द्वारा सच्ची वास्तविकता को नहीं जाना जा सकता है।

(14) भौतिक तथा प्राकृतिक संसार जिसे विज्ञान जानता है, वास्तविकता की अपूर्ण अभिव्यक्ति है।

(15) सब प्रकार के ज्ञानों में आत्म-ज्ञान सबसे महत्त्वपूर्ण है।

(16) भौतिक जगत् नश्वर है।

(17) ‘सत्यम्’, ‘शिवम्’, ‘सुन्दरम्’ की यह व्याख्या आदर्शवाद की आत्मा है ।

(18) प्रकृति अपने आप में अपूर्ण है।

(19) आदर्शवाद अनेकता में एकता का दर्शन करना है।

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