कृषि के कार्य में कृषि यन्त्रों की आवश्यकता
आधुनिक प्रौद्योगिकी युग ने विभिन्न व्यवसायों और क्रियाकलापों को बहुत उन्नत बना दिया है। कृषि का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। आधुनिक समय में कृषकों के पास कृषि की नयी-नयी विधियाँ हैं साथ ही कृषि में विभिन्न नवीन उपकरणों का भी प्रयोग होने लगा है जो परम्परागत उपकरणों की अपेक्षा अधिक ढंग से कार्य करते हैं। परम्परागत और आधुनिक दोनों ही प्रकार के यन्त्र कृषि के विविध क्रियाकलापों के लिये लाभदायक एवं उपयोगी हैं। जैसे जुताई के लिये आज भी बैलों का प्रयोग किया जाता है परन्तु ट्रैक्टर से जुताई करना अधिक आसान है। कम्प्यूटर तथा मोबाइल द्वारा खेती के बारे में नयी-नयी जानकारियाँ मिलने लगी हैं। इस प्रकार कोई भी फसल बोनी हो, जुताई करनी हो, निराई-गुड़ाई या कटाई करनी हो सभी क्रियाओं में कृषि के यन्त्रों की आवश्यकता होती है।
कृषि के यन्त्रों में हम जुताई से लेकर फसल के घर आने तक के समस्त यन्त्रों को सम्मिलित करते हैं। इनमें से कुछ यन्त्र और उनके कार्य इस प्रकार हैं-
(1) जुताई के लिये विभिन्न प्रकार के हल प्रयोग किये जाते हैं।
(2) बीज बोने के लिये हल, डिबलर आदि का ” प्रयोग करते हैं।
(3) पौध उगने के पश्चात् उसकी गुड़ाई- निराई के लिये खुर्पी, लीवर हैरो, तिकुनिया हैरो, स्प्रिंग टाइन हैरो, कल्टीवेटर, सिंह हैन्डहो, ह्वीलहो, कुदाल, फावड़ा आदि प्रयोग में लाये जाते हैं।
(4) कटाई के लिये हँसिया, ढेंकी, मशीन आदि प्रयोग में लाते हैं। कहीं-कहीं बैलों से खींचने वाली मशीन भी कटाई के लिये प्रयोग में लायी जाती है।
(5) मड़ाई के लिये आलपैड थ्रेसर नामक मशीन काम में लाते हैं। इससे मड़ाई सहज और अपेक्षाकृत कम समय में हो जाती है।
(6) ओसाई करने के लिये आजकल थ्रेसर प्रयोग में लाये जा रहे हैं, जिनमें भूसा एवं अनाज अलग हो जाता है। ये ट्रेक्टर या बिजली से चलाये जाते हैं। कुछ ओसाई के लिये पंखेनुमा यन्त्र भी बनाये गये हैं, जिसे साइकिल की तरह पैडल मारकर चलाया जा सकता है। इससे लाभ यह है कि हमें प्राकृतिक हवा पर आश्रित नहीं रहना पड़ता।
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