कोठारी आयोग के पंचमुखी कार्यक्रम
14 जुलाई, 1964 को अपने प्रस्ताव में भारत सरकार ने आयोग की नियुक्ति की। इसे शिक्षा आयोग कहते हैं। इस आयोग के अध्यक्ष प्रसिद्ध शिक्षाविद् प्रो. डी. एस. कोठारी थे। उनके नाम पर इस आयोग को कोठारी कमीशन भी कहा जाता है। इस आयोग की नियुक्ति के कारण एवं उद्देश्यों के रूप में इसके पंचमुखी कार्यक्रम का वर्णन इस प्रकार है-
(1) स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने देश की परम्पराओं एवं मान्यताओं के अनुरूप आधुनिक समाज की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का विकास करने का प्रयास किया है। इस दिशा में अनेक कदम उठाये गये हैं, लेकिन शिक्षा प्रणाली का विकास समय की आवश्यकताओं के अनुसार नहीं हुआ है।
(2) स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से भारत ने राष्ट्रीय विकास के एक नवीन युग में प्रवेश किया है। इस युग में उसके लक्ष्य हैं-शासन एवं जीवन के ढंग के रूप में धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र (Secular Democracy) की स्थापना, जनता की निर्धनता का अन्त, सभी के लिए रहन-सहन का उचित स्तर, कृषि का आधुनिकीकरण, उद्योगों का तीव्र विकास, आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का प्रयोग तथा पारम्परिक आध्यात्मिक मूल्यों के साथ सामंजस्य । इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पारम्परिक शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
(3) स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सभी स्तरों पर शिक्षा का आश्चर्यजनक विस्तार हुआ है। इसके बावजूद वर्ष की शिक्षा के अनेक अंगों के प्रति व्यापक असन्तोष है, जैसे- अभी तक 14 आयु के बालकों हेतु निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था लागू नहीं की जा सकती है। शिक्षा की अनेक गुणात्मक उन्नति के लिए राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू नहीं किया जा सका है।
(4) भारत सरकार इस बात से पूर्ण सहमत है कि शिक्षा राष्ट्रीय समृद्धि एवं कल्याण का आधार है। देश का हित जितना शिक्षा से सम्भव है उतना किसी अन्य वस्तु से नहीं। अतः सरकार शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसन्धान पर अधिकाधिक धन व्यय करने को कटिबद्ध है।
(5) शैक्षिक विकास की सम्पूर्ण जाँच करना अनिवार्य है, क्योंकि शिक्षा प्रणाली के विभिन्न अंग एक-दूसरे पर प्रबल प्रतिक्रिया करते हैं तथा प्रभाव डालते हैं। पूर्व में अनेक आयोगों एवं समितियों ने शिक्षा के विशेष अंगों एवं क्षेत्रों का अध्ययन किया है। इसके विपरीत अब शिक्षा के सम्पूर्ण क्षेत्र का एक इकाई के रूप में सूक्ष्म अध्ययन किया जाना है।
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णनन् ने इस शिक्षा आयोग के उद्घाटन के अवसर पर कहा था- “मेरी यह हार्दिक इच्छा है कि कमीशन शिक्षा के सभी पहलुओं प्राथमिक, विश्वविद्यालय तथा टेक्नीकल शिक्षा की जाँच करे तथा ऐसे सुझाव दे जिससे हमारी शिक्षा-व्यवस्था को अपने स्तरों पर उन्नति करने में सहायता मिल सके।”
Important Links…
- सामाजिक एवं पारस्परिक सौहार्द्र का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्त्व
- जातिवाद की अवधारणा
- साम्प्रदायिकता से क्या आशय है?
- बाल मजदूरी के कारण या बाल श्रम के कारण
- शिक्षा से सम्बन्धित महात्मा गाँधी के तात्कालिक और सर्वोच्च उद्देश्य
- डॉ. राधाकृष्णन् के विचार- हिन्दू धर्म, राजनीति, विज्ञान, स्वतन्त्रता एवं विश्वशान्ति
- गिजूभाई की बालकेन्द्रित शैक्षिक विचारधारा
- आचार्य नरेन्द्र देव समिति के कार्य क्षेत्र का वर्णन कीजिये।
- मुगल काल में प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप
- उपनयन संस्कार से क्या आशय है?
- बिस्मिल्लाह रस्म क्या है?
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 तथा विशेषताएँ
- समावर्तन संस्कार | Samavartan Sanskar in Hindi
- पबज्जा संस्कार | Pabzza Sanskar in Hindi
- लॉर्ड मैकाले का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान