स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में शैक्षिक विकास
स्वतन्त्रता मिलते ही भारतवासियों की अपनी सरकार बनी। प्रजातान्त्रिक देश की अखण्डता एवं सुरक्षा के लिये नागरिकों की आवश्यकता अनुभव हुई। निरक्षरता भारत के लिये अभिशाप मानी गयी। अतः संविधान की 45वीं धारा के अनुसार अनिवार्य शिक्षा लागू की गयी। एक विस्तृत शिक्षा योजना बनाकर ही अनिवार्य शिक्षा को देशभर में लागू किया गया। केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों को इस शिक्षा के व्यय का 30 प्रतिशत देने लगी। 6 से 14 वर्ष के बालकों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की घोषणा कर दी गयी। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने पर भी दूसरी पंचवर्षीय योजना में 6 से 11 वर्ष के बालकों के लिये 60 प्रतिशत और 11 से 14 वर्ष तक के बालकों के लिये 19 प्रतिशत को शिक्षा की पूर्ण सुविधाएँ प्रदान कर दी गर्यो । अब भी सरकार अनिवार्य शिक्षा के विकास के लिये प्रयत्नशील है, परन्तु कुछ कठिनाइयों के कारण सफलता नहीं मिल सकी है। स्वतन्त्र भारत के सामाजिक एवं राजनैतिक परिवर्तनों के अनुकूल प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा का स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् ही पुनर्गठन किया गया। भारत में यद्यपि बहुत समय से यह अनुभव किया जाता रहा था कि भारतीय नागरिकों में व्याप्त निरक्षरता को समाप्त किया जाय। अतः पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा के विकास में सराहनीय कार्य किये गये। 6 से 11 वर्ष वर्ग के बालकों के लिये अनिवार्य शिक्षा योजनाएँ लागू की गयीं और अनिवार्य शिक्षा को निःशुल्क देने का निर्णय किया गया।
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