प्रारम्भिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण की आवश्यकता एवं महत्त्व
प्राथमिक शिक्षा सार्वजनिक शिक्षा का दूसरा रूप है। इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा को प्रत्येक नागरिक के लिए सुलभ बनाना शिक्षा को लोकव्यापी या सार्वभौमिक बनाना है। के. जी. सैयदेन के अनुसार, “प्राथमिक शिक्षा का सम्बन्ध किसी वर्ग या समूह से नहीं है, अपितु इसका सम्बन्ध देश की समस्त जनता से है। यह प्रत्येक स्तर पर जीवन का स्पर्श करती है।” इसी प्रकार हण्टर आयोग ने कहा है कि “प्राथमिक शिक्षा को जनसाधारण की शिक्षा मानना चाहिये।”
शिक्षा के सार्वजनीकरण का अर्थ समझने के पश्चात् उसकी आवश्यकता एवं महत्त्व शिक्षा का विवेचन किया जाना आवश्यक है। सार्वजनीकरण की प्रगति एवं उससे सम्बद्ध उपलब्धि यों का आंकलन उसकी आवश्यकता, महत्त्व एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आधार पर ही भली-भाँति किया जा सकता है। शिक्षा के सार्वजनीकरण की आवश्यकता एवं महत्त्व के निम्नांकित कारण हैं-
1. साक्षरता प्रसार के लिये आवश्यक- शिक्षा का सार्वजनीकरण करने के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको साक्षर करेगा तथा उसकी साक्षरता की उपलब्धि से उसका परिवार, समाज तथा राष्ट्र लाभान्वित होगा क्योंकि वह अपने परिवार और समाज के प्रौदों को साक्षर बनाने का प्रयास कर सकता है। अतः आवश्यक है कि शिक्षा का सार्वजनीकरण अवश्य ही होना चाहिये।
2. दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये आवश्यक – साक्षर व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए आत्म-निर्भर बन जाता है। अपने घर का हिसाब-किताब, खरीद-फरोख्त करने तथा समाचार-पत्रों से देश विदेश के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेता है। अतः शिक्षा का सार्वजनीकरण आवश्यक है।
3. स्व-शिक्षा के लिये आवश्यक – अंशकालिक शिक्षा, पत्राचार द्वारा शिक्षा अथवा स्वयं पीढ़ी योजनाओं से व्यक्ति अपने व्यवसाय के साथ-साथ अपनी अभिवृत्ति, कौशल एवं आकांक्षाओं का विकास कर सकता है। अपना अध्ययन भी व्यवसाय के साथ बनाये रख सकता है।
4. व्यक्ति के विकास के लिये आवश्यक- शिक्षा का सार्वजनीकरण व्यक्ति के विकास हेतु एक निश्चित आयु एवं अवधि तक शिक्षा प्राप्त कराने के लिए महत्त्वपूर्ण है। मनुष्य को समाज की धारा में शिक्षा की अनिवार्यता ही जोड़ सकती है।
5. जनतन्त्र को सफल बनाने के लिये आवश्यक- जनतन्त्र की सफलता के लिए सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा का महत्त्व डॉ. प्रकाश के अनुसार “किसी भी प्रजातान्त्रिक देश के विकास के लिए शिक्षा का अधिक से अधिक प्रसार आवश्यक है। जनता के सहयोग से जनतन्त्र का आर्थिक विकास के लिए शिक्षा का अधिक से अधिक प्रसार आवश्यक है। शिक्षा अनिवार्य रूप से देश के प्रत्येक बालक को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त होनी चाहिये।”
6. राजनैतिक जागरूकता के लिये आवश्यक – सार्वभौमिक शिक्षा का इसलिए भी महत्त्व है कि नागरिकों में कर्त्तव्य और अधिकारों के प्रति उत्तरदायित्त्व की भावना जाग्रत होती है। निरक्षर व्यक्ति चालाक और स्वार्थी राजनीतिज्ञों के चक्कर में मतदान का उचित प्रयोग नहीं कर पाते।
7. सामाजिक समानता और सामाजिक न्याय की भावना में सहायक – वर्तमान में अधिकांश व्यक्ति निरक्षरता के कारण सामाजिक भेदभाव के फलस्वरूप विकास के अवसरों का लाभ नहीं उठा पाते हैं। वे निरक्षरता के कारण अपना समुचित विकास नहीं कर पाते हैं। इसका कारण स्पष्ट है, शिक्षा के सार्वभौमिक प्रसार का पर्याप्त न होना। प्रतिभाशाली व्यक्ति राष्ट्र और समाज की उचित सेवा निरक्षरता के कारण नहीं कर पाते हैं।
8. साम्प्रदायिकता के विनाश के लिये आवश्यक- साम्प्रदायिकता एक ऐसा अभिशाप है, जो सामाजिक जीवन में वैयक्तिकता की भावना का विष घोल देता है। अतः राष्ट्रीय जीवन में साम्प्रदायिकता के विष को समाप्त करने के लिए सार्वभौमिक शिक्षा का प्रसार करना आवश्यक है।
अतः उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा का सार्वजनीकरण व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सभी के लिए परमावश्यक है, तभी राष्ट्र समान उन्नति कर सकता है।
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