शिक्षा से सम्बन्धित महात्मा गाँधी के तात्कालिक और सर्वोच्च उद्देश्य
गाँधीजी ने मानव जीवन के विभिन्न पक्षों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के उद्देश्यों को दो भागों में विभक्त किया है- (अ) शिक्षा के तात्कालिक उद्देश्य एवं (ब) शिक्षा के सर्वोच्च उद्देश्य।
(अ) शिक्षा के तात्कालिक उद्देश्य (Immediate aims of education)
गाँधीजी ने शिक्षा के अग्रलिखित तात्कालिक उद्देश्य सुझाये हैं-
1. सन्तुलित व्यक्तित्व का उद्देश्य (Aim of balanced personality)- गाँधीजी के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य सन्तुलित व्यक्तित्व का निर्माण कर उसे विकसित करना है। व्यक्तित्व के निर्धारक (मानसिक, संवेगात्मक, शारीरिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक) पक्षों में सन्तुलन एवं सामंजस्य रखते हुए उन्हें विकसित करना है। मानसिक क्रियाओं को संचालित करने के लिये हृदय तथा मस्तिष्क का तारतम्य बने रहना चाहिये एवं उन्हें प्रशिक्षण भी मिलना चाहिये। शारीरिक विकास हेतु आसन एवं व्यायाम का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। गाँधीजी का यह कथन तर्कसंगत है, “शरीर, मन तथा आत्मा का उचित सामंजस्य सम्पूर्ण व्यक्तित्व की रचना करता है और यही शिक्षा की सच्च मितव्ययता का निर्माण करता है।”
2. जीविकोपार्जन का उद्देश्य (Vocational aim) – गाँधीजी ने शिक्षा को जीविकोपार्जन का प्रमुख उद्देश्य माना है। यदि शिक्षा, जो रोजी-रोटी न दे सके, आत्म-निर्भर न बनाये, बेरोजगार रहने दे, वह व्यर्थ है। बिना आत्म-निर्भरता के व्यक्तित्व का कोई पक्ष विकसित नहीं हो सकता। साथ ही सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं भौतिक क्षेत्र में विकास सम्भव है। गाँधीजी के अनुसार- “शिक्षा को बालकों को बेरोजगारी के विरुद्ध एक प्रकार की सुरक्षा देनी चाहिये । सात वर्ष का कोर्स समाप्त करने के उपरान्त 14 वर्ष की आयु में बालक को कमाने वाले व्यक्ति के रूप में विद्यालय से बाहर भेज दिया जाना चाहिये।”
3. नैतिक या आध्यात्मिक विकास का उद्देश्य (Aim of moral of spiritual development)- गाँधीजी ने शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य चरित्र-निर्माण बताया। वे साक्षरता की अपेक्षा चरित्र-निर्माण पर अधिक बल देते थे। उनके कथनानुसार ‘ज्ञान’ तभी सार्थक है, जब चरित्र-निर्माण की भूमिका निभाये। गाँधीजी के अनुसार, “समस्त ज्ञान का उद्देश्य चरित्र-निर्माण होना चाहिये। व्यक्तित्व की पवित्रता को समस्त चरित्र-निर्माण का आधार होना चाहिये। चरित्र के बिना शिक्षा और पवित्रता के बिना चरित्र व्यर्थ है।”
4. सांस्कृतिक उद्देश्य (Cultural aim)- गाँधीजी के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य सांस्कृतिक ज्ञान एवं उसका संरक्षण है। दैनिक जीवन में जो व्यवहार होते हैं, एक सुसभ्य तथा सुसंस्कृत व्यक्ति के लिये वे आवश्यक हैं तथा उनके मूल्य हैं। संस्कृति मानसिक कार्य का परिणाम न होकर आत्मा का गुण है, जो कि व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र में दृष्टिगोचर होता है। अतः उनका कथन है कि “संस्कृति नींव है, प्रारम्भिक वस्तु है। तुम्हारे सूक्ष्म व्यवहार में इसे प्रकट होना चाहिये।”
5. मुक्ति का उद्देश्य (Aim of deliverance)- गाँधीजी के अनुसार, “शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य मुक्ति का उद्देश्य है, जिसका अर्थ है, वर्तमान जीवन में सभी प्रकार की दासता से स्वतन्त्रता ।” यह दासता सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, भौतिक एवं बौद्धिक कैसी भी हो सकती है? उनका कहना था कि शिक्षा संस्थाओं में प्राप्त ज्ञान द्वारा ही बालक को आध्यात्मिक स्वतन्त्रता का मार्ग दिखाना चाहिये। अतः उनका सीधा अर्थ शिक्षा द्वारा आत्मा को सांसारिक बन्धनों से मुक्त करना है। मुक्ति की भावना शिक्षा द्वारा ही सम्भव है। कांट ने भी शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को आत्म-नियन्त्रण एवं स्वतन्त्रता में सामंजस्य स्थापित करना, सिखलाना बतलाया है। बिना मुक्ति के वह यान्त्रिक हो सकती है।
(ब) शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य (Higher aim of education)
गाँधीजी के अनुसार, शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य परम सत्य या अन्तिम वास्तविकता (ईश्वर) से साक्षात्कार करना है। सत्य का अन्वेषण एवं आत्मा का ज्ञान आवश्यक है ताकि उसमें नैतिक गुणों का प्रादुर्भाव हो सके तथा उसका चारित्रिक विकल्प खोजा जा सके। आत्मानुभूति या आत्म-साक्षात्कार के लिये ‘आत्मा’ का प्रशिक्षण आवश्यक है।
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