टैगोर के दर्शन में अन्य दर्शनों के प्रभाव
टैगोर के दर्शन पर अन्य दर्शनों के प्रभाव का विवेचन अग्रलिखित रूप में किया जा सकता है –
1. प्रकृतिवादी टैगोर (Tagore as a Naturalist)
रूसो की भाँति टैगोर भी प्रकृतिवाद से प्रभावित थे। वे जन्म से ही प्रकृति के उपासक थे। वे प्रकृति को एक शक्ति के रूप में स्वीकार करते थे तथा उनकी यह धारणा थी कि बालक की शिक्षा प्राकृतिक वातावरण में होनी चाहिये। रूसो तथा टैंगोर दोनों ही यह मानते थे कि प्रकृति एक महान शिक्षक की भाँति है और प्रकृति की गोद में प्राप्त की गयी शिक्षा सर्वोत्कृष्ट शिक्षा है। दोनों ही बालक के व्यक्तित्व के लिये बहुत अनुसार महत्व देते हैं। वे यह मानते थे कि शिक्षा में विद्यालयों, नियमों, पुस्तकों, शिक्षकों आदि की तुलना में बालकों का महत्व अधिक है। अतः शिक्षा की व्यवस्था बालकों की आवश्यकता के को जानी चाहिये। इस दृष्टि से यह आवश्यक है कि उन्हें प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा प्राप्ति के अवसर प्रदान किये जायेंगे। उन्होंने रूसो की भाँति ‘प्रकृति की ओर लौटो’ का नारा लगाया किन्तु टैगोर का प्रकृतिवाद रूसो के प्रकृतिवाद से कुछ भिन्न भी है। टैगोर के प्रकृतिवाद का समाज से घनिष्ठ सम्बन्ध है क्योंकि टैगोर बालक की प्रकृति का सामाजीकरण करके उसे विकसित करने का सुझाव देते हैं। इसके विपरीत रूसो बालक को समाज से दूर रखकर विकसित करना चाहता था। इसी प्रकार टैगोर प्रकृति में मानव एकता तथा ब्रह्म का दर्शन करते हैं तथा इस प्रकार के अति प्रकृतिवाद में विश्वास करते हैं, जबकि रूसो प्रकृति को मात्र एक भौतिक शक्ति मानता था।
2. आदर्शवादी टैगोर (Tagore as an Idealist)
टैगोर प्रमुख रूप से आदर्शवादी थे तथा उनका आदर्शवाद सैद्धान्तिक नहीं वरन् व्यावहारिक भी था। उन्होंने अपने आदर्श सम्बन्धी विचारों को अपनी संस्था में क्रियान्वयन करने के लिये उपयुक्त परिस्थितियों का सृजन किया। आप यह मानते थे कि व्यक्ति विश्व में रह कर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है। यदि मानव पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त कर ले तो वह ईश्वर से साक्षात्कार कर सकता है। आपने बताया कि शिक्षा के कुछ प्रमुख उद्देश्य पूर्ण मनुष्यत्व का विकास, आध्यात्मिक संस्कृति का विकास, शाश्वत सत्य की खोज, सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् आदि मूल्यों की प्राप्ति है। आपके विचार से शिक्षा का कार्य सम्पूर्ण जीवन का सामंजस्य स्थापित करना है। वे ब्रह्म, ईश्वर एवं मनुष्य की श्रेष्ठता में विश्वास रखते थे तथा अनेकता में एकता के सिद्धान्त के समर्थक थे ।
3. प्रयोजनवादी टैगोर (Tagore as a Pragmatistst)
आदर्शवादी होने के साथ-साथ टैगोर प्रयोजनवादी भी थे। वे ड्यूवी की भाँति शिक्षा को जीवन से सम्बन्धित करना आवश्यक समझते थे। उनका विचार था कि किसी आदर्श या भौतिक विचारों को बिना जाँचे परखे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिये तथा विद्यालयों का समाज से सम्बन्ध बना रहना चाहिये। टैगोर ने शिक्षा के आदर्शों तथा उद्देश्यों में अनेक तत्वों को सम्मिलित करने की बात कही, जैसे- स्वतन्त्रता, रचनात्मक अभिव्यक्ति, व्यक्तित्व का आदर, सामाजिकता, क्रियाशीलता, सामाजिक क्रियाएँ आदि । प्रयोजनवादियों के समान वे भी यह मानते थे कि शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य शाश्वत् मूल्यों की प्राप्ति होना चाहिये तथा शिक्षा लक्ष्यहीन नहीं होनी चाहिये।
4. यथार्थवादी टैगोर ( Tagore As a Realist)
टैगोर केवल आदर्शवादी ही नहीं वरन् यथार्थवादी भी थे और उनका यथार्थवाद, कोरा भौतिकवाद नहीं था। उन्होंने पश्चिमी यथार्थवाद का भारतीय आदर्शवाद से सामंजस्य स्थापित करके पश्चिमी विज्ञान और पूर्वी संस्कृति में एकता को खोज निकाला। उन्होंने शिक्षा को व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन से सम्बन्धित किया। इस प्रकार उन्होंने शिक्षा को यथार्थ एवं व्यावहारिक बनाने का प्रयत्न किया।
5. मानवतावादी टैगोर (Tagore As a Humanist)
टैगोर मानवतावादी थे। उन्होंने “मैं मानवता के हृदय में वास करने की इच्छा रखता हूँ। वे मानव जाति से विशेष प्रेम कहा करते थे। उनका लक्ष्य मनुष्य का उद्धार करना था। वे मनुष्य को ब्रह्म का अंश मानते थे। वे चाहते थे कि मनुष्य एक-दूसरे से अत्यधिक प्रेम करे, एक-दूसरे को समझे तथा अपने हृदय की बात एक-दूसरे से कहे। ऐसा करने से मानवता का विकास होगा तथा लोगों के दुःख और कष्ट दूर होंगे।” इसी कारण उन्होंने लोक शिक्षण की योजना बनायी तथा अन्तर्राष्ट्रीय एवं विश्व बन्धुत्वता की भावना के विकास पर बल दिया। अपनी संस्था विश्वभारती में उन्होंने इसी मानव एकता की भावना को विकसित करने के लिये सभी संस्कृतियों एवं धर्मों का समन्वय किया है।
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